दीप जला कर उद्घाटन करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन प्रो0 ए.के. सेन गुप्ता यह सच है कि आज का युग विज्ञान का युग...
दीप जला कर उद्घाटन करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन प्रो0 ए.के. सेन गुप्ता |
यह सच है कि आज का युग विज्ञान का युग है। लेकिन इसके बावजूद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का लाभ समाज के सभी वर्गों तक नहीं पहुँच रहा है। आज भी हमारी सोसायटी पिछड़ेपन का शिकार है। लगातार शोषण के कारण लोगों की सोच कुंठित हो गयी है, उनका नयी चीजों के प्रति रूझान समाप्त हो गया है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि लोगों में नई चीजों के प्रति जानने की ललक पैदा की जाए, उनकी अभिव्यक्ति को स्वर प्रदान किया जाए। तभी वे विज्ञान के प्रति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति आकर्षित होंगे और तभी उनका वैज्ञानिक विकास संभव होगा।
उपरोक्त विचार पत्रकारिता विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के सभागार में आयोजित कायक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कला संकाय के डीन प्रो0 ए0के0 सेन गुप्ता ने रखे। वे राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली तथा श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति एवं वानस्पतिकी संस्थान, जौनपुर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार विषयक चार दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। कार्यक्रम में प्रो0 सेन के अतिरिक्त लोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष प्रो0 मनोज दीक्षित, जाने-माने विज्ञान संचारक श्री आर0डी0 तिवारी एवं तस्लीम के महामंत्री डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने भी प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ0 रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने किया।
कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए श्री आर0डी0 तिवारी ने कहा कि यह हमारे लिए दुर्भाग्य का विषय है कि हम अपनी परम्परागत प्रोद्योगिकियों एवं परम्पराओं को भूलते जा रहे हैं, जिसके हमें गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। विज्ञान सिर्फ मशीनों और तकनीक में ही नहीं होता, वह जीवन पद्धति का हिस्सा होता है। इसलिए आवश्यकता है कि लोगों को उनकी पारम्परिक तकनीकों और प्रौद्योगिकियों का महत्व बताया जाए और सरल ढ़ग से उनके भीतर विज्ञान की समझ पैदा की जाए।
डॉ0 ज़ाकिर अली रजनीश, श्री आर.डी. तिवारी, प्रो0 ए.के. गुप्ता एवं प्रो0 मनोज दीक्षित |
तस्लीम के महामंत्री डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सांस्कृतिक आयोजन आज भी हमारे ग्रामीण समाज में बेहद लोकप्रिय हैं। इसलिए विज्ञान संचार के लिए नुक्कड़ नाटक, कठपुतली, खेल-तमाशे, जादू आदि का प्रयोग काफी सार्थक हो सकता है। लेकिन इन माध्यमों का प्रयोग करते हुए उसमें स्थानीय भाषा एवं स्थानीय रूचि का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। तभी हम उन लोगों तक अपनी बात सार्थक ढ़ंग से पहुँचा सकते हैं।
टी-ब्रेक के बाद आयोजित उद्घाटन सत्र में प्रतिभागियों ने विषय विशेषज्ञों के साथ चर्चा करके अपने-अपने मॉडल के बारे में चर्चा की और उनकी रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यशाला को लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ0 मुकुल श्रीवास्तव एवँ डॉ0 मनोज मिश्र ने भी सम्बोधित किया। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों की सहायता के लिए शिल्पकार श्री जयप्रकाश शुक्ल भी उपस्थित हैं। वे चार दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को मॉडल बनाने की कला से परिचित कराएँगे।
विचार अच्छा हैविज्ञान संचार के लिए नुक्कड़ नाटक, कठपुतली खेलतमाशे जादू आदि का प्रयोग सार्थक है। आशा है इस पर कार्य होगा।
जवाब देंहटाएंबहु उपयोगी रिपोर्ट .सभी की इसमें भागेदारी ज़रूरी विज्ञान संचार एक बड़ा मसला है इस दौर का .हर माध्यम से आगे आयें लोग अपना योगदान दें .
जवाब देंहटाएंनुक्कड़ नाटक, कठपुतली खेलतमाशे जादू आदि लोगों को जागृत करने के लिए निस्संदेह प्रभावी हैं.
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंतस्लीम के महामंत्री डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सांस्कृतिक आयोजन आज भी हमारे ग्रामीण समाज में बेहद लोकप्रिय हैं। इसलिए विज्ञान संचार के लिए नुक्कड़ नाटक, कठपुतली, खेल-तमाशे, जादू आदि का प्रयोग काफी सार्थक हो सकता है। लेकिन इन माध्यमों का प्रयोग करते हुए उसमें स्थानीय भाषा एवं स्थानीय रूचि का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। तभी हम उन लोगों तक अपनी बात सार्थक ढ़ंग से पहुँचा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंलोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष प्रो0 मनोज दीक्षित ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ग्रामीण लोग ‘अनएजूकेट’ तो हो सकते हैं लेकिन ‘इल्लिट्रेट’ नहीं। उनके पास अपने अनुभवों एवं परम्पराओं की एक समृद्ध थाती होती है। लेकिन इसके साथ ही साथ उनमें नए ज्ञान को सीखने के प्रति एक प्रकार का प्रतिरोध भी पाया जाता है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें विज्ञान एवं तकनीक की जानकारी इस तरीके से दी जाए, जिससे वे स्वयं ही अपने प्रतिरोध के दायरे से बाहर निकल आएं और विज्ञान एवं तकनीक को ग्रहण करने को उत्सुक हों।
यह जन जागरण हर माध्यम से अखंड पाठ की तरह चलना चाहिए .
तस्लीम के महामंत्री डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सांस्कृतिक आयोजन आज भी हमारे ग्रामीण समाज में बेहद लोकप्रिय हैं। इसलिए विज्ञान संचार के लिए नुक्कड़ नाटक, कठपुतली, खेल-तमाशे, जादू आदि का प्रयोग काफी सार्थक हो सकता है। लेकिन इन माध्यमों का प्रयोग करते हुए उसमें स्थानीय भाषा एवं स्थानीय रूचि का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। तभी हम उन लोगों तक अपनी बात सार्थक ढ़ंग से पहुँचा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंलोक प्रशासन विभाग के अध्यक्ष प्रो0 मनोज दीक्षित ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ग्रामीण लोग ‘अनएजूकेट’ तो हो सकते हैं लेकिन ‘इल्लिट्रेट’ नहीं। उनके पास अपने अनुभवों एवं परम्पराओं की एक समृद्ध थाती होती है। लेकिन इसके साथ ही साथ उनमें नए ज्ञान को सीखने के प्रति एक प्रकार का प्रतिरोध भी पाया जाता है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें विज्ञान एवं तकनीक की जानकारी इस तरीके से दी जाए, जिससे वे स्वयं ही अपने प्रतिरोध के दायरे से बाहर निकल आएं और विज्ञान एवं तकनीक को ग्रहण करने को उत्सुक हों।
यह जन जागरण हर माध्यम से अखंड पाठ की तरह चलना चाहिए .
यह जन जागरण हर माध्यम से अखंड पाठ की तरह चलना चाहिए .
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