कुछ लोग ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति का सबसे शानदार माध्यम मानते हैं, यही कारण है कि ब्लॉगर्स की संख्या दिन दूनी रात दस गुनी गति से बढ़ती जा रही ...
कुछ लोग ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति का सबसे शानदार माध्यम मानते हैं, यही कारण है कि ब्लॉगर्स की संख्या दिन दूनी रात दस गुनी गति से बढ़ती जा रही है। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ब्लॉगिंग समय को खा रही है, जिसके कारण सृजनात्मकता प्रभावित हो रही है।
पाँच जुलाई को जब पी-एच0डी0 की शिसिस जमा करने के उद्देश्स से जब आगरा जाना हुआ, तो आगरा के ब्लॉगर्स से मिलने की चाहत मुझे दैनिक डी0एल0ए0 के सम्पादक डा0 सुभाष राय जी के पास खींच ले गयी। भगवान टॉकिज चौराहा के पास स्थित डी0एल0ए0 कार्यालय में राय साहब के साथ ब्लॉगर महाराज सिंह परिहार जी से भी मुलाकात हो गई। रिमझिम बरसात के बीच चल रही बातचीत में रोचक मोड़ उस समय आया, जब कुछ समय के बाद भाई संजीव गौतम भी आ विराजे।
संजीव जी सबसे युवा ब्लॉगर हैं, और बकौल उनके आगरा के सबसे पुराने ब्लॉगर भी (इसका सुबूत उन्होंने हिन्दी संस्थान द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘हिन्दी में पटकथा लेखन’ के विमोचन समारोह में लखनऊ में उपस्थित हुए ब्लॉगरों पर प्रकाशित रिपोर्ट की चर्चा करके भी दी)। मुझे उनकी एक बात ने सर्वाधिक प्रभावित किया, और वह है उनका सच बोलने का अंदाज और आदर्शों के प्रति उनका जबरदस्त रूझान। साथ ही बात को कहने का उनका अंदाज मुझे कुछ-कुछ ‘युवा तुर्क’ (भारतीय परिवेश में पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर को इस नाम से जाना जाता है। लेकिन लेखन के शुरूआती दिनों में मुझे भी इस अलंकरण से नवाज़ा जाता रहा है) जैसा लगा, जो उनकी रचनात्मकता की तरह ही आकर्षित करने वाला है। और उनका यह अंदाज उनके ब्लॉग ‘कभी तो’ में भी देखा जा सकता है।
आगरा के ब्लॉगर्स से भेंट का श्रेय मैं अग्रज सर्वत जमाल जी को देना चाहूँगा, जिनके सौजन्य से ही मैं सुभाष राय जी तक पहुँच पाया। चर्चित पत्रकार और सम्पादक सुभाष राय साहब एक बेहद सरल, विनम्र और मिलनसार व्यक्ति हैं, जो सहज भाव से अतिथियों को स्वागत करते हैं। इसके साथ ही साथ वे युवाओं से जिस उत्साह से मिलते हैं, वह आजके दिनों में बहुत कम देखने को मिलता है। शायद यही कारण है कि उनसे मिलने पर कहीं से भी नहीं लगा कि यह हमारी पहली मुलाकात है।
मैं जब भी किसी व्यक्ति से मिलता हूँ तो मेरी यह कोशिश रहती है कि मैं अधिक से अधिक सामने वाले व्यक्ति के बारे में जान सकूँ। इस दौरान मेरा प्रयास रहता है कि मैं अपने बारे में जितना कम हो सके, उतना बताऊँ। लेकिन पता नहीं कैसे डा0 महाराज सिंह परिहार जी से मिलकर भी मैं अनजाना सा रह गया। न तो उन्होंने अपने बारे में कुछ खास बताया और न ही मैं बारिश, मिलावटी दुनिया और ब्लॉगिंग के बीच चलने वाली चर्चा के दौरान उनके बारे में कुछ खास जान पाया। शायद यह उनका अन्तर्मुखी स्वभाव था, या फिर वक्त का तकाज़ा?
