किसी सन्त ने कहा है ' अक्सर हम उन्हीं लोगों की आलोचना करते हैं, जो हमारे सबसे घनिष्ठ सम्बंधी होते हैं।' शायद इस आलोचना ...
किसी सन्त ने कहा है
'अक्सर हम उन्हीं लोगों की आलोचना करते हैं,
जो हमारे सबसे घनिष्ठ सम्बंधी होते हैं।'
शायद इस आलोचना के पीछे मानसिकता यही होती है कि जो हमारे घनिष्ठ सम्बंधी हैं, जिनकी कोई बात, जो हमें पसंद नहीं आ रही है, उनमें अगर वह कमी नहीं होती, तो कितना अच्छा होता? लेकिन ऐसा कल्पना/अपेक्षा करते हुए हम शायद यह भूल जाते हैं कि आदमी गल्तियों का पुतला है। अगर उसमें त्रुटियाँ नहीं होंगी, तो फिर वह इंसान नहीं रहेगा, फरिश्ता बन जाएगा।
लेकिन इंसान और ब्लॉगवाणी में फर्क है। इंसान प्रकृति की रचना है और ब्लॉगवाणी इंसान का बनाया हुआ साफ्टवेयर। इसलिए उसमें परिवर्तन किया जा सकता है, उसे त्रुटि रहित बनाया जा सकता है।
लेकिन इससे पहले एक और गम्भीर सवाल। कुछ लोगों का कहना है कि आप ब्लॉगवाणी की परवाह ही क्यों करते हैं? इसका एक बहुत साधारण सा जवाब यह हो सकता है कि ब्लॉगवाणी हिन्दी चिट्ठों पर सबसे ज्यादा पाठक भेजने वाला एग्रीगेटर है। लेकिन यह मेरा जवाब नहीं है। मेरा जवाब यह है कि हम 'ब्लॉगवाणी' को प्यार करते हैं। इसलिए नहीं कि वह हमारे पास पाठक भेजता है, बल्कि इसलिए कि हमें उसका स्वरूप पसंद है। ब्लॉगवाणी हिन्दी का पहला एग्रीगेटर है, जिसने अपने कलेवर के द्वारा पोस्टों में भी रोमांच पैदा किया है। यही कारण है कि चाहे 'धान के देश में' हो, चाहे 'कडुवा सच' की बात हो, चाहे 'ज़िन्दगी के मेले' हो और फिर चाहे 'देशनामा', सर्वत्र उसकी चर्चा हो रही है, भले ही वह नकारात्मक सुर में ही क्यों न हो। हमें इस नकारात्मकता से इरीटेट होने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि यदि हम इससे इरीटेट हो जाएंगे तो उपरोक्त सूक्ति को भूल रहे हैं, हम मानव साइकालॉजी को भूल रहे हैं।
अब आते हैं मुद्दे की बात पर, आखिर थोड़ी-थोड़ी देर में उठने वाली इन चिंगारियों की वजह क्या है?
