बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका 'पराग' के सम्पादक और जाने-माने बाल साहित्यकार डॉ0 हरिकृष्ण देवसरे का कल 14 नवम्बर, 2013 को 75 व...
बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका 'पराग' के सम्पादक और जाने-माने बाल साहित्यकार डॉ0 हरिकृष्ण देवसरे का कल 14 नवम्बर, 2013 को 75 वर्ष की अवस्था में इंदिरा पुरम, गाजियाबाद के एक अस्पताल में लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया।
09 मार्च, 1938 (आफीशियल जन्मतिथि: 03 मार्च,1940) को नागौर, मध्य प्रदेश में जन्में डॉ0 देवसरे बाल साहित्य के प्रयोगवादी लेखक के रूप में जाते हैं। उन्होंने 1984 से 1991 तक के 'पराग' के सम्पादन के दौरान बाल साहित्य में राजा-रानी और परी कथाओं की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए और बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास पर बल दिया।
डॉ0 देवसरे बाल साहित्य के प्रथम गम्भीर अध्येता के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने अपने शोध ग्रन्थ 'हिन्दी बाल साहित्य: एक अध्ययन' के द्वारा बाल साहित्य समीक्षा के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी शुरूआत की, जिसने बाल साहित्यकारों को गम्भीरता से सोचने के लिए विवश किया।
डॉ0 देवसरे ने हिन्दी के प्रतिनिधि बाल साहित्य को पहली बार सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। शकुन प्रकाशन द्वारा उनके सम्पादन में प्रकाशित 'बच्चों की 100 कहानियां', 'बच्चों की 100 कविताएं' और 'बच्चों के 100 नाटक' आज भी बाल साहित्य जगत में मील के पत्थर के रूप में जाने जाते हैं।
डॉ0 देवसरे ने हिन्दी के प्रतिनिधि बाल साहित्य को पहली बार सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। शकुन प्रकाशन द्वारा उनके सम्पादन में प्रकाशित 'बच्चों की 100 कहानियां', 'बच्चों की 100 कविताएं' और 'बच्चों के 100 नाटक' आज भी बाल साहित्य जगत में मील के पत्थर के रूप में जाने जाते हैं।
300 से अधिक पुस्तकों के लेखक डॉ0 देवसरे ने ऐसा कोई विषय नहीं है, जिसपर लेखन कार्य न किया हो। पर वे मुख्य रूप में आधुनिक बोध से सम्पन्न बाल कथाओं, विज्ञान कथाओं और एक कुशल समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। 'हिन्दी बाल साहित्य: एक अध्ययन' के अतिरिक्त उनकी पुस्तक 'बाल साहित्य: रचना और समीक्षा' भी काफी चर्चित रही है। उनके द्वारा बाल साहित्य के विविध विषयों पर लिखे गये लेखों के संकलन के रूप में प्रस्तुत पुस्तक 'बाल साहित्य: मेरा चिंतन' भी इस दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है।
अपनी वृहद बाल साहित्य सेवा के कारण वर्ष 2011 के बाल साहित्य सम्मान देश-विदेश के अनेकानेक सम्मानों से विभूषित डॉ0 हरि कृष्ण देवसरे अपने अन्तिम समय तक बाल साहित्य की सेवा में सक्रिय रहे हैं। उनके रचनाकर्म पर चर्चित रचनाकार ओमप्रकाश कश्यप की पुस्तक 'हरिकृष्ण देवसरे का बालसाहित्य' विशेष रूप से पठनीय है।
डॉ0 देवसरे के निधन से निश्चय ही बाल साहित्य की अपूर्णीय क्षति हुई है। सम्पूर्ण हिन्दी बाल साहित्य जगत उनके निधन से हतप्रभ है। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और उनके परिवार को इस दारूण दु:ख को सहने की शक्ति।
अच्छी, सधी हुई टिप्पणी.
जवाब देंहटाएंयह क्या ... एक के बाद एक , साहित्यकार चले ही जारहे हैं । डा. देवसरे का नाम मुझे छठवीं कक्षा से ही याद है । उनका एक एकांकी-- बूँद-बूँद से घट भरे ,मैंने कई बार पढा था । बहुत दुख के साथ विनम्र श्रद्धांजलि ...।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि...
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