वै ज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पढा गया आलेख वर्तमा...
वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पढा गया आलेख
वर्तमान
युग विज्ञान का युग है। आज विज्ञान जिस गति से प्रगति की सीढि़याँ चढ़ रहा है, वह
किसी से छिपा नहीं है। इसी प्रगति का एक शानदार उदाहरण है इंटरनेट। आज उद्योगपति,
फिल्मी हस्तियाँ, स्कूल-कॉलेज, यहाँ तक कि धर्म और समाज कार्यों से जुड़े व्यक्ति
भी इंटरनेट के द्वारा लोगों तक अपनी पहुँच को आसान बना रहे हैं।
इंटरनेट के द्वारा
संचार की यह प्रक्रिया यूँ तो वेबसाइट के द्वारा शुरू हुई थी, लेकिन ब्लॉग तक
आते-आते न सिर्फ यह बेहद सहज और सुलभ हो गयी है, वरन अपनी अनेकानेक विशेषताओं के
कारण हर दिल अजीज भी बनती जा रही है।
‘ब्लॉग’ शब्द ‘वेब’ और ‘लॉग’ द्वारा मिलकर बने
शब्द ‘वेबलॉग’ का संक्षिप्त
रूप है, जिसकी शुरूआत 1994 में जस्टिन हॉल ने ऑललाइन डायरी के रूप में की थी। जबकि
पहली बार ‘वेबलॉग’ शब्द का प्रयोग 1997 में जॉन बर्जन ने किया था। औपचारिक रूप से देखें तो
सर्वप्रथम वेबलॉग को पहली बार अपनी निजी साइट पर लाने वाले व्यक्ति हैं पीटर
महारेल्ज़, जिन्होंने सन 1999 में इस काम को अंजाम दिया था। जबकि पहली मुफ्त ब्लॉगिंग
की शुरूआत करने का श्रेय पियारा लैब्स के इवान विलियम्स और मैग होरिहान को जाता
है, जिन्होंने अगस्त 1999 में ‘ब्लॉगर’ नाम से ब्लॉग साइट का प्रारम्भ किया, जिसे बाद में गूगल
ने खरीद लिया।
वर्ष
1999 में अंग्रेजी ब्लॉगिंग की शुरूआत होने के बावजूद हिन्दी ब्लॉगिंग को
प्रारम्भ होने में पूरे चार साल लगे(पहला हिन्दी ब्लॉग ‘नौ दो ग्यारह’ 21 अप्रैल 2003
में आलोक कुमार ने लिखा)। इसके पीछे मुख्य वजह रही हिन्दी फाँट की समस्या और उसके
लेखन की विधियाँ। साथ ही लोगों के बीच तकनीकी जानकारी का अभाव भी इसके प्रसार में
बाधक रहा। अज्ञानता के इस अंधकार को तोड़ने का पहला प्रयास किया रवि रतलामी ने
वर्ष 2004 में ऑनलाइन पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ में ‘अभिव्यक्ति का नया माध्यम- ब्लॉग’ लिखकर, लेकिन इस
रौशनी को मशाल का रूप मिला अक्टूबर 2007 में ‘कादम्बिनी’ में प्रकाशित बालेंदु दाधीच के लेख ‘ब्लॉग बने तो बात
बने’ के द्वारा।
वर्तमान
में हिन्दी ब्लॉगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अब पुरूष और महिलाएँ ही
नहीं, बच्चे भी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में आ चुके हैं और अपनी लोकप्रियता के झण्डे
गाड़ रहे हैं। आज राजनीति, साहित्य, कला, संगीत, खेल, फिल्म, सामाजिक मुद्दों पर
ही नहीं विज्ञान और मनोविज्ञान जैसे गूढ़ विषयों पर भी न सिर्फ ब्लॉग लिखे जा रहे
हैं, वरन सराहे भी जा रहे हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता
है कि न सिर्फ दैनिक समाचार पत्र और मासिक पत्रिकाएँ ब्लॉगों की सामग्री को
नियमित रूप से अपने अंकों में प्रकाशित कर रही हैं, वरन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं
में उनकी समीक्षाओं के कॉलम भी लिखे जाने लगे हैं।
चूँकि ब्लॉग एक
अलग तरह का माध्यम है, इसलिए इसके अपने कुछ पारिभाषिक शब्द भी हैं, जो ब्लॉग की
दुनिया में खूब प्रचलित हैं। जो लोग ब्लॉग के स्वामी हैं अथवा ब्लॉग लिखने में