मेरे विचार में इसकी वजह है ब्लॉगवाणी द्वारा पसंद और नापसंद के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला कैलकुलेशन। मेरी समझ से ब्लॉगवाणी में एक पसंद का औसत मान लगभग 15 पढ़ी गयी पोस्टों के बराबर होता है। जबकि उसके नकारात्मक मान की वैल्यू लगभग 20-25 पोस्टों के बराबर लगती है। आईए इसे एक उदाहरण से समझा जाए।
8 जून 2010 को दोपहर सवा एक के करीब मेरे इसी ब्लॉग पर एक पोस्ट प्रकाशित हुई 'एक सवाल सिर्फ इंटेलीजेन्ट ब्लॉगर से'। शाम पाँच बजे तक ब्लॉगवाणी के आँकड़े के अनुसार इस पर एक पसंद का चटका था, यह पोस्ट करीब सत्तर बार खोली गयी थी और इसपर 14 कमेंट दर्ज थे, लेकिन इसके बावजूद पोस्ट ब्लॉगवाणी की हॉटलिस्ट में नहीं थी। लेकिन उस लिस्ट में जो पोस्ट सबसे नीचे थी, वह लगभग 35 बार पढ़ी गयी थी, उसपर तीन पसंद के चटके थे और कमेंट शायद 12-13 ही थे। अगले दिन सुबह 11 बजे मैंने जब पुन: ब्लॉगवाणी के आँकड़े देखे, तो मैं आश्चर्यचकित रह गया। उस समय तक यह पोस्ट सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली (133 बार) पोस्ट थी, उसपर 28 कमेंट दर्ज थे (ऊपर से पाँचवा नम्बर) लेकिन इसके बावजूद यह पोस्ट हॉट लिस्ट से सिरे से गायब थी। इसका कारण सिर्फ इतना था कि इसपर दो पसंद के चटके थे और नापसंद के 6 चटके लगे हुए थे। यानी कि नकारात्मक श्रेणी के 4 चटकों ने 133 पाठकों की समझ और 28 कमेंटों की धज्जियाँ उड़ी दी थीं। इससे यह स्पष्ट है कि नापसंद/पसंद के चटकों का सदुपयोग न करके लोग या तो अपने निहित स्वार्थ पूरे कर रहे हैं अथवा अपनी खुन्नस निकाल रहे हैं। और जाहिर है कि ब्लॉगवाणी का पसंद/नापसंद के चटके बढ़ाने के पीछे यह मंशा तो कत्तई नहीं रही होगी।
तो अब आप हो सकता है कि वही रटा-रटाया सवाल करें कि आप इससे परेशान क्यों होते हो? अच्छा लिखो, जिसे पढ़ना होगा पढ़ेगा ही। ब्लॉगवाणी के पसंद-नापसंद के चटके से क्या फर्क पड़ता है?
तो यहाँ पर मेरा जवाब यह है कि इससे फर्क पड़ता है जी, (एक नापसंद का चटका अच्छी से अच्छी पोस्ट की कमर तोड़ देता है। और सामान्य ब्लॉगों पे पसंद के चटके ही कितने होते हैं?) हम सभी ब्लॉगर्स पर फर्क पड़ता है। अगर फर्क न पड़ता तो इतने लोग इस पार अलग-अलग तरीके से अपनी नाराजगी न व्यक्त कर रहे होते। अगर किसी एक मुद्दे पर अलग-अलग से जगह से धुँआ उठ रहा है, तो इसका मतलब यह है कि कहीं न कहीं आग तो है ही। और अगर आग है, तो उसे सही दिशा में उपयोग में क्यों नहीं लाया जा सकता?
तो फिर इस पसंद/नापसंद का इलाज क्या है?
मेरे विचार में इस विवाद को दूर करने के लिए दो हल हैं।
1- पहला हल यह है कि ब्लॉगवाणी अगर यह व्यवस्था कर दे कि सभी पोस्टों के पसंद/नापंसद करने वालों का डिटेल भी दिखाने लगे, तो इस सुविधा का दुरूपयोग काफी हद तक रूक जाएगा। यहाँ पर डिटेल से मेरा आशय है पसंद/नापसंद करने वाले की स्पष्ट पहचान को प्रदर्शित करना। हालाँकि यह मेहनत वाला काम है, पर मेरी समझ से असम्भव कदापि नहीं।
2- दूसरा हल यह है कि पसंद/नापसंद की जो वैल्यू ब्लॉगवाणी द्वारा निर्धारित की गयी है, उसे रिड्यूस किया जाए। एक पसंद/नपसंद को उतनी ही वेटेज दी जाए, जितनी कि एक टिप्पणी अथवा पोस्ट के टाइटिल पर होने वाली क्लिक को दी जाती है। अगर ब्लॉगवाणी इतनी मेहरबानी कर दे, तो फिर यह कत्तई नहीं होगा कि सिर्फ 5-6 दोस्तों को फोन करके (आप यकीन करें या न करें, यह खूब हो रहा है) कोई अपनी पोस्ट को हॉट लिस्ट की टॉप में पहुँचा दे।
