विज्ञान कथाओं के द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास -डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ 10-12 जनवरी, 2012 को नई दिल्ली में आयोज...
विज्ञान कथाओं के द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास
-डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
10-12 जनवरी, 2012 को नई दिल्ली में आयोजित 'साइंस कम्युनिकेशन फॉर साइंटिफिक टेंपर' कॉंफ्रेंस में दिया गया वक्तव्य |
परिचयः बच्चे कहानियॉँ पढ़ते या सुनते ही नहीं कहानियों में जीते भी हैं। उन्हें वक्त बे वक्त तरह-तरह की कहानियॉँ बनाते हुए भी देखा जा सकता है। बच्चों के लिए जो कहानियाँ लिखी जाती रही हैं, उनमें काफी समय से राजा-रानी और परियों का अधिपत्य रहा है। पर इधर के कुछेक वर्षों में बच्चों की दुनिया में तेजी से विज्ञान कथाओं का प्रवेष हुआ है। इस बदलाव की मुख्य वजहों में जहाँ एक ओर बच्चों की बदलती हुई रूचियाँ हैं, वहीं दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक चैनलों के कारण पत्र-पत्रिकाओं के बदलते स्वरूप ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राजा-रानी और परी-जादूगरों को लेकर लिखी गयी कहानियाँ मनोरंजक तो होती हैं किन्तु बच्चों के दिल में नहीं उतर पाती। क्योंकि आज के बच्चों को मालूम है कि अब सारी दुनिया में प्रजातन्त्र है। उन्हें यह भी पता होता है कि जादू नाम की कोई चीज नहीं होती है। वे जानते हैं कि अगर इस दुनिया में जादू के नाम पर कुछ है, तो वह है हाथ की सफाई।
आज के बच्चे आँख खोलने के साथ टीवी के रिमोट, मोबाइल और कम्प्यूटर के माउस से खेलना शुरू कर देते हैं। उन्हें मालूम है कि अगर उनकी दुनिया में कोई रंग भर सकता है, तो वे हैं इलेक्ट्रानिक गैजेट। बच्चों की इस बदलती रूचि के कारण बाल कहानियों में तेजी से विज्ञान कथाओं का प्रवेश हुआ है।
विज्ञान कथाएँ न सिर्फ बच्चों को सहज रूप में आकर्षित करती हैं, वरन उनकी कल्पना को नए आयाम भी प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त क्या विज्ञान कथाएँ अपनी छिपी हुई शक्ति के द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास का कार्य भी करती हैं?
यही इस शोधपरक आलेख का मूल बिन्दु है, जिसके अध्ययन के लिए निम्न बाल विज्ञान कथाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया हैः
कुँए का भूत - विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
नन्हा ज्योतिषी - डॉ0 अरविंद मिश्र
ढ़ोंगी महात्मा - ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
नानी मां और सूर्यग्रहण - मालती वसंत
गणेश जी ने दूध पिया - राम वचन सिंह ‘आनंद’
प्लूटो तुम्हें क्यों निकाला - बुशरा अलवेरा
पीली धरती - साबिर हुसैन
कथानक परिचयः
गाँवों में आज भी यह मान्यता है कि जो स्थान खाली पड़े रहते हैं, वहाँ पर भूत-प्रेत अपना डेरा जमा लेते हैं। यदि ऐसी जगहों पर मनुष्य गल्ती से चले भी जाते हैं, तो भूत-प्रेत उनकी जान ले लेते हैं। विष्णु प्रसाद चतुर्वेद की कहानी ‘कुँए में भूत’ इसी विषय पर केन्द्रित है, जिसमें लेखक ने बहुत ही रोचक ढ़ंग से भूतिया घटनाओं का वर्णन किया है और उसके पीछे के रहस्य को उद्घाटित किया है।
ज्योतिष और खगोल विज्ञान का चोली-दामन का साथ होता है। लेकिन कुछ लोगों ने इसके आधार बना कर फलित ज्योतिष का धंधा शुरू कर दिया है, जिसमें वे लोगों के डर को निशाना बनाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। डॉ0 अरविंद मिश्र ने फलित ज्योतिष के इसी पाखण्ड को केन्द्र में रखकर ‘नन्हा ज्योतिषी‘ का कथानक बुना है।
