ख़ूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।

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Rani Laxmi Bai Biography in Hindi | Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi

Rani Laxmi Bai Biography
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

सिर्फ यह कविता ही नहीं, रानी लक्ष्मीबाई पर अब तक न जाने कितनी कविताएं, लेख, कहानी और नाटक लिखे जा चुके हैं। यही कारण है कि लोग लक्ष्मीबाई के बारे में जानना चाहते हैं और गूगल पर Rani Laxmi Bai Biography in Hindi खोजते रहते हैं। लक्ष्मीबाई ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपनी वीरता और रणकौशल के बल पर अंग्रेजों से जिस प्रकार लोहा लिया, वह अत्यंत अद्भुत है। इसीलिए आज हम आपके लिए Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi लेकर आए हैं। तो आइए आज खोलते हैं भारतीय इतिहास के उस स्वर्णिम पृष्ठ को, जिसे पढ़ कर आज भी हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

Rani Laxmi Bai Biography in Hindi 

Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi

लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 को बनारस में हुआ था। उस समय भारत में अंग्रेजी साम्राज्य बहुत तेजी से अपने पैर पसार रहा था। हालांकि 1857 के युद्ध से पूर्व पूना में पेशवा का बोलबाला था। पर अंग्रेजों ने बाजीराव पेशवा को गद्दी से उतारकर उनके छोटे भाई चिमाजी को बिठाना चाहा था। स्वाभिमानी चिमाजी इससे रूष्ट होकर सपरिवार बनारस चले गये थे। लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत, पेशवा की फौज के एक उच्चाधिकारी के पुत्र थे, और वे भी चिमाजी के साथ बनारस आ गये थे।

लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मनुबाई था। जब मनु 4 वर्ष की थी, तभी उनकी मां भागीरथीबाई का देहांत हो गया। इससे उनके पिता मोरोपंत बाजीराव के पास बिठूर चले गये। वहीं पर मनु का बचपन पेशव के दत्तक पुत्र नाना साहब के साथ बीता और उसने शिकार, तैराकी, शस्त्र विद्या, मल्लविद्या और घुड़सवारी आदि सीखी। 

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1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव ने दूसरा विवाह करने का निश्चय किया। उस समय तक उन्होंने मनुबाई के बारे में बहुत सुन रखा था। उन्होंने मोरोपंत के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा। मोरोपंत ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस प्रकार 14 साल की उम्र में मनुबाई का विवाह हो गया। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई रख दिया गया था।

विवाह के 9 साल बाद लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया। किन्तु कुछ माह के बाद ही दामोदर राव का निधन हो गया। इससे गंगाधर राव बेहद निराश हो गये और बीमार रहने लगे। बाद में अपने परिवार की सलाह पर गंगाधर राव ने आनंदराव नाम के बच्चे को गोद लिया। उन्होंने उसका नाम बदल कर दामोदर राव रख दिया। लेकिन इसके कुछ समय बाद 21 नवंबर 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु हो गई।

उस समय भारत में लार्ड डलहौजी की हड़प नीति चल रही थी। इसके अंतर्गत किसी राजा के संतान नहीं होने पर उसकी मृत्यु के बाद राज्य को अंग्रेजी हुकूमत में मिला लिया जाता था। इसके विरोध में महारानी लक्ष्मीबाई ने लंदन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुक़दमा दायर किया, पर उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया। साथ ही उन्हें यह भी आदेश दिया गया कि वे झाँसी के किले को खाली कर दें और रानी महल में जाकर रहें। इसके लिए उन्हें भरण पोषण के रूप में अंग्रेजों की ओर से 60,000 वार्षिक पेंशन दी जाएगी। इससे विवश होकर लक्ष्मीबाई ने झांसी का किला खाली कर दिया और रानी महल में चली गयीं।

10 मई, 1857 को मेरठ से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह का बिगुल बजा, जो 5 जून 1857 को झांसी जा पहुंचा। वहां पर क्रान्तिकारियों ने कई स्थानों पर कब्जा कर लिया। इससे डर कर 61 अंग्रेज झांसी के किले में जा छिपे। उन्होंने वहां से निकलने के लिए रानी से मदद मांगी। पर जब वे अंग्रेज वहां से निकल कर जा रहे थे, तो विद्रोही सेना ने उनपर धावा बोल दिया और उनकी हत्या कर दी। यहां पर Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi का पहला पार्ट समाप्त हुआ। अब हम आगे चलते हैं।

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झांसी से अंग्रेजों के सफाए के बाद वहां की सत्ता लक्ष्मीबाई के हाथ में आ गयी। इसी बीच 13 जून, 1857 को लक्ष्मीबाई के पति गंगाधर राव के एक रिश्तेदार सदाशिव राव ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया और मार कर भगा दिया।

अक्टूबर, 1857 में झांसी से सटे राज्य ओरछा के राजा ने झांसी के चारों ओर घेरा डाल दिया। यह घेरा 3 महीने तक चला। पर अंतत: इसमें भी लक्ष्मीबाई की विजय हुई।

इसी बीच लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना को मजबूत करना शुरू कर दिया। इस कार्य में गुलाम गौस खान, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, लालाभाऊ बक्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह जैसे बहादुर योद्धाओं ने रानी लक्ष्मीबाई का सहयोग किया। इस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई ने 14,000 सिपाहियों की फौज तैयार कर ली। 

इससे रूष्ट होकर अंग्रेज जनरल सर ह्यूग रोज़ 21 मार्च, 1858 को विशाल अंग्रेज फौज लेकर झांसी जा पहुंचा। दोनों ओर से गोलाबारी हुई। रानी की मदद के लिए तात्या टोपे भी 20 हजार सेना लेकर जा पहुंचे। पर उनकी उत्साही सेना रोज़ की प्रशिक्षित सेना से पार न पा सकी। और इस तरह तात्या टोपे को वहां से पीछे हटना पड़ा।

