फिदेल कास्त्रोत के बारे में पढ़ना, दुनिया भर के सामाजिक आंदोलनों के मर्म को जानने के समान है। क्योंकि वे सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं थे,...
फिदेल कास्त्रोत के बारे में पढ़ना, दुनिया भर के सामाजिक आंदोलनों के मर्म को जानने के समान है। क्योंकि वे सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं थे, जिसने क्यूबा के तानाशाह बतिस्ता और उसके पोषक अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरूद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया और उन्हें परास्त किया, बल्कि उन्होंने दुनियाभर में क्रान्तिकारियों के विरूद्ध किये जा रहे दुष्प्रचार का जवाब दिया और सामाजिक न्याय की आवाज को सम्बल प्रदान किया।
बाएं से: चंदेश्वर, वी.के. सिंह एवं राकेश |
उपरोक्त बातें वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी राकेश ने मोतीमहल लॉन में आयोजित बारहवें पुस्तमक मेले के दौरान कहीं। वे राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित वी.के. सिहं की पुस्तक ‘फिदेल कास्त्रो’ पुस्तक के लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि फिदेल कास्त्रो सिर्फ इसलिए नहीं पढ़े जाने चाहिए कि उन्होंने क्यूबा से अमेरिकी साम्राज्यवाद की जड़ों को उखाड़ फेंका, बल्कि वे इसके लिए भी जाने जाएंगे कि उन्होंने शोषित और निराश्रित जनता के हृदय में विश्वास के बीज बोए और उन्हें अपने अधिकारों के लिए उठ खड़े होने की शक्ति प्रदान की।
इससे पूर्व कार्यक्रम में मौजूद विद्वतजनों ने ‘फिदेल कास्त्रो’ पुस्तक को लोकार्पित करने की रस्म निभाई। लोकार्पण के उपरान्त पुस्तक के लेखक कामरेड वी.के. सिंह ने पुस्तक लेखन की पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कहा कि जो लोग सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हैं, जो शोषित और प्रताडि़त जनता के हक के लिए संघर्षरत हैं, उनके लिए फिदेल कास्त्रो एक जीवित आदर्श हैं। इसीनलिए उनकी जीवन-गाथा को कलमबद्ध करने की आवश्यकता महसूस की गयी और इस पुस्तक का सृजन हुआ। उन्होंने पुस्तक प्रकाशन के लिए राजकमल प्रकाशन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आज के पूंजीवादी युग में इस तरह की पुस्तक को प्रकाशित कर उन्होंने देश के तमाम शोषितों की लड़ाई को मौन समर्थन प्रदान किया है, जिसके लिए वे निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
संचालन की जिम्मेदारी के साथ... |
जाने-माने संस्कृतिकर्मी और कवि चंद्रेश्वर ने कहा कि फिदेल कास्त्रो ने जिस रागात्मकता के साथ शोषित-पीडित किसानों, मजदूरों और क्रांतिकारी योद्धाओं में विश्वास के बीज बोए, उसी सरसता के साथ लेखक ने उनकी जीवन गाथा को पुस्तक में कलमबद्ध किया है। यह प्रसन्नता का विषय है कि लेखक ने इस तरह के विषयों पर लिखी जाने वाली अन्य किताबों की तरह अकादमिक शब्दावली से परहेज किया है और रोचक आख्यान की तरह इस गौरवगाथा को प्रस्तुत किया है। इस वजह से यह बेहद जरूरी पुस्तक अत्यंत पठनीय स्वरूप में हमारे सामने आती है। इस सराहनीय कार्य के लिए लेखक की जितनी सराहना की जाए कम है।
इस लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम का संचालन डॉ. जाकिर अली रजनीश ने किया। उन्होंने राजकमल प्रकाशन के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित वक्ताओं और श्रोताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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