क्या ब्लॉगर होने के लिए ...आईमीन बड़ा ब्लॉगर होने के लिए सनकी होना ज़रूरी है? अब आप यह तो पूछोगे कि भई मेरे साथ ऐसी कौन सी सनक वाली ...
क्या ब्लॉगर होने के लिए ...आईमीन बड़ा ब्लॉगर होने के लिए सनकी होना ज़रूरी है?
अब आप यह तो पूछोगे कि भई मेरे साथ ऐसी कौन सी सनक वाली घटना घट गयी, जो मैं ऐसा सवाल पूछ रहा हूँ। तो इसका कारण यह है कि पिछले दिनों केरल स्टेट इंटरनेशनल डॉक्यूमेन्ट्री एण्ड शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल, त्रिवेन्द्रम में लखनऊ की फिल्म 'खरबूजे' को स्पेशल ज्यूरी अवार्ड मिला, जिसे लखनऊ के ऐड फिल्म राइटर रिजवान ने बनाई थी। यह फिल्म इंसानी व्यवहार के बारे में बताती है, जिसमें कहा गया है कि पहली मुलाकात में व्यक्ति जब किसी से मिलता है, तो अपने आप को एक शानदार पर्सनॉलिटी के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन दूसरी और तीसरी मुलाकात में ही उसकी सारी असलियत खुल कर सामने आ जाती है।
जब रिजवान से फिल्म के अनुभव के बारे में पूछा गया, तो वो बोले- 'अगर मैं पागल न हो जाता, तो ये फिल्म न बन पाती।' यानी कि रिजवान ने पागलपन की हद तक इस प्रोजेक्ट में मेहनत की, तब जाकर इतना शानदार परिणाम सामने आया।
जब मैं यह समाचार पढ़ रहा था तथा मेरे एक साइकालॉजिस्ट की किसी किताब के कुछ अंश गूँजे, जिसके अनुसार दुनिया में जितने भी लोग पाए जाते हैं, उनमें किसी न किसी विषय को लेकर हल्का सा पागलपन पाया जाता है।
वैसे आम आदमी की नजर में पागल होना या सनकी होना क्या है? जब कोई व्यक्ति किसी काम के लिए दुनिया की बाकी सारी चीजों की उपेक्षा/अवहेलना करने लगता है, तो दुनिया उसे सनकी अथवा पागल कहने लगती है। चाहे कोई अच्छा लेखक हो, चाहे खिलाड़ी, चाहे समाजसेवी, चाहे प्रशासनिक अधिकारी या फिर प्रेमी, उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए उस सनकीपन/पागलपन के दौर से गुजरना ही पड़ता है।
क्यों सही कहा न? तो फिर यह बात तो ब्लॉगर पर भी लागू होती है। तो अब बताइए कि आप इस टेस्ट में कितने खरे उतरते हैं? यानी कि आप ब्लॉगिंग को लेकर अभी सनकीपन के किस पायदान तक पहुँचे हैं? और आपकी नज़र में सबसे बड़ा सनकी... आई मीन सबसे बड़ा ब्लॉगर कौन है? और क्या आपकी नजर में बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए सनकी होना सचमुच ज़रूरी है? :)
"पहली मुलाकात में व्यक्ति जब किसी से मिलता है, तो अपने आप को एक शानदार पर्सनॉलिटी के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन दूसरी और तीसरी मुलाकात में ही उसकी सारी असलियत खुल कर सामने आ जाती है...."
जवाब देंहटाएंखूब लपेटा है भाई .... हकीकत से रूबरू करता आलेख .... सही है
रजनीश भाई, बड़े ब्लॉगर जो हैं, वो थोड़े बहुत सनकी तो है ही....छोड़िये अब किसका किसका नाम लें :) :)
जवाब देंहटाएंखैर,ये बात सही कहा आपने की थोड़ा बहुत सनकीपन या किर जूनून जैसा कुछ तो लगभग हर आदमी में रहता है, कुछ अंश मेरे में भी हैं...और कुछ शायद आपमें भी...
अच्छी पोस्ट...
बढिया आलेख .. जब किसी न किसी मामले में सभी सनकी ही होते हैं .. तो फिर परेशान होने या सुधारने की चिंता क्यू करनी ??
जवाब देंहटाएंलेकिन सवाल तो वहीं का वहीं है कि सबसे बड़ा सनकी ब्लॉगर कौन है?
जवाब देंहटाएं3/10
जवाब देंहटाएंएक संजीदा विषय पर खिलंदड अंदाज में लिखा गया
सनकी यानी जिद्दी ... जुनूनी
किसी भी क्षेत्र में पारंगत होने अथवा मुकाम हासिल करने के लिए यह बहुत जरूरी चीज है. दुनिया का ऐसा एक भी महान इंसान नहीं जो इस बीमारी से जुदा रहा हो.