मेरी समझ से ये फौरी उपाय हैं, जो मैथिली जी और सिरिल जी की टीम आसानी से कर सकती है। इससे न सिर्फ तमाम विरोधी स्वर थम जाएँगे और ब्लॉगवाणी भी उस कमी रहित दोस्त की तरह हो जाएगा, जिसमें सिर्फ और सिर्फ गुण ही होते हैं। आशा है मैथिली जी और सिरिल जी तमाम ब्लॉगर्स की भावनाओं का सम्मान करते हुए इन सुझावों पर गौर फरमाएँगे और ब्लॉग जगत में अनावश्यक रूप से जन्म ले रहे कलह के माहौल को दूर करने के लिए ब्लॉगवाणी साफ्टवेयर में यथावश्यक संशोधन करने की कृपा करेंगे।
mayra blog hi nahi jota ghaya hai.nice
जवाब देंहटाएंआपका विश्लेषण पढकर शायद ब्लॉगवाणी वाले अपने में सुधार लाएं।
जवाब देंहटाएंवैसे ब्लॉगवाणी में नए ब्लॉग जोड़ने और पसंद के चटकों हेतु लॉगिन होने में भी बड़ी समस्या है। उसको भी सुधारे जाने की आवश्यकता है।
आईये सुनें ... अमृत वाणी ।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
chalo koi aya mudda hi sahi hai
जवाब देंहटाएंबहुत सही तर्क दिये हैं आपने जाकिर जी! यह सच है कि सिर्फ एक नापसन्द का चटका किसी भी पोस्ट का कमर तोड़ कर रख देता है।
जवाब देंहटाएंमैं समझता हूँ कि नापसन्द बटन बनाने में ब्लोगवाणी का उद्देश्य अवश्य ही भलाई का रहा होगा किन्तु इसका दुरुपयोग ही देखने में आ रहा है और यह बटन "बन्दर के हाथ में उस्तरा" बन कर रह गया है।
विचारणीय विषय है। निश्चित ही ब्लागवाणी के संचालकों को इस बारे में सोचना चाहिए।
जवाब देंहटाएंदेखिये, क्या संभव हो पाता है संचालको के लिए..आपने अच्छी तरह मुद्दा उठाया है.
जवाब देंहटाएंआपका आंकलन सही है । सुझाव नंबर एक भी सही है । नापसंद करने वाले का हुलिया दिखने पर उसे खुद ही शर्म आयेगी , बशर्ते कि वो अनाम न हो।
जवाब देंहटाएंवैसे यह पसंद नापसंद वाहियात चीज़ है।
विचारणीय विषय है। वैसे यह पसंद नापसंद वाहियात चीज़ है,आपका विश्लेषण पढकर शायद ब्लॉगवाणी वाले अपने में सुधार लाएं।
जवाब देंहटाएंब्लागवाणी से ऐसी बातें हम भी कह चुके, उसकी खामोशी के बाद हमने हल निकाला अपने तरीके से, मेरी राय में तो पसंद ना पसंद करवाने का हक इसको हमने नहीं दिया, इसका का काम पोस्ट का ट्रेलर दिखाना था, वही दिखाये, पसंद नापसंद हमारे अपने ब्लाग पर होना चाहिये
जवाब देंहटाएंदूसरी बात ब्लॉगवाणी द्वारा पसंद और नापसंद के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला कैलकुलेशन क्या है सबके सामने आना चाहिये
तीसरी बात कुछ नहीं कर सकता तो अपना नाम ब्लागवाणी एग्रीगेटर नहीं एग्री कटर Agree Cutter कर ले
इतना तो कर ही सकते हैं की पसंद और नापसंद को अलग अलग दर्ज करें -माईनस पसंद की नौबत तो नहीं आयेगी! और यह जरूरी है ! लोगों की नकारात्मकता हावी हो रही है! ब्लोग्वाणी का कंधे से गोलीबारी चल रही है !
जवाब देंहटाएं...लेख पढे बगैर ही टिप्पणी कर रहा हूं ... ब्लागवाणी का काम ही है माहौल खराब करना ... शायद महारत हाशिल है!!!
जवाब देंहटाएंजी के अवधिया से सहमत !
जवाब देंहटाएं"कुछ लोगों का" कहना है कि ब्लॉगवाणी अभी भी कुछ 'ख़ास' ब्लॉगर्स को चिन्हित कर उसके साथ सौतेला बर्ताव करती है और यही वजह है कि इसके पिछले संस्करण में जो लोग ब्लोगवाणी में टॉप पर होते थे अब बहुत मुश्किल से ऐसा परफोर्मेंस कर पाते हैं.