3 अप्रैल 1858 को अंग्रेज सेना किले की दीवार को तोड़कर उसमें घुसने में सफल हो गयी। इसके बाद उसने पूरे शहर को आग के हवाले कर दिया और खुल कर कत्लेआम करने लगे। लक्ष्मीबाई अपने साथियों की सलाह पर रात के अंधेरे में किले से निकल गयीं और कालपी की ओर कूच कर गयीं। वहां पर वे तात्या टोपे के मिलीं और उनके सहयोग से अपनी सेना फिर से सुसज्जित करने लगीं। 

22 मई, 1858 को ह्यूग रोज़ ने कालपी पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने इस बार उन्हें परास्त कर दिया, जिससे अंग्रेजो को पीछे हटना पड़ा। पर कुछ समय के पश्चात रोज ने फिर से काल्पी पर धावा बोला। इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा।

पर इससे विद्रोही सेना के हौसले पस्त नहीं हुए। वे लोग अगली रणनीति के तहत गोपालपुर में एकत्र हुए। रानी ने अपने साथियों को ग्वालियर पर आक्रमण करने का सुझाव दिया, ताकि वे अपनी शक्ति बढ़ा सकें और अंग्रेजों से बदला ले सकें। 

अपनी इस रणनीति के तहत रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने एक बार पुन: विद्रोही सेना को एकत्रित किया और ग्वालियर पर चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में ग्वालियर की सेना की हार हुई और वहां पर विद्रोही सेना का कब्जा हो गया।

पर जनरल सर ह्यूग रोज़ ने लक्ष्मीबाई का पीछा नहीं छोड़ा। वह अपनी सेना लेकर ग्वालियर तक जा पहुंचा। इधर ग्वालियर में नाना साहब और पेशवा के प्रतिनिधि राव साहब विजयोत्सव में डूबे हुए थ, उधर अंग्रेज़ सेना पुख्ता इंतजाम के साथ ग्वालियर तक चढ़ आई। अब आप Rani Laxmi Bai Biography in Hindi के महत्वपूर्ण एवं समापन भाग की ओर बढ़ रहे हैं।

यह युद्ध बेहद निर्णायक रहने वाला था, इसलिए लक्ष्मीबाई ने भी पूरी जान लगा दी। उन्होंने अपनी दो सहेलियों काशी और मंदरा के साथ मुख्य मोर्चा संभाला। दूसरे मोर्चे पर राव साहब अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। वे इस बार कमजोर पड़ गये। 

यह देखकर लक्ष्मीबाई ने उनकी मदद करने की कोशिश की। इस दौरान उनका घोड़ा घायल हो गया। लक्ष्मीबाई ने एक दूसरा घोड़ा लिया और फिर युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं। 

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पर नया घोड़ा उतना कुशल नहीं था, जिससे लक्ष्मीबाई को असुविधा होने लगी। तभी एक गोली उनके पैर में आ लगी और शरीर से खून बहने लगा। इस समय उनका पुत्र दामोदर राव उनकी पीठ से बंधा था। उनके कुछ साथी ही लड़ाई के मैदान में बचे थे। लक्ष्मीबाई ने घायल होने के बावजूद दोनों हाथों में तलवार संभाली और तेजी से घोड़ा दौड़ाते हुए वहां से निकलने लगी।

लक्ष्मीबाई जब अपने गिने चुने साथियों के साथ कोटा की सराय नामक स्थान से गुजर रही थीं, तभी उनके रास्ते में एक नाला आ गया। उसे देखकर उनका घोड़ा ठिठक गया। उन्होंने घोड़े को छलांग लगाने के लिए बहुत प्रेरित किया, पर घोड़ा टस से मस नहीं हुआ।

तब तक उनका पीछा करते हुए अंग्रेज टुकड़ी भी वहां आ पहुंची। रानी ने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया। तभी एक सैनिक ने पीछे से उनके सिर पर वार किया। लक्ष्मीबाई जब तक कुछ समझ पातीं, सैनिक ने दूसरा वार उनके सीने पर कर दिया। रानी ने पलटकर उस सैनिक पर हमला किया और उसे ढ़ेर कर दिया।

पर अगले ही पल वे घोड़े से गिर पड़ीं। उनके साथी उन्हें पास की एक झोपड़ी में ले गये। रानी बुरी तरह से घायल हो गयी थीं। उन्होंने अंतिम समय में सैनिकों को आदेश दिया कि मृत्यु के पश्चात उनका शव शत्रुओं के हाथ न लगे।

उनके विश्वासपात्र रामचंद्र राव और काशीबाई रानी के पार्थिव शरीर को झोपड़ी के अंदर रखा और कुछ लकड़ियों का इंतज़ाम करके उनका दाह संस्कार कर दिया। और इस प्रकार 17 जून, 1858 को वह बहादुर रानी अंग्रेजों से लड़ते लड़ते इतिहास के पन्नों में अमर हो गयी। 

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दोस्तों, हमें उम्मीद है कि आपको Rani Laxmi Bai Biography in Hindi पसंद आई होगी। सचमुच रानी लक्ष्मीबाई का चरित्र है ही ऐसा महान। वे साहस और जीवटता की अद्भुत मिसाल हैं। इसीलिए लोग उन्हें आज भी याद करते हैं और एक दूसरे से शेयर करते हैं। हमें आशा है कि आप भी Biography of Rani Lakshmi Bai in Hindi लेख को अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर करेंगे और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएंगे। 

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