थोड़ा सा सनकी होना भी चलेगा।
जवाब देंहटाएं...पर सबसे बड़ा सनकी आई मीन बडा ब्लागर कौन है कह नहीं सकती।
जवाब देंहटाएंये तो पता नही सबसे बडा सनकी कौन है मगर अगर सनक ना होती तो आज दुनिया मे इतने नये नये अविष्कार ना होते और हम यहाँ नेट पर ब्लोगिंग न कर रहे होते।
जवाब देंहटाएंPataa karna parega? Sabse bara kaun?
जवाब देंहटाएंपहले दिन सूटेड बूटेड होकर मिलने और बाद के मिलने वाली घटना से याद आया कि एक मौजूं बात मेरे प्रोफेसर ने कई साल पहले बताया था कि -
जवाब देंहटाएंमुंबई बोर्ड की परीक्षा की कापियां एक बड़े से हाल में जाँची जाती थी जिसके लिये हर स्कूल से शिक्षक जुटते थे और आस पास बैठ कर जाँचते थे।
पहले दिन सभी शिक्षक-शिक्षिकाएँ मिलते ही हाय हैलो से चालू होते थे। सीधे अँगरेजी में। आस पास बैठे बैठे थोड़ी देर बाद उनमें बातचीत शुरू होती और अगले दिन जब मिलते तो या तो मराठी में आपस में बात कर रहे होते या फिर हिंदी, गुजराती या मलियाली...जो भी भाषा उनकी अपनी होती :)
अंगरेजी का वर्क उतरने में एक दिन का ही वक्त लगता था :)
रही बात ब्लॉगर कौन बड़ा... कौन छोटा तो इतना जरूर पता है कि आत्ममुग्धता के चलते सभी अपने आप को फन्ने खाँ ही समझते हैं.......मैं भी :)
सनक का दूसरा नाम किसी कर्म या सिद्धांत के प्रति पूरी तरह समर्पित होना भी है .....मेरे ख्याल से ब्लोगिंग के असल मकसद के लिहाज से मुझ समेत कोई भी सनक के स्तर तक नहीं पहुंचा है..हाँ कुछ लोग पहुँचने के बहुत करीब जरूर हैं ..कुछ लोग तो ब्लोगिंग के उदेश्य को लेकर ही भ्रमित हैं...
जवाब देंहटाएंye qualification jaruri hai..mujhe to malum hi nahi :)
जवाब देंहटाएंvery intresting :))
जब काम ढंग का किया जाये तो उसे एकाग्रता कहते है और जब काम कुछ उल्टा सीधा करे तो उसे सनकीपन कहते है | ब्लोगिंग को हम सनकीपन में ही रखते है आप कितना भी ढंग से लिखे लोगो को सनकीपन ही लगेगा |
जवाब देंहटाएंसकारात्मक सनक हो तो ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख
इधर जिसकी दुम उठाईये वही चिट्ठाकार दिखता है :)
जवाब देंहटाएंजी हाँ!
जवाब देंहटाएंपहले तो घर वाले ही समझते थे!
अब तो बाहर के लोग भी सनकी ही कहने लगे हैं!
क्या कहा जाए,
जवाब देंहटाएंफ़िल्मकार झूठ को स्थापित करने के लिए तो फ़िल्म नहीं ही बनाएगा.
जब कोई व्यक्ति किसी काम के लिए दुनिया की बाकी सारी चीजों की उपेक्षा/अवहेलना करने लगता है, तो दुनिया उसे सनकी अथवा पागल कहने लगती है।
जवाब देंहटाएंपरिभाषा तो सही जान पड़ती है । अब लोगों को खुद ही सोचने दो ।
Bahut hi Intresting way me aapne likha hai.
जवाब देंहटाएंis par to abhi research karni padegi.
यूँ तो इस ब्लागरिय सनकीपनें से बहुत हद तो निजात पा ही चुके हैं.....गर इस रोग के कुछ किटाणु अभी शेष बचे भी होंगें तो वो भी समझिये कि कुछ दिनों के ही मेहमान हैं :)
जवाब देंहटाएंसनक ही सफलता दिलाती है.
