पिछला हफ्ते ब्लॉग जगत में एग्रीगेटरों के शोक के नाम रहा, जिसमें हर सक्रिय और अक्रिय ब्लॉगर ने अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार अश्रुओं का...
पिछला हफ्ते ब्लॉग जगत में एग्रीगेटरों के शोक के नाम रहा, जिसमें हर सक्रिय और अक्रिय ब्लॉगर ने अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार अश्रुओं का योगदान दिया। वाकई ये बात ही चिंता वाली थी। नए और कम चर्चित ब्लाग, जो अपनी आकर्षक हेड लाइन के कारण पाठक खींच लाते थे, वहाँ मौत सा सन्नाटा पसरा हुआ है। इस सन्नाटे के कारण क्या हैं, आइए उस पर खुलकर विचार करें। शायद इसी में से कोई रास्ता निकले?
एग्रीगेटर नं० 01 : ब्लॉगवाणी
इस बात में दो राय नहीं कि हिन्दी ब्लॉगों के लिए जितने भी एग्रीगेटर सामने आए, उसमें ब्लॉगवाणी सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है। इसके पीछे उसका आकर्षक लुक और उसमें नित नए होने वाले बदलावों का महत्वूर्ण योगदान रहा है। लेकिन अब ब्लॉगवाणी को बन्द हुए अर्सा बीत चुका है। (सॉरी, बंद नहीं हुआ है, हाँ उसे अपडेट नहीं होने दिया जा रहा है। जबकि उसपर होने वाला खर्च बदस्तूर जारी है।)
जिस समय ब्लॉगवाणी बंद हुई थी, उस समय से लेकर आज तक बाकायदा उन लोगों को इन्डायरेक्ट वे में निशाना बनाया जाता है, जिन्होंने उसकी आलोचना की। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर आलोचना हुई ही क्यों। वह इसलिए कि वहाँ पर जान बूझकर एक खास प्रकार की नकारात्मक मानसिकता वाली पोस्टों को तो लगातार बढ़ावा दिया जा रहा था पर कम्यूनिष्ट तथा अन्य विचारधारा वाले लोगों के ब्लॉग तक नहीं रजिस्टर्ड किये जा रहे थे। जो लोग इसके शिकार बने, उनमें ‘नाइस’ मार्का सुमन जी का नाम सबसे ऊपर है। यहाँ तक तो जैसे-तैसे मामला चल रहा था, लेकिन जब ब्लॉगवाणी ने जानबूझकर पाबला जी को भी अपने लपेटे में ले लिया, तो पानी सिर के ऊपर निकलना ही था, और निकला भी। नतीजतन ब्लॉगवाणी वालों को लगा कि उनका अपमान किया जा रहा है और उन्होंने उसकी अपग्रेडेशन रोक दी।
ब्लॉगवाणी की आलोचना में एक पोस्ट लिखने की हिमाकत मैंने भी की है, जिसके लिए अक्सर मुझे ताने भी सुनने पड़ते हैं। लेकिन मजे की बात तो ये है कि ब्लॉग जगत के वे खुर्राट आलोचक जो कभी किसी व्यक्ति विशेष के बहाने, कभी सम्मान के बहाने और कभी ब्लॉग विश्लेषण के बहाने पूरे समूह के साथ अगले की बधिया उखाड़ने निकल पड़ते हैं और फोन पर प्रेशर बनवाकर मामला ठंडा होने के बाद भी पोस्ट पे पोस्ट लिखवाते हैं, वे ‘सजग’ और ‘प्रहरी’ ब्लॉगर ब्लॉगवाणी की ‘धूर्तता’ (कोई अन्य सटीक शब्द हो तो कृपया हमारा ज्ञान बढ़ाने का कष्ट अवश्य करें) के मामले में बेहया बनकर न सिर्फ अपनी आँखों पर पट्टी और कानों में रूई खोंस लेते हैं (उनके नाम बताने की जरूरत नहीं, दुनिया जानती है वे कौन लोग हैं), बल्कि उसकी आलोचना होने पर उल्टे आलोचक को लतियाने चले आते हैं।
एग्रीगेटर नं० 02 चिट्ठाजगत
वैसे तो चिट्ठाजगत सबसे पुराना एग्रीगेटर है, लेकिन अपने ले आउट के कारण यह ब्लॉगवाणी से हमेशा पीछे ही रहा। लेकिन जबसे ब्लॉगवाणी कोमा में गया, तबसे इसकी पूछ बढ़ गयी है। किन्तु दु:ख का विषय यह है कि चिट्ठाजगत में भी सब कुछ सही नहीं है। इसकी सक्रियता लिस्ट में बहुत बड़ा लोचा है। इसमें दीपक भारतदीप के दो-दो तीन-तीन अत्यल्प पढ़े जाने वाले ब्लॉग तो लिस्ट में बने रहते हैं, लेकिन ‘तस्लीम’ (प्रतिदिन लगभग 300 यूनीक विजिटर्स, 325 फॉलोवर्स और 125+140(डॉट कॉम पर आने से पहले, जो अब शो नहीं होते) फीडबर्नर पाठक) और ‘साइंस ब्लागर्स असोसिएशन’ जैसे बहुपठित ब्लॉग कभी नजर नहीं आते हैं, जबकि इनपर सप्ताह में कम से कम दो पोस्टें नियमित रूप से प्रकाशित होती हैं।
मैं पिछले दो महीने से चिट्ठाजगत को लगातार रीड कर रहा हूँ, इसलिए ही यह बात कहने का दुस्साहस कर पाया हूँ। चिटठागजत में पोस्टों की लोकप्रियता नापने वाले तीन टैब हैं- सर्वाधिक कमेंट वाली पोस्ट, सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पोस्ट, तीसरी शायद सर्वाधिक पसंद की जाने वाली पोस्ट(अनुमान के आधार पर)। लेकिन इनमें भी एक लोचा यह है कि सिर्फ टिप्पणी वाली पोस्ट ही केवल दिखती हैं, अन्य दो टैब कभी खुलती ही नहीं हैं। मुझे पूरा अंदेशा है कि यह सब जानबूझकर किया जाने वाला कृत्य है, जिसकी बहुत दिनों तक अनदेखी नहीं की जा सकती।
वैसे चिट्ठाजगत पिछले काफी समय से डाउन है। न जाने क्यों मुझे लग रहा है कि जबसे समीर लाल जी इंडिया आए हैं, वह उनके तेज को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है।:) ऐसे में चिटठागजत को फिर से एक्टिव करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, यह मेरी समझ से बाहर है। अगर आप लोगों के दिमाग में कोई विचार आ रहा हो, तो अवश्य बताएँ।
एग्रीगेटर नं० 03 इंडली
इंडली को आए हुए हालाँकि अभी जुमा-जुमा आठ महीने ही हुए हैं, पर अनेक भाषाओं में होने के कारण इसकी एलेक्सा रैंक तेजी से बढ़ रही है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी समस्या है ब्लॉग की फीड को ऑटोमैटिक न लेना। इसलिए बहुत से ब्लॉगर (फ्री में सेवाएँ देने के बावजूद) इसकी सेवाएँ नहीं ले रहे हैं। उन्हें हर बार वहाँ जाकर अपनी पोस्ट अपडेट करना अखर रहा है। इसलिए यदि इंडली के संचालक यह चाहते हों किउनका एग्रीगेटर लोकपिंय हो,तो उन्हें इस कमीको दूर करने के बारे में सोचना चाहिए।
एग्रीगेटर नं० 04 हमारीवाणी
यह एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी के कोमा में जाने के बाद ही अस्तित्व में आया है। इसकी बनावट देखकर यही लगता है कि इसे ब्लॉगवाणी जैसा बनाने का प्रयत्न किया गया है। लेकिन इसके बारे में कुछ दिनों पहले एक ‘अफवाह’ फैली थी कि यह वायरस का प्रसार कर रहा है इसलिए काफी लोगों ने इसका कोड अपने अपने ब्लॉग से हटा दिया था। चूँकि मैं तकनीकी एक्सपर्ट नहीं हूँ इसलिए मैं इस बारे में दावे से नहीं कह सकता कि कोई एग्रीगेटर अपने विजेट कोड के द्वारा वायरस फैला सकता है है कया? आपमें से कोई इसका जानकार हो तो अवश्य बताए। वैसे मुझे अंदेशा है कि इसका लुक चूंकि एक खास धर्म से जुड़ाव को दर्शाता है, इसलिए जानबूझकर ‘वायरस’ वाली अफवाह उड़ायी गयी?