रूचि रखते हैं, वे सभी लोग ब्लॉगर के नाम से जाने जाते हैं और ब्लॉग लिखने की
प्रक्रिया ‘ब्लॉगिंग’ कहलाती है। इसी प्रकार ब्लॉग में लिखे जाने वाले सभी लेख ‘पोस्ट’ के नाम से जाने
जाते हैं। अपने पसंदीदा ब्लॉगों में प्रकाशित होने वाली अद्यतन सूचनाओं से भिज्ञ
होने के लिए जिस तकनीक का सहारा लिया जाता है, वह आर.एस.एस. फीड के नाम से जानी
जाती है, जबकि जो वेबसाइटें अपने यहाँ पंजीकृत समस्त ब्लॉगों की ताजी पोस्टों
की सूचना देने का कार्य करती हैं, वे एग्रीगेटर के नाम से जानी जाती हैं। आमतौर से
हिन्दी में भी ये शब्द इसी रूप में प्रचलित हैं, पर कुछ अनुवाद प्रेमियों ने ब्लॉग
के लिए ‘चिट्ठा’, ब्लॉगर के लिए ‘चिट्ठाकार’ और ब्लॉगिंग के
लिए ‘चिट्ठाकारिता’ जैसे शब्द भी
गढ़े हैं, जो यदा-कदा ही उपयोग में लाए जाते हैं।
ब्लॉग की
लोकप्रियता के प्रमुख कारण:
अक्टूबर, 2007 में ‘कादम्बिनी’ में प्रकाशित
अपने लेख में बालेन्दु दाधीच ने उसका परिचय देते हुए लिखा था- ‘ब्लॉग का लेखक ही
संपादक है और वही प्रकाशक भी है। यह ऐसा माध्यम है, जो भौगोलिक सीमाओं और
राजनीतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग मुक्त है। यहाँ अभिव्यक्ति न कायदों में
बंधने को मजबूर है, न अलकायदा से डरने को, न समय की यहाँ समस्या है, न सर्कुलेशन
की।’
ब्लॉग
लिखना ईमेल लिखने के समान आसान है। यह सम्पादकीय तानाशाही से पूरी तरह से मुक्त
है। इसके लिए न तो किसी प्रेस की जरूरत है, न डिस्ट्रीब्यूटर की, न किसी कंपनी
की और न ही ढ़ेर सारे रूपयों की। यह बिलकुल फ्री सेवा है, जो अपने घर में बैठकर,
पार्क में टहलते हुए, रेस्त्राँ में खाना खाते हुए या फिर किसी मूवी को इन्ज्वॉय
करते हुए उपयोग में लाई जा सकती है। इसके लिए जरूरत होती है सिर्फ एक अदद कम्प्यूटर/लैपटॉप/पॉमटॉप
अथवा मोबाईल की, जिसमें इंटरनेट कनेक्शन जुड़ा होना चाहिए।
चूँकि
सर्च इंजन ब्लॉगों की सामग्री का समर्थन करते हैं, इसलिए ब्लॉग के लिए पाठकों की
कोई समस्या नहीं होती। इसके साथ ही ब्लॉग समय, स्थान और देशकाल से परे होते
हैं। इन्हें ईमेल की तरह न सिर्फ विश्व के किसी भी स्थान में बैठकर पढ़ा जा सकता
है, वरन लिखा भी जा सकता है।
किताबों,
पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के विपरीत ब्लॉग दोतरफा संचार का माध्यम हैं, जिसमें
लिखकर, बोलकर, चित्रित करके अथवा वीडियो के द्वारा अपनी बात पाठकों तक पहुँचाई जा
सकती है। यही कारण है कि पाठक न सिर्फ इसका लुत्फ लेते हैं, वरन लेखक से जीवंत रूप
में संवाद भी स्थापित कर सकते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब त्वरित गति
के साथ सम्पन्न होता है। कभी-कभी तो यह प्रक्रिया इतनी तीव्र होती है कि इधर ब्लॉग
पर लेख प्रकाशित हुआ नहीं कि उधर पाठक का कमेंट हाजिर।
इसके
अतिरिक्त ब्लॉग की एक अन्य विशेषता भी है, जो उसे संचार के अन्य माध्यमों से
विशिष्ट बनाती है। वह विशेषता है ब्लॉग की पठनीयता की उम्र। एक अखबार की सामान्य
उम्र जहाँ एक दिन, मासिक पत्रिका की औसत आयु जहाँ एक माह होती है, वहीं ब्लॉग की
जिन्दगी अनन्तकाल की होती है। एक बार इंटरनेट पर जो सामग्री लिख दी जाती है, वह
जबरन न मिटाए जाने तक सदा के लिए सुरक्षित हो जाती है और उसे कोई भी व्यक्ति कभी
भी और कहीं भी पढ़ सकता है।
कैसे बनते हैं ब्लॉग?
