( सारे बंधन, सारे लिहाज के परे रही लखनऊ की पहली नॉन ऑफीशियल ब्लॉगर्स मीट ) (From right to left: Dr. Arvind Mishra, Girijesh R...
(सारे बंधन, सारे लिहाज के परे रही लखनऊ की पहली नॉन ऑफीशियल ब्लॉगर्स मीट)
कल का दिल लखनऊ के ब्लॉगर्स के लिए खास रहा, क्योंकि लखनऊ के कुछ चुनिंदा ब्लॉगर्स हजरतगंज के कॉफी हाउस में अरविंद मिश्र जी के सम्मान में जमा हुए और खूब हो हल्ला किया। इस छोटी सी पार्टी में अमित ओम की शादी को पकौड़े, पेस्ट्री और कॉफी से सेलेब्रेट किया गया, जिसमें मीनू खरे जी की सलाह के अनुसार ओम को आमंत्रित नहीं किया गया था। लेकिन ओम भाई अपनी लेट लतीफी वाली इमेज को तोड़ते हुए बिना बुलाए तय समय से 15 मिनट पहले ही पहुंच गये।
लगभग तीन घन्टे चली इस ब्लॉगर मीट में डा0 अरविंद मिश्र के अतिरिक्त गिरिजेश राव, जीशान हैदर जैदी, महफूज़ अली, विनय ‘नज़र’ और ओम के साथ मुझ नाचीज़ ने भी शिरकत की।
चर्चा की शुरूआत ब्लॉगर के प्रिय टॉपिक कमेंट से हुई, जिसमें महफूज भाई ने 100-100 कमेंट पाने के राज़ बताए। इस अवसर पर अरविंद जी ने एक बहुत ही मार्के की बात कही- कोई भी व्यक्ति अपना पहला प्यार और पहला कमेंट कभी नहीं भूलता।
इसका निशाना मेरी ओर था, क्योंकि महफूज़ भाई बता रहे थे कि वे आजकल नारी ब्लॉगर्स से बहुत परेशान हैं। इसपर किसी ने चुटकी ली कि नारी ब्लॉगर्स से परेशान हैं या फिर नारी ब्लॉगर्स इनसे परेशान हैं? तभी उसी समय विनय भाई के मोबाइल पर एक ब्लॉगर का फोन आ धमका। किसी ने पूछा किसका फोन है? जवाब मैंने दिया- अरे, ये वही ब्लॉगर हैं, जो सिर्फ नारी ब्लॉग पर कमेंट करते पाए जाते हैं। इसपर सभी लोगों ने एक जोरदार ठहाका लिया और लगे हाथ उन सभी महारथियों के नाम गिना डाले गये, जो 99 प्रतिशत नारियों के ब्लॉग पर ही विचरण करते पाए जाते हैं।
चर्चा जब कमेंट की चल रही हो, तो फिर कमेंट की प्रकृति पर कैसे न जाती? लिहाजा सूई घूमी और “नाइस” पर जा कर अटक गयी। ऐसे में उन सभी ब्लॉगर का प्रशस्ति गायन तो होना ही था, जो अपने अधिकतर कमेंट में ‘नाइस’ का प्रयोग करके काम चला लेते हैं। तभी अरविंद जी को अचानक कुछ याद आया और वो बोले- एक जगह ज्ञान जी भी कहीं “नाइस” कहते हुए पाए गये थे।
बातचीत का अगला विषय रहा सबसे ज्यादा पढी जाने वाली पोस्ट। जिसके क्रम में मैंने जैसे जी ‘तस्लीम’ की “प्रेमी प्रेमिका वशीकरण मंत्र” का जिक्र छेड़ा, गिरिजेश जी अपनी 'चूमा चाटी' और ‘कोकशास्त्र’ वाली पोस्ट की मीठी यादें लेकर बैठ गये। उसी समय ओम भाई ने इलाहाबाद में इरफान भाई द्वारा बतायी गयी उनकी “गंदी लड़की” का भी चर्चा छेड़ दिया। सभी लोग इस सब का मजा ले ही रहे थे कि महफूज भाई ने अपनी एक सत्यकथा से हम सबको लाभान्वित किया, जिसमें किसी ब्लॉगर ने उन्हें ‘जिगोलो’ समझ कर काफी दिनों तक यूज़ किया था। उस समय महफूज़ भाई के चेहरे की लाली बता रही थी कि उनकी जबान से निकला एक-एक लफ़ज सच है और साथ ही यह भी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि उस प्रकरण के बंद जाने पर उन्हें काफी दुख भी हुआ था।
इन तमाम वार्ताओं के दौरान दो लोग जब तब चाहे-अनचाहे कूदते रहे। एक तो सुश्री लवली जी, दूसरे फुरसतिया भाई। फुरसतिया जी इस सेंस में गिरिजेश जी के माध्यम से कूद पड़ रहे थे कि अगर इस गोष्ठी की रपट ज्यों की ज्यों छपी, तो वे अपनी चर्चा में इसकी अच्छी खबर लेंगे। वैसे वहाँ पर इस बात की भी चर्चा हुई कि उननके चिट्ठा चर्चा में अपने ब्लॉग को देखने के लिए उतावले लोग जिस तरह से उनकी तारीफ करते फिरते हैं, उसे वे उसी सहजता से अपनी असली तारीफ समझ लेते हैं। लेकिन इस सम्बंध में किसने क्या कहा, यह बात गोपनीय ही रखी जा रही है।
