रवींद्रनाथ ठाकुर और उनका बालसाहित्य.
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रवींद्रनाथ ठाकुर और उनका बालसाहित्य.

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Rabindranath Tagore Children Literature in Hindi

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रवींद्रनाथ ठाकुर का नाम सुनते ही सहसा ‘गीतांजलि’ का ध्यान आता है और उनकी नोबेल पुरस्कार विजेता वाली विश्व कवि की छवि कौंध उठती है। पर ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि वे एक कुशल बाल साहित्यकार भी थे। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, पत्रलेखन, आत्मकथा आदि विभि‍न्न विधाओं में बच्चों के लिए उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन किया है। 

बच्चों के लिए लिखी इन रचनाओं के बारे में हिन्दी पाठकों का ध्यान तब गया, जब लीला मजूमदार और क्षि‍तीश राय के सम्पादन में साहित्य अकादेमी से दो खण्डों में ‘रवीन्द्रनाथ का बाल साहित्य’ संग्रह का प्रकाशन हुआ। इसमें उनकी चर्चित बाल कृतियों ‘शिशु भोलानाथ’, ‘खापछड़ा’, छड़ाड़ छवि’, गल्पशल्प’ और ‘छड़ा’ के साथ-साथ अन्य कृतियों से भी पहचान कर उन रचनाओं को संग्रहीत किया गया था, जिन्हें बच्चों की रूचि के अनुकूल पाया गया था। 

हिन्दी साहित्य जगत में यह पुस्तक बेहद चर्चित हुई इसी बहाने पहली बाल सही ढंग से हिन्दी पाठकों को रवीन्द्र के बाल साहित्य से रूबरू होने का मौका मिला। लेकिन इसी के साथ यह भी आवश्यकता महसूस की जाने लगी कि रवीन्द्रनाथ के बाल साहित्य से परिचय कराती आलोचनात्मक पुस्तक भी हिन्दी में प्रकाशि‍त होनी चाहिए। इस अवश्यकता को समझ कर उसपर गम्भीरता से काम शुरू हुआ और नतीजतन विजय बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित ‘रवींद्रनाथ ठाकुर का बालसाहित्य’ पुस्तक पाठकों के सामने है। 

इस पुस्तक के कुशल सम्पादक हैं देवेन्द्र कुमार देवेश, जोकि एक सजग बालसाहित्यकार और ‘किशोर लेखनी’ पत्रिका के सम्पादक के रूप में जाने जाते रहे हैं। देवेश हिन्दी बाल साहित्य एक गम्भीर चिंतक के रूप में भी जाने जाते हैं और इससे पूर्व वे ‘किशोर साहित्य की संभावनाएं’ के रूप में अपनी आलोचनात्मक दृष्िट से परिचित करा चुके हैं। शोध-आलोचना परक उनकी पुस्तक ‘गीतांजलि के हिन्दी अनुवाद’ भी विशेष चर्चित रही है। 

‘रवींद्रनाथ ठाकुर का बालसाहित्य’ पुस्तक इस मायने में विशि‍ष्ट है कि इसमें एक साथ हिन्दी, बंग्ला और अंग्रेजी के रचनाकारों के आलोचनात्मक लेखों को संजोया गया है। यही कारण है रवींद्रनाथ के बाल साहित्य के सभी पहलू इसमें भलीभांति उद्घाटित हुए हैं। इनमें से शिशु संबंधिनी-रचना (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला), बच्चों के लेखक के रूप में रवींद्रनाथ (लीला मजूमदार), शिशु रवींद्रनाथ (तनुजा मजूमदार), छेलबेला – बचपन से दूर बचपन की कथा (ओमप्रकाश कश्यप), बालमन के कुशल चितेरे (ए.वी. सूर्यनारायण) नामक लेख वास्तव में इस पुस्तक में संग्रहीत ऐसे मनके हैं, जिनमें मन से रवींद्र की लेखनी के प्रताप को उकेरा गया है। 