वर्तमान में ब्लॉग
लेखन विधा इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि लगभग हर चर्चित वेबसाइट मुफ्त में पाठकों
को ब्लॉग बनाने की सुविधा प्रदान करती है। लेकिन बावजूद इसके आज भी ब्लॉग बनाने
के लिए जो साइटें सर्वाधिक उपयोग में लाई जाती हैं, वे हैं ब्लॉगर, वर्ड प्रेस और टाईप पैड।
ब्लॉग बनाने के
लिए सिर्फ एक अदद ईमेल एकाउंट की जरूरत होती है। यह ईमेल किसी भी कंपनी (जी-मेल,
याहू, रेडिफ, हॉटमेल आदि) का हो सकता है। यदि इच्छुक व्यक्ति को ब्लॉग बनाने की
औपचारिक जानकारी हो, तो सीधे ऊपर बताई गयी अथवा ब्लॉग बनाने की सुविधा देने वाली
किसी भी साइट को खोलकर और उसमें अपना ईमेल पता लिखकर ‘साइन अप’ करके और बताए गये
निर्देशों का पालन करते हुए ब्लॉग बनाया जा सकता है।
लेकिन यदि इच्छुक
व्यक्ति को ब्लॉग बनाने की प्रक्रिया का समुचित ज्ञान न हो, तो किसी भी सर्च
इंजन (गूगल, याहू आदि) को खोल कर उसमें ‘ब्लॉग बनाने की विधि’ अथवा ‘हाऊ टू क्रिएट ए ब्लॉग?’ सर्च करके इस सम्बंध में जानकारी जुटाई जा सकती है।
ब्लॉगिंग और
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
हिन्दी में आज कई अच्छे विज्ञान ब्लॉग लिखे जा रहे
हैं। लेकिन जहाँ तक पहले विज्ञान सम्बंधी ब्लॉग की बात है, तो इसका श्रेय ‘ज्ञान-विज्ञान’ को
जाता है, जिसकी शुरूआत जनवरी 2005 में हुई। यह एक सामुहिक ब्लॉग था, जो दुर्भाग्यवश
एक नियमित ब्लॉग नहीं बन सका। इस तरह से देखें तो हिन्दी के पहले सक्रिय विज्ञान
ब्लॉग का श्रेय ‘साईब्लॉग’ को
जाता है। डॉ0 अरविंद मिश्र का यह ब्लॉग सितम्बर 2007 से नियमित रूप से प्रकाशित
हो रहा है और इसपर नियमित रूप से विज्ञान के विविध पहलुओं पर केन्द्रित चर्चा
देखने को मिलती रहती है।
हिन्दी
में विज्ञान ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने में ‘साइंटिफिक वर्ल्ड’ और ‘साइंस ब्लॉगर्सअसोसिएशन’ का विशेष
योगदान रहा है। 28 फरवरी, 2008 से प्रारम्भ होने वाला ‘तस्लीम’ ब्लॉग को जहाँ हिन्दी
के पहले सामुहिक विज्ञान ब्लॉग का दर्जा प्राप्त है, वहीं ‘साइंस ब्लॉगर्स
असोसिएशन’ हिन्दी के सबसे
सक्रिय और सबसे बड़े सामुहिक ब्लॉग के रूप में जाना जाता है।
वर्तमान में स्तरीय
विज्ञान ब्लॉगों की संख्या पाँच दर्जन के आसपास है। इन ब्लॉगों में विविध
क्षेत्रों और विविध विषयों पर न सिर्फ रोचक वैज्ञानिक सामग्री का प्रकाशन होता है,
वरन वैज्ञानिक विषयों पर बहसों का भी आयोजन किया जाता है। किन्तु इनमें से बहुत
से ब्लॉग ऐसे भी हैं, जो अपने प्रारम्भिक काल में तो नियमित रूप से अपडेट होते
रहे, लेकिन बाद में ये अपरिहार्य कारणों से निष्क्रिय हो गये। लेकिन इसके बावजूद
हिन्दी में सक्रिय ब्लॉगों की संख्या कम नहीं है। कुछ ऐसे ही प्रमुख ब्लॉगों
के नाम हैं:
साइंटिफिक वर्ल्ड, साइंस ब्लॉगर्सअसोसिएशन, साईब्लॉग, ‘न जादू न टोना’, वॉयजर, विज्ञान विश्व, सौरमण्डल, अंतरिक्ष, विज्ञानगतिविधियाँ, क्यों और कैसे
विज्ञान में, इमली इको क्लब, डायनमिक, साइंस फिक्शनइन इंडिया, हिन्दी साइंस फिक्शन, स्वास्थ्यसबके लिए, मीडिया डॉक्टर, स्पंदन, आयुषवेद, मेरा समस्त, हमारा पारम्परिकचिकित्सकीय ज्ञान, स्वास्थ्य सुख, क्लाइमेट वॉच, सुजलाम, हरी धरती, खेती-बाड़ी एवं सर्प संसार ।