मेरी सोच के पीछे दो कारण भी हैं। पहला कारण यह कि एक बार मेरी तकनीक दृष्टा फेम विनय प्रजापति से बात हुई थी। तब उन्होंने बताया था कि जो भी ब्लॉग ब्लॉगर पर होस्ट हैं, उनके कंटेंट को गूगल स्वयं वायरस के लिए चेक करता रहता है। ऐसे में यह कैसे संभव हो सकता है कि गूगल अपने सर्वर पर किसी ब्लॉग द्वारा वायरस को आने दे। दूसरा कारण यह है कि परिकल्पना पर इसका विजेट शुरू से लगा हुआ है और उसे आज तक वायरस से कोई नुकसान नहीं पहुँचा है। इसलिए मैंने भी इसमें अपने सारे ब्लॉग रजिस्टर्ड कर दिये हैं। आप अगर फ्री के एग्रीगेटर की तलाश में हो, तो इसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। हॉं, यदि आपमें से किसी को भी इसमें 'ब्लॉगवाणी' अथवा 'चिटठाजगत' टाइप कोई विशेष गुण नजर आया हो, तो हमें अवश्य बताऍं। क्योंकि जानकारी बॉंटने से ही बढ़ती है।
एग्रीगेटर नं० 04 ब्लॉगसेतु
अंत में एक महत्वपूर्ण सवाल यह कि क्या एग्रीगेटर्स से ईमानदारी की अपेक्षा करना मूर्खता है?
एग्रीगेटरों द्वारा जानबूझकर की जाने वाली धांधली का अंध समर्थन करने वाले लोगों से एक बात मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहूंगा कि अपने देश में प्रजातन्त्र है। आप अगर कहीं पर भी किसी व्यक्ति के साथ चीटिंग करते हैं, तो आपको बख्शा नहीं जाएगा, फिर चाहे आप ब्लॉगर हों अथवा एग्रीगेटर। यदि एग्रीगेटर चालक इस भ्रम में हैं कि वे एग्रीगेटर होने के बहाने किसी को अनुचित लाभ और किसी को अनुचित नुकसान पहुँचा सकते हैं, तो वे इस गलतफहमी को जितनी जल्दी दूर कर लें, उतना ही अच्छा। क्योंकि कोई भी चालाकी अथवा खेल बहुत दिनों तक छिपाए रखना अब किसी के लिए भी संभव नहीं रहा है। ऐसे में अपनी छीछालेदर को रोकना स्वयं अपने ही वश में रह गया है।
दूसरी बात- अक्सर भाई लोग कहते पाए जाते हैं कि एग्रीगेटर हमारा मुफ्त में प्रचार कर रहे हैं, इसलिए उनकी आलोचना न करें। मैं ऐसे लोगों को साफ-साफ बताना चाहता हूँ कि आप इस वहम को अपने दिल से निकला दें। एग्रीगेटर तभी तक हैं, जब तक ब्लॉगर हैं। एग्रीगेटर अगर ब्लॉगर की पोस्टों को मुफ्त में प्रचारित करता है, तो ब्लॉगर भी मुफ्त में ही उसका विज्ञापन अपने ब्लॉग पर लगाये रहता है। इसके साथ ही साथ वह मुफ्त में ही नई पोस्टों की खोज में दिन में दसियों बार एग्रीगेटर पर जाता है और उसकी एलेक्सा रैंक को बढ़ाने में सहयोग करता है। एग्रीगेटर चाहें तो उस रैंक का फायदा उठाकर विज्ञापन जुटा सकते हैं, ब्लॉगर्स को उससे कोई आपत्ति नहीं होने वाली। और अगर एग्रीगेटरों को लगता है कि वे मुफ्त में ही लोगों का प्रचार कर रहे हैं, तो क्यों नहीं अपनी सेवाएँ पेड कर देते हैं? जिसे पैसा देकर अपनी पोस्टों को प्रचारित करने का शौक होगा, वह उनकी सेवाएँ ले लेगा। और जो पैसा नहीं खर्च करना चाहेगा, वह मजे से अपने घर में बैठेगा।
लेकिन इन सबकी आड़ में अब यह संभव नहीं रह गया है कि एग्रीगेटर मुफ्त की सेवाओं का हवाला देकर किसी को अनुचित लाभ पहुँचाएं और किसी को जबरदस्ती नीचा दिखाऍं। यदि एग्रेगेटर इस भ्रम में हैं कि यह उनका विशेषाधिकार है, तो फिर उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि ब्लॉगर भी अन्याय का विरोध करने का अपना मौलिक अधिकार रखता है। और उसे किसी भी कीमत पर दबाया नहीं जा सकता।
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फीड क्लस्टर का उपयोग करके कुछ लोगों ने अपने-अपने एग्रीगेटर भी बनाए हैं। जैसे: आज के हस्ताक्षर,परिकल्पना समूह, लक्ष्य, महिलावाणी। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों ने ब्लॉग स्पॉट पर ही अपनी पसंद के एग्रीगेटर बना लिए हैं। उनके नाम हैं: हिन्दी ब्लॉग जगत, हिन्दी-चिट्ठे एवं पॉडकास्ट, ब्लॉग परिवार, चिट्ठा संकलक। इसके अलावा दो अन्य संकल्क हैं- लालित्य एवं हिन्दी ब्लॉग लिंक।
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फीड क्लस्टर का उपयोग करके कुछ लोगों ने अपने-अपने एग्रीगेटर भी बनाए हैं। जैसे: आज के हस्ताक्षर,परिकल्पना समूह, लक्ष्य, महिलावाणी। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों ने ब्लॉग स्पॉट पर ही अपनी पसंद के एग्रीगेटर बना लिए हैं। उनके नाम हैं: हिन्दी ब्लॉग जगत, हिन्दी-चिट्ठे एवं पॉडकास्ट, ब्लॉग परिवार, चिट्ठा संकलक। इसके अलावा दो अन्य संकल्क हैं- लालित्य एवं हिन्दी ब्लॉग लिंक।
मैं भी पहले ब्लॉगवाणी पे ही लोगिन करता था ब्लॉग पढ़ने के लिए, फिर इसके बंद होने के बाद चिट्ठाजगत इस्तेमाल करने लगा..अब कुछ दिनों से ये भी बंद है तो दिक्कत होती है सभी ब्लॉग के अपडेट पढ़ने में. हमारीवाणी तो इस्तेमाल नहीं किया अभी तक, हाँ देखा जरुर है...
जवाब देंहटाएंजाकिर जी!एग्रीगेटर के बारे में मुझे बहुत थोडा ही पता था.आप के इस लेख से कुछ जानने को भी मिला.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट पर आप के विचारों से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ.
प्रश्न तो दुरुस्त हैं, शायद कोई उत्तर भी मिल जाये।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चीरफाड़ की है ज़किरभाई
जवाब देंहटाएं--
सबसे बढिया है गूगल रीडर।
जवाब देंहटाएंजिसे पढना है पढो, नहीं तो मत पढो।
जितनी यह बात सही है कि आजकल एक बढ़िया ब्लॉग एग्रीगेटर की जरूरत बहुत ही ज्यादा महसूस की जा रही है उतना ही मेरे ख्याल से यह भी सही है कि अगर हम अपने पसंदीदा ब्लोगस को follow करें तो इतनी दिक्कत ना हो बिना एग्रीगेटर के ! मामला पोस्टो की जानकारी का है तो यह तो ब्लोगस को follow कर के भी निबटाया जा सकता है ... पर हाँ अगर मामला टॉप लिस्ट ... या हिट लिस्ट जैसा कुछ है तो बात और है !
जवाब देंहटाएंनीरज जाटजी की बात सही है जी
जवाब देंहटाएंमैं भी कभी किसी एग्रिगेटर पर पोस्ट पढने नहीं जाता। ना ही हमें इनकी उठा-पटक का कोई अनुभव है। चाहे कोई धांधली करे या ना करे।
ब्लॉग रजिस्ट्रर्ड करके छोड देता हूँ। मेरे ब्लॉग की फीड ले तो इनकी मरजी ना ले तो अपने बाप का क्या जाता है।
प्रणाम
आपकी इस पोस्ट पर हमारी वाणी के जरिये ही पहुंचा हूँ
जवाब देंहटाएंयह तथ्य है कि हमारी वाणी के चलते ही मेरा कम्प्यूटर
जबरदस्त वाईरस अटैक का शिकार हुआ था ,गूगल ने रेड
कार्नर नोटिस जारी कर दी थी ...घबरा कर मैंने उसके विजेट
को हटा दिया ,,
मैथिली और सिरिल जी ने बिना आर्थिक प्रत्याशा के हिन्दी ब्लागिंग में जो अवदान
ब्लागवाणी के माध्यम से दिया उसकी सानी नहीं है ..मुझे दुःख है कि उसके लिए इस
पोस्ट में धोखेबाजी आदि का विशेषण दिया गया है ,हमें तो उनका कृतज्ञ होना चाहिए ..
अब हर व्यक्ति या संगठन की एक विचारधारा होती ही है ,उसके विरुद्ध की प्रवृत्तियों को
वह निश्चय ही हतोत्साहित करेगा ....और उन्होंने किया तो ठीक किया ..
बाकी के लोग भी अजेंडे के साथ चेहरा छुपा छुपा के आ रहे हैं -कम से कम ब्लागवाणी के
बारे में यह तो पता था कि परदे के पीछे कौन लोग थे..
अब मुझे कोई बताये की चिट्ठाजगत और हमारी वाणी के पीछे कौन लोग हैं और उनका बैकग्राउंड क्या रहा है?
मैं तो केवल यह चाहता हूँ कि यह सुविधा सशुल्क हो ताकि हम अपनी शर्तों पर इस सुविधा का लाभ उठा सकें और आप द्वारा
इंगित बिन्दुओं की और भी संकलकों की जवाबदेही बन सके
पुरानी कहावत है दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते ..एक ओर तो हम मुफ्तखोर हैं दूसरी और लम्बी चौड़ी बाते करते हैं ..
... jo saahity ke kshetra men bhrashtaachaar ko badhaavaa de rahe hain unakaa virodh honaa hi chaahiye ... ranking roopi bhrashtaachaar abhee chitthaajagat men vyaapt hai yadi yah bhee sthaai taur par band ho jaataa hai to kisee chele ko dukhee nahee honaa chaahiye ... shaandaar charchaa !!!
जवाब देंहटाएंशिवम् जी की टिप्पणी से सहमत हूँ ....
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्र जी, मैं एक बात पुन: स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मुझे कहीं से भी यह नहीं लगत कि हम एग्रीगेटर के भरोसे जिन्दा हैं। हमारे ब्लॉगों पर 90 फीसदी से अधिक पाठक हमारे फॉलोअर, गूगल सर्च और हमारे कमेंट आदि के द्वारा आते हैं। दूसरी बात यह कि मेरे विचार से यहॉं पर दान की बढिया वाली कहावत भी सही नहीं बैठ रही है। क्योंकि दान लेने वाला व्यक्ति दान देने वाले व्यक्ति को बदले में कुछ नहीं देता है। जबकि ब्लॉगर एग्रीगेटर को प्रतिदिन कम से कम 5 विजिट देता ही देता है, साथ ही उसके नाम का बिल्ला अपने ब्लॉग पर प्रमुखता से लगाता है। (इसकी भी तो कोई कीमत होनी चाहिए) इसलिए मेरे विचार में यह दुतरफा चलने वाला व्यवहार है।
जवाब देंहटाएंआप एग्रीगेटर को पेड सुविधा के रूप में देख रहे हैं, यह आपका बडप्पन है। पर मुझे लगता है कि यह बात एग्रीगेटर्स को भी पता है कि पेड सुविधा लेने वाले कितने लोग होंगे। यदि ऐसा न होता, तो एग्रीगेटर अब तक यह सुविधा अवश्य ही लागू कर चुके होते।
जारी
आपकी इस बात से भी सहमत हुआ जा सकता है कि यदि ब्लॉगवाणी किसी विचारधारा के ब्लॉग को अपने यहॉं नहीं आने देना चाह रहा है, तो यह उसका विशेषाधिकार है (हालॉंकि इस तरह की बातें भी आज के जमाने में लोग पचा नहीं पाते हैं)। इस नजरिए से सुमन जी को रोकना जायज है। लेकिन पाबला जी को क्यों शिकार बनना पडा, यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही। क्या उनकी भी कोई विचारधारा है, तो उन्हें उसका शिकार होना पड़ा। मेरे विचार से यही वह बिन्दु था, जिसने ब्लॉगवाणी के विरूद्ध माहौल बनाने में प्रमुख योगदान दिया।
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जवाब देंहटाएंबहुत खेद जनक लेख लिखा है आपने रजनीश भाई !
एग्रीगेटर की आप मदद नहीं लेते चूंकि आप एक स्थापित ब्लागर हैं फिर आपको ऐसी क्या जरूरत पड़ गयी जिस कारण निशुल्क सेवा देने वालों को भी गालिया और अपशब्द प्रयोग कर रहे हैं !
आप इन्हें प्रयोग नहीं करते तो इन बेचारों को गालियाँ क्यों जाकिर भाई ??
इनका उपयोग एक नवोदित ब्लागर से पूँछिये उसके लिए इसका क्या महत्व है
जाकिर जी, बड़ा अच्छा आलेख है। मुझे तो हिन्दीवाणी पर पोस्ट कैसे करें समझ नहीं आता। क्या यह स्वत: पोस्ट नहीं लेता जैसे ब्लागवाणी लेता था। क्योंकि मैंने पंजीकरण भी किया लेकिन मुझे अपनी पोस्ट दिखायी नहीं दी तो मैंने देखना बन्द कर दिया।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सतीश जी, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैंने एग्रीगेटरों को कौन सी गाली दी है। क्या किसी की त्रुटियों को रेखांकित करना और उससे सुधार का आग्रह करना गाली है?
जवाब देंहटाएंआदरणीया अजित जी, क्या आप हमारीवाणी की बात कर रही हैं। यदि हॉं, तो वहां पर पहले आपको अपना एकाउंट बनाना होगा, उसमें अपने ब्लॉग जोडने होंगे। उसके बाद उसकी जावा स्क्रिप्ट अपने ब्लॉग में जोडने होगी।
जवाब देंहटाएंआप के इस लेख से कुछ जानने को भी मिला!
जवाब देंहटाएंएग्रीगेशन की लाईन में सोच-समझकर आना चाहिए। उस तरह नहीं,जिस तरह कई ब्लॉगर चले आते हैं कि जब चाहा उग आए,जब चाहा नेपथ्य में चले गए। मैं समझता हूं कि एग्रीगेटर को यह तय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह किस ब्लॉग को अपने प्लेटफार्म पर ले और किसे नहीं। जिस प्रकार गूगल बगैर यह विचार किए आपको मुफ्त का स्पेस दे रहा है कि आप किस विचारधारा से जुड़े हैं,उसी प्रकार एग्रीगेटरों को भी हर ब्लॉग के रजिस्टर होते ही अपने प्लेटफार्म पर लेना सुनिश्चित करना चाहिए क्योंकि किस ब्लॉग पर क्या उचित है,क्या अनुचित-यह बहुत विवाद और बहस का विषय है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के वे खुर्राट आलोचक जो ... पूरे समूह के साथ अगले की बधिया उखाड़ने निकल पड़ते हैं और फोन पर प्रेशर बनवाकर मामला ठंडा होने के बाद भी पोस्ट पे पोस्ट लिखवाते हैं, वे ‘सजग’ और ‘प्रहरी’ ब्लॉगर ब्लॉगवाणी की ‘धूर्तता’ ... के मामले में बेहया बनकर न सिर्फ अपनी आँखों पर पट्टी और कानों में रूई खोंस लेते हैं
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण
सिर्फ टिप्पणी वाली पोस्ट ही केवल दिखती हैं, अन्य दो टैब कभी खुलती ही नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंहाँ यह होता है अक्सर, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता
हमने तो कई बार इनका भरपूर उपयोग किया है
अब यह संभव नहीं रह गया है कि एग्रीगेटर मुफ्त की सेवाओं का हवाला देकर किसी को अनुचित लाभ पहुँचाएं और किसी को जबरदस्ती नीचा दिखाऍं।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही
@ Arvind Mishra
जवाब देंहटाएंमुझे कोई बताये की चिट्ठाजगत और हमारी वाणी के पीछे कौन लोग हैं और उनका बैकग्राउंड क्या रहा है?
चिट्ठाजगत के पीछे मूलत: 3 व्यक्ति हैं
आलोक कुमार, विपुल जैन, कुलप्रीत (सर्व जी)
आलोक कुमार हिन्दी जाल जगत के आदि पुरूष कहलाते हैं। ये वही हैं जिन्होंने हिन्दी का पहला चिट्ठा "नौ दो ग्यारह" http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/ 2003 में लिखना शुरू किया और ब्लॉग को चिट्ठा कह कर पुकारा। वर्षों से ये अपनी वेबसाईट "देवनागरी॰नेट" द्वारा दुनिया को अन्तर्जाल पर हिन्दी पढ़ना व लिखना सिखाते आ रहे हैं।
2007 की शुरूआत में आलोक जी ने अपने चिट्ठाजगत की कल्पना को अपने मित्र विपुल जैन के समक्ष रखा और विपुल उनकी कल्पना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसको वास्तविक रूप देने की ठान ली। विपुल का अपना एक जाल स्थल "हि॰मस्टडाउनलोड्स॰कॉम" http://hi.mustdownloads.com/ है जहाँ से आप अनेक उपयोगी सॉफ्टवेयरों के नवीनतम संस्करण डाउनलोड कर सकते हैं।
इस कार्य में अहम मदद की कुलप्रीत सिंह ने। कुलप्रीत कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर में पीएचडी हैं और डबलिन, आयरलैंड में कार्यरत हैं। इन्होंने चिट्ठाजगत की संरचना को बनाने में विपुल की खास मदद की है। कुलप्रीत भारतीय बहुभाषीय जालस्थल "शून्य॰इन" के संस्थापक हैं। जहाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं में तकनीकी विषयों पर बहस की जाती है।
चिट्ठाजगत पर दिखने वाले विभिन्न ग्राफ़िक्स संजय बेंगाणी जी द्वारा प्रदत्त हैं
हमारीवाणी के बारे में कुछ बताना ज़ल्दबाजी होगी :-)
निशुल्क सेवा देने वालों को भी गालिया और अपशब्द
जवाब देंहटाएंहे!राम
@ सतीश सक्सेना
जवाब देंहटाएंइनका उपयोग एक नवोदित ब्लागर से पूँछिये उसके लिए इसका क्या महत्व है
जिस ब्लॉगर को यही पता नहीं होता कि टिप्पणी कैसे करें और पोस्ट कैसे करें उसे भला एग्रीगेटर का क्या पता। यह सब तो स्थापित ब्लॉगर बताता है :-)
हमारे ब्लॉगों पर 90 फीसदी से अधिक पाठक हमारे फॉलोअर, गूगल सर्च और हमारे कमेंट आदि के द्वारा आते हैं।...
जवाब देंहटाएंतो काहे परेशान होते हैं....
ब्लोग्वानी को बेहतर बानाने के बजाये उसकी टांग तोडना... जय हो....
जाकिर जी, बड़ा अच्छा आलेख है।
जवाब देंहटाएं@बी एस पाबला
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी के लिए शुक्रिया .
मुझे तो उस कर्मठ संकलक की प्रतीक्षा है जो निश्चित नियम के साथ इस कार्य को सशुल्क और उत्तरदायित्व के साथ करे ...
जाकिर भाई इस आलेख के माध्यम से जो कहना चाह रहे हैं , उसपर पूर्ण सहमति तो नहीं बन सकती किन्तु यह एक बहस का मुद्दा हो सकता है ! आलू किसी के लिए पथ्य तो किसी के लिए कुपथ्य होता है तो इसका मतलब यह नहीं की आलू खाना छोड़ दिया जाए ! ब्लोगवाणी के सन्दर्भ में ऐसी विवादित बातें मुझे अक्सर सुनने को मिलती थी, मगर चिट्ठाजगत के बारे में इस तरह की बातें आज पहली बार पढ़ रहा हूँ ! आप माने या न मानें चिट्ठाजगत नए ब्लोगरों के लिए संजीवनी का काम करता है, इसमें कोई संदेह नहीं ! वैसे पावला जी ने चिट्ठाजगत के प्रवंधकों का परिचय देकर जो जानकारी दी है वह मेरे विश्लेषण के लिए बड़े काम का है !
जवाब देंहटाएंsriman ji,
जवाब देंहटाएंblogvaani aggregrator pakshpaat poorn tarike se kary karta tha mujhe uske kary karne ki paddhati se mehsoos hua ki sri maithili babu purane sanghi karykarta hain jis tarah se sanghiyon se kisi acche kary ki umeed nahi ki ja sakti hai usi tarah blogvani se acche va pakshpaat rahit kary ki apeksha karna beimaani thi. delhi k ek blogger ne mujhse kaha tha kii agar koi post hit karani ho to main blogvaani k sanchalkon se keh doonga post hi ho jayegi. mere blog ko blogvaani ek aadh baar joda bhi aur turant hataya bhi hatane k peeche ubhone jo ek matr tark diya tha vah nirarthak va thotha tha kyonki meri tarah k hi blog any blog usse jude hue the.
chitthajagt mujhe shuru se pasand hai uska mukhy karan yah hai ki usmein blog jodne mein kisi prakaar ka bhedbhaav nahi kiya jata hai. chitthajagat k kisi bhi sanchalak se mera parichay na hone k baavjood bhi mujhe vah nispaksh mehsoos hota hai.
sadar
suman
loksangharsha.blogspot.com
सुमन जी की टिप्पणी का मशीनी अनुवाद:
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी,
ब्लोग्वानी अग्ग्रेग्रटर पक्षपात पूर्ण तरीके से कार्य करता था मुझे उसके कार्य करने की पद्धति से महसूस हुआ कि श्री मैथिलि बाबू पुराने संघी कार्यकर्त्ता हैं जिस तरह से संघियों से किसी अच्छे कार्य की उम्मीद नहीं की जा सकती है उसी तरह ब्लोग्वानी से अच्छे व पक्षपात रहित कार्य की अपेक्षा करना बेईमानी थी. दिल्ली के एक ब्लॉगर ने मुझसे कहा था की अगर कोई पोस्ट हिट करनी हो तो मैं ब्लोग्वानी क संचालकों से कह दूंगा पोस्ट ही हो जाएगी. मेरे ब्लॉग को ब्लोग्वानी एक आध बार जोड़ा भी और तुरंत हटाया भी। हटाने क पीछे उन्होमें जो एक मात्र तर्क दिया था वह निरर्थक व थोथा था क्योंकि मेरी तरह के अन्य कई ब्लॉग उससे जुड़े हुए थे.
चिट्ठाजगत मुझे शुरू से पसंद है उसका मुख्य कारण यह है की उसमें ब्लॉग जोड़ने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है.
चिट्ठाजगत क किसी भी संचालक से मेरा परिचय न होने क बावजूद भी मुझे वह निष्पक्ष महसूस होता है
सादर
सुमन
जिस तरह मैथिली जी को संघ की मानसिकता वाला बताया जा रहा है उसी तरह सुमन जी घोर असन्घीय मानसिकता के हैं और अतिवादी दृष्टिकोण के हैं ,मैं उनसे मिल चुका हूँ यद्यपि वे अपनी विचारधारा के समर्पित व्यक्ति हैं मगर चूकि अतिवादी हैं,एक खास विचारधारा की और उनका झुकाव रहता है इसलिए मैं दूर ही रहता हूँ ,पाबला जी की भी कोई निजी खुन्नस ब्लागवाणी से रही है यह ब्लागवाणी विरोधी वक्तव्यों का लगातार उनके द्वारा अनुसरण करने से साफ़ लग रहा है ....(उनसे क्षमा याचना सहित )
जवाब देंहटाएंसुमन जी ने नाईस के बजाय इतनी बड़ी टिप्पणी काफी समय बाद की है और संघी लोगों को कटघरे में खड़ा कर अपने निहितार्थ को स्पष्ट कर दिया है -मेरे लिए तो यह सब दुखद है .....
साफ़ है संकलकों के हिंदूवादी और गैर हिंदूवादी होने की अंतर्कथाएं और वैमनस्य हैं .....मगर कोई ब्लागवाणी से बड़ी वाणी बोल कर तो दिखाए :)
हा हा हा
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी, क्षमा याचना वाली कोई बात नहीं ।किस्से तो सभी जानते हैं। आपने कोई नई बात नहीं बताई है। ज़ाकिर जी ऊपर पोस्ट में इंगित भी कर चुके हैं इस बारे में
ब्लॉगवाणी को संघवादी बताने को मैं तो बेहूदा मानता हूँ, मैंने स्वयं ऐसे हजारों लेख देखें हैं जो संघी विचारधारा के बहुत अधिक विपरीत थे, काफी लोगो ने हो-हल्ला मचाया लेकिन इसके लिए उन लोगो ने कभी ऐसे ब्लॉग को ब्लाक नहीं किया.. इस तरह के आरोप लगाना बेहद निराशाजनक है...
जवाब देंहटाएंमैं तो अपने हिंदी ब्लोगिं सफ़र को ब्लॉगवाणी की ही देन मानता हूँ. मेरे जैसे कितने ही लोग ब्लॉगवाणी और चिटठा जगत के कारण इस हिंदी ब्लॉग जगत का हिस्सा बने हैं, खासतौर पर नए ब्लोग्गर्स के लिए तो यह वरदान सामान है.
जवाब देंहटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएंसुमन जी की एक बात पर तो प्रतिक्रियाएँ दिख रहीं, दूसरी बात पर कोई कसमसा नहीं रहा :-)
अच्छी पोस्ट और उतनी ही अच्छी टिप्पणियाँ, शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंब्लोगवाणी और चिट्ठा जगत के बिना ब्लोग्स पर पहुंचना थोड़ा मुश्किल हो रहा है ...बाकी की राजनीति क्या है नहीं जानती
जवाब देंहटाएंDr.Arvind mishra जी के मन्तव्य से सहमत।
जवाब देंहटाएंपाबला जी ने चिट्ठाजगत पर जो जानकारी उपल्ब्ध करवाई है, वह परिचय मैने कभी चिट्ठाजगत पर भी देखा है। यह एक जिम्मेदार एग्रीगेटर है।
जाकिर भाई,
चिट्ठाजगत के बारे में आपकी शिकायतें साधारण व्यक्तिगत सी नज़र आती है। आपके द्वारा प्रस्तूत यह विवेचन अन्य एग्रीगेटरो की कमी-बेशी दिखाकर(जबकी इनकी आपको आवश्यकता भी नहिं)कोई अलग ही निहितार्थ इंगित कर रहे है।
कहीं यह हमारीवाणी की तरफ आपका झुकाव तो नहिं, जबकी सबसे अधिक संदिग्ध हमारीवाणी ही दृष्टिगोचर हो रही है। सुचारू भी नहिं और परदे में भी है।
खैर अब मेरी मान्यता में एग्रीगेटर की आवश्यक्ता:
अब हिंदी ब्लॉग जगत में प्रतिदिन हजारों पोस्ट लिखी जाती है, और हमारे द्वारा समर्थित होते है कुछेक ब्लॉग्स, यदि कहीं कोई भुला-बिसरा ब्लोगर या कोई नव-ब्लॉगर कोई अच्छा सा आलेख प्रस्तूत करता है तो हमारी जानकारी से निकल जाता है। ऐसी ही जानकारीयों के लिये उपयोगी है एग्रीगेटर।
लगता है सब के सब ब्लागर दिमाग को साईड में रखकर फिर पोस्ट पढने बैठते हैं/ या फिर लोगों के दिमाग में भूसा भरा है जो उन्हे कुछ समझ में ही नहीं आता/ रजनीश अली साहेब हम आपके इस पोस्ट के भाव बखूबी समझ रहे हैं/ आपका मकसद इस पोस्ट के जरिए सिर्फ हमारीवाणी और इंडली जैसे एग्रीगेटर्ज( जो कि शाहनवाज, अनवर जमाल, सलीम खान जैसे कुछ नापाक आंतकवादियों द्वारा संचालित हैं) के लिए माहौल बनाना यानि उनकी ओर ब्लागरों का ध्यानार्षण भर है/आपकी इस प्रकार की नौटंकियों को हम पिछले साल भर से देख देखकर बखूबी पहचानने लगे हैं/
जवाब देंहटाएंकभी इधर उधर से चुराई हुई झूठ्मूठ की कहानियाँ बना बनाकर अन्धविश्वास उन्मूलन के नाम पर आप हिन्दू धर्म की परम्पराओं, मान्यतओं को नष्ट करने का काम करते हैं तो कभी कुर्बानी जैसी गलीच इस्लामी प्रथाओं के बचाव की खातिर अल्ल बल्ल लिखने बैठ जाते हैं/ ओर आज ये ओर नई नौटंकी ले बैठे/मैं साफ शब्दों में कहता हूँ कि आप छुपे रूप में इन ब्लाग आतंकियों के मददगार और प्रोत्साहक है/
आप बात करते हैं ईमानदारी, निष्पक्षता की/ लेकिन जरा बताईये तो सही कि सुमन, सलीम खान जैसे आतंकियों का ब्लागिंग/साहित्य/हिन्दी के उत्थान में ऎसा क्या योगदान है कि आपके द्वारा इन लोगों को पुरूस्कृत किया गया/
"समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को
जवाब देंहटाएं"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
()”"”() ,*
( ‘o’ ) ,***
=(,,)=(”‘)<-***
(”"),,,(”") “**
Roses 4 u…
MERRY CHRISTMAS to U…
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण पर ब्लॉगर महानुभावों का सही चिंतन ।
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई आपने बहुत सही विश्लेषण किया है
जवाब देंहटाएंआपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ
-
-
पाबला जी से काफी अच्छी जानकारी मिली
-
आभार
बहुत ही विश्लेषणात्मक पोस्ट है. बधाई
जवाब देंहटाएंफिर सुनाओ यार वो लम्बी कहानी
जाकिर भाई अच्छा विश्लेषण किया है आपने इन चिठ्ठों का...........
जवाब देंहटाएंफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम, आप सबके कमेंट्स के लिए धन्यवाद कि आपने मेरी बातों को गम्भीरता से लिया। लेकिन मुझे अफसोस है कि मैंने जिस उद्देश्य से यह पोस्ट लिखी थी, वह फिर भी पूरा न हो सका। तो अब आते हैं पोस्ट के कारण नं0 एक पर। पोस्ट को लिखने का उद्देश्य नं0 01 था चिट्ठाजगत की सक्रियता सूची से लगातार 'तस्लीम' और 'साइंस ब्लॉगर असोसिएशन' का गायब रहना। ये दोनों सामुहिक ब्लॉग हैं और लेखन तथा पठन के मामले में बेहद नियमित हैं। तस्लीम के सम्बंध में मैं आंकड़े ऊपर दे चुका हूँ। मेरे पास चिट्ठागजत की सक्रियता सूची के लगातार टॉप में रहने वाले 10 ब्लॉग के सक्रियता आंकड़ें हैं, उन्हें देखने के बाद ही मैंने यह लिखने की हिमाकत की थी। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर क्यों इतने पठित होने के बावजूद 'तस्लीम' और 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' को वहॉं पर जगह नहीं मिल रही है, जबकि उससे 50 गुना कम पढ़े जाने वाले ब्लॉग उस लिस्ट में लगातार बने हुए हैं। पाबला जी के पास अगर इस बात का उत्तर हो, तो कृपया अवश्य बताएं।
जवाब देंहटाएंपोस्ट को लिखने का कारण नं0 02 था पिछले दिनों रवीन्द्र प्रभात द्वारा ब्लॉग विश्लेषण पर जानबूझकर अमरेन्द्र द्वारा मचाया गया बवाल और उसके निपटने के बाद सतीष पंचम से लिखवाई गयी पोस्ट। उसमें सम्मानों के बहाने बहुत कुछ कहा गया था। ऐसी बेसिरपैर की बातें 'संवाद सम्मान' के समय भी कही गयी थीं, जो मुझे बेहद बुरी लगीं। मुझे उन्हें पढकर गुस्सा इसलिए भी आया कि जब आप एक व्यक्ति के कार्यों के बारे में इतनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हो, तो फिर एक सिस्टम (ब्लॉगवाणी) के पक्षपात के बारे में आप क्यों चुप रह जाते हो। मैंने अपना यह आवेश अपनी पोस्ट में व्यक्त भी किया था, लेकिन फिरभी लोग उसे समझ नहीं पाए।
जवाब देंहटाएंयदि पोस्ट को लिखने के पीछे कारण नं0 3 के रूप में इंडली और हमारीवाणी को प्रमोट करना भी जोड़ लिया जाए, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि जब दो ठीक-ठाक एग्रीगेटर मौजूद हैं, तो उनकी उपस्थिति को जानबूझकर निगलेक्ट करने का कारण मुझे समझ में नहीं आता। ये एग्रीगेटर भी हिन्दी ब्लॉग को प्रोत्साहन दे रहे हैं, ये फ्री भी हैं और ब्लॉग रजिस्ट्रेशन में नखरे भी नहीं दिखाते हैं। हॉं, यदि आपको इनकी कुछ वृहत कमियां नजर आई हों, तो उन्हें अवश्य सामने रखें। ताकि इनके व्यवस्थापकों से उन्हें दूर करने का अनुरोध किया जा सके।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुज्ञ जी, जबसे मैंने मांसाहार सम्बंधी पोस्ट लिखी है, मेरे बारे में आपकी सोच काफी शंकालुपूर्ण नजर आने लगी है। मैं अपने बारे में बता देना चाहता हूँ कि बेहद स्पष्ट और खरी खरी कहने वाला आदमी हूँ। न तो पीठ पीछे आलोचना करता हूं और न ही शंकालुपूर्ण लोगों से सम्बंध रखना पसंद करता हूँ। यदि आपको मेरे बारे में कोई आशंका हो, तो स्पष्ट और साफ साफ लिखें, आपकी बातों का उत्तर देकर मुझे प्रसन्नता होगी।
जवाब देंहटाएंऔर हॉं, अनर्गल प्रलाप करने वाले लोगों की बातों का जवाब भी दिया जाए, यह मैं उचित नहीं समझता।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
जवाब देंहटाएंआखिर क्यों इतने पठित होने के बावजूद 'तस्लीम' और 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन' को वहॉं पर जगह नहीं मिल रही है, जबकि उससे 50 गुना कम पढ़े जाने वाले ब्लॉग उस लिस्ट में लगातार बने हुए हैं। पाबला जी के पास अगर इस बात का उत्तर हो, तो कृपया अवश्य बताएं।
हा हा हा
अज़ीब स्थिति हो गई
मेरे द्वारा चिट्ठाजगत से जुड़ी जानकारी देने के बाद अब आपके इस प्रश्न का उत्तर मुझसे चाहे की आकांक्षा से अनायास ही आपने एक अफ़वाह को जनम दे दिया कि चिट्ठाजगत से मेरा जुड़ाव है। क्या गज़ब कर दिया आपने!?
अब बताईए? जिस प्रश्न का उत्तर तलाशते खुद मुझे अरसा हो गया उसका क्या ज़वाब दूँ? ऐसा ही वहाँ 'सबसे ज़्यादा ईमेल किए गए चिट्ठे' वाली सूची में था। जिन ब्लॉगों में अंतिम लेख को वर्षों हो गए, वे भी उस सूची में दिखते थे।
आपका कार्य प्रशंसनीय है, साधुवाद !
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लॉग पर आजकल दिया जा रहा है
बिन पेंदी का लोटा सम्मान ....आईयेगा जरूर
पता है -
http://mangalaayatan.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html
जाकिर सा :
जवाब देंहटाएंआपने विद्र्हीस्वर पर विचार दिए,धन्यवाद .एग्रेगेटर के सम्बन्ध में आपके विचार अच्छे हैं ,मैं भी सहमत हूँ .मैं खुद भी krantiswar .blogspot .com पर ढोंग -पाखंड का विरोध करता रहता हूँ.
पाबला जी, मुझे लगा शायद आप इसका जवाब दे पाऍं।
जवाब देंहटाएंवैसे कुछ चीजें हमेशा अनुत्तरित ही रह जाती हैं। एग्रीगेटरों का स्वभाव भी ऐसा ही लगता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह सिर्फ एग्रीगेटरों की आलोचना है। मेरा मानना है कि यदि किसी सिस्टम में कहीं कोई कमी है, तो उसकी पडताल की जाए और उसे दूर करने का प्रयत्न किया जाए। अन्यथा इतनी कलम घिसाई का मतलब ही क्या रह जाता है।
bahut badhiya,
जवाब देंहटाएंmujhe to in sab bato ke bare me jankari hi nahi thi.
ज़ाकिर अली ‘रजनीश@आपकी इमानदारी से किया गया विश्लेषण बहुत काम का है. जाकिर साहब यह एग्रीगेटर चलता कौन है? यादे कोई ब्लोगर तो उसका भी कोई समूह होगा, उसकी भी किसी से नाराज़गी होगी.. ऐसे बहुत से कारण हुआ करते हैं जिसमें बहुत कुछ ग़लत हो सकता है.
जवाब देंहटाएंवैसे एग्रीगेटर का इस्तेमाल ही लोग ग़लत करते हैं. आप का ब्लॉग लोगों तक पहुंचे ,यह मकसद न होना हे झाद्गे का जड़ होता है..
सच्चे बादशाह की शान में गुस्ताख़ियां होती रहीं और सच जानने वाले कुछ लोग बुरे बनने के डर से दम साधे बैठे रहे , ज़ाकिर साहब भी उनमें से एक हैं , यह देखकर मेरे दिल में आपकी इमेज एक बुज़दिल पिछलग्गू की बन गई थी लेकिन जब शाकाहार पर आपकी मशहूर पोस्ट पढ़ी तो लगा कि शायद आप से चूक हो गई है लेकिन आज फिर मैं यह देख रहा हूँ कि आपने बिना लाग लपेट के ऐसी बातें भी कह दी हैं जो कि आदरणीय मिश्रा जी को नागवार गुजर रही हैं लेकिन आप के लहजे में झुकने का कोई चिन्ह तक नज़र नहीं आ रहा है ।
जवाब देंहटाएंयह मेरे लिए एक अप्रत्याशित घटना है । मैं जो सोचता हूँ वही लिखता हूँ और ऐसा ही करना भी चाहिए ।
खैर आप पहले से ही ऐसे हैं और मेरा अंदाजा ग़लत था या अब आपका मिजाज बदल रहा है मैं नहीं जानता लेकिन यह बात सही है कि आपकी पोस्ट की ज्यादातर बातें सही हैं ।
ब्लागवाणी अगर जारी थी तो इसलिए कि उसके ज़रिये एक ख़ास तरह की माइंड मेकिंग की जा रही थी । उसका मिशन प्रथमदृष्टया ही उजागर न हो जाए इसके लिए उसके प्रबंधक उन लोगों को भी रजिस्ट्रेशन दे देते थे जो उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ होते थे लेकिन अल्प मात्रा में । उनकी आवाज़ नक़्क़ारख़ाने में तूती की तरह दब कर रह जाया करती थी ।
उनसे इसलाम की जानकारी देने वाले ब्लाग्स का रजिस्ट्रेशन लेना तो उससे भी ज़्यादा दुष्कर था जितना कि विष्णु जी और ब्रह्मा जी के लिए शिव जी का ज्योतिर्लिँग नापना या नारद जी का विवाह करना ।
मेरे ब्लाग को, 'वेद कुरआन' को भी शायद वे मुग़ालते मेँ ही रजिस्टर्ड कर बैठे , सोचा होगा कि शायद अनवर जमाल बादशाह अकबर की तरह दोनों की शिक्षाएं फेंटकर कोई नया जुगाड़ पेश करेगा । उन्होंने मुझे तुरंत रजिस्ट्रेशन दिया और मेरी पोस्ट को खुद ही उठाकर अपनी साइट पर पेश भी कर दिया । फिर एक एक करके सच जानते और बताने वाले दूसरे लोग भी आ गए ।
झूठ के प्रचारकों ने वावेला मचाया कि सच बोलने वाले और सच्चे रब की , इक ओंकार की शान में बदतमीज़ी करने वालों को जवाब देने वालों को गेट आउट करो लेकिन शायद अब उनकी आत्मा जाग उठी थी । लोगों ने लाख वावेला किया लेकिन उन्होंने मेरा पंजीकरण रद्द नहीं किया तब लोगों ने उसे गालियाँ भी दीं और यह धमकी भी कि अगर अनवर जमाल का और दूसरे सच के अलमबरदारों का पंजीकरण रद्द नहीं करते तो फिर हमारा पंजीकरण रद्द कर दो ।
जब उसने इनके हालात ऐसे निराशाजनक देखे तो उसने अपना विरोध करने वाले इन महान चिंतकों के होश ठिकाने लगाने के लिए खुद को शहीद कर लिया ।
या कह लें कि ब्लागवाणी सो गई । वह वापस आएगी लेकिन अभी नहीं । अभी आपको थोड़ा समय और इंतजार करना होगा ।
मैं ब्लागरवाणी का शुक्रगुज़ार हूँ कि न तो वह ग़ुल ग़पाड़ा मचाने वाले लौंडो के सामने झुकी और न ही समझदारी का मास्क लगाए घाघ बुड्ढों के सामने ।
ब्लागवाणी ने यह साबित कर दिया है कि एक चुप सौ को हराता है । ब्लागवाणी ने खुद को खामोश कर लिया और बंदर घुड़की देने वाले सैकड़ों को ऐसा सबक सिखा दिया कि अब जिंदगी में भी ये किसी एग्रीगेटर को धमकाने की जुर्रत न करेंगे ।
हमारी वाणी का विजेट मेरे ब्लाग पर शुरू से ही लगा है लेकिन आज तक कोई परेशानी नहीं आई । हमारी वाणी के खिलाफ बोलने का मकसद यह था कि ...
आपको पता तो है फिर बताना क्या ?
इसका अच्छा जवाब दिया गया है आज
blogbukhar.blogspot.com
पर ।
जो उसे देखने जाए वह उस कीमती पोस्ट का लिंक यहाँ भी उपलब्ध कराए ।
बिना किसी से क्षमा के सादर !
सच्चे बादशाह की शान में गुस्ताख़ियां होती रहीं और सच जानने वाले कुछ लोग बुरे बनने के डर से दम साधे बैठे रहे , ज़ाकिर साहब भी उनमें से एक हैं , यह देखकर मेरे दिल में आपकी इमेज एक बुज़दिल पिछलग्गू की बन गई थी लेकिन जब शाकाहार पर आपकी मशहूर पोस्ट पढ़ी तो लगा कि शायद आप से चूक हो गई है लेकिन आज फिर मैं यह देख रहा हूँ कि आपने बिना लाग लपेट के ऐसी बातें भी कह दी हैं जो कि आदरणीय मिश्रा जी को नागवार गुजर रही हैं लेकिन आप के लहजे में झुकने का कोई चिन्ह तक नज़र नहीं आ रहा है ।
जवाब देंहटाएंयह मेरे लिए एक अप्रत्याशित घटना है । मैं जो सोचता हूँ वही लिखता हूँ और ऐसा ही करना भी चाहिए ।
खैर आप पहले से ही ऐसे हैं और मेरा अंदाजा ग़लत था या अब आपका मिजाज बदल रहा है मैं नहीं जानता लेकिन यह बात सही है कि आपकी पोस्ट की ज्यादातर बातें सही हैं ।
ब्लागवाणी अगर जारी थी तो इसलिए कि उसके ज़रिये एक ख़ास तरह की माइंड मेकिंग की जा रही थी । उसका मिशन प्रथमदृष्टया ही उजागर न हो जाए इसके लिए उसके प्रबंधक उन लोगों को भी रजिस्ट्रेशन दे देते थे जो उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ होते थे लेकिन अल्प मात्रा में । उनकी आवाज़ नक़्क़ारख़ाने में तूती की तरह दब कर रह जाया करती थी ।
उनसे इसलाम की जानकारी देने वाले ब्लाग्स का रजिस्ट्रेशन लेना तो उससे भी ज़्यादा दुष्कर था जितना कि विष्णु जी और ब्रह्मा जी के लिए शिव जी का ज्योतिर्लिँग नापना या नारद जी का विवाह करना ।
मेरे ब्लाग को, 'वेद कुरआन' को भी शायद वे मुग़ालते मेँ ही रजिस्टर्ड कर बैठे , सोचा होगा कि शायद अनवर जमाल बादशाह अकबर की तरह दोनों की शिक्षाएं फेंटकर कोई नया जुगाड़ पेश करेगा । उन्होंने मुझे तुरंत रजिस्ट्रेशन दिया और मेरी पोस्ट को खुद ही उठाकर अपनी साइट पर पेश भी कर दिया । फिर एक एक करके सच जानते और बताने वाले दूसरे लोग भी आ गए ।
झूठ के प्रचारकों ने वावेला मचाया कि सच बोलने वाले और सच्चे रब की , इक ओंकार की शान में बदतमीज़ी करने वालों को जवाब देने वालों को गेट आउट करो लेकिन शायद अब उनकी आत्मा जाग उठी थी । लोगों ने लाख वावेला किया लेकिन उन्होंने मेरा पंजीकरण रद्द नहीं किया तब लोगों ने उसे गालियाँ भी दीं और यह धमकी भी कि अगर अनवर जमाल का और दूसरे सच के अलमबरदारों का पंजीकरण रद्द नहीं करते तो फिर हमारा पंजीकरण रद्द कर दो ।
जब उसने इनके हालात ऐसे निराशाजनक देखे तो उसने अपना विरोध करने वाले इन महान चिंतकों के होश ठिकाने लगाने के लिए खुद को शहीद कर लिया ।
या कह लें कि ब्लागवाणी सो गई । वह वापस आएगी लेकिन अभी नहीं । अभी आपको थोड़ा समय और इंतजार करना होगा ।
मैं ब्लागरवाणी का शुक्रगुज़ार हूँ कि न तो वह ग़ुल ग़पाड़ा मचाने वाले लौंडो के सामने झुकी और न ही समझदारी का मास्क लगाए घाघ बुड्ढों के सामने ।
ब्लागवाणी ने यह साबित कर दिया है कि एक चुप सौ को हराता है । ब्लागवाणी ने खुद को खामोश कर लिया और बंदर घुड़की देने वाले सैकड़ों को ऐसा सबक सिखा दिया कि अब जिंदगी में भी ये किसी एग्रीगेटर को धमकाने की जुर्रत न करेंगे ।
हमारी वाणी का विजेट मेरे ब्लाग पर शुरू से ही लगा है लेकिन आज तक कोई परेशानी नहीं आई । हमारी वाणी के खिलाफ बोलने का मकसद यह था कि ...
आपको पता तो है फिर बताना क्या ?
इसका अच्छा जवाब दिया गया है आज
blogbukhar.blogspot.com
पर ।
जो उसे देखने जाए वह उस कीमती पोस्ट का लिंक यहाँ भी उपलब्ध कराए ।
बिना किसी से क्षमा के सादर !
सभी ब्लागर्स से एक सार्वजनिक विनति
जवाब देंहटाएंबेशक हरेक के अपने अपने सरोकार होते हैं जो कि अलग अलग होते हैं लेकिन कुछ सरोकार साझा होते हैं जैसे कि शिक्षा सेहत रोजगार विकास और सुरक्षा और इन सबकी बुनियाद है अमन ।
साझा सरोकार के लिए साझा कोशिशें ज़रूरी हैं ।
इतनी सुंदर पोस्ट ब्लाग जगत को देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
मैं चाहता हूं कि आप इस ब्लाग को हिंदी के उन तमाम एग्रीगेटर्स पर जोड़ दें जिनका ज़िक्र आज
blogbukhar.blogspot.com
पर किया गया है ।
मेरे ब्लागअहसास की पर्तें की पोस्ट पर कमेंट देने के लिए शुक्रिया ।
बंधुवर जाक़िर साहब,
जवाब देंहटाएं@जबसे मैंने मांसाहार सम्बंधी पोस्ट लिखी है, मेरे बारे में आपकी सोच काफी शंकालुपूर्ण नजर आने लगी है।
>> यह सच है, और आज तक मुझे समझ न आया कि जब आप अनावश्यक मांसाहार नहीं करते तो आपको उसके समर्थन की आवश्यकता क्यों आन पडी। और वह भी किसी के अपमान की कीमत पर।
@मैं अपने बारे में बता देना चाहता हूँ कि बेहद स्पष्ट और खरी खरी कहने वाला आदमी हूँ। न तो पीठ पीछे आलोचना करता हूं
>> साहस से आप खरी खरी कर पाते हैं तो प्रशसनीय है।
@और न ही शंकालुपूर्ण लोगों से सम्बंध रखना पसंद करता हूँ।
>> कोई आपको विवश नहीं कर रहा आप शंकालु लोगों से सम्बंध रखें।
@यदि आपको मेरे बारे में कोई आशंका हो, तो स्पष्ट और साफ साफ लिखें, आपकी बातों का उत्तर देकर मुझे प्रसन्नता होगी।
>> मैने जहाँ जहाँ जो भी बात रखी है, साफ साफ ही रखी है। जो मेरा मत या मंतव्य था।
मैं विचारधारा विरोध करता हूँ, व्यक्ति विरोध नहीं।
@और हॉं, अनर्गल प्रलाप करने वाले लोगों की बातों का जवाब भी दिया जाए, यह मैं उचित नहीं समझता।
>> मैने कही भी अनर्गल प्रलाप नहीं किया है। और अगर कहीं आप को लगा हो तो बेशक आप उसका जवाब न दें। कोई जरूरी नहीं।
अच्छा आलेख !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
अनवर जी, आपकी बहुत सी बातें मेरी समझ से परे हैं। खैर अपनी-अपनी समझ अपनी-अपनी सोच।
जवाब देंहटाएंजहॉं तक अरविंद मिश्र जी की बात है, विज्ञान संचार के क्षेत्र में उनका योगदान किसी से छिपा नहीं है। वे अपने दम पर पचासों लोगों को इस क्षे्त्र में लेकर आए हैं, मैं भी उनमें से एक हूँ। इस नाते मैं उनकी इज्जत करता हूँ, इसमें पिछलग्गू जैसी कोई बात नहीं।
एक व्यक्ति के तौर पर मैं अपनी स्वतंत्र विचारधारा रखता हूँ, और जो बातें मुझे सही नहीं लगती हैं, मैं उनके बारे में अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार भी रखता हूँ। और यह बात मैंने अरविंद जी से ही सीखी है।
सुज्ञ जी, मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ। मुझे मालूम है कि आप एक भले आदमी हैं, इसलिए मैं आपसे जुड़ाव (हर सम्भव हद तक) रखना चाहता हूँ।
जवाब देंहटाएंमैंने मांसाहार सम्बंधी पोस्ट में सिर्फ उसके सच को सामने रखा है। मैं मांसाहार नहीं करता हूँ, यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन इसके साथ ही साथ यह भी सच है कि मैं मांसाहार को गलत नहीं मानता हूँ। और यह एक व्यवहारिक सत्य भी है, जिससे ऑंखें नहीं मूँदी जानी चाहिए। यदि यह गलत होता, तो मैं अपने बच्चों और बीवी को इसके लिए अवश्य मना करता और कभी भी उन्हें लाकर न देता। जहॉं तक उस पोस्ट के लिखने की बात है, तो मैंने उसे इसलिए लिखा था, क्योंकि मुझे लग रहा था कि मांसाहार के बारे मं तर्कहीन बातें की जा रही हैं।
@ DR. ANWER JAMAL
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी वापस आएगी लेकिन अभी नहीं । अभी आपको थोड़ा समय और इंतजार करना होगा ।
बिल्कुल सही आकलन है आपका!
मेरा भी यह मानना है कि ब्लॉगवाणी वापस आएगी लेकिन एक घोषणा के लिए वह रूकी हुई है :-)
एक दिन मेरी इस बात को याद कीजिएगा
ज़ाकिर जी, मेरी ताज़ातरीन पोस्ट को स्थान देने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंआप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंज़ाक़िर साहब,
जवाब देंहटाएंआपके उल्लेख के संदर्भ में निश्चित ही आहार की पसंद नापसंद एक व्यक्तिगत निर्णय है। इसे व्यक्तिगत ही रहना चाहिए। और उसे सार्वजनिकता से कोई फर्क न पडना चाहिए।
@क्योंकि मुझे लग रहा था कि मांसाहार के बारे मं तर्कहीन बातें की जा रही हैं।
यही तो बात है, आपका प्रस्तुतिकरण भी तो तर्कसंगत नहीं था। एक बुराई को उससे भी बडी बुराई दिखाकर तर्कसंगत या न्यायसंगत तो नहीं ठहराया जा सकता? बस इसी तरह के तर्क आपसे अपेक्षित नहीं थे।
सुज्ञ जी, आप मांसाहार को बुराई के रूप में देख रहे हैं, जबकि वह भारत ही नहीं विश्व के सर्वाधिक मनुष्यों के जीवन का आधार है।
जवाब देंहटाएंयह भी ज़ाक़िर साहब, उसी तरह का तर्क है……
जवाब देंहटाएंयदि अधिसंख्य लोग जो कार्य करे उसे आंख बंद कर अनुकरणीय मान लेना चाहिये?
सुज्ञ जी, दुनिया के अधिसंख्य देश (चीन, जापान, सारे दक्षिण-पश्चिमी देश, सारे मुस्लिम देश. यूरोपियन देश, अमेरिका. दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ठन्डे मुल्क जैसे रशिया, स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, समुद्र तट पर बसे देश) मांसाहार के सहारे ही जिंदा हैं। इनके अलावा शेष देशों के 80 प्रतिशत से अधिक आबादी अपने भोजन में मांस को ज्यादा पसंद करती है। फिर हिन्दुस्तान में बैठे कुछ लोग यह कैसे तय कर सकते हैं कि मांस खाना गलत है? और उससे भी बड़ी यह बात कि उन्हें यह अधिकार किसने प्रदान किया?
जवाब देंहटाएंइसलिए मेरी समझ में इस विषय पर स्वयं को सही और दूसरे को गलत कहने का अधिकार किसी को नहीं है। जिसकी जो मर्जी हो खाए, हमें उससे क्या फर्क पड़ता है?
और जहॉं तक अधिसंख्य की बात है, तो हम प्रजातंत्र में विश्वास करते हैं। और प्रजातंत्र में भी बहुमत का फैसला मान्य होता है। :)
@फिर हिन्दुस्तान में बैठे कुछ लोग यह कैसे तय कर सकते हैं कि मांस खाना गलत है? और उससे भी बड़ी यह बात कि उन्हें यह अधिकार किसने प्रदान किया?
जवाब देंहटाएंजाक़िर साहब,
इतने देशों के लिये कौन निति-निर्धारण करने बैठा है? मांस खांने को अगर गलत कहने का अधिकार किसने प्रदान किया तो महाशय, यह अधिकार भी किसने दिया कि आप इसे पूरी दुनिया के लिये योग्य कहें। न्याय तो समान लागु होता है।
मेरे इस प्रश्न…
"अधिसंख्य लोग जो कार्य करे उसे आंख बंद कर अनुकरणीय मान लेना चाहिये?"
के लिए आपका जवाब्…
हम प्रजातंत्र में विश्वास करते हैं। और प्रजातंत्र में भी बहुमत का फैसला मान्य होता है। :)
यही विचार-भेद है,हम अधिकतर बुरे काम इसी बहाने ही तो करते है……कहते भी है न…"अधिकंश भ्रष्ट है, अतः हमें भी हाथ साफ कर लेना चाहिए।
जय हो!! अनाचार का लोकतंत्र?
सुज्ञ जी, मुझे डेल कार्नेगी की याद आ रही है- 'बहस के द्वारा सबसे अच्छा परिणाम प्राप्त करने का तरीका ही यही है कि बहस न की जाए।'
जवाब देंहटाएंसचमुच, जिस व्यक्ति का माइंस सेटअप जिस प्रकार से हो जाता है, उसे उसके अलावा सारी बातें गलत नजर आती हैं। इसलिए इस बारे में अब कुछ और नहीं कहना चाहता। हॉं, अगर मेरी बातों से आपको कोई कष्ट पहुंचा हो, तो उसक लिए क्षमा चाहता हूँ।
बहुत ही खोजी और मजेदार विश्लेषण ... लाजवाब ....आपको और आपके पूरे परिवार को नव वर्ष की बहुत बहुत badhai ...
जवाब देंहटाएंज़ाक़िर साहब,
जवाब देंहटाएंमैं भी इस चर्चा का अब यहाँ पटाक्षेप चाहता हूँ। मै बहस नहीं कहता, इसे चर्चा कहता हूँ। इस निष्कर्ष से सहमत हूँ कि जिसका जो माइंड-सैट होता उसी अनुसार व्यवहार करता है।
मुझे इस चर्चा से कोई कष्ट नहीं पहूँचा मित्र, आपने जो महसुस किया था, मैने अपना साफ दृष्टिकोण धर दिया। आपकी प्रेरणा से ही हमने विषय से हटकर चर्चा की है। और आपके द्वारा संशय पूछ लेना मुझे भी अच्छा लगा।
हर सम्वाद से कुछ न कुछ तो निकल कर आता ही है। इस सार्थक चर्चा के लिये आभार!!
इस समय के जितने वर्किंग अग्रीग्रेटर हैं उन्हें मुझे सिर्फ इन्डली ही पसंद है.
जवाब देंहटाएंउसके अलावा मेरा ब्लॉग सिर्फ ब्लॉग अड्डा और इंडीब्लोगर के अलावा कहीं भी रजिस्टर नहीं है ,उसके बावजूद ठीक ठाक पाठक आते हैं.इसलिए मुझे अग्रीग्रेटरों के लिए कोई खास मोह नहीं है.'भारत पर्यटन 'पर टिप्पणी चाहे कम या न आये लेकिन गूगल से आने वाले पाठक बहुत हैं अभी तक ४७ पोस्ट ही लिखी हैं वहाँ और औसतन प्रतिदिन ५० से अधिक पाठक आते हैं ..मुझे तो इतने से ही संतोष है.
-कोई अग्रीग्रेटर न हो तो भी अपने लिए कोई समस्या नहीं !
अग्रीगाटर के बारे में जानकारी देने के लिए शुक्रिया आपका ... पर आजकल मेरे ब्लॉग से एक भी नहीं खुल रहा .. पता नहीं क्यूँ ..
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
aapki is post se kai jaankaaria mili .aapki aabhari hoon ,nav barsh ki badhai .uttam .
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने वाले 95% से अधिक लोग किसी भी अग्रीगेटर से नहीं आते हैं.. जब ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत सुचारू रूप से चल रहे थे तब भी 80% से अधिक लोग उन दोनों से ना आकर कहीं और से टपकते थे.. मैं अमूमन किसी भी ब्लॉग पर इन दोनों अग्रीगेटर से नहीं जाता था.. सो मैं भी आँख मूँद कर कह सकता हूँ कि मुझे उनकी कोई जरूरत नहीं है.. मगर फिर भी मैं ये नहीं कहूँगा, क्योंकि जब मैं खुद एक नया ब्लोगर था तो लगभग साल भर तक 80% से अधिक रीडर मुझे इसी दोनों अग्रीगेटर और नारद से मिले थे..
जवाब देंहटाएंआप किसी भी नए ब्लोगर से पूछें कि उनके ब्लॉग पर कितने लोग और कहाँ से आते हैं? मुझे अधिकाँश नए ब्लॉग का पता चिट्ठाजगत के ईमेल से ही मिलता था और मैं उन ब्लॉग को अपने रीडर से जोड़ लिया करता था जो मुझे अच्छे लगते थे..
चिट्ठाजगत में एक और खामी है जो उसे ब्लोग्वाणी के सामने उसे बौना बनाती थी.. पता नहीं अभी तक किसी भी ब्लोगर ने उस ओर ध्यान क्यों नहीं दिलाया? मुझे कई "मस्तराम" टाइप ब्लॉग चिट्ठाजगत पर जुड़े हुए मिले थे..
हमारे यहाँ हिंदी ब्लोगर तो किसी ब्लॉग के अच्छे लेख को प्रोमोट करने में भी पता नहीं कंजूसी क्यों दिखाते हैं? अगर लोग खुले दिल से ऐसा करेंगे तो भला क्यों जरूरत होगी किसी भी नए या पुराने ब्लोगर को किसी भी अग्रीगेटर की?
मैं आजकल अपने नए पोस्ट का प्रचार फेसबुक से करता हूँ.. आपलोग भी किसी नए तरीके से अपने ब्लॉग को लोगों तक पहुंचाने का उपाय कर ही लें, कम से कम किसी एक पर निर्भरता ठीक नहीं है.. एक गया तो दूसरा, दूसरा गया तो तीसरा.......
A beautiful , useful and honest post !
जवाब देंहटाएंWhich came first? chicken or the egg
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