पिछले दिनों सांसदों द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पूछने वाले सांसदों के गायब हो जाने से जन सामान्य के बीच यह बह...
पिछले दिनों सांसदों द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रश्न पूछने वाले सांसदों के गायब हो जाने से जन सामान्य के बीच यह बहस चल पडी है कि आखिर सांसदों को किस बात की तनख्वाह दी जाती है? और यदि वे अपने काम को ठीक ढ़ग से नहीं कर रहे हैं, तो क्या उनकी तनख्वाह काटी जा सकती है या उन्हें कोई सज़ा दी जा सकती है?
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब न तो किसी प्रदेश की विधानसभा के पास है न ही संसद के पास और न ही लॉ एण्ड जस्टिस विभाग के पास। यानी कि मा0 विधायक और और सांसद किस बात के लिए लाखों रूपये तनख्वाह के रूप में लेते हैं, भारतीय संविधान में इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है।
इस सवाल को सबसे पहले उठाने का श्रेय आर0टाई0आई0 एक्टीविस्ट देवा आशीष भटटाचार्य हो जाता है, जो जनता के बीच उनके अधिकारों के लिए काम करते हैं। उन्होंने देश की सभी विधानसभाओं, संसद और चुनाव आयोग से यह सवाल सूचना के अधिकार के तहत पूछा था लेकिन कोई भी उन्हें इस बात का जवाब नहीं दे सका है।
चुनाव आयोग का इस बारे में कहना है कि लोकसभा की कार्यवाही चलाने वाले नियमों में कहीं भी सांसदों की डयूटी या दायित्वों का उल्लेख नहीं है। न ही यह पता लगाया जा सकता है कि अगर कोई सांसद काम नहीं कर रहा है या गलत ढंग के कर रहा है, तो उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की जा सकती है। यही हाल िदल्ली, केरल, मेघायल, अरूणांचल प्रदेश, बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, गोवा, राजस्थान आदि विधान सभाओं का भी है।
अगर देश की राजधानी दिल्ली का उदाहरण लिया जाए तो एक विधायक को प्रतिमाह लगभग 34 हजार रूपये तनख्वाह के रूप में मिलते हैं, जबकि एक मंत्री का वेतन लगभग 42 हजार रूपये है। ध्यातव्य है कि इस खर्च में कार्यालय, कार, ड्राइवर, सुरक्षा आदि के खर्चे शामिल नहीं हैं। यदि इन सारे खर्चों को भी इसमें जोड़ दिया जाए, तो यह राशि 6 लाख के आसपास जा पहुंचती है। इसी प्रकार सामान्य रूप से एक सांसद पर आमतौर से एक लाख रूपये का खर्च आता है, लेकिन यदि इसमें सांसद से जुड़े अन्य खर्चे भी जोड़ दिये जाएं, तो यह खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
इस तरह से देख जाए तो जनता के टैक्स से वसूला गया अरबों रूपया सरकार प्रतिमाह अपने विधायकों, सांसदों और मंत्रियों पर खर्च करती है। लेकिन अगर जनता के चुने हुए ये प्रतिनिधि ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो भी न तो सरकार इन खर्चों से किसी तरह की कटौती कर सकती है और न ही उनपर कोई पेनाल्टी लगा सकती है।
इन सारी स्थितियों को देखने के बाद आप या तो खीझ कर अपने सर के बाल नोच सकते हैं या फिर इतना ही कह सकते हैं- इटस हैपेन ओनली इन इंडिया।
इसके अलावा आपके पास कोई विकल्प हो तो हमें ज़रूर बताएँ। इसके लिए हम आपके ह़दय से आभारी होंगे। keywords: mp salary, mp salary package, Salary Slip of an Indian MP, Pay and expenses for MPs, Salaries of Indian MPs, what is the salary of prime minister, madhya pradesh pension, mp salary in ap, mp salary 2013, mp salary history, mp salary comparison, mp salary increase
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब न तो किसी प्रदेश की विधानसभा के पास है न ही संसद के पास और न ही लॉ एण्ड जस्टिस विभाग के पास। यानी कि मा0 विधायक और और सांसद किस बात के लिए लाखों रूपये तनख्वाह के रूप में लेते हैं, भारतीय संविधान में इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है।
इस सवाल को सबसे पहले उठाने का श्रेय आर0टाई0आई0 एक्टीविस्ट देवा आशीष भटटाचार्य हो जाता है, जो जनता के बीच उनके अधिकारों के लिए काम करते हैं। उन्होंने देश की सभी विधानसभाओं, संसद और चुनाव आयोग से यह सवाल सूचना के अधिकार के तहत पूछा था लेकिन कोई भी उन्हें इस बात का जवाब नहीं दे सका है।