उपरोक्त समस्त
ब्लॉग मुख्य रूप से विज्ञान विषयक जानकारियों को रोचक ढ़ंग से प्रकाशित करने के
लिए जाने जाते हैं। इनमें दैनिक जीवन के विविध पक्षों से लेकर वैज्ञानिक
खोजें/घटनाएँ, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं खान-पान से सम्बंधित सामग्री आम होती
है। इसके साथ ही साथ इनमें कुछ ब्लॉग ऐसे भी हैं, जो अवैज्ञानिक धारणाओं, अंधविश्वास
एवं विज्ञान के सहारे ठगी करने वाली पाखण्डी लोगों की पोल खोलने वाली सामग्री का
भी प्रमुखता से प्रकाशन करते हैं। ऐसे ब्लॉगों में तस्लीम (http://www.scientificworld.in/), विज्ञान
गतिविधियाँ (www.sciencedarshan.in), ‘न जादू न टोना’ (http://wwwsharadkokas.blogspot.in), एवं सर्प संसार (http://snakes.scientificworld.in/) का स्थान प्रमुख
है।
आम
जनता में वैज्ञानिक मनोवृत्ति जागृत करने वाले इन ब्लॉगों पर मुख्य रूप से पिछले
दिनों में जिन विषयों को प्रमुखता से उठाया गया है उनमें एक ओर जहाँ ज्योतिष,
तंत्र-मंत्र, भूत-पिशाच, विज्ञान के प्रयोगों के द्वारा दिखाये जाने वाले तथाकथित
चमत्कारों की चर्चा शामिल है, वहीं
अंधविश्वास के कारण घटने वाली घटनाओं के तार्किक विवेचन, तथा उनके समाजशास्त्रीय
प्रभावों एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है।
ब्लॉग
पर प्रकाशित इन तमाम लेखों को पढ़ने के बाद न सिर्फ लगभग सभी लेखों पर पाठकों और
लेखकों के बीच तार्किक बहसें देखने को मिलती हैं, वरन अज्ञान एवं भ्रम की अनेक
दीवारें टूटतीं हुई भी साफ-साफ देखी जा सकती हैं।
यदि ब्लॉग जगत की
गतिविधियों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया जाए, तो यह बात भी निकल कर सामने आती
है कि जैसे-जैसे ब्लॉग जगत में वैज्ञानिक लेखन को बढ़ावा मिला है, वैसे-वैसे
अवैज्ञानिक एवं अंधविश्वास के पोषक ब्लॉगर धीरे-धीरे लुप्तप्राय होते जा रहे
हैं। इससे स्वत: स्पष्ट है कि ब्लॉग लेखन वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास के
नजरिए से एक उपयोगी विधा है। यदि विज्ञान संचार में रूचि रखने वाले विज्ञान संचारक
इस माध्यम का समुचित उपयोग करें तो विज्ञान संचार की मुहिम को आसानी से आम जनता
के बीच लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
सुंदर समग्र आलेख. नए लोगों के लिए निश्ख्य ही बहुत रूचिकर रहा होगा
जवाब देंहटाएंयह सच है कि ब्लॉग जगत में वैज्ञानिक लेखन को बढ़ावा मिला है और इस के लिए आप और आप की टीम को बहुत हद तक श्रेय जाता है.
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मुझे याद है शुरूआती दौर में विज्ञान के २-३ अन्य ब्लोगों के अतिरिक्त में सबाई और तस्लीम ही प्रमख रूप से लोकप्रिय और सक्रीय थे .
खासकर विज्ञान ब्लोगों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका आप की रही है.
ब्लॉग लेखन का एक नया सकारात्मक पक्ष रखने हेतु बधाई.
@upar likhi 'manish mishra jee ki tippni hai ya unhone galati se email post kar diya hai ??
जवाब देंहटाएंBLOG PAR IS MAHATVPOORN AALEKH AUR SHODH SE MAIN KAPHI PRABHAVIT HOON. HAMAREE SHUBHKAMNA.
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण विषय प्रवर्तन और विवेचन
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दुनिया मे रहना है तो ध्यान धरो प्यारे ... ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंशिवम भाई शुक्रिया।
हटाएंब्लॉग के विकास की सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विस्तार से ब्लॉग्गिंग को समझाया है आपने ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ब्लॉगिंग की हिस्ट्री पढ़कर अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंबेशक ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है अभिव्यक्ति का . सभी बंधनों से दूर , यह आपके व्यक्तित्त्व का निचोड़ दर्शाता है .
अरे महाराज,यूआरएल के लिंक बना देते तो थोड़ी सुविधा हो जाती पाठकों को। कट/कॉपी-पेस्ट के लिए तो ब्लॉग वैसे ही बदनाम है!
जवाब देंहटाएंजब लेख को लिखने के लिए मैं इतनी मेहनत कर सकता हूं, तो सम्बंधित ब्लॉग देखने के लिए विजिटर भी तो थोडी मेहनत करे। :)
हटाएंब्लॉग का लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी है। यह ऐसा माध्यम है, जो भौगोलिक सीमाओं और राजनीतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग मुक्त है। यहाँ अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अलकायदा से डरने को, न समय की यहाँ समस्या है, न सर्कुलेशन की।’
जवाब देंहटाएंयही तो ।
कुमार राधारमण की टिप्पणी पर गौर किया जाये!
जवाब देंहटाएंurl kaa link naa bhi ho tab bhi wo khul jaataa haen
जवाब देंहटाएंurl ko select karakae mouse sae right click karake daekhae
option mae open link in new tab , new window dikhaegaa
शुक्रिया रचना जी, आशा है ब्लॉगर बंधु इस ट्रिक को याद रखेंगे।
हटाएंब्लोगिंग की सम्पूर्ण जानकारियाँ
जवाब देंहटाएंभ्लोग जा इतिहास जानकर बहुत अच्छा लगा नए क्या मुझ जैसे पुराने ब्लॉगर को भी इस विषय में इतनी जानकारी नहीं थी। यहाँ इस विषय में विस्तार पूर्वक जानकारी देने के लिए आभार.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
जवाब देंहटाएंब्लॉग इतिहास और विज्ञान के क्षेत्र में विकास को योगदान पर आपने यथार्थ विवेचना की।
जवाब देंहटाएंकईं नवीनत्तम जानकारियां भी प्राप्त हुई।
एक संतुलित प्रस्तुति!! आभार!!
यदि ब्लॉग जगत की गतिविधियों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया जाए, तो यह बात भी निकल कर सामने आती है कि जैसे-जैसे ब्लॉग जगत में वैज्ञानिक लेखन को बढ़ावा मिला है, वैसे-वैसे अवैज्ञानिक एवं अंधविश्वास के पोषक ब्लॉगर धीरे-धीरे लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। इससे स्वत: स्पष्ट है कि ब्लॉग लेखन वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास के नजरिए से एक उपयोगी विधा है। यदि विज्ञान संचार में रूचि रखने वाले विज्ञान संचारक इस माध्यम का समुचित उपयोग करें तो विज्ञान संचार की मुहिम को आसानी से आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंप्रामाणिक जानकारी कराती महत्वपूर्ण पोस्ट .
ब्लॉग पर प्रकाशित लेखों को पढ़ने के बाद न सिर्फ लगभग सभी लेखों पर पाठकों और लेखकों के बीच तार्किक बहसें देखने को मिलती हैं, वरन अज्ञान एवं भ्रम की अनेक दीवारें टूटतीं हुई भी साफ-साफ देखी जा सकती हैं।
जवाब देंहटाएंNice Article!
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तेजक अर्टीकल है...
जवाब देंहटाएंकाश, ये उत्तेजना बनी रहे। :)
हटाएंबढि़या लेख-- रोचक ढंग से लिखा हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख है। बधाई!
जवाब देंहटाएंलेकिन ये जानकारी सही नहीं है:
लेकिन जहाँ तक पहले विज्ञान सम्बंधी ब्लॉग की बात है, तो इसका श्रेय ‘साईब्लॉग’ (http://indianscifiarvind.blogspot.in) को जाता है। डॉ0 अरविंद मिश्र का यह ब्लॉग सितम्बर 2007 से नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा है।
विज्ञान विषयक ब्लॉग ज्ञान-विज्ञान जनवरी 2005 से प्रकाशित होना शुरु हुआ था।
अनूप जी, जानकारी के लिए शुक्रिया। लेकिन आप द्वारा सुझाया ब्लॉग प्रोटेक्टेड है, शायद इसीलिए उसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं हो पाई। वैसे मैंने लेख को संशोधित कर लिया है।
हटाएंइस जानकारी को यहां लगाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं