साक्षी मलिक का संघर्ष और उपलब्धियां!
ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में हुए 2016 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में महिला कुश्ती का कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचने वाली साक्षी समाज और परिवार से लड़ कर इस मकाम तक पहुंची है। क्योंकि एक लड़की पहलवान बने, न तो यह उसके मां-बाप को मंजूर था और न उनके पहलवान दादाजी को ही। लेकिन अपनी दृढ़ इच्क्षा शक्ति के बल पर आखिर साक्षी ने वह पा लिया, जो उसने चाहा था।
जन्म और बचपन:
साक्षी मलिक का जन्म 03 सितम्बर 1992 को हरियाणा के रोेहतक जिले में मोखरा खास नामक गांव में हुआ था। साक्षी के जन्म के कुछ समय बाद उनकी मां सुदेश मलिक की आंगनबाड़ी में नौकरी लग गयी और पिता सुखबीर मलिक दिल्ली में बस कंडक्टर हो गये। ऐसे में समस्या आई कि साक्षी का क्या किया जाए। काफी सोच विचार के बाद साक्षी को गांव में उसके दादा-दादी के पास छोड़ दिया गया, जहां पर वह पली और बढ़ी।
दादा से ली प्रेरणा:
साक्षी के दादा बदलूराम इलाके के मशहूर पहलवान थे। आसपास के इलाके में उनका बड़ा रुतबा था। उनके घर पर जो भी आता, वह ऐहतराम के साथ 'पहलवान जी, नमस्ते' कह कर उनका अभिवादन करता। यह सुनकर नन्ही साक्षी आनंद से भर जाती। धीरे-धीरे उसके मन में यह बात बैठ गयी कि अगर वह भी अपने दादा की तरह पहलवान बन जाए, तो लोग उसको भी इसी तरह से मान-सम्मान देंगे।
सात साल तक दादा के पास रहने के बाद साक्षी अपनी मां के पास लौट गयी। लेकिन तब तक वह पहलवान बनने का दृढ निश्चय कर चुकी थी। मां ने जब उसकी इच्छा सुनी, तो वह चौंक उठीं। उसके पिता और दादा ने भी साक्षी का विरोध किया, क्योंकि उन्हें डर था कि कुश्ती के चक्कर में कहीं उसके हाथ-पैर न टूट जाएं। सभी लोगों ने साक्षी को बहुत समझाया, पर साक्षी टस से मस नहीं हुई। और अंतत: साक्षी के घर वाले उसे कुश्ती की ट्रेनिंग देने के लिए तैयार हो गये।
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लड़कों से किया मुकाबला:
बारह साल की उम्र में साक्षी रोहतक के छोटूराम स्टेडियम पहुंची, और वहां के कोच ईश्वर सिंह दहिया से कुश्ती के दांव-पेच सीखने लगी। कोच के सामने एक समस्या यह आई कि उसका मुकाबला किससे करवाया जाए, क्योंकि उन दिनों कोई लडकी पहलवानी नहीं करती थी। यह देख कर साक्षी ने लड़कों से मुकाबला करने का निश्चय किया। उसने न सिर्फ लड़को से कुश्ती लड़ी वरन उन्हें हराया भी और इस तरह वह अपने भविष्य का मार्ग प्रशस्त करती गयी।
कामयाबी का सफर:
साक्षी ने कुश्ती में कामयाबी का पहला बड़ा स्वाद 2014 में चखा, जब उसने राष्ट्रमंडल खेलों के 58 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक हासिल किया। इसके बाद 2015 में दोहा में आयोजित एशयिन चैम्पियनशिप में साक्षी ने 60 किलोग्राम वर्ग में हिस्सा लिया और कांस्य पदक जीता। इससे साक्षी की उम्मीदें परवान चढ़ गयीं और वह ओलम्पिक की तैयारी करने में व्यस्त हो गयी।
अपनी ओलम्पिक की तैयारियों के लिये साक्षी 2014 में ही लखनऊ आ गयी थी। यहां पर पर उसने स्पोर्टस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के
ट्रेनिंग सेंटर में अपने प्रशिक्षकों के साथ मिलकर गहन अभ्यास किया। वह रोजाना 8 घंटो का नियमित अभ्यास करती थी और अपने खान-पान व फिटनेस सम्बंधी नियमों का सख्ती से पालन करती थी। आखिर साक्षी की लगन और प्रशिक्षकों की मेहनत रंग लाई और साक्षी भारत की ओर से ओलम्पिक में कुश्ती का मैडल जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गयी।
पुरस्कारों की बरसात:
साक्षी की सफलता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उसे रानी लक्ष्मीबाई
पुरस्कार देने की घोषणा की है। ये उत्तर प्रदेश में महिला खिलाड़ियों को
दिया जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार है, जिसके तहत 3 लाख ग्यारह हजार रुपए का
पुरस्कार दिया जाता है।
ओलम्पिक में रजत पदक जीतने पर साक्षी पर चारों ओर से पुरस्कारों की वर्षा हो रही है। अब तक हरियाणा सरकार द्वारा उसे 2.5 करोड़ रुपए, दिल्ली सरकार द्वारा 1 करोड़ रुपए, रेलवे द्वारा 50 लाख रुपए, भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा 20 लाख रुपए, जेएसडब्ल्यू द्वारा 15 लाख रुपए तथा सलमान खान द्वारा 1 लाख एक हज़ार रुपए देने की घोषणा की जा चुकी है।
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