( जनसंदेश टाइम्स में 16 मई, 2012 को प्रकाशित) विज्ञान और टेक्नारलॉजी ने बड़े-बड़े एहसान किये हैं। उसने हमें भांति-भांति के रोग उपह...
(जनसंदेश टाइम्स में 16 मई, 2012 को प्रकाशित)
विज्ञान और टेक्नारलॉजी ने बड़े-बड़े एहसान किये हैं। उसने हमें भांति-भांति के रोग उपहार में दिये हैं। ‘फेस बुक’ इसका लेटेस्टे प्रोडक्श़न है। इसकी बढ़त देखकर सारी वेबसाइटें सन्न हैं।
पहले पहल यह रोग युवाओं में आया और लोगों को ओल्डन मॉडल ‘याहू मैसेंजर’ से मुक्ति दिलाया। ‘आर्कुट’ की यह हाइब्रिड प्रजाति स्मार्ट बन कर आई है और अपने साथ फोटो-शोटो और शायरी-वायरी भी साथ लाई है।
अब ‘आई टॉनिक’ के लिए लड़के सड़क पर कम जाते हैं। वे दूसरों की ‘वॉल’ देखकर अपनी लार टपकाते हैं। ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ उनके लेटेस्ट हथियार है। शोधकर्ता बताते हैं अचूक इनकी मार है।
यह रोग तेजी से सरकारी कार्यालयों में छा रहा है। खाद्य, पुलिस, रेलवे सहित तमाम विभागों को अपना निशाना बना रहा है। अब खाद्यान्नक विभागों के घोटाले सीधे नेट पर आएंगे। आप खुले में रखे लाखो टन गेहूँ को सड़ते हुए देखने का आनन्द उठा पाएँगे। लेकिन, वहाँ पर भूख से त्रस्त जनता की फोटो लगाना मनाही होगी। हाँ ये अलग बात है कि इससे बिचौलियों को माल दिखाने में सुविधा होगी और घूस की शानदार उगाही होगी।
पुलिस वाले अब हत्यारों/ बलात्काररियों की फोटो अपनी वॉल पर लगाएँगे और जनता से कमेंट मांगकर तफ्तीश आगे बढ़ाएँगे। हो सकता है कि एफआईआर का भी कोई शार्टकट निकल आए और चढ़ावे के लिए पुलिस वाले अपना बैंक एकाउंट नम्बेर एसएमएस से बताएँ।
रेलवे के स्टेशन मास्टर ही नहीं ड्राइवर भी अब फेसबुकियाएँगे। वे गाड़ी बाद में चलाएँगे, पहले अपने स्टेटस को अपडेट बनाएँगे।
अफवाहों से भी तेज गति से यह बीमारी पाँव पसार रही है। महिलाओं और बुजुर्गों को तो यह मंहगाई से ज्यादा मार रही है। अब सीरियलों की कहानी, शीला की जवानी के किस्से ऑनलाइन शेयर होते हैं। और तो और अब बाबाजी सुबह उठकर अपना एकाउंट पहले चेक करते हैं और मुँह बाद में धोते हैं।
काम वाली बाई अब बिना बताए गोल हो जाती है। फोन करो तो वह बताती है- अपुन ने रात में ही फिल्मं देखने का मन बना लिया था। और हाँ, मैंने इसकी सूचना अपनी वॉल पर लगा दिया था। सुनते हैं कि अब भिखारी भी इसके संक्रमण से बच नहीं पाएँगे, जल्दी ही वे अपकी वॉल पर पधार कर ‘भगवान के नाम पर कुछ दे दो’ की सदा लगाएँगे।
हा हा हा ! शानदार व्यंग .
हटाएंइसे एक हास्य कविता के रूप में क्यों नहीं प्रस्तुत किया भाई ?
bhaiya aadat ho gayi hamko facebook
हटाएंha ha ha mast likho ho
आखिर असली जरुरतमंद कौन है
भगवन जो खा नही सकते या वो जिनके पास खाने को नही है
एक नज़र हमारे ब्लॉग पर भी
http://blondmedia.blogspot.in/2012/05/blog-post_16.html
अच्छा है फेसबुक महिमा जमी रहे।
हटाएंफेसबुक ही अब सूचनापट
हटाएंफेसबुक ही अब मैन "गोल "
तस्वीरे खिचवाये स्पेशल
और वाल को कहे अब बोल
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
हटाएंअब उनकी वाल से ही पता चलेगा कि क्या हो रहा है..
हटाएं☺☺☺
हटाएंसच कहा थोड़ी बहुत बीमारी मुझे भी है यह .........))
हटाएंbahut maja aaya padhke sahi likha hai aajkal fesbukiyaa naam ka yeh rog sabko lag gaya hai
हटाएंacha lahga..
हटाएंलगभग सभी पीड़ित हैं अब तो इस बीमारी से
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