लेकिन कोई भी ब्लॉगवाणी पर उंगली उठाये भी तो क्यूँ वह हम ब्लॉगर्स को मुफ़्त में अपने ब्लॉग को प्रचारित करने का साधन है, यही बात चिट्ठाजगत पर भी लागू होती है.
सलीम ख़ान
9838659380
ब्लोग्वानी नया क्या कर रही है सबकी अपनी ढपली अपना राग है मुझे ब्लोग्वानी से कुछ लेना देना नहीं
जवाब देंहटाएंक्या 'ब्लॉगवाणी' सचमुच ब्लॉग जगत का माहौल खराब कर रहा है?
जवाब देंहटाएंनहीं, माहौल तो कुछ असहिष्णु ब्लौगर गुटों ने खुद ही खराब किया है. ब्लोग्वानी तो सिर्फ हमें शीशा दिखा रहा है.
पसंद/नापसंद करने वाले की स्पष्ट पहचान को प्रदर्शित करना।
यह बात भी उतनी ही गलत है जितनी किसी हारे हुए नेता की यह मांग की उसके विरोध में मतदान करने वालों की पहचान कराई जाए. अगर हममें इस पहचान को स्वीकार करने लायक परिपक्वता होती तो यहाँ इतने सारे बेनामी/छाद्म्नामी थोक में फिजां खराब नहीं कर रहे होते.
लोगों को कैसे भी करके चैन नहीं...अगर ब्लागवाणी ये पसन्द/नापसन्द वाला सिस्टम ही समाप्त कर दे तो लोग तब भी उस पर उँगली उठाने से बाज नहीं आएंगें....दरअसल बात ये है कि हम लोगों को मीन मेख निकालने की आदत पड चुकी है...चाहे ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत या अन्य कोई भी, अपनी ओर से जैसा चाहे सुधार कर लें..हम लोग उसमें भी कुछ न कमी खोज ही निकालेंगें...
जवाब देंहटाएंजितने मुंह उतनी बातें!
जवाब देंहटाएंएक दिन के लिए ब्लौगवाणी बंद हो जाएगी तो यही लोग रोने लगेंगे.
....और अगर हिन्दुस्तान के हिंदी ब्लॉग जगत में इस नकारात्मक चटकों की मार किसी ने झेली है वह है अकेला सलीम ख़ान, अभी तक कुल मिला कर 129 नकारात्मक चटके प्राप्त हुयें हैं!!!
जवाब देंहटाएं....और अगर हिन्दुस्तान के हिंदी ब्लॉग जगत में इस नकारात्मक चटकों की मार किसी ने झेली है वह है अकेला सलीम ख़ान, अभी तक कुल मिला कर 129 नकारात्मक चटके प्राप्त हुयें हैं!!!
जवाब देंहटाएं....और अगर हिन्दुस्तान के हिंदी ब्लॉग जगत में इस नकारात्मक चटकों की मार किसी ने झेली है वह है अकेला सलीम ख़ान, अभी तक कुल मिला कर 129 नकारात्मक चटके प्राप्त हुयें हैं!!!
जवाब देंहटाएंप्रवीण शाह जी से सहमति, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुये। मुझे याद पड़ते है कुछ ही समय पहले पूरा ब्लागवाणी मजहबी ब्लागरों से त्रस्त था। उनकी आपसी फुटबाल बाजी से कितने ही लोग ब्लाग छोड़ रहे थे। फिर नापसंद के उभरने पर जब यह लोग डूबने लगा तो माहौल बदला अब देखिये अमन की बातें हो रहीं है। क्या यह नापसंदगी की ताकत नहीं है?
जवाब देंहटाएंवैसे जब आप यह कह रहे हैं कि आपकी पोस्ट इतनी पढ़ी गई (ब्लोगवाणी से!) तो फिर भी शिकायत? आखिर आप चाहते क्या हैं?
