बाल कहानी: नई चुनौतियाँ नए मानदण्ड।

SHARE:

बाल साहित्य की चर्चित हस्ताक्षर उषा यादव की प्रतिनिध‍ि कहानियों (संपादक- जाकिर अली रजनीश) के बहाने उनकी कहानी कला का समीक्षात्मक अवलोकन।

बाल कहानी: नई चुनौतियाँ नए मानदण्ड, संदर्भ उषा यादव

एक सामान्य व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में दसियों तरह के कार्य सम्पादित करता है। उनमें से ज्यादातर काम एक रूटीन वर्क की तरह होते हैं। जैसे नहाना–धोना, खाना–पीना, दैनिक काम पर जाना आदि इत्यादि। ये काम इतने सामान्य होते हैं कि न तो हमारा ध्यान खींचते हैं और न ही स्मृति में ज्यादा देर तक ठहर पाते हैं। उदाहरण के रूप में अगर किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि उसने दस दिन पहले दोपहर के खाने में क्या खाया था, तो शायद वह कठिनाई में पड़ जाए। लेकिन यदि किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि उसने एक साल पहले अपने लड़के की शादी में कौन–कौन से पकवान बनवाए थे, तो शायद ही वह कोई चीज भूले।
Usha Yaday ki Shreshth Bal Kathayen by Zakir Ali Rajnish

कहने का आशय यह है कि हमारे दिमाग में वे चीजें ही ठहर पाती हैं, जो कुछ खास होती हैं। वे बहुत अच्छी और बुरी दोनों तरह की हो सकती हैं। अब यह उस व्यक्ति की सोच और व्यवहार पर निर्भर करता है कि वह बुरी चीजों में स्वाद लेता है अथवा अच्छी चीजों में। जो लोग नकारात्मक प्रवृत्ति के होते हैं, वे अपने जीवन की बुरी घटनाओं को भूल नहीं पाते और अपने दैनिक जीवन में हर उचित–अनुचित अवसर पर उन्हें दोहराकर अपने साथ–साथ दूसरों का भी समय खराब करते हैं। ठीक यही काम सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति भी दोहराता है, बस फर्क इतना होता है कि उससे दूसरे लोग चिढ़ने के बजाए प्रसन्न होते हैं।

उपर्युक्त बातें साहित्य में भी समान रूप से लागू होती हैं। स्तरीय या स्तरहीन रचनाएं भी अच्छी या बुरी घटना के समान होती हैं। ये हमारे दिमाग पर एक विशेष तरह का प्रभाव डालती हैं और अपने कथ्य की तीव्रता के अनुरूप हमारे मस्तिष्क में जगह बनाती हैं।

बाल कहानियों की बात की जाए तो हमें चारों ओर इफरात रचनाएं बिखरी हुई नजर आती हैं। कई लेखक बन्धु तो ऐसे हैं, जिनकी हर महीने दो–चार रचनाएं यहां-वहां निश्चित रूप से छपती हैं। सम्भवत: ऐसे लोग यह सोचते होंगे कि जितना ज्यादा कलम वे घिसेंगे, उन्हें उतना ही बड़ा रचनाकार माना जाएगा। पता नहीं यह तथ्य उनके संज्ञान में है भी या नहीं कि ज्यादा लिखने की तुलना में अच्छा लिखना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।

अधिकतर लोग साहित्य के क्षेत्र में यह सोच कर कदम रखते हैं कि इससे उनका नाम होगा, लोग उनकी इज्जत करेंगे। लेकिन पता नहीं यह बात वे क्यों नहीं समझ पाते कि यह काम 'लोक कथाओं का पुनर्लेखन' करके अथवा ‘सुधारात्मक/उपदेशात्मक’ कहानियां लिख देने भर से तो होने से रहा। फिर चाहे उनकी संख्या सैकडों में नहीं, हजारों में ही क्यों न हो।
 