इन सभी ब्लॉगर्स से बातचीत के दौरान एक बात जो सबसे ज्यादा खुलकर सामने आई, वह थी सभी ब्लॉगर्स की चिन्ता कि ब्लॉगिंग के लिए बहुत ज्यादा समय की आवश्यकता होती है और इसके कारण बहुत सारे काम बाधित होते हैं। भाई संजीव और राय साहब का तो यहाँ तक कहना है कि ब्लॉगिंग के चक्कर में सृजनात्मकता भी प्रभावित होती है, इसलिए मैं ब्लॉगिंग पर ज्यादा ध्यान नहीं देता हूँ।
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चलते-चलते:
ब्लॉगिंग का जादू कैसे छा रहा है, इसके दर्शन मुझे आगरा विश्वविद्यालय की ‘कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिन्दी पीठ’ में भी हुए। पीठ के निदेशक डा0 हरिमोहन शर्मा जी से जब मुलाकात हुई, तो पता चला कि वे भी ब्लॉगर हैं। तो क्या इसका मतलब यह कि पढ़े-लिखे लोगों के लिए ब्लॉगिंग के जादू से स्वयं को बचाना मुकिश्ल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा है?
बढ़िया रिपोर्ट ! शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंblogging kaa jaadu to sachmuch badhataa hi jaa rahaa hai......badhiya post. badhaai.
जवाब देंहटाएंbahut khoob.........
जवाब देंहटाएंAagra ke bloggers se milwane ka aabhar.
जवाब देंहटाएंनये लोगों से मिलके अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंनये लोगों से मिलके अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंNice meeting.
जवाब देंहटाएंGeetanjali, Aagra
bahoot khoob.........
जवाब देंहटाएंमिले हुए ब्लॉगरों से मिलना और भी अच्छा लगता है। जिनसे मिलवाया सभी एक से बढ़कर एक नहीं, ग्यारह लगे हैं।
जवाब देंहटाएंरजनीश जी......पी एच डी की थीसिस जमा करने के बहाने आप आगरा के ब्लोगर्स से मिल आये...बहुत अच्छा किया . ब्लोगर्स ने जो बात राखी है वो वो एक दम सही है....मगर बिना वक्त दिए कुछ होने वाला भी तो नहीं ........खैर एक राज की बात बता दूं मैं भी एक तरह से आगरा का ही हूँ,सेंट जोन्स कोलेज का स्टूडेंट रहा हूँ .....! अब तो आपसे आगरा वाला भी रिश्ता जुड़ गया...!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण लेखन।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग के चक्कर में सृजनात्मकता भी प्रभावित होती है- ये बात तो इस बात पर निर्भर करती है कि ब्लॉगिंग करने का आपका उद्देश्य क्या है?
जवाब देंहटाएंयदि आप ब्लॉगिंग इसलिए कर रहे हैं कि आपको अधिक से अधिक लोग जानेण, आप छा जायें, रोज लिखें और रोज पढ़ाये चाहे जैसे भी हो तो निश्चित ही यह बात सत्य होगी अन्यथा क्या वजह है कि कागज पर लिखने से सृजनात्मकता बरकरार रहे और नेट पर लिखने से प्रभावित हो जाये.
आप जैसे अपनी में डायरी लिखते हैं, वैसे लिखिये...जैसे पत्रिकायें पढ़ते हैं, वैसे पढ़िये. और जिस तरह अन्य माध्यमों का इस्तेमाल कर सराहना और प्रोत्साहन भेजते हैं वैसे टिप्पणी करें..फिर कोई वजह नहीं होगी कि सृजनात्मकता प्रभावित हो.
बस, उद्देश्य बदलने होंगे.
नए लोगों से परिचय अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंकभी कभी उड़न तश्तरी जी से जबरदस्त सहमति बन जाती है। :)
ये आपसे किसने कह दिया कि अभिव्यक्ति को केवल सृजनात्मक ही होना है? गुंडे/मवाली/बाहुबली/नस्लभेदी/सांप्रदायिक/दरिंदे/चोर/बलात्कारी /घूसखोर वगैरह वगैरह भी तो हम ही हैं तो फिर ऐसा क्यों सोचना कि हमारे कुछ खास/चुनिन्दा एलिमेंट ही अभिव्यक्त हों ! बेचारा ईश्वर भी तो सृजन और विनाश बतौर ना केवल अभिव्यक्त है बल्कि जन-स्वीकार्य भी है !