हमारे समाज में चालाक और ढ़ोंगी लोगों की कमी नहीं है। ये लोग अक्सर विज्ञान के छोटे-मोटे प्रयोगों का सहारा लेकर चमत्कार दिखाने का दावा हैं और लोगों को ठगते हैं। जाकिर अली ‘रजनीश’ की कहानी ‘ढ़ोंगी महात्मा’ इसी विषय पर आधारित है, जिसमें रोचक ढ़ंग से एक साधु के छल और पाखण्ड का पर्दाफाश किया गया है।
मालती वसंत की कहानी ‘नानी माँ और सूर्यग्रहण’ सूर्य ग्रहण और उससे जुड़े अंधविश्वासों को लेकर लिखी गयी एक रोचक कहानी है। इसके माध्यम से लेखिका ने यह बताने का प्रयास किया है कि सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक व रोमांचक घटना है। और यदि सूर्य ग्रहण को वैज्ञानिक तरीके से देखा जाए, तो इससे कोई हानि नहीं होती है।
कुछ समय पहले सारे देश में एक अफवाह उड़ी थी कि गणेश जी की मूर्तियाँ दूध पी रही हैं। देखते ही देखते यह अफवाह सारे देष में फैल गयी थी, जिसकी वजह से लाखों लीटर दूध नाली में बहा दिया गया था। रामवचन सिंह ‘आनंद’ की कहानी ‘गणेशजी ने दूध पिया’ इसी घटना पर आधारित है, जिसमें लेखक ने इस अफवाह के कारणों का विष्लेषण किया है और उसके पीछे के रहस्य को पाठकों के सामने रखा है।
‘प्लूटो तुम्हें क्यों निकाला’ एक जानकारीपरक कहानी है, जिसमें वैज्ञानिकों द्वारा ग्रहों के लिए तय की गयी नई परिशषा के आधार पर ‘प्लूटो’ से ग्रह की पदवी छीन लेने की घटना को कहानी का आधार बनाया गया है और इस सम्बंध में पाठकों को रोचक ढ़ंग से जानकारी प्रदान की गयी है।
आज जिस तरीके से हमारी धरती से पेड़ों का विनाश किया जा रहा है, उससे यह आशंका होने लगी कि एक दिन धरती से सारे वृ़क्षों का सफाया हो जाएगा और इंसानों को साँस लेने के लिए कृत्रिम ऑक्सीजन का सहारा लेना पड़ेगा। इससे न सिर्फ मनुष्यों का जीवन कठिन हो जाएगा, वरन उसे अपने जीवन के लिए अभूतपूर्व चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। साबिर हुसैन की लम्बी कहानी ‘पीली धरती’ में इसी विषय को कथानक बनाया गया है और इस समस्या को प्रभावकारी दिखाने के लिए एलीयंस का सहारा लिया गया है।
विवेचन और परिणामः
कुँए का भूत: अक्सर हमारे समाज में कुछ ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं, जो तात्कालिक रूप से समझ में नहीं आती। यही कारण है कि अंधविश्वास और अज्ञान से घिरा हुआ व्यक्ति उनके लिए भूत-प्रेत को जिम्मेदार मान लेता है। कहानी में इस तरह की घटना के पीछे के रहस्य को इतने सरल ढ़ंग से समझाया गया है कि पाठक के मन से भूत-प्रेत के पीछे का असली कारण समझ में आ जाता है और उसके मन में जमी हुई भूत-प्रेत सम्बंधी धारणा खण्डित हो जाती है।
नन्हा ज्योतिषी: ज्योतिष के मूल सिद्धान्तों को आधार बनाकर विकसित करने का दावा करने वाली फलित ज्योतिष की चर्चा आज जगह-जगह होती है। चालाक और कुटिल वृत्ति के व्यक्ति इसका सहारा लेकर सीधे-साधे लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। ‘नन्हा ज्योतिषी‘ इन्हीं तथाकथित ज्योतिषियों के पाखण्ड को निषाना बना कर लिखी गयी है, जिसे पढ़कर पाठकों को ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी मिलती है और आज के तथाकथित ज्योतिषियों से बचकर रहने का संदेष भी प्राप्त होता है।