मैं जब भी अच्छी बाल कहानियों के बारे में सोचता हूं, तो मेरे दिमाग में ‘ईदगाह’ (प्रेमचन्द), ‘मिनी महात्मा’ (आलमशाह खान), ‘तमाचा’ (राजेन्द्र अवस्थी), ‘जेब कतरने से पहले’ (यादराम रसेन्द्र), ‘रसगुल्ला’ (उषा यादव), ‘उसके आगे क्या है कजरी’ (अनन्त कुशवाहा), ‘एक पिकनिक ऐसी भी’ (शोभनाथ लाल), ‘मम्मी’ (समीरा स्वर्णकार), ‘नानाजी की याद में’ (अनुकृति संजय), और ‘किराए का मकान’ (मो० अरशद खान) जैसी रचनाएं कौंधती हैं। इस संदर्भ में मेरे दिमाग में कभी ‘बंटी सुधर गया’, ‘सोनू का पछतावा’, ‘समय का मोल’ अथवा ‘जयगढ की राजकुमारी’, ‘जादूई चटाई’ या ‘सोने की गुफा’ जैसी कहानियां नहीं उभरतीं। इसके पीछे वजह यह है कि ये कहानियां सिर्फ लिखने के लिए लिखी जाती हैं। इनके सृजन का उत्तरदायित्व दिल नहीं दिमाग ने निभाया होता है। और यह एक प्रामाणिक तथ्य है कि वे रचनाएं ही पाठक के दिल को छूने में सफल हो पाती हैं, जो लेखक के दिल से निकली होती हैं।

आजकल जो बाल कहानियां लिखी जा रही हैं, उनमें दोयम दर्जे की रचनाओं का प्रतिशत कहीं ज्यादा है। एक तरह से यह सब निराशा को जन्म देता है। क्योंकि जो चीज हमारे चारों ओर इफरात के रूप में पाई जाती है, लोगों की नजरें पहले वहीं पर जाती हैं। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि कूड़े के बीच पडा हुआ हीरा अनदेखा ही रह जाता है। खोजने वाला अगर वाकई जौहरी है, तो उसकी नजर हीरे तक पहुंच ही जाती है। यह अलग बात है कि इस काम में समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है।

बाल कहानी रूपी अथाह समुद्र से गुजरते समय एक नाम जब भी मेरे सामने से गुजरा, अपनी सृजनात्मक कौंध से मुझे चमत्कृत कर गया। वह सम्मानित नाम है उषा यादव। आमतौर से बाल कहानियों पर लोग तीन तरह के आक्षेप लगाते हैं। पहला– बाल कहानियां अपने समय का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। दूसरा– ज्यादातर बाल कहानियां बचकानी शैली में लिखी जाती हैं और तीसरा यह कि बाल कहानियों के पात्र किसी वर्ग विशेष (मध्य वर्ग/उच्च मध्य वर्ग) से ही ताल्लुक रखते हैं।

उषा यादव की कहानियां पूरी शिद्दत से इन आक्षेपों का जवाब देती हैं। वे अपने समय की रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में हमारा समाज, हमारा परिवेश पूरी शिद्दत के साथ माजूद है। वे एक ओर जहां ‘दीप से दीप जले’ और ‘खोई हुई दादी’ में हमारी कमियों की ओर इशारा करती हैं, वहीं दूसरी ओर ‘खेल–खेल में’ जैसी रचना में साम्प्रदायिकता जैसी गम्भीर समस्या का हल भी सुझाती हैं। ऐसा करते हुए वे एक गम्भीर निर्देशक की भूमिका का निर्वहन ही नहीं करतीं, सरसता का भी पूरा ख्याल रखती हैं। यही कारण है कि उनकी कहानियां आदर्श बाल कथाओं सा एहसास दिलाती हैं।

बाल मनोविज्ञान की समझ किसी भी बाल कहानीकार के लिए सबसे पहली शर्त होती है। औरों की तरह वे इसका ढिंढ़ोरा तो नहीं पीटतीं, पर अपनी रचनाओं में कदम–कदम पर उसके सुबूत अवश्य छोडती चलती हैं। ‘रसगुल्ला’ उनकी एक चर्चित कहानी है। अपनी कसी हुई संरचना और बाल मनोविज्ञान के सूक्ष्म अंकन के कारण यह कहानी मंत्रमुग्धता की हद तक प्रभावित करती है।

जिस प्रकार चाय की एक सिप यह बताने के लिए पर्याप्त होती है कि वह कैसी बनी है, उसी प्रकार किसी कहानी का एक पैरा ही यह बताने में सक्षम होता है कि वह किस श्रेणी की रचना है। विशेष रूप से कहानी कहने की कला और शब्दों का खिलंदड़ापन इनमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रसगुल्ला का दूसरा पैरा देखें:–

“मां की भौहों पर बल पड गये। ऊफ, यह लड़की है या शरारत की पिटारी। देखने में बित्ते भर की, पर अक्ल में बड़े–बड़ों के कान काटने वाली। देखो न, कुछ देर पहले मैंने रसगुल्लों की हंडिया चुपके से अलमारी में रखी थी। कोई दूसरा होता, तो कुछ समझ नहीं पाता। पर यह चंटो फौरन भांप गयी। तभी से वही एक रट– रसगुल्ला। रसगुल्ला।।’’

बच्ची को रसगुल्ला चाहिए, पर मां उन्हें ‘अंकल–आंटी’ के आने तक सहेज कर रखना चाहती है। वह उसे बहलाना चाहती है। पर क्या बच्चों को बहलाना इतना आसान है? वह उसे काम में उलझाना चाहती है। पर क्या बच्चों से काम कराना भी इतना आसान है? हुआ भी वही। मां ने गिलास संभाल कर रखने को कहा था। पर एक गिलास टूट ही गया। अब मौके की नजाकत देखिए। मां बच्चे की जिद से चिढ़ी बैठी हुई है। उसे काम खत्म करने की जल्दी है। घर में मेहमान आने वाले हैं। उस पर गिलास का टूटना। एक तो नुकसान, दूसरा नया काम, वह भी जिम्मेदारी भरा। जरा सी गल्ती हो जाए, तो कांच अंदर और खून बाहर। ऐसे में बच्ची को एक चांटा तो पड़ना ही था।

पर आश्चर्य की बात यह कि बच्ची रोई नहीं। वह चुपचाप अपने बिस्तर पर चादर लपेट कर लेट गयी। यह देख कर पाठक का मन उद्वेलित हो उठता है। ऐसी परिस्थिति और इतना संयम? अब आगे क्या होगा?

और अंत तो एकदम लाजवाब। पिता को आने पर बेटी के बिस्तर पर लेटी होने की बात पता चली। पिता चौंके। ऐसा कैसे? उससे पूछा गया। जवाब में वह सिर्फ इतना ही बोली– “(मां) मुझे देती नहीं, रसगुल्ला।”

क्या इससे सुखद अंत की कल्पना की जा सकती है? नहीं। अपनी इस जबरदस्त प्रभावोत्पादकता के कारण यह रचना ‘मम्मी’ (समीरा स्वर्णकार) और ‘बेबी माने अप्पी’ (जाकिर अली ‘रजनीश’) कहानियों की याद दिलाती है। ‘मम्मी’ और ‘बेबी माने अप्पी’ में यूं तो स्कूल की पृष्ठभूमि ली गयी है, पर वहां भी बच्चों की वही जिद केन्द्र में है, जो ‘रसगुल्ला’ की थीम है।

एक समय था जब बच्चों को ठोंक–पीट कर सही रास्ते पर चलाया जाता था। पर आज का समय बदल गया है। आज के ज्यादातर माता–पिता समझदारी का परिचय देते हैं। वे जानते हैं कि बच्चे का स्वभाव बहुत कोमल होता है। उसे डांट की नहीं, प्यार की जरूरत होती है। यही कारण है कि वे बच्चे की छोटी–मोटी बदतमीजियों पर वे अपने सभ्यता के चोगे को उतारने की जुर्रत नहीं करते। उन्हें अपने प्यार पर विश्वास होता है और साथ ही साथ यह यकीन भी कि एक दिन उन्हें वास्तविकता समझ में आ ही जाएगी। यह एक परिपक्व समझ है, जो उषा यादव की ‘डायरी’, ‘एक पैसे की कुबुद्धि’, ‘मेहनत से क्या डरना’, ‘ठोकर’ और ‘अधजल गगरी’ में साफ तौर से देखी जा सकती है।