जवाब देंहटाएंमेरा कहने का मतलब ये है कि अभिव्यक्त वही होगा जो आप सच में हैं इसमें माध्यम/ब्लॉग का क्या दोष?वैसे जिसे आप सृजन नहीं मान रहे हैं क्या उसे जबरदस्त जन-समर्थन हासिल नहीं है?मुमकिन है कभी इस कचरे?से बिजली व खाद भी बने? यहां एक कहावत बनती है "काना दुनिया को एक नज़र से देखता है और हम दो से" तो हुए ना हम विभेदकारी :)
'वे'आपको पसंद नहीं है,ना सही,आप खुद को महान समझते है ? बराबर है!पर ऐसा ही 'वे' भी सोच सकते हैं खुद के बारे में? इसलिए बेहतर हो कि निर्णायक बनने की कोशिश ना की जाये ,यहां कोई स्केल नहीं है जिससे अभिव्यक्तियों के गुण दोष मापे जायें...मेरिट नापी जाये ! इसलिए जो जैसा है उसे अभिव्यक्त होने दें संभव है वो कल आपके जैसा या फिर आप उसके जैसे हो जायें :)
एक बात और हमारे लिए युवा तुर्क तो आप अब भी हो !
( ये कमेन्ट मुझपर भी लागू होता है )
बढिया मिलन रहा
जवाब देंहटाएंजय हो
bhaaiyo, blogging n to buree cheej hai, n hee srijanatmakata ko prabhavit kartee hai par yah bachpan men dekhe gaye biscope kee tarah hai. Sameer jee aur girijesh rao jee se kahana chahooga ki jab ham kagaj par ya blog ke bahar computer par likh rahe hote hain to keval likh rahe hote hain, chintan sankendrit hota hai. par jab ham blog par hote hain to bahut sare darwaje, khidkiyo se tarah-tarah kee roshaniyan samane dikhtee rahatee hain. ham likhne se jyada tippadiyaa dekhne, tippadiyaa karne aur nayee-nayee khidkiyon men jhankane men dilchaspee lete hain. yah sahaj hai, isse bachana mushkil hai aur yah sach hai ki ismen samay jaata hai. doosaree bat ye ki blog likhne vale is mantavy se bhee sanchalit hote hain ki aisa kya likha jay jo jyada se jyada logon ko uttejit aur aakarshit kar sake, tippadiyan dilava sake. main kahoon ki kai logon ke liye to yahee unke lekhan kee drishti hai. jab uddeshy vichlit ho jay to srijan bhee apne dharm se juda ho jaata hai. yah mere saath bhee hota hai. kai baar to main rat ke teen baje tak net par baitha rahata hoon, kabhee blog par, kabhee facebook par, kabhee twitter par aur kabhee mail par. jab mulyankan karta hoon ki is panch ghante men kya kiya to samajh men aata hai ki kuchh mitro ki rachnayen padhee, kuchh chitthiya likhi, kuchh chitthiyan padhee, kuchh thoda saa likha. aap srijandharmita ko kyaa mante hain, main nahee janata par mera maanana hai ki lekhan soddeshy, sarthak aur gambhir hona chahiye. lekhan kee soddeshyata uskee parivartan ki shakti men nihit hotee hai. jis tarah kee bhagdad blogjagat men dikhatee hai, usmen kya yah pratibaddhata puree ho sakatee hai? main nahee kahata ki nahee ho saktee hai lekin tab aap ko apnee rachna ke moh ke atirikt saare moh tyagane padenge. yahaa to chitthajagat kaa sakriyata kramaank tay karata hai ki hamen kya likhna hai, aise men aap yah nahee kah sakate ki bloglekhan utana hee sankendrit lekhan ho sakata hai, jitana blog ke bahar.
जवाब देंहटाएंmain aise bloglekhkon ko bhee jaanata hoon, jo blog par bhee utane hee gambheer aur rachnatmak hain, jitane ve bahar ho sakate hain.main Suresh Yadav aur Chandr kant Tripathi ka nam lenaa chahoonga. aise aur bhee lekhak ho sakte hain.bhai sahab yah katai n samjhen ki aap ke likhne par 50 ya usse jyada tippadiyaa aa rahee hain to aap bahut gambheer srijanatmakta se lais hain. yah koi manak nahee hai. main manata hoon ki jo achchha likh rahe hain, unhen bhee tippadiya mil rahee hain par yah man kar aap koi bhool nahee karenge ki nihayat kuda aur lijlija lekhan bhee ghanghor tippadiyan juta raha hai. jaldbajee men koi pratikriya dekar maseeha banane kee koshish blogjagat ko samarth banane kee bahas ko galat disha me le jaayegee. isliye Jakir Ali Rajneesh ne mere mantavy ko jaise prakat kiya hai, use uske sahee sandarbh me samajhne kee jaroorat hai.