लवली जी की चर्चा का कारक बना ‘डेजा वू’ बीच-बीच में सबको परेशान किये रहा। और इसका असली कारण मुझे ‘साईब्लॉग’ की इस ताजा पोस्ट को पढ़ने के बाद ही समझ में आया। अगर आपकी समझ में न आया हो कि ये ‘डेजा वू’ कौन सी बला है, तो इसे आप भी पढ ही डालें।
इसके आगे और भी बातें हुई, जैसे कि संसार की सबसे लोकप्रिय पत्रिका “प्लेब्वॉय” के बारे में। और उस चर्चा में विनय ‘नज़र’, अमित ओम, अरविंद मिश्र, गिरिजेश राव ने अपने-अपने अमूल्य अनुभवों से महानुभावों को लाभान्वित किया। अरविंद जी का अपने चाचा की अटैची से प्लेब्वॉय उड़ाना, गिरिजेश जी के प्लेब्वाय के अंकों का उनके भाई के हत्थे लगना, महफूज भाई का किशोरावस्था में दुकान से प्लेब्वॉय चुराना, ओम भाई का यह बताना कि उसके बीच के 4 ग्लेजी पेपर ही मुख्य आकर्षण होते हैं और विनय भाई की यह जानकारी कि वह नेट पर आपको ‘प्लेब्वॉय’ ‘अवाक्स होम’ पर फ्री में मिल जाएगी, मैं और जीशान चुपचाप सुनते रहे। इस चर्चा में ‘प्लेब्वाय’ का जिक्र क्यों आया, यह बताना यहाँ पर बहुत जरूरी है। इसका कारण रहा ‘तस्लीम’ पर इस बार प्लेब्वॉय के संस्थापक का फोटो लगाकर उसके बारे में पूछा जाना। अब अरविंद जी ने इस महान हस्ती को पहेली के लिए क्यों चुना, यह तो अरविंद जी ही बताएंगे। फिलहाल विनय भाई के सूत्र से हम आपको एक महत्वपूर्ण जानकारी देते चलें कि प्लेब्वॉय भले ही पुरूषों की पत्रिका है, लेकिन उसके पाठकों में 56 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं का होता है।
इस चर्चा को समाप्त करने से पहले दो एक बातें और आपके साथ शेयर करता चलूं। पहला यह कि विनय भाई के पिछले ३ माह से ब्लॉग जगत से कटे रहने का कारण सबने जाना, तो साथ ही महफूज भाई को मीठी सी झिडकी भी मिली कि वे दुनिया जहान में तो टिपियाते फिरते हैं, लेकिन आजतक जीशान भाई के ब्लॉग पर क्यों नहीं गये। और बात जब जीशान भाई की चल रही थी, तो फिर अरविंद जी उनके चिर-काल से चली आ रही ‘प्लैटिनम की खोज’ पर कमेंट करने से कैसे रह जाते? और नतीजतन जीशान भाई को घोषणा करनी ही पडी़ कि इस माह में उनकी दो सीरीज समाप्त हो रही हैं। पहली ‘साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन’ की ‘जिसपर है दुनिया को नाज, उसका जन्म दिवस है आज’ और दूसरी उनके व्यक्तिगत ब्लॉग पर चल रही ‘प्लैटिनम की खोज’।
इस चर्चा के बीच में पंडित वत्स जी भी मेरे द्वारा कुदा दिये गये। क्योंकि वे उपरोक्त श्रृंखला के प्रारम्भ होने पर अक्सर शिकायत किया करते थे कि इसमें भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में नहीं लिखा जाता है। इस पर जीशान भाई ने सुझाव दिया कि क्यों न उन्हें ही यह शुभ कार्य सौंप दिया जाए? तो पंडित जी, अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, तो भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में लिखने के लिए आप ‘साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन’ में सादर आमंत्रित हैं।
चलते-चलते चर्चा का एक गंभीर सवाल, जिसे किसी महिला ब्लॉगर ने किसी पुरूष ब्लॉगर से अनायास ही पूछ लिया था। सवाल था कि पुरूष लोग नीली फिल्में क्यों देखते हैं? इसपर उस पुरूष ब्लॉगर ने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया था- जिज्ञासा वश। और इस खराब उत्तर के कारण बेचारे पुरूष ब्लॉगर को एक तगड़ी डांट झेलने पड़ी थी। अब आप खुद अंदाजा लगाइए कि वे दोनों ब्लॉगर कौन हो सकते हैं?
क्षमा प्रार्थना सहित,
जा़किर अली ‘रजनीश’
यह भी बढ़िया रही !
जवाब देंहटाएंलेकिन मैंने सुना कि वहा ड्विसिम-ढ्विसिम भी हुई थी आपने उसका जिक्र नहीं किया ?
एक बात और आपने मेरे मेल पर लिखा था कि अवार्ड का हटमल भी भेज रहे है लेकिन मुझे प्राप्त नहीं हुआ, कृपया एक बार फिर से !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
test blog
जवाब देंहटाएंgood comment
जवाब देंहटाएंमजेदार और शानदार रिपोर्ट है। प्लेटिनम श्रंखला का समापन अच्छी खबर है क्यों कि तब इसे पढऩा आरंभ किया जा सकता है। पं.वत्स जी से भारतीय विज्ञानियों पर लिखवाना बहुत रोचक अनुभव होगा।
जवाब देंहटाएंमैं यह भी कह सकता हूँ कि अब तक ब्लागर मीट की जितनी रिपोर्टें मैं ने पढ़ी है उन सब में यह रिपोर्ट रोचक है।
हा हा हा ...
जवाब देंहटाएंकुछ स्पष्टीकरण:
(1) प्लेब्वाय पत्रिका मैंने आज तक नहीं देखी। मैंने डेबोनियर पत्रिका में छपे सौन्दर्यबोध के साथ खींचे गए श्वेत श्याम न्युड फोटोग्रॉफ्स की बात की थी। बहुत दिनों तक वे संग्रह में रहे और घर की सफाई में सम्भवत: मेरे छोटे भाई द्वारा फेंक दिए गए होंगे, ऐसा मैंने उसकी एक टिप्पणी से अनुमान लगाया था।
(2) बताने वाले ने प्रतिशत 65 नहीं 56 बताया था।
(3) सर्च इंजन पर अश्लील शब्दों की खोज द्वारा ऐसी पोस्टों पर भी ट्रैफिक टॉप रहता है जिन पर एक भी टिप्पणी न आई हो। ऐसा मेरी एक पोस्ट पर हुआ है। उसमें 'कामसूत्र' नहीं 'कोकशास्त्र' का जिक्र भर आया है। ऐसे ही बाउ श्रृंखला की पहली ही पोस्ट में भी सन्दर्भन 'चूमा चाटी' शब्द आया है।... ऐसी ट्रैफिक आ कर भी निराश ही होती होगी। उन्हें लगता होगा - जाना था दालमण्डी पहुँच गए गुड़गली।
:)
(4) आप के विवरण में तकनीकी बहस छूट गई है। विनय प्रजापति जी ने बहुत काम की बातें बताईं। एक तो यह थी कि कैसे अपनी की गई सारी टिप्पणियों को अद्यतन कर एक जगह देखा जा सकता है। उन्हों ने साइट बताया था backtype.com. ऐसे ही अपने ब्लॉग एच टी एम एल कोड में no follow को do follow में बदल कर ब्लॉग और पोस्ट लिंक जोड़ने की बात भी बताई थी।
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बाकी ब्लॉगर बन्धु जो उपस्थित थे भी पढ़ कर इस लेख को समृद्ध करें, यह अपील है। भई, लखनऊ में ब्लॉगरों के मिलने पर सिरफ 'मुक्कालात'नहीं होता, यह बताएँ ;)
उम्मीद कम ही है। अभी तो मुक्कालात वाली पोस्ट ब्लॉगवाणी में टॉप पर है, शायद ही पब्लिक अभी इधर आए।
:)
क्या महफूज भाई !
मुझे मूंह छिपाने के ज़रूररत है......
जवाब देंहटाएंरोचक रिपोर्ट । क्या खूब बातें हुई होंगीं ।
जवाब देंहटाएंविनय जी की बतायी तकनीकी बातें भी शेयर करिये । backtype.com के बारे में विस्तार से जानना जरूरी हो गया है । आभार ।
@ek baat spasht karnee jarooree hai nijee baaton kee charchaaon men kisee blogger kaa nam ghoshit nhee huaa ....aavashayk gopneeyataa bartee gayee thee yadypi mahaul bahut aupchaarik ho chala thaa tab bhee .....
जवाब देंहटाएंindic transliteration suvidhaa kaam nahee kar rahee hai...sorry!
@mahaul bahut anaupchaarik ho chalaa thaa tab bhee logon kee nijee garima aur gopneeyataa kaa poora lihaaj rakhaa gyaa thaa !
जवाब देंहटाएंलखनऊ में बैठक हो और रूमानियत न हो ऐसा कैसे हो सकता है :) मीटिंग में कोई महिला उपस्थित नहीं थी !
जवाब देंहटाएंरोचक रिपोर्ट !!
जवाब देंहटाएंरोचक रिपोर्ट !!
जवाब देंहटाएंरोचक रिपोर्ट
जवाब देंहटाएंयह दुनियाँ भी कमाल की है।
आपके इस पूरे आख्यान में मुझे काम की कोई बात नज़र नहीं आई...
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉगर मीत अगर था तो ब्लॉग्गिंग की बात...उसकी समस्याओं की बात ...या कोई अच्छी बात करते तो बात बनती...
ये तो ऐसा ही लगा जैसे चार मौजी लड़के जुटे हैं और बात कर रहे हैं...::
..नारी की
..नारी ब्लॉग की
..प्लेबॉय मगज़ीन की
..ब्लू फिल्म्स की
और बहुत सारी फालतू बातें...उसपर
से तुर्रा ये की ये बताया भी जा रहा है....
मुझे ऐसे ब्लोग्गेर्स मीट की उम्मीद नहीं थी...और सच पूछिए तो इसे ब्लोग्गेर्स मीट का नाम भी नहीं देना चाहिए....
यह एक अनौपचारिक मुलाकात थी कुछ दोस्तों की....बस इससे ज्यादा कुछ नहीं था....
@'अदा जी,
जवाब देंहटाएंजो हम ना कह सके हिम्मत करके ...उसे कहने का आभार!!
Nice
जवाब देंहटाएंअगर BackType.com के बारे में विस्तार से बता दें, तो आभारी रहूँगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
pure mamle me mazaa kuchh jyada hi aa raha hai... ha ha :)
जवाब देंहटाएं@गिरिजेश जी, संशोधन के लिए शुक्रिया। एक छोटी सी पुर्ची पर नोट करने के कारण मैटर काफी गिचपिच हो गया था। तकनीकी जानकारी को मैंने नेट पर चेक करने की कोशिश की थी, लेकिन वह कोशिश बेकार गयी, इसलिए मैंने जानबूझकर उसे नहीं दिया। क्योंकि अधकचरी जानकारी देने से गडबडी की संभावना ज्यादा रहती है।
जवाब देंहटाएं@ अदा जी, वहाँ पर जो भी बातें हुई, मैंने उन्हें संक्षेप में दिया है। भले ही ये बातें आपको अनुपयोगी लग रही हों, पर इन सबके मूल में ब्लॉग और ब्लॉगर ही रहे। मीट में साइंस ब्लॉगर एसोसिएशन के लेखकों को सक्रिय करने की भी काफी बातें हुई, पर उन्हें प्रचार न समझ लिया जाए, इसलिए नहीं दिया गया।
और हाँ, इस मीट का उददेश्य सिर्फ मौज मस्ती नहीं था। यह मीट साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के लेखकों की थी और बैठक का मुख्य उददेश्य था असोसिएशन के लेखकों को विज्ञान लेखन के प्रेरित करना। चूंकि इस तरह की बातों को पढने में लोगों की रूचि नहीं होती, इसलिए उन्हें रपट का हिस्सा नहीं बनाया गया।
you are right...इस तरह की बातों को पढने में लोगों की रूचि नहीं होती, इसलिए उन्हें रपट का हिस्सा नहीं बनाया गया।...
जवाब देंहटाएंand who is the दूल्हा...???
सलीम भाई दूल्हा ढूंढ रहे हैं :):):):):):):):):)
जवाब देंहटाएंदूल्हा तो अमित ओम थे, उनकी 27-11-2009 को शादी हुई है।
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई , सलीम भाई इतना भी नहीं समझ पाए :)
जवाब देंहटाएंBahut achhi report lagi.
जवाब देंहटाएंBadhai
ये मुलाकातें यूं ही चलती रहें
जवाब देंहटाएंप्याले-प्यालियें छलकती रहें!
अदा जी और गिरिजेश जी की टिप्पणियाँ उल्लेखनीय हैं.
इस तरह मिलते रहिये. कुछ काम की बाते जरुर बताते रहिये.
जवाब देंहटाएं--
टिप्पणी कीजिये खूब कोई शरारत ना कीजिये - ग़ज़ल
haye ! kash ham bhee shamil rahe hote .
जवाब देंहटाएंतकिया लगा अमन का चादर सुकूँ का ओढ़ !
जवाब देंहटाएंरब ने ये जागीर बिन मोल दी हमें ..!!
तलवारों से धरम की बातें फ़िज़ूल हैं
बानी मधुर राम ने बेमोल दी हमें ...!!
ये दिन भी याद रहेंगे...
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