खासकर ‘डायरी’ तो एक विलक्षण रचना है। यह एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो अपने अमीर दोस्तों से प्रभावित है। वह बगैर अपने मा–बाप की स्थिति की परवाह किए उनके जैसे ही साजो–सामान अपने पास देखने का ख्वाहिशमंद है। और ऐसे में उसपर जो बीतती है, लेखिका ने बड़ी कलात्मकता के साथ उन शब्द चित्रों को उकेरा है:–

“जो भी हो, मां का दो–टूक इनकार सुनकर उसे बहुत गुस्सा आया था। इसी झोंक में उसने एक फैसला कर लिया था। अगर इन कंजूसों को उसके नाम पर पैसा खर्च करना इतना अखरता है, तो वह बड़ा होकर अपने पालन–पोषण का सारा खर्च इन्हें लौटा देगा। ऐसा गया गुजरा नहीं है कि एक मामूली घड़ी की खातिर धौंस सह ले और उसे बुरा भी न लगे।”

भाषा एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जो नीरस से नीरस विषय में भी जान डाल देती है। फिर जब बात इतने संवेदनशील मुद्दे पर चल रही हो, तो उषा यादव की लेखनी का प्रताप देखते ही बनता है। कहानी का पात्र अंकित अपने ऊपर होने वाले खर्च को एक डायरी में लिखता रहता था। पर संयोगवश वह डायरी एक दिन माँ के हाथ लग गयी। ऐसे में अंकित की सिट्टी–पिट्टी गुम होना स्वाभाविक था। पर मां के दिल पर क्या बीती, इसका वर्णन देखिए:–

“माँ मुस्करा कर बोली– ‘क्या सिर्फ पैसों का ही कर्ज चुकाओगे बेटा ? तुम्हारे लिए मैं सारी–सारी रात जागी भी तो हूं। ...खुद गीले पर लेटकर तुम्हें सूखे पर लिटाया है। छोटे थे, तब न जाने कितनी बार मेरी नई से नई साडियों पर...’ यह शिकायत नहीं थी, शब्द भी नहीं थे, मां के हृदय से निकली हुई कराह थी।”

इतने संवेदनशील विषय को छूना और उसे अंत तक समुचित ढंग से निभा ले जाना एक दुष्कर कार्य है। नि:संदेह, लेखिका ने यहां पर जिस संयम और कुशलता का परिचय दिया है, वे उसके लिए बधाई की पात्र हैं। यह अद्वितीय रचना अनायास ही उर्दू कहानीबिल’ की याद दिलाती है, जिसमें एक लड़का अपने मां–बाप के छोटे–मोटे कामों को करने पर उनके बिल बनाता है और पैसों की डिमांड करता है। लेकिन जब उस लड़के के मां–बाप उस पर होने वाले खर्च का बिल दिखाते हैं, तो उसके होश फना हो जाते हैं। हालांकि दोनों कहानियों के कथ्य बिलकुल अलग हैं, भावभूमि बिलकुल जुदा है और प्रभाव में भी समानता नहीं है, पर फिर भी दोनों कहानियां संवेदना के स्तर पर लगभग एक फ्रिक्वेंसी की तरंगें उत्पन्न करती हैं। ये अलग बात है कि ‘डायरी’ की तरंगों की आवृत्ति ‘बिल’ के मुकाबले कई गुना ज्यादा है।