कोई भी चीज हर किसी को खुश नहीं रख सकती। ब्लोगवाणी कैसा है यह उसके चलाने वाले को ध्यान रखने दीजिये। मुझे लगता है कि हर महीने ब्लोगवाणी पहले से ज्यादा पाठक भेज रहा है।
ब्लागवाणी वाले से हर आदमी शिकायत करता रहता है। किसी को नापसंद हो गया। किसी को ब्लाग नहीं जोड़ा। किसी को ये नहईं किया... वो नहीं किया।
ब्लागजगत के लिये सबसे अच्छा तो यही होगा कि ब्लोगवाणी जैसे है वैसे चले क्योंकि इस्में कुछ गलत होता तो यह इतना लोकप्रिय कैसे होता? हम तो सिर्फ कुछ ब्लागर की तरह से सोच्ते हैं लेकिन ब्लागवाणी को ब्लाग के पढ़ने वालो जैसा सोचना पडता है। वो तो यह मांगते है कि ब्लाग साफ हो, काम का हो, पढ़ने पर अच्छा लगे और बुरा न लिखा हो। तो फिर तो ब्लोगवाणी सही कर रहा है अगर उसे पाठकों को अच्छा लगना है। बुरी पोस्टों को तो हटाना होगा फिर और अगर ब्लागजगत में गुटबाजी है तो इससे ब्लागवालों को कोशिश करके उबरना होगा और गुटबाजों को हटाना होगा।
क्या मैंने गलत कहा?
वैसे आप बोलो क्या आप इमानदारी से सभी अच्छी पोस्टों को पसंद और बुरी को नापसंद करते हो?
salim khan did you also count the pasand? what is your score?
जवाब देंहटाएंबढ़िया मुद्दा उठाया आपने, आभार !
जवाब देंहटाएंmai to bas nishant mishr bhai ki bat se 100 se bhi jyada feesadi sehmat hu. laakh take ki baat kahi hai unhone...
जवाब देंहटाएंआम तौर पर गिने चुने ब्लॉग पर ही यह सब शोर मचता रहता है.कभी पसंद का,कभी नापसंद का,कभी कमेंट्स का.ध्यान दें तो कमेंट्स करने वाले कुछ गिने चुने नाम,अपने ब्लोग्स पर उन्ही गिने चुने लोगो से कमेंट्स.फिर कमेंट्स की संख्या गिनी जाती है,उस पर पोस्ट लिखी जाती है ये सब कमेंट्स करने वालों के नाम जो ऊपर पढ़े जा सकते हैं हरकत में आते हैं और शुरू हो जाते हैं फिर कमेंट्स लिखने को.
जवाब देंहटाएंअच्छे लेखकों जैसे मसिजीवी के ब्लॉग पर उम्दा कमेंट्स पढ़े तो सकते हैं,परन्तु उनके द्वारा कमेंट्स शायद कंही नहीं.उच्च कोटि के पद्य और गध मसिजीवी के ही नहीं और बहुत से ब्लोग्स पर देख सकते हैं.इनके लेखकों के पास इन सब फालतू बातों के लिए समय नहीं होता.ये लोग ब्लोगवाणी में क्या हो रहा है,और क्या नहीं ,इन बातों से मतलब ही नहीं रखते.
ये सब क्या है,क्यों है,किसलिए है,सब समझ से बाहर की बात है.
आपकी बात तर्कसंगत है!
जवाब देंहटाएंआपका सुझाव उचित है... परन्तु ये ब्लोगवाणी की अपने एग्रीगेटर प्रबंधन कार्ययोजना के अंतर्गत है. वो सबकी सुनेगा तो फिर बाज़ार में पीछे रह जाएगा.
जवाब देंहटाएंब्लोगवाणी का सुचारू रूप से चलना एकमात्र समाधान नहीं है. और भी एग्रीगेटर बाज़ार में हैं और आने वाले हैं.
ब्लोगवाणी पाठक भेज रहा है ये संतोषजनक है. वहां पसंद द्वारा टॉप पर पहुँचने की लड़ाई ही गलत है.
ज़ाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंजो बात मैं कहना चाह रहा था, और शायद ढंग से समझा नहीं पा रहा था, आपने बड़े ही सारगर्भित, तार्किक और व्यावहारिक से पेश की है...आपकी एक एक बात से पूर्णत सहमत...कल मेरी पोस्ट को नापसंदगी के पांच चटके मिले थे...यही स्पीड रही तो लगता है जल्दी ही सलीम खान का रिकॉर्ड तोड़ दूंगा...
