काले धन को लेकर बाबा रामदेव की सत्याग्रह की धमकी, सरकार के साथ डीलिंग, आंदोलन वापसी की चिट्ठी, आर0एस0एस0 के बैक डोर समर्थन की खबर, और ...
काले धन को लेकर बाबा रामदेव की सत्याग्रह की धमकी, सरकार के साथ डीलिंग, आंदोलन वापसी की चिट्ठी, आर0एस0एस0 के बैक डोर समर्थन की खबर, और अंत में पुलिसिया बर्बरता। पूरा देश इस सबसे स्तब्ध है, आश्चर्यचकित है।
इस घटना के बाद इसे भावनात्मक रंग देने की कोशिशें की जा रही हैं। हवा में राष्ट्रीय शोक, जलियांवाला बाग, डायर जैसे बड़े बडे़ शब्द गूंज रहे हैं असहमति में उठने वाली हर आवाज को बेशर्मी की हद तक कुचल देने के जज्बे के साथ। जबकि सत्य यह है कि शनिवार की रात वहां परजो कुछ हुआ, उसे बढा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। लखनऊ के चर्चित साहित्यकार और सांस्कृतिककर्मी मुद्राराक्षस के अनुसार उन्होंने वहां फोन करके पता किया है। वहां पर न तो किसी की हड्डी टूटी है और न ही कोई गंभीर रूप से घायल हुआ है। केवल लोगों की सहानुभूति अर्जित करने के लिए यह नाटक किया जा रहा है। मुद्राराक्षस के अनुसार इस घटना की भगत सिंह की शहादत या जलियांवाला बाग से तुलना करना हास्यास्पद है। यह उन शहीदों का अपमान है, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान की।
यह सत्य है कि बाबाजी ने जिस तरह से ये आंदोलन शुरू किया, वह निहायत ही गलत था। न तो उन्होंने आंदोलन के लिए प्रशासन को सूचना दी थी और न ही उसके लिए उचित जगह का चुनाव किया था। सत्य यह भी है कि बाबाजी ने डीलिंग करने की कोशिश की, जो सामने उनसे भी शातिर लोगों के होने के कारण सम्भव नहीं हो सकी। सत्य यह भी है कि सरकार इस विषय पर कुछ नहीं करना चाहती क्योंकि जिस काले धन की बात हो रही है, उसमें कांग्रेस के लोगों का धन भी शामिल है। और सत्य यह भी है कि जिस तरीके से दमनपूर्वक पुलिस ने आंदोलनकारियों को वहां से खदेड़ा वह शर्मनाक है और इसकी आलोचना की जानी चाहिए।
लेकिन माफ कीजिए बाबा रामदेव जी, ये अन्तिम सत्य नहीं हैं। सत्य इससे भी बड़े-बड़े हैं। और जिस सत्य की बात रामदेव जी कर रहे हैं, उससे जुडा और बड़ा सत्य यह है कि जितना पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उससे कहीं ज्यादा पैसा हमारे देश के साधु-सन्यासियों, बाबा-औलियाओं, मन्दिर-मस्जिदो, सिद्ध स्थानों और मजारों में जमा है। यह पैसा कितना है, कुछ नहीं कहा जा सकता। सम्भवत: 100 गुना, 1000 गुना या उससे भी ज्यादा। उस पैसे का क्या होता, कहां जाता है, किन कामों में इस्तेमाल में लाया जाता है, किसी को कुछ नहीं पता। फिर उसे काला धन क्यों नहीं कहा जाना चाहिए? उस धन को सरकारी कब्जे में क्यों नहीं लिया जाना चाहिए? जबकि विदेशों में जमा धन की तुलना में लाना और पता लगाना आसान है। तब बाबाजी इस 'महा काले धन' की ओर ध्यान क्यों नहीं देते हैं, वे इसे अपने एजेंडे में शामिल क्यों नहीं करते हैं?