निराला ने अपने लेख में रवींद्रनाथ के बाल साहित्य और विशेषकर उनकी बाल कविताओं की गहन विवेचना की है और उनमें निहित बाल मनोविज्ञान को रेखांकित करते हुए उनकी सराहना की है। लीला मजूमदार ने मूल रूप में अंग्रेजी में लिखे अपने आलेख में बड़े विस्तार से बच्चों के लेखन की जरूरतों के बरअक्स रवींद्रनाथ के बाल साहित्य को कसौटी पर कसा है और उन्हें बड़ा रचनाकार सिद्ध किया है। इसी प्रकार तनुजा मजूमदार ने रवींद्रनाथ के जीवन के विविध पक्षों को उदघाटित करते हुए उनकी रचनाओं में आए उनके प्रभाव को तथा ए.वी. सूर्यनारायण ने रवींद्र की रचनाओं में वर्णित बालमन की छवियों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है। जबकि ओमप्रकाश कश्यप ने उनकी चर्चित बाल कृति ‘छेलबेला’ की मीमांसा करते हुए उसे समकालीन समाज की दृष्टि से परखने का गम्भीर कार्य किया है।

इसके अतिरिक्त पुस्तक में संग्रहीत हरिकृष्ण देवसरे, अमर गोस्वामी, प्रकाश मनु, देवेन्द्र कुमार देवश आदि रचनाकारों के लेख भी पठनीय बन पड़े हैं और रवींद्रनाथ के पाठकों के लिए किसी अमूल्य निधि से कम नहीं हैं। सम्पादक ने अपनी कुशल दृष्िट का परिचय देते हुए एक ओर जहां हिन्दी, बंगला और अंग्रेजी के चर्चित रचनाकारों के माध्यम से रवींद्र द्वारा बाल साहित्य की विभि‍न्न विधाओं में रची गयी रचनाओं का समीक्षात्मक परिचय उपलब्ध कराया है, वहीं उनकी रचनाओं में आए बाल-किशोर चरित्रों की सूची उपलब्ध कराकर पुस्तक की महत्ता को बढ़ाने का कार्य किया है।

आलोच्य पुस्तक को रूपाकार देने में कल्लोल चक्रवर्ती और स्वतंत्र मिश्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिसे अवश्य रेखांकित किया जाना चाहिए। कल्लोल युवा रचनाकार हैं और हिन्दी की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में अपनी कहानी, कविता एवं समीक्षाओं के साथ प्रकाशित होते रहे हैं। उन्होंने रवींद्रनाथ पर लिखे गये बंग्ला में प्रकाशित अनेक लेखों को अनुदित करके उपलब्ध कराया है। इसी प्रकार स्वतंत्र मिश्र, जो युवा रचनाकार और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं, ने भी अंग्रेजी में लिखे गये अनेक लेखों को अनुवाद के जरिए संग्रह के लिए उपलब्ध कराने का महती कार्य किया है। 

विजया बुक्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक हिन्दी बाल साहित्यकारों, पाठकों और शाधार्थियों के किसी सौगात से कम नहीं है। पुस्तक रवींद्रनाथ के बाल साहित्य पर हिंदी पर अनुपलब्ध आलोचनात्मक कृति के अभाव की पूर्ति करती है और बाल साहित्य के अध्येताओं के लिए विचार-विमर्श के नये आयाम उपलब्ध कराती है। निश्चय ही इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए सम्पादक देवेश की जितनी सराहना की जाए, वह कम है।

पुस्तक- रवींद्रनाथ ठाकुर का बालसाहित्य
सम्पादक- देवेन्द्र कुमार देवेश
प्रकाशक- विजया बुक्स, 1/10753, सुभाष पार्क, गली नं. 3, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032
प्रथम संस्करण- 2013
पृष्ठ- 176
मूल्य- 350 रू0
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COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. बेनामी8/05/2014 12:14 pm

    Are wah, Ravindranath ji ne itni vipul matra me bal sahitya likha hai? dhanyawad.

    जवाब दें हटाएं
  2. एक संक्षिप्त और सारगर्भित समीक्षा देने के लिए जाकिर भाई को बधाई. देवेश ने इस पुस्तक में बहुत श्रम किया है. रवींद्रनाथ का कवित्व और बालसाहित्य तो किसी न किसी बहाने हमारे सामने आ ही जाता है. परंतु उनके बालसाहित्य को आलोचनात्मक दृष्टि से देखने का काम हिंदी में कम हुआ है. यह पुस्तक उसकी दिशा में एक खिड़की खोल देती है. देवेश इससे पहले गीतांजलि के हिंदी अनुवादों से हमारा परिचय करा चुके हैं. मेरी ओर से देवेश का आभार....बधार्इ् मैं पहले ही दे चुका हूं.

    जवाब दें हटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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