आज का दिन हमारे लिए बेहद यादगार दिन है। क्योंकि सारा देश आज भगत सिंह का जन्मदिन मना रहा है। और आज उनके एक अनन्य साथी यशपाल की तीन पुस्तकों...
आज का दिन हमारे लिए बेहद यादगार दिन है। क्योंकि सारा देश आज भगत सिंह का जन्मदिन मना रहा है। और आज उनके एक अनन्य साथी यशपाल की तीन पुस्तकों का विमोचन हो रहा है। ये पुस्तकें यशपाल के समूचे व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमें परिचित कराती हैं। साथ ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को उनके नजरिए से देखने का भी अवसर प्रदान करती हैं।
बाएं से: जाकिर अली रजनीश, अखिलेश, वीरेन्द्र यादव एवं शकील सिद्दीकी |
उपरोक्त बातें ख्यागतिनाम आलोचक वीरेन्द्र यादव ने मोतीमहल लॉन में आयोजित बारहवें पुस्त्क मेले के दौरान कहीं। वे लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यशपाल की पुस्तकों ‘मेरी जेल डायरी’, ‘मैं और मेरा परिवेश’ तथा ‘यशपाल का विप्लिव’ के विमोचन एवं ‘यशपाल की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार’ विषयक परिचर्चा के कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे।
उन्होंने यशपाल के जीवन के अनेक अनजाने पहलुओं को रेखांकित करते हुए कहा कि वे सिर्फ एक कथाकार ही नहीं थे, सच्चे क्रांतिकारी थे और उसके लिए जेल जाने से भी पीछे नहीं हटे। उन्होंने न सिर्फ हमारे देश की राजनीतिक एवं सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध किया, वरन अपनी सक्रिय सहभागिता के द्वारा समाज को नया रास्ता भी दिखाया। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि वे समाज के सच्चे नायक हैं और समाज को उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
इससे पूर्व लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित उनकी तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। उन पुस्तकों से अपने आप को जोडते हुए उर्दू और हिन्दीक के चर्चित कहानीकार एवं अनुवादक शकील सिद्दीकी ने कहा कि मुझे खुशी है कि मैं यशपाल जी की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘मैं और मेरा परिवेश’ से जुड़ा रहा हूं। उन्होंने कहा कि यशपाल जी के द्वारा लिखा गया बहुत सा अकथा साहित्य इधर-उधर बिखरा रहा है, जो संकलित स्वरूप में हमारे सामने आया है। उन्होंने यशपाल के जीवन की अनेक घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इस साहित्य से गुजरते हुए हमें उनकी शख्सियत के अनेक पहलू जानने को मिलते हैं। उनमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे एक दृढ़ इच्छाशक्ति के मालिक थे और हमेशा अपने स्टैंड पर कायम रहते थे, भले ही उसके लिए कितना भी मूल्य क्यों न चुकाना पड़े।
प्रख्यात कहानीकार एवं ‘तद्भव’ के सम्पाादक अखिलेश ने यशपाल की पुस्तकों को वर्तमान से जोड़ते हुए कहा कि मेरे विचार में उनकी प्रासंगिकता पर विचार जैसा सवाल ही असंगत है। क्योंकि यशपाल के रचनाकाल के समय जो स्थितियाँ हमारे समाज की थीं, लगभग वैसे ही हालात अब भी हैं। इसलिए जरूरत उनकी प्रासंगिकता पर पुनर्विचार करने की नहीं, उसे विस्तारित करने की है।
उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यशपाल अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ‘विप्लव’ के द्वारा सामाजिक व्यवस्था के बदलने की एक गम्भीर मुहिम चलाई। उसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार का ही नहीं भारत सरकार के भी कोप का सामना करना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। और उनके जीवन का यह पहलू इन पुस्तकों में कदम-कदम पर देखने को मिलता है। उन्होंने इन पुस्तकों के प्रकाशन के लिए लोकभारती को बधाई देते हुए कहा कि ये पुस्तकें हिन्दी समाज के लिए एक वैचारिक सौगात के समान हैं। इनकी जितनी सराहना की जाए कम है।
लोकार्पण एवं परिचर्चा के इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. जाकिर अली रजनीश ने किया। उन्होंपने इस अवसर पर यशपाल की सद्य प्रकाशित पुस्तकों का संक्षेप में परिचय प्रस्तुत किया और राजकमल प्रकाशन के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर शहर के अनेक गणमान्य साहित्यकार एवं विद्वान उपस्थित रहे।
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