Harikrishna Devsare Award 2016 Report in Hindi
'बाल साहित्य का असली उद्देश्य क्या है? क्या सिर्फ मनोरंजन ही उसका मकसद है? नहीं, उसका असली मकसद है मनोरंजन के साथ-साथ बच्चों में वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करना व समाज के प्रति संवेदनशील बनाना। और जो साहित्य वास्तव में यह काम कर पाता है, वही बच्चों के मन को भी भाता है और वही साहित्य कालजयी बनता है।'
डॉ. ज़ाकिर अली रजनीश |
उपरोक्त विचार डॉ0 जाकिर अली रजनीश ने 'वर्तमान बाल साहित्य और डॉ0 हरिकृष्ण देवसरे' विषय पर बोलते हुए कही। वे गंगा बाल चिकित्सालय, एलडीए कालोनी, आलमबाग के सभागार में हरिकृष्ण देवसरे बाल साहित्य पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने डॉ0 हरिकृष्ण देवसरे के बाल साहित्य सम्बंधी अवदान को रेखांकित करते हुए कहा कि डॉ0 देवसरे ने भूत-प्रेत, जादू-टोना और राजा-रानी की ऊट-पटांग कहानियों के विरोध में लोगों को जागरूक करने का कार्य किया। लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि आज भी कुछ रचनाकार बिना कुछ सोचे-विचारे इस तरह की रचनाएं बच्चों को परोस रही हैं, जो बेहद चिंता का विषय है।
लखनऊ शहर के रचनाकार डॉ0 प्रदीप शुक्ल के बालकाव्य संग्रह 'गुल्लू का गांव' को त़ृतीय हरिकृष्ण देवसरे बालसाहित्य पुरस्कार प्रदान किये जाने के अवसर पर आयोजित इस समारोह में देवसरे न्यास की संयोजिका शिप्रा भारती ने डॉ0 शुक्ल को शॉल पहनाकर व सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया। उन्होंने इस अवसर पर पुरस्कार के बारे में बताते हुए कहा कि इसकी चयन प्रक्रिया इतनी सर्तकता के साथ सम्पादित की जाती है कि एक निर्णायक को भी यह पता नहीं होता कि दूसरा निर्णायक किसे बनाया गया है। हम लोग यह सावधानी इसलिए अपनाते हैं, जिससे बालसाहित्य की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का चुनाव कर सकें। और हमें खुशी है कि इस यज्ञ में हमें दिल्ली के सभी बालसााहित्यकारों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कार्यक्रम स्थल का एक दृश्य |
ज्ञातव्य है कि हरिकृष्ण देवसरे बालसाहित्य पुरस्कार हिन्दी बाल साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसमें 75 हजार रूपये की राशि और सम्मान पत्र प्रदान किया जाता है। वर्ष 2016 के पुरस्कार के लिए न्यास के निर्णायक मंडल द्वारा 'गुल्लू का गांव' (कविता संग्रह-डॉ0 प्रदीप शुक्ल) एवं 'बेलगाम घोड़ा' (कहानी संग्रह-पंकज चतुर्वेदी) पुस्तकों का चयन किया गया था। न्यास का पुरस्कार समारोह गत 25 जनवरी, 2017 को दिल्ली में आयोजित किया गया था, जिसमें दिल्ली के ख्यातिनाम बालसाहित्यकारों की मौजूदगी में पंकज चतुर्वेदी को सम्मानित किया गया था। किन्तु अपरिहार्य कारणवश डा0 शुक्ल उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाए थे। इसीलिए न्यास ने लखनऊ में डॉ0 शुक्ल के निवास स्थान पर आकर यह सम्मान प्रदान करने का निर्णय लिया था।
कार्यक्रम में डॉ0 सुरेन्द्र विक्रम ने डॉ0 हरिकृष्ण देवसरे को याद करते हुए उनके साथ बिताये गये पलों को साझा किया और बताया कि किस प्रकार वे बालसाहित्यकारों को प्रोत्साहित व प्रेरित करते रहते थे। इस सम्बंध में उन्होंने देवसरे द्वारा सम्पादित पुस्तकों और बालभवन के कार्यक्रमों से अपने जुड़ाव को विशेष रूप से रेखांकित किया।
कविता पाठ करते डॉ. प्रदीप शुक्ल |
कार्यक्रम में अनियतकालीन पत्रिका 'मन्तव्य' के सम्पादक हरे प्रकाश उपाध्याय ने 'गुल्लू का गांव' पुस्तक के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि मेरी समझ से असली बालसाहित्य वही है, जिसमें जीवन के खटराग को रूचिकर ढंग से बच्चों को परोसा जाए। इससे न सिर्फ बच्चों में दुनियादारी की समझ पैदा होती है, वरन उनमें सामाजिकता के अंकुर भी पनपते हैं। और इस नज़रिये से 'गुल्लू का गांव' एक शानदार कृति है।
'गुल्लू का गांव' पुस्तक के प्रकाशक निर्मल शुक्ल ने अपने प्रकाशन संस्थान 'उत्तरायण प्रकाशन' के बहाने प्रदीप शुक्ल की रचनाओं पर अपने मन की बात कही और डॉ0 प्रदीप शुक्ल की बाल कविताओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस अवसर सम्मानित रचनाकार प्रदीप शुक्ल ने अपनी चुनंदा बाल कविताओं का पाठ भी किया, जिसमें से 'ऐसा हो मेरा स्कूल' और 'मैना की महतारी' कविताएं विशेष रूप से पसंद की गयीं।
कार्यक्रम में शहर के अनेक जानेमाने बालसाहित्य उपस्थित रहे, जिनमें डॉ0 हेमंत कुमार, बंधु कुशावर्ती, लायकराम मानव, रामनरेश उज्ज्वल आदि के नाम प्रमुख हैं। कार्यक्रम का संचालन संदीप शुक्ल ने किया।
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इस सुअवसर पर हार्दिक बधाई !
हटाएंशुक्रिया पूर्णिमा जी।
हटाएंHindIndia.com ki taraf se apko dher sari Shubhkamnaye aewam Badhayiyan!!
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