जवाब देंहटाएंलग सा सवाल उठाती पोस्ट है... जाकिर जी
जवाब देंहटाएंहाँ मुझे लगता है की सनक अगर सकारात्मक हो सब बहुत अच्छा रहता है.... ब्लोगिंग में भी यही बात लागू होती है
सीमाओं को तोड़ने के लिये तो थोड़ा पागलपन आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंपहली मुलाकात में व्यक्ति जब किसी से मिलता है, तो अपने आप को एक शानदार पर्सनॉलिटी के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन दूसरी और तीसरी मुलाकात में ही उसकी सारी असलियत खुल कर सामने आ जाती है............. बिलकुल सही कहा आपने. मेरे ख्याल से ब्लॉगरस में ये सनक तो और भी है. कोई ऑफिस में बैठे-बैठे तो कोई रात भर जग के. सनकी ब्लॉगर भी बहुत से है. अब नाम बताने में संकोच सा होता है. मगर ये सनक न हो तो फिर आपका पोस्ट पढ़ने को कैसे मिलता?
जवाब देंहटाएंज़ाकिर भाई ,
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि किसी काम को जुनूनी हद तक पहुंच कर करने से यकीनन उसकी सफ़लता की संभावना दोगुनी हो जाती है ..और हम तो चौगुनी के चक्कर में रहते हैं ..अब अंदाज़ा लगाईये खुदे
इसे पढ़ कर बताईए कि हम से बढ़ कर कौन
जवाब देंहटाएंअति-सुन्दर पोस्ट .
जवाब देंहटाएंjAB TAK AAP EK HEE CHEEJ PAR FOCUS NAHEE KARATE TABT AAK AAP BAHUT ACHCHA NAHEE KARATE. CHAHE KOEE ISE SANAK HEE KYUN NA KAHE. aAM BLOGGER TO DUNIYA DARI NIBHATE HUE HEE CHALTA HAI. uNCHE LOGON KEE BAR=T NAHEE KAR RAHEE HOON.
जवाब देंहटाएंविचारों में डूब गया. :)
जवाब देंहटाएंAtleast not me :)
जवाब देंहटाएं... वाह वाह ... बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंशायद सभी ब्लॉगर में यह कीटाणु होता होगा नही तो कम से कम वह ब्लॉगर तो नहीं बन पाता।
जवाब देंहटाएंInteresting post !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
क्या आपकी नजर में बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए सनकी होना सचमुच ज़रूरी है ?
लगता तो है।
और आपकी नज़र में सबसे बड़ा सनकी... आई मीन सबसे बड़ा ब्लॉगर कौन है?
काहे मुझ जैसे छोटे ब्लॉगर के दिमाग पर उसकी सामर्थ्य से ज्यादा जोर डाल रहे हैं...खुद अपनी नजर से बड़े सनकी को ढूंढ लीजिये न !
...
interesting!!!
जवाब देंहटाएंमैंने तो अपने अंदर के पागलपन को बचा कर रखा हुआ है। तभी तो कुछ भी करने को ठान लेता हूं। आदमी के अंदर जब तक पागलपन है वह कुछ भी कर सकता है।
जवाब देंहटाएंबिना सनक के दुनिया में कोई ढंग का काम नहीं हो सकता...ये बात पक्की है...कौन संकी ब्लोगर है ये प्रश्न बड़ा पेचीदा है...हम पतली गली से कट लेते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सुन्दर और शानदार आलेख! बढ़िया प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंगजब सवाल पूछा है भाई
जवाब देंहटाएंसनक ही मंजिल तक पहुंचाती है ये तो तय है।
बस सनकी को उसके काम में लगे रहने दिया जाए।
आपने अपने ब्लॉग में बड़ी प्रेरणादायी बातें लिखी है ,
जवाब देंहटाएंग्राम -चौपाल में पधारने के लिए आभार .
अपने को छोटा ब्लॉगर समझता कौन है?
जवाब देंहटाएं;)
बढिया आलेख ..
जवाब देंहटाएंरोचक । मगर सब से बडा कौन हुया? क्या आप? हा हा हा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकुछ हद तक कुछ कर गुजरने के लिए संकी होना जरूरी है ..
जवाब देंहटाएंbat to pate ki kahi aapne, hum soch rahe he meter lekar apne pagal pan ko naapne ki
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
एक कहावत याद आ रही है Personality can open the door but only character can keep it open इसलिए वो सूटेड बूटेड होना दरवाजा तो खोल देगा . पर असली व्यक्तित्व ही उसे हमेशा के लिए खुले रखेगा.
जवाब देंहटाएंऔर सनकी तो थोड़ा-बहुत सभी creative लोग होते ही हैं. वरना दुनिया नीरस और मशीनी हो जाए
सनक ज़रूरी है जीतने के लिए आगे बढ़ने के लिए ... आप देखिये ... ये पाश्चात्य सभ्यता में ज्यादा पाई जाति है ... तभी तो वो आगे हैं ...
जवाब देंहटाएं