Great Womens of Indian History in Hindi
आज हम आपके लिए 5 ऐसी महान भारतीय महिलाओं Great Womens of Indian History in Hindi की जानकारी लेकर आए हैं, जो भारत के इतिहास में अमर हैं। इन महान महिलाओं Great Indian Womens ने 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी थी। ये अपनी बहादुरी और रणकौशल के कारण Great Women's of Indian History in Hindi के रूप में याद की जाती हैं। इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। हमें उम्मीद है कि महान भारतीय स्त्रियों Great Ladies of India पर केंद्रित यह लेख आपको पसंद आएगा। वैसे यह लेख पढ़ने में थोड़ा बड़ा है, इसलिए अगर आप चाहें, तो इसे हमारे यूट्यूब चैनल पर सुन भी सकते हैं, जिसका वीडिया नीचे लगा हुआ है।
Great Womens of Indian History in Hindi
रानी लक्ष्मीबाई
महान भारतीय महिलाओं Great Women's of Indian History in Hindi में सबसे पहला नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई Laxmibai का है। लक्ष्मीबाई की पहचान ये नहीं है कि वे पेशवाओं के बेहद करीबी रहे मोरोपंत की पुत्री और झांसी के राजा गंगाधर राव की पत्नी थीं। लक्ष्मीबाई की पहचान ये है कि एक एक करके पुत्र और पति के निधन के घाव को सहने के बाद, जब अंग्रेजों ने उन्हें झांसी से बेदखल किया, तो वे घायल नाग की तरह फुंफकार उठीं और अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी।19 नवम्बर, 1828 को बनारस में जन्मीं लक्ष्मीबाई ने विद्रोही सदाशिव राव और ओरछा के राजा तो हराया ही, अंग्रेजी फौज को भी दांतों तले उंगली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने नेतृत्व में 14 हज़ार फौजियों की सेना तैयार की और 1857 की एक प्रमुख सेनानी बन कर उभरीं।
अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांध कर लड़ने वाली लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की सेना से झांसी, कालपी और ग्वालियर में लोहा लिया। इन लड़ाइयों में उनका साथ तात्या टोपे, नाना साहब और पेशवा के प्रतिनिधि राव साहब ने दिया। उन्होंने कई मौकों पर अंग्रेजों को मात दी और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
पर जनरल सर ह्यूग रोज़ की विशाल सेना और साथी योद्धाओं की जीवटता की कमी के कारण उन्हें अंतत: ग्वालियर में हुए युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। ऐसे कठिन समय में जब उनका नया घोड़ा एक नाले के सामने ठिठक कर रूक गया, तो वे दुश्मनों से बुरी तरह से घिर गयीं। और इस प्रकार 17 जून, 1858 को वह बहादुर रानी अंग्रेजों से लड़ते हुए महान भारतीय नारी Great Women Personalities of India के रूप में इतिहास के पन्नों में अमर हो गयीं।
बेगम हज़रत महल
सन 1857 में महान भारतीय महिला Great Indian Womens उभरने वाली दूसरी हस्ती हैं बेगम हज़रत महल Begum Hazrat Mahal. उन्होंने बगावत की शुरूआत उस संधि के विरोध से की, जो अंग्रेज़ों ने अवध की रियासत को हड़पने के लिए पेश की थी। नवाब वाजिद अली शाह द्वारा संधि पर हस्ताक्षर न करने से अंग्रेज खफा हो गये और उन्होंने नवाब साहब को गिरफ्तार कर लिया।
इससे बेगम हज़रत महल ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। इस संग्राम में फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने उनका साथ दिया। विद्रोही सेना का चिनहट के पास अंग्रेजों से मुकाबला हुआ, जिसमें अंग्रेज सेना की बुरी तरह से हार हुई।
हजरत महल ने 7 जुलाई 1857 को लखनउ को अधिकार में लेकर अपने पुत्र बिरजिस कादर को वहां का राजा घोषित कर दिया। उन्होंने आलमबाग के मोर्चे पर महिला टुकड़ी के साथ सेना का नेतृत्व किया। इसके साथ ही उन्होंने जौनपुर, आजमगढ़ और इलाहाबाद में भी विद्रोहियों को कब्जा करने के आदेश दिये।
इसी बीच दिल्ली और कानपुर में विद्रोह कुचल जाने से अंग्रेजों के हौसले बुलंद हो गये। उन्होंने बाहर से सेना बुलाकर 21 मार्च, 1858 को पूरे लखनउ को अपने अधिकार में ले लिया।
लखनउ छोड़ने के बाद बेगम ने बहराइच के बूंदी किले में शरण ली। पर अंग्रेज फौज उनका पीछा करते हुए वहां भी जा पहुंची। बेगम ने बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया, पर भितरघात के कारण उनकी सेना के पैर उखड़ने लगे।
और कोई चारा न देखकर हज़रत महल अपने बेटे को लेकर नेपाल चली गयीं, ताकि वहां पर अपनी सेना संगठित कर सकें। पर नेपाल नरेश के मना कर देने और 1857 के विद्रोह के पूरी तरह से कुचल दिये जाने से हज़रत महल बुरी तरह से टूट गयीं।
1 नवम्बर 1858 को महारानी विक्टोरिया ने सभी राजाओं को पेंशन देने का आदेश जारी किया। पर बेगम ने अंग्रेजों की भीख लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कांठमांडू, नेपाल में अपनी जिंदगी का बाकी का सफर एक आम आदमी की तरह तय किया और 7 अप्रैल 1879 को इस संसार से कूच कर गयीं। अपने देशप्रेम और जिजीविषा के कारण वे भारतीय इतिहास में महान भारतीय नारी Great Womens of Indian History in Hindi के रूप में दर्ज हैं और आज भी श्रद्धा के साथ याद की जाती हैं।
अवंतीबाई लोधी
सन 1857 की तीसरी वीरांगना Great Women Personalities of India हैं अवंतीबाई लोधी Avantibai Lodhi. उनका जन्म 16 अगस्त 1831 को सिवनी मध्य प्रदेश के एक जमींदार परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही जुझारू और रणकौशल की कला में माहिर थीं। अवंतीबाई का विवाह मध्य प्रदेश की रामगढ़ रियासत के राजकुमार विक्रमजीत सिंह से हुआ था।विक्रमजीत के मानसिक बीमार होने पर अंग्रेजी हुकूमत ने रामगढ रियासत को अपने राज्य में मिला लिया। उस समय तो अवंतिका बाई इस अपमान का घूंट पीकर रह गयीं, पर जब 1857 की क्रांति का बिगुल बजा, तो वे भी इस आंदोलन में कूद पड़ीं।
1 अप्रैल 1858 को अंग्रेजी फौज ने रामगढ़ पर हमला किया। रानी अवंतीबाई ने इस लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये। लेकिन अंग्रेज भी इतनी जल्दी कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने वाशिंगटन के नेतृत्व में पुन: रामगढ पर चढ़ाई कर दी। इस बार भी अवंतीबाई ने अपने पराक्रम के बल पर अंग्रेजों को मैदान से खदेड़ दिया।
तीसरी बार अंग्रेजों ने और बड़ी सेना के साथ रामगढ़ पर आक्रमण किया। घमासान युद्ध हुआ। रानी बहादुरी से लड़ीं, लेकिन धीरे धीरे कमज़ोर पड़ने लगीं। अपनी स्थित का भान होने पर वे अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ जंगल में चली गयीं और छापामार युद्ध की तैयारी करने लगीं।
रानी को आशा थी कि रीवां राज्य के क्रान्तिकारी सैनिकों की मदद पहुंचने पर वे अंग्रेजों को रामगढ़ से भगाने में कामयाब हो जाएंगीं। पर जब वे लोग अंग्रेजों से मिल गये, तो रानी की स्थिति कमज़ोर हो गयी। इसी बीच अंग्रेजी सेना ने जंगल में उन्हें चारों ओर से घेर लिया। और कोई उपाय न देखकर अवंतीबाई ने 20 मार्च 1858 को अपनी ही तलवार से अपना सीना चीर लिया।
इस प्रकार रानी अवंतीबाई लोधी अपनी बहादुरी और देशभक्ति के कारण इतिहास के पन्नों में महान भारतीय नारी Great Women's of Indian History in Hindi के रूप में अमर हो गयीं। उनके उल्लेख के बिना सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है।
महारानी तपस्विनी
सन 1857 के दौरान उभर कर सामने आई चौथी भारतीय महिला Great Women Personalities of India के रूप में रानी तपस्विनी Rani Tapaswini का नाम आता है। वे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की भतीजी और उनके एक सरदार पेशवा नारायण राव की पुत्री थीं। उनका जन्म 1842 में हुआ था। वह एक बाल विधवा थीं और उनके बचपन का नाम सुनन्दा था।नारायण राव की मृत्यु के बाद सुनन्दा ने स्वयं जागीर की देखभाल करना प्रारंभ कर दिया था। वे लोगों को अँग्रेज़ों के विरुद्ध भड़काती थीं और उन्हें क्रांति की प्रेरणा देती थीं। जब सरकार को इस बारे में जानकारी प्राप्त हुई, तो उसने सुनन्दा को एक क़िले में नज़रबंद कर दिया। लेकिन कुछ समय के बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। रिहा होने के बाद सुनन्दा नैमिषारण्य चली गई और संत गौरीशंकर के निर्देशन में शिव की आराधना करने लगीं।
धीरे धीरे सुनन्दा रानी तपस्विनी के नाम से मशहूर हो गयीं। सन 1857 ई. में क्रांति का बिगुल बजने पर रानी तपस्विनी इसके साथ सक्रिय रूप से जुड़ गयीं। उन्होंने स्वयं घोड़े पर चढ़कर युद्ध में भाग लिया। अंग्रेज सरकार ने रानी को पकड़ने के लिए कई बार प्रयत्न किया, परंतु गाँव वाले उनकी मदद करके छिपा देते थे, जिससे वे हर बार बच जाती थीं।
1857 की क्रांति के दमन के बाद रानी तपस्विनी नाना साहब के साथ नेपाल चली गईं और नाम बदल कर रहने लगीं। उन्होंने वहां बसे भारतीयों में भी देशभक्ति की अलख जगाई। नेपाल के प्रधान सेनापति की मदद से उन्होंने गोला-बारूद बनाने की एक फैक्टरी खोली ताकि क्रांतिकारियों की मदद की जा सके। लेकिन उनके एक निकटस्थ ने धन के लालच में अंग्रेजों को सब कुछ बता दिया। इससे तपस्विनी नेपाल छोड़कर कलकत्ता चली गईं।
कलकत्ता में रानी तपस्विनी ने 'महाभक्ति पाठशाला' खोली और उसमें बालिकाओं को राष्ट्रीयता की शिक्षा दी। सन 1905 ई. में जब बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ हुआ था, तो उसमें भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे अंतिम समय तक कलकत्ता में ही हरीं। और वहीं पर सन 1907 में रानी तपस्विनी की मृत्यु हो गई। लेकिन अपने देशप्रेम और संघर्ष के कारण वे महान भारतीय नारी Great Womens of Indian History in Hindi के रूप में आज भी हर भारतीय के दिल में बसी हुई हैं।
अजीजनबाई
सन 1857 के दौरान महान भारतीय महला Great Ladies of India के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली पांचवी हस्ती हैं अजीजनबाई।अजीजनबाई Ajijanbai का जन्म 22 जनवरी सन 1824 को मध्य प्रदेश के मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। उनके पिता शमशेर सिंह एक ज़ागीरदार थे।अजीजनबाई के बचपन का नाम अंजुला था। एक दिन वे अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमने गयी थीं, जहां से उसे अंग्रेज सिपाहियों ने अगवा कर लिया था। अंग्रेजों की गिरफ्त से बचने के लिए वह नदी में कूद गयीं। नदी से अंजुला को एक पहलवान ने बचाया और कानपुर की एक तवायफ को बेच दिया। वहां पर अंजुला से उनका नाम अजीजन बाई हो गया और वह आगे चलकर एक तवायफ के रूप में मशहूर हुयीं।
एक दिन अजीजन की मुलाकात क्रांतिकारी नाना साहेब से हुई। अजीजन उनसे बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति आज़ादी की लड़ाई के लिए नाना साहब को दान कर दी। उन्होंने अपनी साथी तवायफों के साथ मिलकर 'मस्तानी टोली' बनाई और उन्हें युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया। यह टोली दिन में वेष बदल कर अंग्रेजों से मोर्चा लेती थी और रात में छावनी में मुज़रा करके वहां से गुप्त सूचनाएं एकत्र करके नाना साहब तक पहुंचाती थी। इसके अलावा युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा तथा रसद आदि पहुंचाने का काम भी वे लोग करती थीं।
अजीजन की प्रेरणा से अंग्रेजी फौज के हजारों सिपाही विद्रोही सेना में शामिल हुए। उनकी मदद से नाना साहेब ने कानुपर से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका और 8 जुलाई 1857 को वे वहां के स्वतंत्र पेशवा घोषित कर दिये गये।
पर 17 जुलाई को जनरल हैवलाक बड़ी सेना लेकर कानपुर पहुँच गया। उसने कुछ विश्वासघातियों की मदद से जीती बाजी पलट दी। नाना साहब वहां से बच कर निकलने में कामयाब हो गये, पर अजीजन अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गयीं।
जनरल हैवलाक ने कहा कि यदि वह माफी मांग लें और साथी क्रांतिकारियों का पता बता दें, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। पर अजीजन ने इससे सख्ती से इनकार कर दिया।
इससे क्रुद्ध होकर हैवलाक ने अजीजन को गोलियों से भून देने का हुक्म जारी कर दिया। यह सुनकर भी अजीन के चेहर पर एक शिकन तक नहीं आई और वह देश की खातिर हंसते हुए कुर्बान हो गयीं।
दोस्तों, हमें उम्मीद है कि महान भारतीय नारियों Great Women's of Indian History in Hindi के 1857 में दिये गये योगदान के बारे में जानकार आपको अच्छा लगा होगा और आपका सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया होगा। अगर ऐसी बात है, तो प्लीज़ से अपने फ्रेंड्स के साथ भी जरूर शेयर करें। जिससे यह लेख अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे और उन्हें ज्ञानवद्र्धन हो सके।
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