srijan ka arth kya hai? koi bhee nayee cheej aap gadhen, to aap srijan to kar hee rahe hain. par srijan agar niruddeshy hai to bematalab hai. uska manushy matr ke liye sarthak hona sabse jarooree bat hai.aap apnee ramkahanee likhen ya apne man kee bhadas nikaalen, aap ke apne se doosre ka agar koi bhala nahee hota hai to uska koi matlab nahee, chahe us par hajar tippadiyan kyo n aa jaye. is bhram se bahar aane kee jaroorat hai ki, jahan tippadiyan nahee hain vah kudaa hai, jahan dher saree tippadiyan hain, vah bhee kuda ho sakta hai.
bhaiyon, main blog kee duniya men khush mahsus karata hoon, main yahan rahne aaya hoon, lekin ise ek achchhe duniya banane par jutiye. Nukkad par Vashini jee ka lekh aap sabne padha hoga, aap sab chahenge to blogging ek samanantar aur sashakt mediya kee tarah ubherega. mera bas itna hee kahana hai.dhanyvad.
Subhas ji, Shaayad aapki baat ko main thek se rakh nahee paayaa tha, aapke vishleshan ne use saaf kar diya hai. Shukriya.
जवाब देंहटाएंaise bat nahee hai JAKIR. baten hotee hain puree par likhi jaatee hain to tukadon-tukadon men ho jaatee hain. tumne kuchh tukade bayan kiye aur theek bayan kiye. ab samajhane vale par hai ki vah use kya sandarbh deta hai.
जवाब देंहटाएंGadgets like flash player contribute to such disappointments.Also,once the so-called popularity diagnosis method is replaced,one may not FEEL for the time consumed in blogging.
जवाब देंहटाएंमाफ करना जाकिर भाई हमेशा की तरह सबसे विलम्ब से पहुंच रहा हूं, लेकिन ये क्या यहां तो यहां तो बड़े ज्ञान की बातें हो रही है. खैर सबसे पहले तो एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई. और अब इस ज्ञान गंगा में कूदते हुए अर्ज करना चाहता हूं कि हर बात अपने-अपने संदर्भ में कही जाती है और सब अपने-अपने हिसाब से उसका मतलब निकालते हैं. इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए. खैर चलिए इस बहाने राय सर की बड़ी मूल्यवान टिप्पणी प्राप्त हुई. मुझे इस मौके पर एक शेर याद आ रहा है देखिए-
जवाब देंहटाएंसुबूं अपना-अपना है, जाम अपना-अपना.
किये जाओ मैखारो काम अपना-अपना.
सभी को आदाब....................
jaroorii kaam nipta kar hii blagiging
जवाब देंहटाएंkarnii chayiye.
..achhi post.
आदरणीय जाकिर भाई
जवाब देंहटाएंकल यानि १५ जुलाई को मुझे आगरा के ब्लोगर्स के सम्बन्ध में पोस्ट देखने को मिली. आपसे मिलकर वाकई ख़ुशी हुई. इस पोस्ट में आपने मेरे बारे में अन्तर्मुखी शब्द का उपयोग किया है. वास्तविकता ठीक उसके विपरीत है. है यह ज़रूर है की मैं आत्मप्रसंशा में विश्वास नहीं रखता. किसी अतिथि के सामने अपनी विद्धता दिखाना मेरे संस्कार और परम्परा के खिलाफ है. मैं मंच और मीडिया से समान रूप से मौजूद हूँ. आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं सामाजिक एक्टिविस्ट भी हूँ. मेरा लेखन जनता के लिए है. यह मेरी आदत नहीं कि मैं अपने बारे में बोलूं . देश के हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकारों का मुझे सानिध्य मिला है. कवी सम्मेलनों व् सेमिनारों, सभाओं के माद्यम से अपनी बात कहता हूँ. वैसे भी सामाजिक सरोकारों से जुड़ा व्यक्ति अन्तर्मुखी नहीं हो सकता. मेरे ब्लॉग विचार-बिगुल में मेरी पोस्टों से आपको मेरे कृतित्व के बारे में सब कुछ मिल जायेगा.
कुछ हद तक बात सही है लेकिन इसे सृजनात्मकता की ओर मोड़ना ही होगा ।
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