हो सकता है कि आपने इंदरमन ‘ साहू ’ के बनाए हुए व्यंग्य-चित्र देखे हों, उनकी बाल कहानियाँ पढ़ी हों या फिर उनके द्वारा सम्पादित बाल प...
हो
सकता है कि आपने इंदरमन ‘साहू’ के बनाए हुए व्यंग्य-चित्र देखे हों, उनकी बाल कहानियाँ पढ़ी हों या
फिर उनके द्वारा सम्पादित बाल पत्रिका ‘बाल
मितान’ देखी हो। अगर आप उनसे न परिचित हों, तो कोई बात नहीं। उनके बारे में बहुत
संक्षेप में बताते हुए कहना चाहूँगा कि वे एक ऐसे कोमल हृदय के साहित्यकार हैं,
जिनका मन प्रकृति में रमता है। वे व्यंग्यकार हैं, साहित्यकार हैं और साथ ही
साथ प्रकाशक भी हैं। मैं उनके बनाए व्यंग्य चित्र और उनकी पत्रिका देखता/पढ़ता
रहा हूँ। इससे ज्यादा मेरा उनसे परिचय नहीं रहा।
आज
सहसा उनकी एक पुस्तक की कम्पोज़ की हुई पाण्डुलिपि (बाल सरोवर : विपिन का अनशन और अन्य कहानियां) और साथ ही पत्र मिला। पत्र
पढ़कर पता चला कि उन्हें गले का कैंसर हो गया है। वर्तमान में न तो वे नाक से
साँस ले पा रहे हैं और न ही मुँह से कुछ बोल ही पा रहे हैं। लेकिन उसके बावजूद
उनका साहित्य के प्रति समर्पण भाव कम नहीं हुआ है। साहू जी का पत्र अविकल रूप में
यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ, ताकि आप भी एक साहित्यकार की जिजीविषा को महसूस कर
सकें। और हाँ, साथ ही एक निवेदन भी- कि अगर हो सके, तो उनके लिए कुछ दुआएँ भी
करिएगा। पता नहीं किस की दुआ रंग ले आए...
इंदरमन 'साहू' जी का पत्र अविकल रूप में...
परम
आदरणीय डॉ0 जाकिर अली ‘रजनीश’ जी, आपकी
तथा संबंधित कुटुंबजनों की कुशलता की ईश्वर से कामना है। ‘बाल साहित्य समीक्षा’ में आपका ‘इक्कीसवीं सदी की बाल कहानियाँ’
लेख पढ़ा। लेख ने मुझ जैसे अनेकों को सीखने और जानने का अवसर प्रदान किया। हमारे
छत्तीसगढ़ अंचल के बाल कहानीकारों की चर्चा लेख में हुई है, आत्मिक प्रसन्नता
हुई। इसके लिए हम सब आपके आभारी हैं और उस प्रेरणादायी लेख के लिए कोटिश: बधाई।
मेरा
स्वास्थ्य इधर तीन वर्षों से ठीक नहीं रहा। अभी भी चिकित्सकीय प्रक्रिया से
गुजर रहा हूँ। 2008 में थाइराइड का आपरेशन हुआ। थाइराइड का कैंसर निकला। टाटा स्मृति
रूग्णालय, मुंबई रिफर किया गया। जहाँ 2010 में दुबारा ऑपरेशन हुआ। इस बार मेरी
साँस नली और स्वर-पेटी काट कर निकाल दी गई। मैं नाक से साँस नहीं ले पाता और बोल
भी नहीं सकता। साँस लेने के लिए गले के नीचे छेद किया हुआ है और काम चलाऊ बात करने
के लिए उसी छेद में मशीन भी लगी हुई है, जो बार-बार जाम हो जाती है और स्वर नहीं
निकल पाता। शरीर बहुत दुबला हो चुका है, कहीं बाहर आ-जा नहीं सकता। चल-फिर और
खा-पी रहा हूँ। अभी अक्टूबर में चेकअप के लिए मुंबई फिर जाना है। अभी मेरी साँस
चलती रहेगी, ऐसी आशा है। बीमारी से भयभीत नहीं हूँ, न ही मेरा मनोबल कमजोर हुआ है।
‘बाल मितान’ का प्रकाशन पहले से ही बंद है। अभी मन अच्छा रहने पर लिखने-पढ़ने का
क्रम जारी है। अपनी कुछ कहानियों को पुस्तकाकार देने का मन पहले से ही था। इस बीच
बीमारी के चक्कर में पड़ गया। अब सोच रहा हूँ वह पुस्तक निकल ही जाए। आपसे
मार्गदर्शन चाहता हूँ। कुछ कहानियों को आपको भेज रहा हूँ, उन्हें पढ़ लें। यदि आप
प्रस्तावना लिख सकें, तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। शेष आपकी इच्छा पर
छोड़ता हूँ।
पता
नहीं कैसे मेरे विचार में भौतिकता के प्रति विद्रोह और प्रकृति के लिए लगाव का जन्म
हुआ। प्रारंभ से ही ऐसा है। मैंने आज तक जूते नहीं पहने, चप्पल ही पहनता हूँ और
नंगे पाँव रहने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देता। बाहर होने पर ही पैंट-शर्ट
पहनता हूँ, घर पर मैं एक टॉवेल पर खुली बदन रहता हूँ। प्रकृति से लगाव और भौतिक
वस्तुओं से विरक्ति का प्रभाव मेरी कहानियों में दिखता भी है। भौतिकशास्त्र का
नियम है कि वस्तु जितना सुख देती है, उतनी ही मात्रा में दुख भी देती है। प्रत्येक
क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है। फिर भी हम आज भौतिक वस्तुओं के लिए पागल
हुए जा रहे हैं। एक दिन हमारे अस्तित्व को भाड़ में झोंकने के लिए ये भौतिक वस्तु
जिम्मेदार होंगी। प्रकृति ने हमें जन्म दिया, यानि हमारा विकास प्रकृति से ही
संभव है। भौतिकता को हम विकास मानते हैं, असल में वह हमें पतन की ओर ले जा रही है।
भवदीय,
इंदरमन
‘साहू’
ग्राम
व पोस्ट-मर्रा (अंडा)
जिला-दुर्ग
(छत्तीसगढ़) 491221
yah to bahut dukhad samachar hai...mujhe asha hi nahi...purn vishwas hai..ki sri indarman sahu bahut jaldi swasth aur achche ho jayenge..mai bhagwan se prarthna karta hu ki...woh sri sahu ji ko bahut jaldi achcha kar de...
जवाब देंहटाएंबीमारी से भयभीत नहीं हूँ, न ही मेरा मनोबल कमजोर हुआ है।... साहू जी के जज़्बे को सलाम. भगवान इन्हें स्वस्थ रखे.
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद समाचार.. इंदरमन साहू जी ने बहुत निष्ठा से बाल साहित्य की सेवा की है. बाल मितान उनके संपादन में प्रकाशित होने वाली सुरुचिपूर्ण बाल पत्रिका थी. उनके व्यंग्य चित्र 'लछ्नी' नामक पुस्तक में प्रकाशित हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत पहले प्राप्त उनकी एक कहानी अकल ठिकाने आई मेरे संपादन में प्रकाशित बाल प्रभा पत्रिका के प्रवेशांक में प्रकाशित हुयी है. २७ मई को इसका लोकार्पण है किन्तु प्रथम प्रति उन्हें भेज रहा हूँ.
सर्व शक्तिमान ऊपर वाले से प्रार्थना है कि वे शीघ्र स्वस्थ हो जाएँ और उनकी जिजीविषा यों ही औरों के लिए भी प्रेरणीय बनी रहे.
साहू जी के रुग्णता संघर्ष और जीवट को प्रणाम
जवाब देंहटाएंजाएगी कहां/चहकती चिड़िया/ उजड़ा बाग/ जिजीविषा है/फिर क्यों हारना/यही जीवन...
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई. आपने इस पत्र को यहां देकर बहुत उपकार किया है. शाहू जी शीघ्र स्वस्थ हों, यह कामना है. उनका संघर्ष, उनकी जिजीविषा हम सभी के लिए प्रेरणादायक है. शाहू जी एक सक्रिय लेखक रहे हैं. न जाने कितनी कहानियां, व्यंग्य आलेख उनके पढ़े हैं. उनकी ऊपर दी गई कविता पंक्तियां तो अविस्मरणीय हैं...उन्हें सादर नमन, आपका आभार.
कश्यप जी, ऊपर दी गयी काव्य पंक्तियां साहू जी की नहीं हैं। चूंकि उनका चित्र उपलब्ध नहीं हो पाया, इसलिए जिजीविषा को रेखांकित इन पंक्तियों को प्रतीक स्वरूप यहां लगा दिया गया है।
जवाब देंहटाएंचुका नहीं हूँ आज भी जीवट मेरे साथ है ,जीवन गति अविराम है .सिद्ध किया साहू भाई साहब ने मैं सिर्फ शरीर नहीं हूँ यह सिर्फ मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम है मैं इससे आगे हूँ शरीर की सीमाएं हैं मैं असीम हूँ .
जवाब देंहटाएंप्रणाम मुंबई के आपको .
वीरुभाई .
सलामत रहो .
साहू जी से परिचय कराने के लिये आप को धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार की जिजीविषा- यह शीर्षक ले आया मुझे! बेहतर परिचित कराया आपने! अच्छे स्वास्थ्य की कामना!
जवाब देंहटाएंआपकी फीड सब्सक्राइब की है, पर वहाँ केवल शीर्षक दिखते हैं-फीड पर कम से कम सारांश तो दिखे! फीड एकदम ही कोरी रह जा रही है...आपको वहाँ पढ़ना होता नहीं, और ब्लॉग पर क्लिक कर नहीं पाता कई बार!
ध्यान दिलाने का शुक्रिया।
हटाएंउनकी लिखी कुछ कविता, आलेख या कुछ भी आप साझा करें तो आपकी बड़ी कृपा होगी 🙏
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