ढ़ोंगी महात्मा: अक्सर विज्ञान के छोटी-छोटी जानकारियों को आधार बनाकर पाखण्डी साधु लोगों को ठगने लगते हैं। यह भी एक ऐसी ही घटना पर आधारित कहानी है, जिसमें एक छोटी सी लड़की सुमाली न सिर्फ साधु के रहस्य का पर्दाफाश करती है, बल्कि उसे जेल की हवा भी खिलाती है। इससे पाठकों को यह संदेष मिलता है कि इस दुनिया में चमत्कारी शक्ति जैसी कोई चीज नहीं होती है। यदि कोई व्यक्ति इसका दावा कर रहा है, तो निष्चय ही किसी वैज्ञानिक नियम का सहारा लेकर लोगों को बेवकूफ बनाने का प्रयत्न कर रहा है।
नानी माँ और सूर्यग्रहणः यह एक जानकारीपरक कहानी है। लेकिन इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने सूर्यग्रहण के सम्बंध में फैले अंधविश्वास को भी निषाना बनाया है। जब पाठक इस कहानी को पढ़ते हैं तो उन्हें ज्ञात होता है कि सूर्य ग्रहण तो एक भौगोलिक घटना मात्र है। कहानी के माध्यम से पाठकों को यह संदेष भी मिलता है कि इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह एक रोमांचक संयोग है और यदि वैज्ञानिक एहतियातों का ध्यान रखा जाए, तो इस दुर्लभ क्षण का आनंद लिया जा सकता है।
गणेश जी ने दूध पियाः यह एक रोचक कहानी है, जिसमें मूर्तियों द्वारा दूध पीने की घटना का वैज्ञानिक आधार पर विचेन किया गया है। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि जब दूध से भरा चम्मच किसी पत्थर के सम्पर्क में आता है, तो पृष्ठ तनाव के कारण दूध धीरे-धीरे चम्मच से निकल कर मूर्ति के सहारे जमीन पर बह जाता है और लोगों को लगता है कि दूध को मूर्ति ने पी लिया है। इस घटना के सम्पादन में मूर्ति के पत्थर में मौजूद सूक्ष्म कोषिकाएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि उनके द्वारा कुछ प्रतिषत दूध पत्थर सोख लेता है। इससे लोगों को मूर्ति/पत्थर द्वारा दूध पीने का भ्रम होता है।
प्लूटो तुम्हें क्यों निकालाः यह एक जानकारीपरक कहानी है। इसके माध्यम से हालाँकि लेखिका ने यह बताने का प्रयत्न किया है कि वैज्ञानिकों ने ‘प्लूटो‘ से ग्रह की पदवी क्यों छीन ली है। लेकिन इसके साथ ही साथ कहानी के द्वारा यह भी पता चलता है कि वैज्ञानिकों के प्रत्येक काम के पीछे एक व्यवहारिक सोच एवं तर्कपूर्ण कार्य-शैली होती है। यह कहानी हमें बताती है कि यदि बदलते हुए समय के साथ हमारी सोच अथवा जानकारी पुरानी पड़ रही है, तो उसका त्याग करना ही समझदारी है।
पीली धरतीः यूँ तो ‘पीली धरती’ एक फैंटेसीपरक कहानी है, जिसमें किसी अन्य ग्रह से आए प्राणियों के सहारे लेखक ने कथानक को बुना है। लेकिन इस कहानी के मूल में पर्यावरण की अन्तः चेतना निहित है। कहानी को पढ़कर पाठक के मन में पर्यावरण के महत्व की बात घनीभूत हो जाती है। इससे न सिर्फ उसके मन में जमा पर्यावरण सम्बंधी कई वहम दूर होते हैं, वरन वह पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रेरित होता है।
निष्कर्ष- उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि बाल विज्ञान कथाएँ जहाँ एक ओर पाठकों को वैज्ञानिक जानकारियाँ उपलब्ध कराती हैं, उनका मनोरंजन करती हैं, वहीं अपने भीतर निहित वैज्ञानिक चिंतन धारा के कारण पाठकों के मन में जमे अज्ञान और अंधविष्वास के जाले का सफाया करती हैं और उनके भीतर वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास करती हैं।
(सह लेखिका: सुश्री बुशरा अलवेरा)
(सह लेखिका: सुश्री बुशरा अलवेरा)
बच्चों का मन कच्ची मिट्टी जैसा होता है, जैसे भी ढाल लिया जाये।
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई, यह आपकी प्रतिष्ठा और प्रतिभा के अनुरूप लेख नहीं है, हम आपसे कुछ अतिरिक्त परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं.
