आप ब्‍लॉगिंग क्‍यों करते हैं?

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बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक आदमी सड़क पर छड़ी नचाते हुए चला जा रहा था। कभी इधर, कभी उधर, कभी ऊपर, कभी नीचे। तभी उधर से एक बुजुर्ग आदमी...

बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक आदमी सड़क पर छड़ी नचाते हुए चला जा रहा था। कभी इधर, कभी उधर, कभी ऊपर, कभी नीचे। तभी उधर से एक बुजुर्ग आदमी गुजरा। उसकी नजरें कमजोर थीं। वह उस व्‍यक्ति की नाचती हुई छड़ी को नहीं देख पाया। जैसे ही वह बुजुर्ग व्‍यक्ति उधर से गुजरा, नाचती हुई छड़ी उसकी नाक में जा गयी। यह देखकर उस बुजुर्ग को बहुत गुस्‍सा आया। लेकिन वह अपने आप को संयत करते हुए बोला- ‘ये क्‍या कर रहे हो भाई?’ यह सुनकर छड़ी नचाने वाला व्‍यक्ति रूक गया और बोला- ‘देखते नहीं छड़ी नचा रहा हूँ?’ ‘लेकिन तुम्‍हें इस व्‍यस्‍त पर छड़ी नचाने का अधिकार किसने दिया? तुम्‍हारी वजह से दूसरों को दिक्‍कत हो रही है?’ बुजुर्ग व्‍यक्ति के इस सवाल छड़ी नचाने वाला व्‍यक्ति बोला- ‘बाबाजी, मैं स्‍वतंत्र मुल्‍क का आजाद नागरिक हूँ। मेरी मर्जी, मैं कुछ भी करूँ। आप इसमें टाँग अड़ाने वाले कौन होते हैं?’ यह सुनकर उस बुजुर्ग व्‍यक्ति ने जवाब दिया- ‘हे भले मानस, माना कि तुम्‍हें एक स्‍वतंत्र देश में आजादी की हवा में पैदा होने का सौभाग्‍य मिला है। लेकिन तुम्‍हारी आजादी की सीमा वहीं तक है, जहाँ से मेरी नाक की सीमा शुरू होती है।’ 

निश्‍चय ही यह कहानी आप सबने सुनी होगी। लेकिन क्‍या आपको नहीं लगता कि यह कहानी आज भी दोहराई जा रही है? अक्‍सर ब्‍लॉग जगत में ऐसी पोस्‍टें देखने को मिलती रहती हैं, जिन्‍हें देखकर कहा जा सकता है कि वे खुले तौर पर दूसरों की नाक की सीमा का अतिक्रमण कर रही हैं? ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्‍या हमने इस कहानी से वास्‍तव में कुछ नहीं सीखा? या वास्‍तव में हम पूर्व अर्जित ज्ञान से कुछ नहीं सीखना चाहते? और इससे भी बड़ा सवाल कि आखिर हम दूसरों की आजादी की सीमा का उल्‍लंघन करके, दूसरों की भावनाओं को दुखाकर साबित क्‍या करना चाहते हैं? क्‍या इससे हम अपनी कुंठा, अपनी छुद्रता, अपनी कुटिलता का ही परिचय नहीं देते? और इसके साथ ही साथ एक सवाल यह भी कि हमारी इस धृष्‍टता की अधिकतम सीमा क्‍या हो सकती है? हमें हमारे इस कृत्‍य के लिए कोई कब तक बर्दाश्‍त कर सकता है? हमें दूसरों की नाक तोड़ने का अधिकार कब तक दिया जा सकता है? और क्‍या किसी को जबरन हमें छड़ी नचाने से रोकने का अधिकार है? 

आशा की जाती है कि ‘न्‍यू मीडिया के सामाजिक सरोकार’ जैसे केन्‍द्रीय विषय के साथ दिनांक 27 अगस्‍त, 2012 को अदब और तहज़ीब के शहर लखनऊ में आयोजित होने जा रहे ‘अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी ब्‍लॉगर सम्‍मेलन’ में इन सवालों पर भी चर्चा होगी और सरकार द्वारा दूसरों की नाक के लिए खतरा बन जाने के बहाने कुछ वेबसाइटों, ब्‍लॉगों और ट्विटर खातों पर बैन लगाने की घटना पर भी विचार-विमर्श होगा। और इसके साथ ही साथ हम यह भी आशा करते हैं कि सार्थक ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से आयोजित इस सम्‍मेलन के बहाने ब्‍लॉगर्स इस सवाल पर भी मनन कर सकेंगे कि आखिर वे ब्‍लॉगिंग क्‍यों करते हैं? और कहीं उनकी अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता दूसरों की आजादी की सीमा का अतिक्रमण तो नहीं कर रही? 