चुनाव आयोग का इस बारे में कहना है कि लोकसभा की कार्यवाही चलाने वाले नियमों में कहीं भी सांसदों की डयूटी या दायित्वों का उल्लेख नहीं है। न ही यह पता लगाया जा सकता है कि अगर कोई सांसद काम नहीं कर रहा है या गलत ढंग के कर रहा है, तो उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की जा सकती है। यही हाल िदल्ली, केरल, मेघायल, अरूणांचल प्रदेश, बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, गोवा, राजस्थान आदि विधान सभाओं का भी है।
अगर देश की राजधानी दिल्ली का उदाहरण लिया जाए तो एक विधायक को प्रतिमाह लगभग 34 हजार रूपये तनख्वाह के रूप में मिलते हैं, जबकि एक मंत्री का वेतन लगभग 42 हजार रूपये है। ध्यातव्य है कि इस खर्च में कार्यालय, कार, ड्राइवर, सुरक्षा आदि के खर्चे शामिल नहीं हैं। यदि इन सारे खर्चों को भी इसमें जोड़ दिया जाए, तो यह राशि 6 लाख के आसपास जा पहुंचती है। इसी प्रकार सामान्य रूप से एक सांसद पर आमतौर से एक लाख रूपये का खर्च आता है, लेकिन यदि इसमें सांसद से जुड़े अन्य खर्चे भी जोड़ दिये जाएं, तो यह खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
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इन सारी स्थितियों को देखने के बाद आप या तो खीझ कर अपने सर के बाल नोच सकते हैं या फिर इतना ही कह सकते हैं- इटस हैपेन ओनली इन इंडिया।
इसके अलावा आपके पास कोई विकल्प हो तो हमें ज़रूर बताएँ। इसके लिए हम आपके ह़दय से आभारी होंगे। keywords: mp salary, mp salary package, Salary Slip of an Indian MP, Pay and expenses for MPs, Salaries of Indian MPs, what is the salary of prime minister, madhya pradesh pension, mp salary in ap, mp salary 2013, mp salary history, mp salary comparison, mp salary increase
इस लेख में बताई गई सांसदों और विधायकों कि यह आमदनी तो एक नंबर की आमदनी है जबकि दो नंबर की अकूत आमदनी अलग से होती है।
जवाब देंहटाएंआपलोगों को पता नहीं तो मुझसे पूछिए न .. भविष्य में आनेवाले और चुनावों के खर्च और मेहनत के लिए उन्हें वेतन दिया जाता है .. और ऊपरी आमदनी भी वे इसलिए करते हैं .. ताकि भविष्य में वर्षों तक कभी भी कोई भी चुनाव हो .. पीढी दर पीढी उनके बच्चों को टिकट लेने के लिए .. प्रचार करने के लिए और हेलीकॉप्टर के खर्चे के लिए कोई दिक्कत ना हो .. उनके बच्चों के लिए पूरा बैंक बैलेंस बना रहना जरूरी है न .. उनकी जबाबदेही को आप क्या समझेंगे .. उस स्तर तक पहुंचकर तो देखिए .. तब समझ में आएगा .. हमलोग कलम चलानेवाले उनकी तकलीफ को क्या समझेंगे ??
जवाब देंहटाएंइसी बात की तो तन्खा लेते है.. सबको मुर्ख बना कर रखने की...
जवाब देंहटाएंअपनी जिम्मेदारियां निभाने के।
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा-हा, मेरे दिल की बात कह दी, ये तनख्वाह किस बात की लेते है हरामखोर , घोर आश्चर्य !
जवाब देंहटाएंयह तो उन्हें भी नहीं पता :)
जवाब देंहटाएंवोट खरीदने में जो खर्चा किया है,
जवाब देंहटाएंउसी को वसूल रहे हैं।
बोनस तो कई गुना कमीशन के रूप में
मिल ही जाता है!
पाँचों उंगली घी में हैं जी!
आपने बहुत ही बढ़िया और सही लिखा है! हम सब वोट देते हैं पर देखा जाए तो नेता पैसे लूटने में लगे रहते हैं और चारों तरफ़ घोटाला नज़र आता है! इस समाधान का हल कब निकलेगा पता नहीं!
जवाब देंहटाएंरोचक किंतु इसके लिए क्या संगीता पुरी जी ज्योतिषीय आँकलन से बताएँगी कि भारत में इस तरह की धाँधलियाँ कब तक चलती रहेंगी?
जवाब देंहटाएंअजी कहिये न..मेरा भारत महान....!!!
जवाब देंहटाएंइसका समाधान है मेरे पास. या फिर पाँच साल तक वोट डालने का इन्तज़ार कीजिये या खुद चुनाव लड़िये. जब तक अपराधी,गुन्डे देश की राजनीति को एक कैरियर के रूप में अपनाते रहेंगे और हम जैसे बुद्धिजीवी बाहर बैठकर उनको गालियाँ देते रहेंगे तब तक यही होगा. हम जैसों को राजनीति में घुसना होगा. मैं तैयार हूँ. सही समय की प्रतीक्षा है. अब आप कहिये क्या ख्याल है?
जवाब देंहटाएंइन सारी स्थितियों को देखने के बाद
जवाब देंहटाएंखीझ कर
अपने सर के बाल नोच कर
इतना ही कह सकते हैं-
इटस हैपेन ओनली इन इंडिया ।
कोई विकल्प nahi hai.
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne