'इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ' हिंदी के चर्चित बाल साहित्यकार ज़ाकिर अली 'रजनीश' द्वारा संपादित हिन्दी का सबसे वृहद और प्...
इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ (खण्ड-एक)
1- रसगुल्ला - उषा यादव
2- रुनू रूठी है - डॉ० श्रीप्रसाद
3- बेबी माने अप्पी - ज़ाकिर अली 'रजनीश'
4- मिला गई खुशियाँ - ऊषा रानी
5- नन्हीं का बटुआ - ओमप्रकाश कश्यप
6- किराए का मकान - मो० अरशद खान
7- बादलों की चादर - प्रतिमा कटियार
8- भूत से टक्कर - डॉ० रोहिताश्व अस्थाना
9- सर्दी: दस डिग्री ऊपर दस डिग्री नीचे - अनंत कुशवाहा
10- मम्मी - समीरा स्वर्णकार
11- जीने का हक - सुधीर सक्सेना 'सुधि'
12- मैं चमनलाल हूँ - घनश्याम रंजन
13- हवा से बात - डॉ० रत्नलाल शर्मा
14- लकड़बग्घा - राजनारायण चौधरी
15- सम्मान - उषा सक्सेना
16- हिनू की उड़ान - अमित गुप्ता
17- उजली हंसी की याद - सावित्री परमार
18- गोमती - कल्पनाथ सिंह
19- थोड़ा सा प्यार - बानो सरताज
20- शक्कर आंदोलन - मनोहर वर्मा
21- फटी शर्ट - डॉ0 राष्ट्रबंधु
22- रंगलाल के रंग - जगदीश ज्वलंत
23- भविष्यवाणी - डॉ० हरिकृष्ण देवसरे
24- सिर्फ दो रुपये - डॉ० अनिल त्रिपाठी
25- दीवाली की वह रात – नागेश पांडेय 'संजय'
26- प्यास का धर्म - मालती शर्मा
27- एक पिकनिक ऐसी भी - डॉ० शोभनाथ लाल
28- क्या खोया क्या पाया - भगवती प्रसाद द्विवेदी
29- हाथ की लकीरें - डॉ० फकीरचन्द शुक्ला
30- प्यारी बेटी अक्की - हसन जमाल
31- झूठा दिलासा - हरिवल्लभ बोहरा 'हरि'
32- एक था चुन्नू - रमाशंकर
33- उसकी दिवाली - डॉ० शकुंतला कालरा
34- बब्बू जी की तीर्थयात्रा - ससि बिष्ठ
35- वेलजी के ऊंट - प्रभात गुप्ता
36- पुण्य का गुलमोहर - शकुंतला सिरोठिया
37- शहतूत का पेड़ - मो० साजिद खान
38- मैं अच्छा बनूंगा - विमला रस्तोगी
39- चतुराई काम न आई - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
40- मिठाइयाँ - आचार्य विष्णुकांत पांडेय
41- यह गुलिश्तों हमारा - शकुन्तला वर्मा
42- चेहरे के रंग - चित्रेश
43- मन का प्रश्न - डॉ० कृष्णा नागर
44- देवाशीष - रुचि अग्रवाल
45- घर का सुख - गोपाल दास नागर
46- बच्चे अगर चाहें - श्रीकृष्ण कुमार पाठक
47- सफेद शैतान - साबिर हुसैन
48- टल गयी दुर्घटना - हरीश गोयल
49- रोबोट का करिश्मा - डॉ० परशुराम शुक्ल
50- चमत्कारी चंदन - रंजना सक्सेना
51- छोटी सी बात - ज़ाकिर अली 'रजनीश'
52- वेगा का मानव - अजित कुमार बनर्जी
53- नीली पहाड़ी के पीछे - विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
54- छुटकारा - राजीव सक्सेना
इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ (खण्ड- दो)
2- टी फॉर टीचर - ज़ाकिर अली 'रजनीश'
3- पेड़ पर स्कूल - क्षमा शर्मा
4- रीना की गेंद - इंदरमन साहू
5- किटी - मोहम्मद फहीम
6- हँसती कली - मेधाविनी मोहन
7- जान बचाओ लोमड़ भाई - मनोहर वर्मा
8- सच होते-होते - मोहम्मद अरशद खान
9- मिर्जा चोया - के० पी० सक्सेना
10- भूगोल पंडित - अक्षय मिश्रा
11- लड़ने का मुद्दा - रामवचन सिंह 'आनन्द'
12- तमाचा - राजेन्द्र अवस्थी
13- बुद्धिमान बंटी - अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन'
14- साहसी गड़रिया - जगदीश चन्द्र शर्मा
15- थोड़ी सी अक्ल - अंजू अग्रवाल
16- गांव की शेरनी - सुधीर सक्सेना 'सुधि'
17- शैली का साहस - रमाशंकर
18- साहस के चार दिन - योगेश चन्द्र शर्मा
19- डायरी - उषा यादव
20- पानी भरा गुब्बारा - भैंरूलाल गर्ग
21- पिकनिक - बीना कानोडिया
22- चुड़ैल - कमलेश भट्ट 'कमल'
23- मन का चोर - बुलाकी शर्मा
24- हर कदम परीक्षा - कमल चोपड़ा
25- दुलारी - उषा विमलांशु
26- दादा जी की डायरी - अन्तर्यामी प्रधान
27- नई दोस्ती - संदीप कपूर
28- मुसीबत की घड़ी - राजकुमार जैन 'राजन'
29- पानी वाली लड़की - गोपीचन्द श्रीनागर
30- अधूरा निबन्ध - गफूर 'स्नेही'
31- नानी फिर सपने में आई - कौशलेन्द्र पाण्डेय
32- खेल-खेल में - राजीव 'राज'
33- जेब कतरने से पहले - यादराम 'रसेन्द्र'
34- पुस्तकों की हड़ताल - दिनेश पाठक 'शशि'
35- दोस्ती - विनय कुमार मालवीय
36- नाना जी की याद में - अनुकृति संजय
37- दोस्ती का रिश्ता - अनिल त्रिपाठी
38- बाबू लौट आया - नयन कुमार राठी
39- संकल्प - रामशंकर 'चंचल'
40- सजा किस बात की - हरदर्शन सहगल
41- लकीर का जादू - राधेलाल 'नवचक्र'
42- चौथा बन्दर - डॉ० हूंदराज बलवाड़ी
43- बंसत आने पर - मोनी शंकर
44- दादी का चश्मा - गुडविन मसीह
45- बबीता - सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
46- सबसे प्यारा अपना घर - वसुधा शर्मा
47- गुब्बारे वाला - प्रेमचन्द गुप्त 'विशाल'
48- मंजू और मैना - जया 'नर्गिस'
49- पोल खुल गयी - मनोरमा श्रीवास्तव
50- आई उड़न तश्तरी - मनीष मोहन गोरे
51- चाकलेट चोर - ज़ाकिर अली 'रजनीश'
52- टेनू टोनी - साबिर हुसैन
53- सुनहरी तितली - डॉ० अरविन्द मिश्र
'इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ' संग्रह में पहली बार बाल
कहानियों की दशा/दुर्दशा पर खुलकर चर्चा की गयी है। इस चर्चा
को संकलन की भूमिका जोकि 'एक ज़रूरी बात' के नाम से प्रकाशित हुई है, में
देखा जा सकता है। संकलन की भूमिका इस प्रकार है-
एक ज़रूरी बात (इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ पुस्तक की भूमिका)
एक ओर हिन्दी की बाल कथाओं में जहां विषय एवं शिल्प के स्तर पर अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, वहीं बड़ी मात्रा मे ऐसी बाल कथाएं भी रची जा रही हैं, जो अपने निकृष्टतम स्वरूप के कारण बालकथाओं की स्तरीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस प्रकार की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है- 'टीपी हुई कहानियां' और 'फार्मूलाबद्ध कहानियां'।
'टीपी' हुई कहानियों में परीकथाएं, पुराण कथाएं और लोक कथाएं आती हैं। इन रचनाओं में मौलिकता (विषय एवं शिल्प दोनों) का सर्वथा अभाव होता है। यदि दो रचनाकारों की रचनाओं में लेखकों के नाम बदल दिए जाएं, तो उसे सामान्यतः कोई पकड़ नहीं पाएगा। इस तरह की कहानियां वे ही रचनाकार लिखते हैं, जो 'छपास' रोग से बुरी तरह से ग्रस्त होते हैं और एक माह में दस कहानियां प्रकाशित होते देखना चाहते हैं या फिर मौलिक रचनाएं न लिख पाना जिनकी मजबूरी होती है। किन्तु मैं इन रचनाकारों से यह पूछना चाहूंगा कि क्या यह बाल साहित्य है?
बाल साहित्य के बड़े-बड़े आलेखों में जो बात ज़ोर देकर कही जाती है, वह यह है कि बाल साहित्य लेखन एक अत्यंत कठिन कार्य है। किन्तु मैं नहीं समझता कि पुराणों, पुरानी पत्रिकाओं या 'कल्याण' के अंकों को सामने रखकर कहानी को 'टीप लेना', कोई कठिन कार्य है। यह काम तो कक्षा 5 का विद्यार्थी भी कर सकता है। तो क्या वह बाल साहित्यकार हो जाएगा?
बाल साहित्य की एक अन्य विशेषता है, बालमनोविज्ञान का निर्वहन! किन्तु इस 'टीपे हुए साहित्य' का इससे कोई लेना-देना होता ही नहीं। तब क्या इस प्रकार के साहित्य को बाल साहित्य के अन्तर्गत रखा जा सकता है? इस पर समालोचकों को विचार करना चाहिए। यदि वे इन कहानियों से मिलने वाली शिक्षाओं तथा इनके भीतर छुपी सामंतवादी विचारधारा पर भी ग़ौर करें, तो मैं समझता हूं कि बाल साहित्य की स्तरीयता पर प्रश्न चिन्ह लगवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इन रचनाओं को वे कभी स्वीकार नहीं कर सकते।
बाल कथाओं की स्तरीयता को प्रभावित करने में और जिन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वे हैं 'फार्मूलाबद्ध कहानियां'। इन्हें 'जबरदस्ती की लिखी हुई' कहानियां भी कहा जा सकता है, जो अपने उपदेशात्मक शीर्षकों एवं कहानी की शुरूआत (...एक शैतान लड़का था। वह बहुत घमण्डी था। वह बड़ों का आदर नहीं... से ही पता चल जाता है। इस प्रकार की कहानियां एक निश्चित ढ़र्रे पर चलती हैं। प्रारम्भ में पात्र जिद्दी, बदतमीज या आवारा किस्म का होता है और बाद में चलकर 'सुधर' जाता है। प्रायश्चित, सीख, गल्ती, चोरी, प्रण, उपदेश, भूल आदि से आगे ये रचनाएं बढ़ ही नहीं पातीं। 'बाल सुधार' का 'ठेका' लेने वाले ऐसे तमाम रचनाकार बाल मनोविज्ञान की पहली सीढ़ी, कि बच्चे उपदेश सुनना पसंद नहीं करते, की उपेक्षा करते हुए थोक की मात्रा में ऐसे 'सुधार कार्यक्रम' चलाते रहते हैं। विषय की रोचकता एवं मौलिकता की तो खैर इनसे उम्मीद ही बेकार है, पर शैली का चमत्कार भी इनमें कहीं नज़र नहीं आता। सब कुछ एकदम सपाट रूप में! यदि बाल कथाकार अधिक कहानियां लिखने का मोह छोड़कर इन 'जबर्दस्ताऊ' कहानियों से साहित्य को मुक्ति दिलाकर मौलिक एवं बालमनोविज्ञान के अनुकूल साहित्य रचें, तो न सिर्फ हिन्दी बाल कथा साहित्य की स्तरीयता पर लगा धब्बा धुलेगा, वरन उन्हें भी हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक श्रेष्ठ कथाकार के रूप में याद किया जाएगा।
किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि हिन्दी बाल कथा साहित्य में सब कुछ 'टीपा हुआ' या 'फार्मूलाबद्ध' ही है। यह तो एक छोटा सा दाग़ है, जो शेष साहित्य में भी समान रूप से विद्यमान है। इस सबके बावजूद हिन्दी बाल कथा साहित्य का एक समृद्ध इतिहास है और विष्णु प्रभाकर, हरि कृष्ण देवसरे, मनहर चौहान, हरिकृष्ण तैलंग, हसन जमाल, मस्तराम कपूर 'उर्मिल', मनोहर वर्मा, मालती जोशी, श्रीप्रसाद जैसे वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी सशक्त लेखनी के द्वारा साहित्य जगत को ऐसे-ऐसे मनके प्रदान किये हैं, जिन्हें देखकर पाठक चमत्कृत हुए बिना नहीं रह सकते। किन्तु बाल साहित्य का समीक्षा पक्ष कमज़ोर होने के कारण वे रचनाएं चर्चा में नहीं आ पाई हैं। जरूरत है उनको सामने लाने की और उनपर समीक्षात्मक दृष्टि डालने की। यह काम तो करना ही होगा, खासकर उन लोगों को, जिन्हें सम्मेलनों में बाल साहित्य की स्तरीयता को उछालने का शौक है।
वर्तमान में सशक्त बाल कथाकारों की एक बड़ी 'यूनिट' साहित्य सेवा में लगी हुई है। इनमें से कुछ लोग जैसे श्रीप्रसाद, मनोहर वर्मा, चित्रेश, साबिर हुसैन, ओमप्रकाश कश्यप, सावित्री परमार, भगवती प्रसाद द्विवेदी, ससि बिष्ठ, उषा यादव, अनुकृति संजय, नागेश पांडेय 'संजय', रमाशंकर, अरशद खान, जैसे रचनाकार तो विशेष रूप से सक्रिय हैं। ये और इसी तरह के तमाम रचनाकार (जिनका नाम ले पाना संभव नहीं) अपनी सशक्त रचनाओं के द्वारा आश्वस्त करते हैं कि बाल साहित्य का वर्तमान ही नहीं, भविष्य भी उज्जवल है।
हालांकि समय-समय पर बाल कथाओं के छोटे-मोटे संग्रह प्रकाश में आते रहते हैं, पर किन्हीं कारणों से वे लोगों तक पहुंच नहीं पाते। ऐसे में अनेक उत्कृष्ट रचनाओं से साहित्यजगत अपरिचित ही रह जाता है। शायद यही कारण है कि उनपर कुछ समीक्षात्मक रूप में आ नहीं पाता। इसी बात को ध्यान में रखकर प्रस्तुत संग्रह की भूमिका बनी, जिससे बालकथा साहित्य की कुछ श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों एवं आलोचकों के सम्मुख एक साथ रखी जा सकें। और मुझे इस बात का सन्तोष है कि इस कार्य में मैं काफी हद तक सफल रहा हूं। हालांकि किन्हीं कारणों के चलते कई अच्छे रचनाकार इसमें शामिल नहीं हो पाएं हैं, पर उसके लिए किया भी क्या जा सकता है?
यूं तो इस संग्रह की सभी रचनाएं उत्कृष्ट कोटि की हैं, किन्तु यहां पर मैं 'रसगुल्ला', 'रूनू रूठी है', 'मिल गयीं खुशियां, 'नन्ही का बटुआ, 'किराए का मकान', 'उजली हंसी की याद', 'एक पिकनिक ऐसी भी', 'बब्बू जी की तीर्थ यात्रा', 'मिठाइयां', 'चेहरे के रंग', 'गांव की शेरनी', 'साहस के चार दिन, 'जेब कतरने से पहले' एवं 'वेगा का मानव' का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा, जो कथा शिल्प के आधार पर अभिनव प्रयोग हैं। ये और इन जैसी तमाम श्रेष्ठतम रचनाओं की उपस्थिति को जानबूझकर अनदेखा करते रहना, क्या साहित्य के लिए शुभ है?
और अन्त में उन तमाम रचनाकारों, जिनकी रचनाओं ने प्रस्तुत संग्रह को विभूषित किया है, को मैं उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूं। साथ ही मैं डा. सुरेन्द्र विक्रम एवं बाल-पत्रिकाओं के प्रति भी अपना आभार प्रकट करता हूं, जिनके सहयोग से श्रेष्ठ बाल कहानियों के चुनाव में बहुत सहायता मिली है।
आशा करता हूं कि प्रस्तुत संग्रह की रचनाएं पाठकों को पसंद आएंगी तथा साहित्य जगत में इसका स्वागत होगा।
विनीत
ज़ाकिर अली 'रजनीश'
इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ पुस्तक मदनलाल कानोडिया एंड कंपनी, लखनऊ से वर्ष 2008 में प्रकाशित हुई थी। वर्तमान में यह प्रतिष्ठान्न बंद हो गया है, किन्तु इस पुस्तक को पते पते से प्राप्त किया जा सकता है: साहित्य भंडार, 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश-211003, मोबाइल- 94150 28044, 94152 14878, 93351 55792
जाकिर अली 'रजनीश' द्वारा संपादित अन्य पुस्तकें
प्रकाशक-मदनलाल कानोडिया एंड कंपनी (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* तीस बाल नाटक (वर्ष-2003)
प्रकाशक-यश पब्लिकेशंस (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* प्रतिनिधि बाल विज्ञान कथाएं (वर्ष-2003)
प्रकाशक-विद्यार्थी प्रकाशन, मुरारीलाल ट्रस्ट पाठशाला बिल्डिंग, अमीनाबाद, लखनऊ-226018
* ग्यारह बाल उपन्यास (वर्ष-2006)
प्रकाशक-वर्षा प्रकाशन (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* अनन्त कुशवाहा की श्रेष्ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2008)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* यादराम रसेन्द्र की श्रेष्ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2008)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* उषा यादव की श्रेष्ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2012)
प्रकाशक- लहर प्रकाशन (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
* मो. अरशद खान की श्रेष्ठ बाल कथाएँ (वर्ष-2012)
प्रकाशक-लहर प्रकाशन (साहित्य भंडार), 50, चाहचंद, जीरो रोड, इलाहाबाद-211003
शुभकामनाएँ
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जवाब देंहटाएंमेरी शुभकामनाएँ.
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