‘साझी दुनिया’ लखनऊ की एक चर्चित संस्था है, जो ‘झूठा सच’ जैसे युगान्तरकारी उपन्यास लिखने वाले रचनाकार यशपाल जी के महानगर स्थित मकान ...
‘साझी दुनिया’ लखनऊ की एक चर्चित संस्था है, जो ‘झूठा सच’ जैसे युगान्तरकारी उपन्यास लिखने वाले रचनाकार यशपाल जी के महानगर स्थित मकान (बी-335) में स्थित है। ‘साझी दुनिया’ मूल रूप में एक सामाजिक संस्था है, जो महिला अधिकारों के संरक्षण के साथ-साथ साहित्यिक गतिविधियों से भी जुड़ी हुई है। संस्था मुख्य रूप से अपने नियमित साप्ताहिक कार्यक्रम ‘एकल रचना पाठ’ के लिए भी जानी जाती है, जिसमें किसी रचनाकार द्वारा अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया जाता है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत शहर के चर्चित रचनाकार ही नहीं बाहर से पधारे लेखकगण भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। यह कार्यक्रम संस्था के कार्यालय (गोल मार्केट से वायरलेस चौराहे की ओर मुड़ने वाले तिराहे पर स्थित) में प्रत्येक ब्रहस्पतिवार को शाम 4.00 (ठीक चार) बजे सम्पन्न होता है।
साझी दुनिया के इसी नियमित कार्यक्रम एकल रचना पाठ के अन्तर्गत दिनांक 16 फरवरी को रचनाओं के पाठ के लिए इस नाचीज को आमंत्रित किया गया है। मुझे इस कार्यक्रम में बाल कहानियों का पाठ करना है। साझी दुनिया के मंच पर बाल साहित्य के किसी रचनाकार को इस तरह से पहली बार आमंत्रित किया गया है। लगभग एक घण्टे के इस कार्यक्रम में मुझे अपनी प्रतिनिधि बाल कहानियों का पाठ करना है। कहानी पाठ के बाद लेखक-श्रोता संवाद का भी छोटा सा सत्र होगा, जिसमें श्रोतागण लेखक से अपने सवाल पूछेंगे।
वयस्क श्रोताओं के मध्य बाल कहानी का पाठ करना अपने आप एक चुनौती भी है और प्रयोग भी। देखना यह है कि यह कितना सफल होता है?
कार्यक्रम से लौटकर:-
‘बेबी माने अप्पी’ और ‘रूबी का रोबोट’ कहानियों के बारे में श्रोताओं की प्रतिक्रिया शानदार रही। ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि इसमें बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत ही सुन्दर तरीके से गूँथा गया है। सर्वत जमाल ने ‘बेबी माने अप्पी’ के संदर्भ में पूछा कि आप बच्चों के मनोविज्ञान का इतना सूक्ष्म अध्ययन कैसे कर लेते हैं। वहीं संस्था की संरक्षक प्रो0 रूपरेखा वर्मा (पूर्व कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय) ने कहा कि यह कहानी बड़ों को भी स्पंदित करती है और आधुनिक शिक्षा व्यवस्थता तथा बच्चों को पालने के तरीकों पर कुछ सवाल भी उठाती है। जबकि दूसरी कहानी ‘रूबी का रोबोट’ के सम्बंध में उनका विचार रहा कि यह कहानी वैसे तो एक बच्ची को केन्द्र में रख कर लिखी गयी है, किन्तु इसकी संवेदनाएँ तरूण पाठकों के स्तर की हैं। हम इसे बड़ों की कहानी भी कह सकते हैं। उन्होंने तथा अन्य श्रोताओं ने इस कहानी में रोबोट के मानवीकरण को कहानी का हासिल बताया और कहा कि इसकी फैंटेसी में परी कथाओं सा आकर्षण है। बाल कवि गौरी शंकर वैश्य ‘विनम्र’ ने दोनों कहानियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इनमें उत्सुकता का सुंदर पुट है। लेकिन उन्होंने ‘रूबी का रोबोट’ में रोबोट द्वारा स्वयं के लिए प्रयुक्त ‘धिक्कार’ शब्द पर आपत्ति जताई और कहा कि यह शब्द बच्चों के स्तर का नहीं है। जबकि कवि एवं ब्लॉगर उग्रनाथ नागरिक ने कहा कि मेरे विचार में यह आज के किशोर उम्र के बच्चों की कहानी है, जो ज्यादा परिपक्व एवं अपडेट हैं।
टी-ब्रेक के बाद मैंने ‘निर्णय’ कहानी का पाठ किया। यह कहानी लड़कों की हसरत वाले परिवारों पर केन्द्रित एक विज्ञान फंतासी है, जो 1996 में ‘इंडिया टुडे’ द्वारा आयोजित युवा कथाकार प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर चुनी गयी थी। कहानी के सम्बंध में मिलीजुली प्रतिक्रिया रही। एक ओर जहाँ कहानी के अप्रोच के लिए इसकी प्रशंसा हुई, वहीं नारीवादी चेतना के नजरिए से इसके सूक्ष्म बिन्दुओं को आलोचना भी सामना करना पड़ा। प्रो0 रूपरेखा वर्मा ने चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए कहा कि दिक्कत की बात यह है कि नारीवादी विमर्श को गलत तरीके से देखा गया है। बड़े-बड़े विद्वतजन नारी शिक्षा को इसलिए जरूरी मानते हैं ताकि वह बच्चों को होमवर्क करा सके। उन्होंने कहा कि मर्दवादी नजरिया हमेशा एक मर्द के लिए एक स्त्री की वकालत करता है। और यही दृष्टिकोण इस कहानी में भी परिलक्षित होता है। इस पर सर्वत जमाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ज़ाकिर ने यह कहानी तब लिखी थी, जब वे इण्टरमीडिएट में थे। जाहिर सी बात है कि इसमें इनकी उस वक्त की मानसिकता की झलक है। बेहतर हो यदि वे इसका संशोधित वर्जन तैयार करें। उग्रनाथ नागरिक ने कहा कि यह कहानी मूलरूप में समाज में लड़कों की महत्ता पर सवाल खड़ी करती है और इसे उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
इस कार्यक्रम में अपनी रचनाओं का पाठ करने के बाद मुझे यह एक सार्थक संवाद लगा, जहाँ पर रचनाओं को वास्तविक आईना दिखाया गया। मेरे विचार में एक लेखक के लिए यह एक आवश्यक चीज है। वर्ना ज्यादातर यह होता है कि कुछ समय तक लिखने के बाद लेखक अपनी लेखनी के प्रति मोहान्ध सा हो जाता है और वह अपने लिखे हर अच्छे-बुरे को महान रचना मानने लगता है। दूसरी बात यह किसी भी रचना को लिखने के बाद उसे दूसरों के सामने पढ़ने की क्रिया रचना को निखारने का एक अच्छा माध्यम है। क्योंकि जब हम किसी रचना को पढ़ते हैं, तब हमें उसकी रवानी के बीच खटकने वाले शब्दों का एहसास होता है, जो पढ़ते समय कत्तई ध्यान में नहीं आते। इस नजरिए से भी यह एक लाभप्रद अनुभव रहा।
कार्यक्रम में लखनऊ के सर्वश्री/सुश्री शकील सिद्दीकी, रूपरेखा वर्मा, रामप्रकाश बेखुद, शन्ने मियाँ, नसीम साकेती, अल्का मिश्रा, राजीव राय, डॉ0 हेमंत कुमार, रमेशचंद्र पाल, राजवंत राज सहित अनेक गणमान्य श्रोता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन सुश्री कहकशाँ ने किया।
कार्यक्रम में पढ़ी गयी कहानी ‘बेबी माने अप्पी’ व ‘निर्णय’ इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। बेबी माने अप्पी को यहाँ पर क्लिक करके तथा निर्णय कहानी को यहाँ पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है। कहानी ‘रूबी का रोबोट’ अभी इन्टरनेट पर उपल्बध नहीं है। कोशिश करूँगा कि उसे जल्द ही अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर सकूँ।
साहित्य का पाठ करने से वह परिष्कृत ही होता है..अपनी पोस्ट ऐसे ही पाठ कर संपादित करता हूँ मैं।
हटाएंutsuk hun aapki khaniya sanjhi duniya me sunne ke liye .
हटाएंswagat hai aapka.
ज़ाकिर भाई! यह कहानियां कहाँ मिल सकती हैं पढ़ने को?? कृपया बताएं, ताकि मुझे जब भी कभी अवसर मिले, मैं उन्हें बच्चों के बीच साझा कर सकूं!!
हटाएंसफलता की गारंटी है।
हटाएंराजवंत जी, उत्साहवर्द्धन के लिए आभार।
हटाएंबिहारी जी, कहानियों के लिंक पोस्ट में लगा दिये गये हैं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
हटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
जाकिर भाई हिंदी के इस अहम् कार्य के लिए बधाई.. ये कहानियां भी पोस्ट करदें तो हम भी किसी बाल सभा में जाएँ .....चाहे स्कूल में ही क्यूँ न हो.....
हटाएंoh link post me hain ok abhi CC kartaa hun
हटाएंits great
हटाएंइस कार्यक्रम में अपनी रचनाओं का पाठ करने के बाद मुझे यह एक सार्थक संवाद लगा, जहाँ पर रचनाओं को वास्तविक आईना दिखाया गया। मेरे विचार में एक लेखक के लिए यह एक आवश्यक चीज है। वर्ना ज्यादातर यह होता है कि कुछ समय तक लिखने के बाद लेखक अपनी लेखनी के प्रति मोहान्ध सा हो जाता है और वह अपने लिखे हर अच्छे-बुरे को महान रचना मानने लगता है।
हटाएंजिस भी लेखक या किरदार में खुद का शव परिक्षण करने की क्षमता होती है वह 'ना -चीज़ 'नहीं बड़ी चीज़ होता है .आप ऐसे ही किरदार हैं .मुबारक .