यदि रचनाकार की लेखनी में सामर्थ्य हो तो सामान्य से सामान्य विषय पर भी अच्छी कहानी लिखी जा सकती है। इसके प्रमाण के रूप में ‘खोई हुई दादी’, ‘सबसे गहरा रंग’, ‘चाकलेट का पेड़’, ‘खट्टी–मीठी गोलियां’, ‘पते की बात’, ‘नकली नोट’, ‘मेहनत से क्या डरना’, ‘अधजल गगरी’, ‘ठोकर’, ‘खुश्बू का रहस्य’ और ‘सतरंगा मोती’ जैसी कहानियां देखी जा सकती हैं। इन कहानियों के विषय बहुत ही मामूली हैं, जो हर नौवीं–दसवीं कहानियों में रिपीट होते रहते हैं। लेकिन यदि संगतराश में हुनर है, तो वह मामूली पत्थर में भी इतनी चमक पैदा कर सकता है कि वह हीरा लगने लगे। उषा यादव ऐसी ही संगतराश हैं। यही कारण है कि इन सामान्य और बहुपठित विषयों पर लिखी गयी उनकी कहानियां भी नयेपन का एहसास कराती हैं। वे अपने शब्दों के माध्यम से एक ऐसा समां बांधती हैं कि पाठक उसमें खोया हुआ कब अंत कर पहुंच जाता है, उसे पता ही नहीं चलता।

एक अच्छे रचनाकार में चीजों को नए दृष्टिकोण से समझने की प्रतिभा और नवीन विषयों को अपने कथ्य के दायरे में लाने का साहस भी होना चाहिए। उषा यादव की कहानियों से गुजरते समय ‘तस्वीरें’, ‘दीप से दीप जले’, ‘अनोखा उपहार’, ‘कोल्ड ड्रिंक’, और ‘मन की बात’ में इसी प्रतिभा, इसी साहस के दर्शन होते हैं।

तस्वीरें’ एक ऐसे लड़के की कहानी है, जो कूड़ा–कचरा बीनने का काम करता है। लेकिन उस लड़के के भीतर भी अपनी माटी के लिए, अपने देश के लिए जो सम्मान की भावना है, उसे सलाम करने को जी चाहता है। वह लड़का अपने शहर, अपने देश के सम्मान के लिए अपनी रोजी की परवाह न करते हुए, पैसों के लालच से पार जाते हुए एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो सामान्य रूप से सोच के परे है। ऐसी ही कहानियों को पढ़ने के बाद बेसाख्ता मुह से निकल जाता है– ‘वाह, क्या कहानी है। काश, ये कहानी मैंने लिखी होती...।’

दीप से दीप जले’ और ‘अनोखा उपहार’ यूं तो दो अलग–अलग विषयों पर्यावरण और बच्चों के एकाकीपन को केन्द्र में रख कर लिखी गयी हैं, पर इनकी प्रस्तुति लाजवाब है। खासकर ‘दीप से दीप जले’ कहानी जिस विनम्रता और संकोच के साथ शुरू होती है, वह अद्भुत है। इतने नीरस विषय पर इतनी सशक्त कहानी लिखने का काम एक मंजा हुआ रचनाकार ही कर सकता है।

नौकरी पेशा मां–बाप के पास बच्चों के लिए समय का टोटा आज के समाज का कठोर सच है। एक ऐसे ही घर का बच्चा है नीरज, जो अपने जन्मदिन में उपहार के रूप में अपनी मां से हर रोज सिर्फ पांच मिनट का समय मांगता है, अपने मन की बकवास सुनाने के लिए। ऐसे में माँ की आंखों से आंसू निकलना स्वाभा‍विक ही है। इन आसुओं की नमी बहुत हौले से पाठकों के हृदय को भिगो जाती है। यही इस कहानी का हासिल है। ‘मन की बात’ इसी भावभूमि पर लिखी दूसरी कहानी है, जिसमें कहानी का पात्र अंकित अपनी छोटी बहन निधि के बीमार होने की कल्पना कर बैठता है, ताकि माँ छुट्टी लेकर घर पर रहें और वह उनसे ढ़ेर सारी बातें कर सके। एक ही विषय पर दो इतनी अच्छी कहानियां लिखना वाकई बड़ी बात है। शायद इसके पीछे एक वजह यह भी रही हो कि जॉब में रहने के कारण लेखिका ने इस तड़प को नजदीक से देखा हो, महसूस किया हो। यह विवशता बराबर उन्हें सालती रही हो और मौका मिलते ही कहानियों के रूप में फूट पड़ी हो।

इस सबके साथ यदि ‘कोल्ड ड्रिंक’ की चर्चा न हो, तो शायद बात अधूरी ही रह जाए। एक ओर जहां कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिले होने की खबरों से सारे देश में विरोध की लहर उठ रही है, वहीं इस सबसे बेखबर छोटे–छोटे बच्चे हैं, जो इस तरह के शीतल पेयों को बड़ी शान से पीते हैं। कुछ बच्चे इसके स्वाद के कारण, कुछ इसके झाग के कारण, तो कुछ स्वयं को बड़ा साबित करने के लिए इसे पाना चाहते हैं। उनके लिए शीतल पेय की बोतल को होठों से लगाना, वर्ल्ड कप चूमने के समान है। ऐसे ही एक बच्चे की कहानी है ‘कोल्ड ड्रिंक’।

ट्रेन में अपनी माँ के साथ यात्रा करने वाला एक बच्चा कोल्ड ड्रिंक बेचने वाले वेन्डर को देखकर माँ को आवाज लगाता है। माँ के न उठने पर सामने बैठा एक व्यक्ति, जिसका लड़का पांचवी बोतल पी रहा होता है, उसे एक बोतल दिला देता है। ठंडा पाकर वह बच्चा बहुत खुश होता है और बड़े मजे से सिप लेकर उसे पीने लगता है। लेकिन जब उसे पता चलता है कि सामने वाले ‘अंकल’ ने इसलिए उसे ठंडा दिलाया है कि कहीं उनके बेटे को इसकी नजर न लगे, तो वह सन्न रह जाता है।

“सोनू ने गर्दन मोड़कर बडी मुश्किल से अपनी आंखों में उमड़ते हुए आंसू रोके। हाथ की भरी बोतल को अब मुंह तक ले जाना कठिन था। लेकिन वह कहीं फेंकी भी तो नहीं जा सकती। फिजूल ही डिब्बे में और तमाशा बनता।

“और फिर एक सांस में उसने पूरा कोल्ड ड्रिंक खत्म कर दिया। कुछ क्षण पहले का मीठा शरबत पता नहीं कैसे अनोखे जादू से कड़वी दवा में बदल गया था ? नन्हा सोनू उदास होने के साथ–साथ परेशान भी था। आखिर ऐसा कैसे हो गया?”

बाल मनोविज्ञान और पठनीयता की दृष्टि से यह एक चमत्कृत कर देने वाली कहानी है। न कोई सीख न कोई उपदेश, पर समझदार के लिए इशारा काफी। एक अच्छी कहानी कैसी होती है, यह इसके जरिए समझा जा सकता है।

आलोचक ही क्या अच्छे पाठकों को भी यह अपेक्षा रहती है कि लेखक की भाषा में खिलंदडेपन का उत्स भले ही न हो, पर वह ‘कमजोर कडी’ भी साबित न होने पाए। इस लिहाज से सुकून के धरातल के काफी ऊपर ठहरता है उषा यादव की कहानियों का भाषिक स्तर। बल्कि कहीं–कहीं तो वे अपने भाषिक प्रयोगों से चमत्कृत कर देने की हद तक चौंकाती हैं। ‘डायरी’, ‘सबसे गहरा रंग’, ‘दीप से दीप जले’, ‘चाकलेट का पेड़’, ‘एक पैसे की कुबुद्धि’, ‘मन की बात’, ‘अधजल गगरी’ इसके साक्षात प्रमाण हैं। कुछ उदाहरण देखें:–

“मीनू फक्क। अब क्या करे वह? यह तो बडी गड़बड़ हो गयी। रसगुल्ला गया भाड़ में, पिटाई की नौबत आ गयी। इधर मेहमान आने को, उधर मां के लिए कांच बटोरने का एक और काम बढ़ा दिया उसने। भला गुस्सा नहीं आएगा उन्हें?”

X X X X

“बस, भागकर अन्दर गया सोनू और बस्ते में से एक छेद वाला पैसा निकाल लाया। ऐसा पैसा आजकल चलता नहीं। दादी की संदूकची में रखा देखकर कुछ दिन पहले उसने मांग लिया था। ...चलो, वही सिक्का एक किलो बुद्धि खरीदने के काम आ गया। हजार ग्राम का मतलब एक किलो होता है, इतना हिसाब वह जानता था।”

बात जब साहित्य की चल रही हो, तो वहां पर लेखकीय प्रतिबद्धता का सवाल उठना लाजिमी है। बाल साहित्य के संदर्भ में भी इससे मुकरा नहीं जा सकता। फिर चाहे वह बाल कविता हो, अथवा बाल कहानी या फिर कोई अन्य विधा। भले ही मनोरंजन बाल साहित्य की पहली शर्त मानी गयी है, पर सामाजिक दायित्वों से पीछे हटने वाली रचना ‘अच्छे साहित्य’ की कोटि में नहीं ही आ सकती।

इस नजरिए से भी उषा यादव की कहानियां निराश नहीं करतीं। एक ओर जहां वे अपनी अधिसंख्य बाल कहानियों में बाल निर्माण के प्रति गम्भीर दिखती हैं, वहीं ‘खेल–खेल में’, ‘तस्वीरें’, ‘दीप से दीप जले’, ‘पते की बात’, ‘नकली नोट’ और ‘सतरंगा मोती’ में सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूक दिखती हैं। वे अपनी रचनाओं के जरिए सामाजिक सदभाव को संवारने का काम करती हैं (खेल खेल में), वे राष्ट्रप्रेम की भावना जगाती हैं (तस्वीरें), वे पर्यावरण और ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के लिए चेताती हैं (दीप से दीप जले और पते की बात), वे समाज में गड़बड़ी फैलाने वालों को ललकारती हैं (नकली नोट) और परोपकार तथा करूणा के बीज बोती हैं।

संक्षेप में कहें तो उषा यादव की कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करतीं, पाठकों को टोकतीं, झकझोरती और नई राह भी दिखाती हैं। सिर्फ लेखकीय श्रम ही नहीं, पाठकीय नजरिए से भी ये कहानियां निहाल करती हैं। ये कहानियां बाल साहित्य के इतिहास में एक उच्च मानदण्ड स्थापित करते हुए नये लेखकों के लिए एक चुनौती का काम करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
(पुस्‍तक 'उषा यादव की श्रेष्‍ठ बाल कथाएं' की भूमिका)

पुस्तक: उषा यादव की श्रेष्ठ बाल कथाएं
सम्पादक: डॉ. जाकिर अली रजनीश
संग्रहीत कहानियां: रसगुल्ला, डायरी, खेल-खेल में, तस्वीरें, खोई हुई दादी, सबसे गहरा रंग, दीप से दीप जले, चाकलेट का पेड़, एक पैसे की कुबुद्धि, अनोखा उपहार, खट्टी मीठी गोलियां, पते की बात, कोल्ड ड्रिंक, नकली नोट, मेहनत से क्या डरना, मन की बात, ठोकर, अधजल गगरी, खुश्बू का रहस्य, सतरंगा मोती
प्रकाशक: लहर प्रकाशन (साहित्य भंडार), 778, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद, मोबाइल-094152 14878
मूल्य: 150.00
 
keywords: usha yadav, dr usha yadav, dr usha yadav ka sahitya, dr usha yadav ka bal sahitya, dr usha yadav ki kahaniyan, dr usha yadav ki bal kahaniyan, dr usha yadav ki kavitayen, dr usha yadav ki bal kavitayen, hindi mahila lekhak, hindi mahila lekhikayen, mahila kahanikar, mahila kavita, mahila kavita in hindi, mahila kavita, mahila kavita in hindi, lady poets in india, lady poets in hindi, lady writers india, lady writers hindi, mahila bal sahityakar, hindi sahitya me bal vimarsh, bachchon ki kahaniyan, bachon ki kahaniyan in hindi dailymotion, bachon ki kahaniyan free download, bachon ki kahaniyan read online, bachon ki kahani, bachpan ki kahaniyan

जाकिर अली 'रजनीश' द्वारा संपादित अन्य पुस्तकें

* इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियां (2 खण्‍डों, 107 कहानियां, वर्ष-1998)
प्रकाशक-मदनलाल कानोडिया एंड कंपनी (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003)

* एक सौ इक्यावन बाल कविताएं (वर्ष-2003)
प्रकाशक-मदनलाल कानोडिया एंड कंपनी (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

* तीस बाल नाटक (वर्ष-2003)
प्रकाशक-यश पब्लिकेशंस (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

* प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएं (वर्ष-2003)
प्रकाशक-विद्यार्थी प्रकाशन, मुरारीलाल ट्रस्‍ट पाठशाला बिल्डिंग, अमीनाबाद, लखनऊ-226018

* ग्यारह बाल उपन्यास (वर्ष-2006)
प्रकाशक-वर्षा प्रकाशन (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

* अनन्‍त कुशवाहा की श्रेष्‍ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2008)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

* यादराम रसेन्‍द्र की श्रेष्‍ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2008)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

* मो. अरशद खान की श्रेष्‍ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2012)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्‍य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003

COMMENTS

BLOGGER: 1
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

नाम

achievements,3,album,1,award,21,bal-kahani,9,bal-kavita,5,bal-sahitya,33,bal-sahityakar,13,bal-vigyankatha,4,blog-awards,29,blog-review,45,blogging,42,blogs,49,books,9,buddha stories,4,children-books,14,Communication Skills,1,creation,9,Education,4,family,8,hasya vyang,3,hasya-vyang,8,Health,1,Hindi Magazines,7,interview,2,investment,3,kahani,2,kavita,9,kids,6,literature,15,Motivation,71,motivational biography,27,motivational love stories,7,motivational quotes,15,motivational real stories,5,motivational speech,1,motivational stories,25,ncert-cbse,9,personal,18,Personality Development,1,popular-blogs,4,religion,1,research,1,review,15,sahitya,28,samwaad-samman,23,science-fiction,4,script-writing,7,secret of happiness,1,seminar,23,Shayari,1,SKS,6,social,35,tips,12,useful,16,wife,1,writer,9,Zakir Ali Rajnish,27,
ltr
item
हिंदी वर्ल्ड - Hindi World: बाल कहानी: नई चुनौतियाँ नए मानदण्ड।
बाल कहानी: नई चुनौतियाँ नए मानदण्ड।
बाल साहित्य की चर्चित हस्ताक्षर उषा यादव की प्रतिनिध‍ि कहानियों (संपादक- जाकिर अली रजनीश) के बहाने उनकी कहानी कला का समीक्षात्मक अवलोकन।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUDmp5Fyfyzrqt6Ey8VrOsoMCPWiAWQ4OsfVnUPw-IMktMC83tjxmhYOnByGjvMXoQ77AEoHB9t-mNa9uVO3vFw2pltfjoqfy3DeByJkDZW9N-AVnYD_CACqzLIJ1d4lty68emEP9S_Kuu/s16000/Usha+Yaday+ki+Shreshth+Bal+Kathayen.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUDmp5Fyfyzrqt6Ey8VrOsoMCPWiAWQ4OsfVnUPw-IMktMC83tjxmhYOnByGjvMXoQ77AEoHB9t-mNa9uVO3vFw2pltfjoqfy3DeByJkDZW9N-AVnYD_CACqzLIJ1d4lty68emEP9S_Kuu/s72-c/Usha+Yaday+ki+Shreshth+Bal+Kathayen.jpg
हिंदी वर्ल्ड - Hindi World
https://me.scientificworld.in/2014/10/children-stories-in-hindi.html
https://me.scientificworld.in/
https://me.scientificworld.in/
https://me.scientificworld.in/2014/10/children-stories-in-hindi.html
true
290840405926959662
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy