हमारे देश में आज भी ऐसे बहुत से समाज हैं, जो कोने-अतरे में बहुत ही नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए अभिशप्त हैं। उनकी दशा पर सरकारों की नजर...
हमारे देश में आज भी ऐसे बहुत से समाज हैं, जो कोने-अतरे में बहुत ही नारकीय जीवन व्यतीत करने के लिए अभिशप्त हैं। उनकी दशा पर सरकारों की नजर तो जाती ही नहीं है, दुर्भाग्यवश साहित्यकारों की दृष्टि से भी वह ओझल रही है। यह प्रसन्नता का विषय है कि वीरेन्द्र सारंग ने ‘हाता रहीम’ उपन्यास के बहाने उस उपेक्षित समाज की कथा बयान करने का साहस जुटाया है।
बाएं से: जाकिर अली रजनीश, वीरेन्द्र सारंग, प्रो0 रमेश दीक्षित, शिवमूर्ति, कंवल भारती, अजय विक्रम |
उपरोक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार शिवमूर्ति ने मोतीमहल लॉन में आयोजित बारहवें पुस्त्क मेले के दौरान कहीं। वे राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित वीरेन्द्र सारंग के उपन्यास ‘हाता रहीम’ के लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास इस अर्थ में भी विशिष्ट है कि इसमें लगभग 150 लोकगीतों, मुहावरों और लोकोक्तियों को समाहित किया गया है, जिससे यह कृति लोक के अद्भुत आख्यान के रूप में हमारे सामने आती है। इसके लिए लेखक की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
इससे पूर्व कार्यक्रम में मौजूद विद्वतजनों ने ‘हाता रहीम’ पुस्तक को लोकार्पित करने की रस्म निभाई। इस अवसर पर लेखक वीरेन्द्र सारंग ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य एक उपक्रम है, जिसमें आत्म सुख से ज्यादा दूसरों के सुख की कामना होती है। मैंने इसी क्रम में इस पुस्तक की रचना की है। यदि इस बहाने मैं उन दीन-हीन लोगों की बात, उनकी पीड़ा को पाठकों तक पहुंचा सकूं, तो मैं अपने श्रम को धन्य मानूंगा।
इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता एवं कवि प्रो0 रमेश दीक्षित ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में बोलते हुए कहा कि लेखक ने देवी प्रसाद के माध्यम से हमारे समाज में मौजूद अनेक ज्वलंत मुद्दों को जिस बेबाकी से प्रस्तुत किया है, वह अत्यंत सराहनीय है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी भाषा, जो लोक से ज्यों की त्यों उठाकर परोस दी गयी है। इस योगदान के लिए लेखक निश्चय ही बधाई का पात्र है।
चर्चित दलित रचनाकार कंवल भारती ने ‘हाता रहीम’ को उपेक्षिोत लोगों की दास्तान बताते हुए कहा कि यदि ऐसी पुस्तकों को पहले से लिखा जा रहा होता, तो शायद दलित लेखकों को सामने आने की आवश्यकता ही न होती। यद्यपि हमारे समाज में इससे बदतर हालात भी मौजूद हैं, फिर भी इस कृति ने समाज को एक बड़ा आइना दिखाने का काम किया है।
जाने-माने साहित्यकार सुधाकर अदीब ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लेखक अपनी कृतियों में वही लिखता है, जो देखता है, पढ़ता है या फिर अपने पूर्वजों के अनुभवों को परम्परा के रूप में प्राप्त करता है। इस अर्थ में यह एक विशिष्ट कृति है और सराहना की पात्र है।
इस अवसर पर पाठक के रूप में पधारे अजय विक्रम ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस उपन्यास में बनारस और उसके आसपास के माहौल को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें पानी की तरह रवानी है। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन डॉ. जाकिर अली रजनीश ने किया। उन्होंने राजकमल प्रकाशन के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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हार्दिक बधाइयां वीरेन्द्र सारंग जी को --- एक भव्य आयोजन में उनके उपन्यास"हाता रहीम" के विमोचन तथा सार्थक चर्चा के लिये--और भाई ज़ाकिर जी को इतनी त्वरित रिपोर्ट तैयार करने के साथ ही कुशल मंच संचालन के लिये,तथा उपस्थित सभी साहित्यकार मित्रों अग्रजों को कार्यक्रम को अपनी उपस्थिति से गरिमा प्रदान करने के लिये।
जवाब देंहटाएंमेरे बचपन में 'नानी का हाता' हुआ करता था, आज भी याद आता है, वहां भी ''काम वालों'' के जीवन की तमाम कहानियां बिखरी रहती थीं। तब उनका मोल नहीं समझती थी मगर आज हाता रहीम की रिपोर्ट पढ़कर सब कुछ एक फिल्म की तरह तैर गया । बहुत अच्छी रिपोर्टिंग की है ...भाई । वीरेंद्र सारंग व आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंWell Written post, enjoyed reading it !
जवाब देंहटाएंAnanyaTales
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