COMMENTS

BLOGGER: 24
  1. सही कहा आपने ...आज़ादी की इस सीमा को हर जगह पहचानना जरूरी है

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  2. aapki aasha ke sath hamari bhi aagantukon se hi yhi apeksha rahegi....badhiya post

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  3. निश्चय ही यह एक बड़ा प्रश्न रहेगा क्योंकि ब्लॉग का प्रभावक्षेत्र नित ही बढ़ता जा रहा है।

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  4. लेखन में विचारों एवं घटनाओं की आहट तो हो,परन्तु उस लेखन से कोई आहत न हो , बस इतना सा ख्याल रहे |

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  5. बहुत मौजू पोस्ट लायें हैं डॉ जाकिर भाई !..बढ़िया पोस्ट ब्लोगिंग सामाजिक सरोकारों से ताल्लुक रखने वाला कदम है अपनी शेव बनाके साबुन दूसरे के मुंह पे फैंकना ब्लोगिंग नहीं है यह काम तो संसद में होता है .न्यू मीडिया तो आज एक अन्वेषी है ,उत्प्रेरक है ,असल मकसद जन शिक्षण है ,ज्ञान विज्ञान की रोशनियाँ फैलाना है ,एक मिशन है ब्लोगिंग ,पहरेदारी है .कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    काइरोप्रेक्टिक में भी है समाधान साइटिका का ,दर्दे -ए -टांग का
    काhttp://veerubhai1947.blogspot.com/

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  6. हे भले मानस, माना कि तुम्‍हें एक स्‍वतंत्र देश में आजादी की हवा में पैदा होने का सौभाग्‍य मिला है। लेकिन तुम्‍हारी आजादी की सीमा वहीं तक है, जहाँ से मेरी नाक की सीमा शुरू होती है।’
    ..bahut badiya saarthak prastuti..

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  7. अच्‍छी बात है. सभी बातों पर बहस तो होनी ही चाहि‍ए.

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  8. उसकी नाक को मेरी छडी़
    जब नहीं छू पाती है
    खिसिया के कुछ शब्द
    बनकर ब्लाग में ही
    आकर सिमट जाती है !

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  9. और कहीं उनकी अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता दूसरों की आजादी की सीमा का अतिक्रमण तो नहीं कर रही?

    यहाँ तो सभी दूसरे की आज़ादी का अतिक्रमण कर रहे हैं।

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  10. इस विंमर्श और उसके निष्कर्ष का इन्तजार रहेगा|

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  11. कहीं उनकी अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता ,दूसरों की आजादी की सीमा का अतिक्रमण तो नहीं कर रही .... ?
    जबाब का इन्तजार मुझे भी रहेगा ! लिंक्स मुझे msg जरुर कीजिएगा ?

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  12. डॉ ज़ाकिर साहब आपने मेरे ब्लाग की समीक्षा की थी और उसमे ऐसी टिप्पणियों को मेरे वास्ते लिखा देखा होगा-'यह मूर्खता पूर्ण कथा है','ये आप बेपर की क्या उड़ा रहे हैं?'। अभी अप्रैल माह मे 19 अप्रैल को प्रकाशित मेरे लेख जिसमे 'रेखा जी' के राजनीति मे आने की संभावना व्यक्त की थी और 26 को वह राज्यसभा मे मनोनीत भी हो गई तो एक तीसरे ब्लाग पर पूना प्रवासी ब्लागर ने उसकी खिल्ली उड़ाई। यह सब किसकी 'नाक की सीमा मे आता है?'

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  13. नाक की सीमाएं शायद निश्चित की जा सके किन्तु नाक के प्रभामण्डल की सीमाए एक दूसरे में गड्डमड्ड है, हमें भी इन्तजार रहेगा निष्कर्षों का :)

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  14. मामले का बैकग्राउंड पता नहीं तो इशारा तो नहीं समझ पाया पर किसी की नाक की सीमा का अतिक्रमण नहीं ही होना चाहिए...

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  15. जाकिर जी क्या आपकी नीचे वाली पोस्ट मैं ले सकती हूँ किसी पत्रिका के लिए ....?
    अगर हाँ तो अपना परिचय ,पता और तस्वीर मेल कर दें प्ल्ज ....!!

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  16. सही कह रहे हैं । हमारी स्वतंत्रता की सीमा अपनी नाक और दूसरे की नाक के बीच के नो नाक लैन्ड तक ही सीमित है ।

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  17. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  18. मैंने आपका ब्लॉग देखा बहुत बदिया...कभी समय मिले तो मेरे घर भी पधारो ...पता है .....
    http://pankajkrsah.blogspot.com...पर आपका स्वागत है

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  19. जी बिल्कुल सही आपने हमारी स्वतन्त्रता की सीमा वहीं तक है जहाँ तक वह किसी दूसरे की परेशानी का सबब न बनें ।

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  20. बहुत ही अच्छी बात और कहानी....

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  21. बिलकुल सही बात ...

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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