जवाब देंहटाएंओमप्रकाश जी, आपकी शिकायत जायज है। पर मैं आपको बताना चाहूंगा कि विज्ञान कांफ्रेंस में साहित्यिक/समालोचनात्मक लेख मान्य नहीं होते हैं। उनका फार्मेट अलग होता है। इस कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए भी यह जरूरी था कि कि उनके दिये गये फार्मेट के हिसाब से ही लेख लिखा जाए। लेख के लिए उन्होंने जो-जो बिन्दु गिनाए थे, मैंने उनमें अपनी सामग्री को फिट कर दिया है, बस।
जवाब देंहटाएंइस लेख के साथ दूसरी समस्या यह भी थी कि आयोजनकर्ताओं को लेख मूल रूप में अंग्रेजी में (प्रोसीडिंग में लेख अंग्रेजी में ही छपा है) उपलब्ध कराना था। अन्तिम समय में सूचना मिलने, लेख को अंग्रेजी में उपलब्ध करवाने की बाध्यता आदि के चक्कर में भी इसकी दशा ऐसी हुई। फिरभी इसमें सुश्री बुशरा अलवेरा जी का काफी योगदान रहा, जिससे यह कांफ्रेंस में स्वीकृत हो सका।
सार्थक आलेख......
जवाब देंहटाएंविज्ञान कथाएँ न सिर्फ बच्चों को सहज रूप में आकर्षित करती हैं, वरन उनकी कल्पना को नए आयाम भी प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त क्या विज्ञान कथाएँ अपनी छिपी हुई शक्ति के द्वारा बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास का कार्य भी करती हैं?
जवाब देंहटाएंVery lucid explanation and analysis of science fiction short stories is being presented .Good to read .Sorry sir transliteration is down .
वीरेन्द्र जी, विज्ञान कथाओं में विज्ञान से जुड़े हुए जटिल विषयों को कहानी की चाशनी में लपेट कर प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें कि अंधविश्वास एवं अज्ञानता की धुंध से घिरे विषय भी शामिल हैं। जब बच्चे इस तरह के विषयों पर लिखी तर्कपूर्ण विज्ञान कथाएं पढते हैं, तो उनको न सिर्फ सत्य का ज्ञान होता है, वरन उनके मन से अंधविश्वास की काली चादर भी छंटती है। इस तरह की रचनाओं में अंतर्निहित तार्किकता धीरे-पाठकों के मन में उतर जाती है और वह हर सुनी-सुनाई बातों पर ज्यों का त्यों विश्वास करने के बजाए उसे तर्क की कसौटी पर कसने के लिए प्रेरित होता है। इससे उसके मन में अवैज्ञानिक बातों के प्रति आलोचनात्मक भाव विकसित होता है और वह वह धीरे-धीरे वैज्ञानिक दृष्टिकोण सम्पन्न बन जाता है।
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