जय हिंद...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई
जवाब देंहटाएंआपके तर्क में दम है. मैं तो यह भी कहना चाहूंगा कि यहां पर टिप्पणी, पसंद और नापसंद गुट बाजी ही है. टिप्पणी दो और लो वाली बात पर ज्यादा अमल हो रहा है. मेरी पिछली पोस्ट पर सिर्फ़ आठ टिप्पणी हैं जब कि यह पोस्ट १०० से ऊपर के पाठकों से हो कर गुजरी.
लिखते रहिये.
उन्मुक्त जी अनानिमस महोदय एवं अन्य,
जवाब देंहटाएंहमारे चिट्ठों पर ब्लॉगवाणी से शायद पाँच प्रतिशत से अधिक पाठक नहीं आते। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अगर किसी सिस्टम में सुधार की गुंजाइश है, तो उसकी बात न की जाए।
ये बात सारा ब्लॉग जगत जानता है कि कुछ लोग किस प्रकार फोन करके पसंद/नापसंद का चटका लगाने का आग्रह करते हैं और ये ही लोग हमेंशा पसंद के चटकों के हिसाब से हॉटलिस्ट में टॉप पर बने रहते हैं। इस प्रक्रिया को ज्यादा तर्कपूर्ण बनाने की बात की जा रही है। पसंद/नापसंद के चटकों को दी गयी बेशुमार वैल्यू को संशोधित करने की बात की जा रही है।
मैं फिर कहना चाहूँगा कि मैं ब्लॉगवाणी को 'प्यार' करता हूँ और शायद इसीलिए मैं व अन्य तमाम लोग भी उसे हर प्रकार के दोष से मुक्त देखना चाहते हैं।
हमें पूर्ण विश्वास है कि मैथिली जी और सिरिल जी हमारी इस भावना को समझते हुए ब्लॉगवाणी को अपग्रेड करने के बारे में अवश्य विचार करेंगे।
मोहिन्दर जी की बात पर ध्यान दें। टिप्पणी में भी गुटबाजी होती है जो सभी के सामने है। कृपया पहल कर अपने ब्लाग पर टिप्पणीयां बन्द करें। यह तो आप खुद ही कर सकते हैं !
जवाब देंहटाएंमै केवल ब्लाग वाणी पर निर्भर हूँ। और मुझे ब्लागवाणी की निस्वार्थ सेवा संतुश्टी है मगर आपकी बात भी सही है अगर ब्लागवाणी उस पर भी विचार कर ले तो सही रहेगा। जो निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं वो किसी सलाह को भी मानने से पीछे नही रहते। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंजाकिर साहब, इधर हमारे बारे में गलत राये पेश की जा रही है, हम पसंद नापसंद को खत्म करवाना बिल्कुल नहीं चाहते, हम चाहते हैं ब्लाग वाणी एग्रीगेटर बना रहे एग्रीकटर न बने, चिटठाजगत से कभी कभार किसी को शिकायत होती है उससे समझा जाये कैसा होता है एग्रीगेटर
जवाब देंहटाएंआपके साथ आवाज किया मिलादी इसे हमारी कमजोरी माना जा रहा हे, भूल में हैं ऐसे ब्लागर्स, यह तो एग्रीगेटर का एग्रीकटर बनने का कमाल है
again:
ब्लागवाणी से ऐसी बातें हम भी कह चुके, उसकी खामोशी के बाद हमने हल निकाला अपने तरीके से, मेरी राय में तो पसंद ना पसंद करवाने का हक इसको हमने नहीं दिया, इसका का काम पोस्ट का ट्रेलर दिखाना था, वही दिखाये, पसंद नापसंद हमारे अपने ब्लाग पर होना चाहिये
दूसरी बात ब्लॉगवाणी द्वारा पसंद और नापसंद के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला कैलकुलेशन क्या है सबके सामने आना चाहिये
तीसरी बात कुछ नहीं कर सकता तो अपना नाम ब्लागवाणी एग्रीगेटर नहीं ब्लागवाणी एग्री कटर Agree Cutter कर ले