जैसी कि आशंका व्यक्त जी रही थी, अंतत: यह साफ हो ही गया कि बाबाजी उतने भोले भी नहीं हैं, जितना कि वे दिखाने की कोशिश करते हैं। उनके इस सत्याग्रह को लेकर पहले से ही कहा जा रहा थ कि इसमें आर0एस0एस0 का हाथ है। वह बाबा के बहाने सत्तासुख प्राप्त करने का ड्रामा कर रहा है। और लीजिए सुबह होते-होते 'बियांड हेडलाइन्स' ने यह बता दिया है कि बाबाजी के दिल में आर0एस0एस0 के प्रति कितना प्रेम है। वे उसकी राजनैतिक इकाई भाजपा को मार्च 2009 में ग्यारह लाख रूपये दान में दे चुके हैं। ध्यान रहे यह बाबा का अपना पैसा नहीं था, यह पैसा जनता से सामाजिक कार्यों के लिए चंदा के रूप में लिया गया था। और बाबा जी ने चंदे के पैसे को चंदे में दे दिया। आखिर क्यों ? और क्या बाबाजी को उस पैसे को चंदे में देने का अधिकार था?
अंत में एक महत्वपूर्ण बात। मेरी समझ से इस देश की जनता इतनी बेवकूफ भी नहीं है। पर्दे के पीछे चलने वाला कोई भी खेल अच्छी नियत से नहीं देखा जाता है। और इसमें कोई दो-राय नहीं कि बाबाजी ने इस नाटक के पर्दे के पीछे भी बहुत सारे खेल खेलने की कोशिश की है। आखिर क्यों?
यहा पे ये प्रश्न भी पूछा जाना चाहिए कि जो व्यक्ति योग नामक राष्ट्रीय ज्ञान को मोटी फीस लेकर सिखाता है, उसे क्या भ्रष्टाचार पर बात करने का अधिकार है।
जवाब देंहटाएंअनुभव सिन्हा, फिरोजाबाद।
Main aapki baat se 100% sahmat huun. main to yah baat shuru se hi kah raha bhuun ki is sare khel ke pichhe RSS, Vishav Hindu Parishad, Bajrangdal aur BJP ka haath hai. Film "Guide" ki tarah unhon ne Baba ko apane jaal mein phans liya tha. Baba to anshan chhorana chahata tha, lekin unke yah saathi unhen anshan chhorane nahin dena chaahate the.
जवाब देंहटाएंन बाबा कम और न सरकार!
जवाब देंहटाएंमुद्राराक्षस जी की बात से मैं भी सहमत हूँ.जब तक मजार पर चादर और मंदिर में प्रशाद चढाना जारी रहेगा तब तक आर्थिक भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा.पहले धार्मिक भ्रष्टाचार दूर कीजिये तभी आर्थिक भ्रष्टाचार दूर हो सकता है.
जवाब देंहटाएं@ काला धन, बाबा रामदेव, सत्याग्रह, आर.एस.एस., कांग्रेसी दमन, राष्ट्रीय शोक और उससे भी बड़ा सवाल?
जवाब देंहटाएंहाँ सबसे बड़ा सवाल………यह भ्रष्टाचार का विरोधी भगवा बाबा सन्यासी ही क्यों है??
असल में सही बात कोई भी सुनना नहीं चाहता.कल फेसबुक पर बहुत तमाशा देखा लोग जाने क्या क्या कहे जा रहे थे.
जवाब देंहटाएंएक धार्मिक व्यक्ति जो सार्वजनिक मंचों से सत्य और छल छद्म से दूर रहने की शिक्षा देता है उसे योग शिविर के नाम पर लिये गए मैदान में अनशन करने की क्या ज़रूरत थी क्या सच बोलकर अनशन के लिये मैदान नहीं लिया जा सकता था?और क्यों महिलाओं के सलवार सूट में गिरफ्तारी से बचने के लिये बाहर निकलने की कोशिश की?प्रश्न यह भी है कि उन्होंने क्यों सरकार को लिखी अपनी चिट्ठी पहले सार्वजनिक नहीं की?
जनता को यह सब समझने की बहुत ज़रूरत है.
भ्रष्टाचार आज हम सबकी नस नस में बसा हुआ है यदि हम सब खुद को सुधार लें तो किसी अनशन या क़ानून की आवश्यकता नहीं रहेगी.
सादर
आजकल सबके अपने अपने मंच हैं ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंMr. Zhakir, your thinking is corrupt & rotten. It is not about Hindus & Muslims. It is about corrupt politicians. Stop slipping in your personal agendas to fight Hindus. We all Indians are one and SHOULD & will remain united. Until fools like you go around writing such irresponsible articles. You, DigVijay, Sonia and her family are manifestation of what British Raj left behind. Divide and Rule! Thanks to all of you for taking India where it is today!
जवाब देंहटाएंबेनामी ने कहा…
जवाब देंहटाएंMr. Zhakir, your thinking is corrupt & rotten. It is not about Hindus & Muslims. It is about corrupt politicians. Stop slipping in your personal agendas to fight Hindus. We all Indians are one and SHOULD & will remain united. Until fools like you go around writing such irresponsible articles. You, DigVijay, Sonia and her family are manifestation of what British Raj left behind. Divide and Rule! Thanks to all of you for taking India where it is today!
....i agree.
बेनामी जी, जब आपमे सामने आपकर बात कहने का साहस ही नहीं है, तो फिर आपसे बात करना व्यर्थ है।
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, बिना पोस्ट पढ़े कमेंट देना उचित मुददे को भटकाना है। पहले पोस्ट पढ़े, फिर कमेंट करें।
जवाब देंहटाएंमैं भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूं और देश में व्याप्त सबसे बड़े भ्रष्टाचार 'धार्मिक भ्रष्टाचार' को मुददे से छोड देने की बात कर रहा हूं। लेकिन तमाम लोग उसमें सहूलियत देखते हैं, इसलिए उसपर कुछ नहीं बोलते। क्यों? क्या इसलिए कि वे स्वयं उसमें शामिल होते हैं?
शरीर को निरोग रखने के लिए सबसे पहले बडी बीमारी का इलाज किया जाना चाहिए। क्योंकि धार्मिक भ्रष्टाचार की आड में सामाजिक भ्रष्टाचार भी पनपता है और उसे पनपाने में बाबा लोगों का बहुत बडा योगदान होता है।
अरे हाँ लोगों का सरकारी धार्मिक भ्रष्टाचार पर तो ध्यान ही नहीं जा रहा? आपने सही इंगित किया है सरकारें स्वयं महनत की कमाई को हज़ आदि धार्मिक आयोजनों पर अनुदान देना धार्मिक भ्रष्टाचार ही तो है धार्मिक शिक्षण संस्थाएं अस्पताल आदि को अनुदान वह भी सरकार की तरफ से धार्मिक भ्रष्टाचार।
जवाब देंहटाएंआपने सही भ्रष्टाचार प्रकाशित किया।
बडे बड़े दान- जकात भ्रष्टाचार ही तो है? अन्यथा फिर सामाजिक सरकारी भ्रष्टाचार को दान का तमगा ही क्यों न दे दें।
कोई किसी से कम नहीं है....
जवाब देंहटाएंप्रेम रस
सुज्ञ जी, जब आप जैसा व्यक्ति भी एकांगी दृष्टिकोण रखने लगे, तो फिर किसी से क्या उम्मीद की जाए ?
जवाब देंहटाएंइस देश की जनता को अंगर मंदिरों, मजारों और बाबाओं के गर्भगृहों में जमा अकूत बेनामी सम्पत्ति जो अय्याशी और अनाचार में उपयोग में लाई जाती है, में अगर कोई बुराई नजर नहीं आती है, तो फिर उसका भ्रष्टाचार राग अलापना व्यर्थ है। यह ठीक उसी तरह ही है जैसे गुड खाए गुलगुलों से परहेज।
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार के धन से योग के पांच हजार टिकट खरीदना गलत नहीं है, भ्रष्टाचार के पैसों से मंदिरों, मजारों पर चढावे चढाना गलत नहीं है। क्यों? क्योंकि उसमें हम सब लिप्त हैं ? यह वैचारिक दोगलापन है। इससे निपटे बिना भ्रष्टाचार की लडाई किसी मुकाम तक नहीं पहुंचने वाली।
Bahut zaruri lekh. Janta ko har pahlu ki jaankari hona zaruri hai.
जवाब देंहटाएंजाकिर साहब,
जवाब देंहटाएंलोगों से दान प्राप्त कर पीर फ़क़ीर बाबाओं की अय्याशी और अनाचार के मैं भी खिलाफ हूँ। भले दान देने वाले स्वेच्छा ही क्यों न दे। किन्तु उनके कर्मों की करनी को 'धार्मिक' शब्द से धर्म को बदनाम करने का भी मेरा विरोध है।
और वर्तमान लड़ाई सार्वजनिक भ्रष्टाचार की हो रही है तब मुद्दे को उलझाने के लिये धार्मिक? भ्रष्टाचार का सवाल उछालना कहां तक इमानदार है।
ऐसा नही लगता इस बहस में हम सब असल मुद्दा जो विदेशों में जमा काले धन का है ... वो खोते जा रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंयही तो सरकार चाहती है और हम ऐसे चालबाज नेताओं कर ट्रेप में आ जाते है हर बार ...
मंदिर, मज़ारों में जमा धन का मुद्दा सबको एकमत नही कर सकते क्योंकि आस्था की बातें बीच में आ जाती हैं ... पर विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा तो आस्था से जुड़ा प्रश्न नही .... फिर क्यों न इस मुद्दे पर सब एक साथ आएँ ... पहल चाहे कोई भी क्यों ना करे ....
सुज्ञ जी, काला धन, काला होता है, चाहे वह नेता का हो या धर्म का चोला पहने व्यक्ति का। भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार होता है, चाहे वह नेता करे अथवा पुजारी या मौलवी। इस भ्रष्टाचार को धार्मिक न कहें, तो फिर क्या कहें? और इसे सार्वजनिक न कहें तो फिर क्या कहें? इस बारे में आप ही बेहतर बता सकते हैं।
जवाब देंहटाएंऔर अगर हम बीमारी के इलाज की बात कर रहे हैं, तो फिर उसके समग्र इलाज की बात क्यों नहीं कर सकते? यह मुददे से भटकाना कैसे हुआ? और यह ईमानदारी की बात भी क्यों नहीं हुई ?
अगर आपको लगता है कि धर्म से जुड़े स्थलों में जमा अकूत धन को सरकारी धन नहीं घोषित किया जा सकता, अगर आपको लगता है कि धर्म से जुड़े लोगों को मिलने वाले गुप्तदान के बारे में जनता को जानने का कोई अधिकार नहीं है, तो भी यह नियम तो बनाया ही जा सकता है कि सभी धार्मिक संस्थाओं को मिलने वाली धनराशि का रिकार्ड रखने और उसके आय-व्यय को रजिस्टर में दर्ज (दान देने वाले के नाम पते सहित) करने का नियम तो बनाया ही जा सकता है। इसमें भला क्या आपत्ति हो सकती है? लेकिन ऐसा भी तभी होगा, जब सरकार पर इसके लिए भी दबाव डाला जाएगा। और यह काम विदेश में जमा काले धन के लिए चलने वाले आंदोलन के साथ जोडा जाना चाहिए। मेरा स्पष्ट मत है कि जब तक यह नहीं किया जाएगा, भ्रष्टाचार को नहीं मिटाना सम्भव नहीं होगा।
इसमें कोई शक नहीं है कि मंदिरों और मज़ारों पर चढ़ावे में जो धन संपत्ति दान दी जाती है उसे वहाँ के ज़्यादातर व्यवस्थापक लोकसेवा में लगाने के बजाय अपनी ऐशो इशरत में ख़र्च करते हैं और यह सरासर धार्मिक भ्रष्टाचार है । इसे दूर करना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि विदेशों में जमा काले धन का राष्ट्रीयकरण करना।
जवाब देंहटाएं...और यह काम बाबा के बस का है नहीं ।
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जवाब देंहटाएंमुझे तो शब्दों कि सीमा में रहने के लिए कह गये आप. लेकिन क्या आप का लेख एक तरफ़ा नहीं नहीं. क्या आप किसी का विरोध नहीं करते . रजनीश जी , मंदिरों या मस्जिदों में जो धन पड़ा हैं वो काला नहीं हैं. वो धन दान में दिया गया हा. लेकिन नेतावो के पास जो धन हैं उस भारतीय खजाने से चुराया गया धन हैं.
जवाब देंहटाएंअरे बाबा राम देव गलत हो या सही, R S S के हों या किसी भी पार्टी के हो. कम से कम भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज तो उठाई , और ऐसी आवाज कि पूरी दुनिया को सुनाई दी.
yaha sab 1 se hai....koi kisi se kam nahi hai
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जवाब देंहटाएंगिरि जी, नेता लोग मंदिरों मजारों पर दान में धन दें तो काला नहीं, लेकिन स्विस बैंक में रखदें तो ब्लैक मनी? यह कैसी एकांगी सोच है?
जवाब देंहटाएंकाला धन, काला ही होता है, चाहे वह किसी मंदिर अथवा मजार में जमा किया गया हो, अथवा किसी विदेशी बैंक में। इसलिए जबतक समग्र काले धन के बारे में विचार नहीं किया जाता, इस तरह के आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा आलेख है यह!
जवाब देंहटाएंएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
अभी तो चुनावों में काफी वक्त है.
जवाब देंहटाएं१ -काले धन के साथ धार्मिक भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाना चाहिए , मंदिरों,मस्जिदों,चर्चों व बाबाओं के पर आये अकूत धन को जब्त करना चाहिए पर ये भी तो करना सरकार को ही है और सेकुलर(?) सरकार मंदिरों पर तो हाथ मार लेगी पर क्या इसमें चर्च पर हाथ डालने की हिम्मत है ?
जवाब देंहटाएं२- संघ का भ्रष्टाचार के खिलाफ आना क्यों सबको पच नहीं रहा समझ से परे है क्या संघ वाले इस देश के नहीं ? क्या बढ़ी हुई महंगाई संघ के सदस्यों की जेब पर कोई असर नहीं डालती ? क्या संघ सदस्यों द्वारा भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना उनका मौलिक अधिकार नहीं ?
संघ का नाम लेकर सरकार इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को सेकुलर बनाम कम्युनल घोषित कर इसकी दिशा मोड़ना चाहती है |
धार्मिक स्थलों पर आने वाले दान व उसके दुरुपयोग से मैं अपने बचपन से खिलाफ हूँ ,पर सरकार भी तो इसके लिए कोई कानून बनाये ताकि इस धन पर नजर रखी जा सके | जब तक इसे रोकने के लिए कोई कानून नहीं बनेगा तब तक इसे काला धन कैसे कहे क्योंकि सरकारी नियम दान लेने की इजाजत ही नहीं देते बल्कि दान देने वाले को आयकर में छुट भी देती है इसलिए इसके लिए भी हमारे सरकारी नियम दोषी है इन्हें बदला जाना चाहिए |
जवाब देंहटाएंपर ये कभी होगा नहीं क्योंकि हमारी आदत भी तो धर्म के आधार पर वोट देने की है | कौन राजनैतिक दल इसके खिलाफ कड़ा कानून बनाकर वोट बैंक खोना चाहेगा |
रतन जी, संघ का इस आंदोलन से जुडना गलत नहीं है, पर उसका पर्दे के पीछे से संचालन गलत है। संघ ने गलत तरीके से रामदेव का इस्तेमाल किया है, यह गलत है। आखिर संघ को अथवा रामदेव को किस बात का डर था एक दूसरे का खुलकर समर्थन लेने अथवा देने में। यह भी एक तरह का 'भ्रष्ट' आचार है।
जवाब देंहटाएंजितना पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उससे कहीं ज्यादा पैसा हमारे देश के साधु-सन्यासियों, बाबा-औलियाओं, मन्दिर-मस्जिदो, सिद्ध स्थानों और मजारों में जमा है।
जवाब देंहटाएंबाबा ये नही सोचते कि जब सरकार अपने देश मे काला धन रखने वालों के खिलाफ कुछ नही कर सकती तो विदेशों मे रखे के लिये क्या करेगी। ये धार्मिक भ्रष्टाचार ही पहले खत्म होना चाहिये। सरकारी टैक्स दिये बिना इतना बडा साम्राज्य 10 सालों मे ऐसे ही नही खडा हो गया। लेकि हम अपनी धार्मिक आस्था के चलते इन लोगों की तरफ से आँखें मूँद लेते हैं। शायद सुशमा स्वराज इस तमाशे को जान गयी थी तभी तो बाबा के आँसूयों पर खूब ठुमके लगे।ुअब तो नेपाली बाबो की[बालकिशन] की ज्क़रूर जाँच होनी चाहिये जिसने अपना झूठा प्रमाण पत्र दे कर इतनी दौलत इकट्ठी की। मेरे प[अस अगर कोई इनाम होता तो इस आलेख पर जरूर देती। सही आंकलन किया है।शुभकामनायें\
आदरणीया निर्मला जी, आपने लेख की मूल भावना को समझा और सराहा, यही मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम है। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख! मेरा तो ये मानना है कि सब एक से बढ़कर एक है! कोई किसीसे कम नहीं इसलिए किसको क्या कहें!
जवाब देंहटाएंज़ाकिर जी सच यह भी नही है कि वहां कुछ नहीं हुआ है| किसी की हड्डी टूटती या मौत होती तभी कुछ होता ऐसा सोचना भी गलत है| जहाँ तक सवाल बाबा के आंदोलन का है उसका समर्थक मैं भी नहीं| भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर केन्द्र सरकार का रवैया भी आश्चर्यजनक है लेकिन इन सबके बीच रामलीला मैदान में आधी रात को केन्द्र सरकार ने जिस तरह बलपूर्वक लोगों को हटाया उसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता| लोकतान्त्रिक समाज में अगर शांतिपूर्ण विरोध को इस तरह कुचला जाएगा तो फिर उस व्यवस्था के दरअसल कोई मायने नहीं हैं| यहाँ सवाल बाबा रामदेव का नहीं है, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण वो मुद्दे हैं जिसे उन्होंने उठाया है या कहें कि जिसको लेकर वह सत्याग्रह कर रहे थे| यह सच है कि बाबा का एजेंडा स्पष्ट नहीं था | एक साथ आप कई सारे मांगों को लेकर बैठ जायेंगे तो यह भी उचित नहीं है और फिर सिर्फ़ हल्ला करने से समस्याओं का सामाधान निकलता तो हम सब मिलकर हल्ला ही करते| रही बात बेवजह तूल देने की तो सवाल जब लोकतान्त्रिक मूल्यों के हनन का हो तो क्या चुप बैठा जा सकता है? और वैसे भी कोई कुछ बोल कहाँ रहा है| अखबार पलटिए, चैनलों को खंगालिये तो कहीं भी समीक्षात्मक रिपोर्ट नहीं मिलेगी| अखबारों ने सम्पादकीय लिखने की ज़रूरत भी नहीं समझी तो फिर बोल कौन रहा है? आम आदमी को अपनी निजी जिंदगी की ज़द्दोजहद से छुटकारा कहाँ मिलता है जो इन सब विषयों पर सोचे? ये दुखद, हास्यास्पद और आश्चर्यजनक है कि जिस बाबा रामदेव को एक सुर से देश का समूचा मीडिया लाइव कवर कर रहा था वही मीडिया दिग्विजय सिंह के बेहूदे बयान को बार बार दिखा कर ऐसे दोगले नेताओं को बेवजह तवज्जो दे रहा है जबकि जो लोग भुक्तभोगी हुए उनकी बाईट नहीं आ रही| नाराजगी केवल मीडिया को लेकर नहीं है बल्कि मीडिया को लेकर भी है| जनता में अपना विश्वास खो चुकी इस सरकार को नैतिक तौर पर शासन करने का अधिकार नहीं है इसकी आलोचना कड़े शब्दों में होनी ही चाहिए|
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, आपको बधाई, आखिर किसी ने तो सच कहने की हिम्मत की नहीं तो सब बाबा की झूठी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं,
जवाब देंहटाएंसादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जाकिर अली जी पहली बात यह है की चाहे वो किसी भी पार्टी के हो य ना हो काम अच्छा कर रहे है !और रही बात जैसा की आपने कहा की स्विस बैंको में जमा पैसे की तो आपकी टिप्पणी यह धार्मिक स्थानों व स्विस बैंको में समानता बता रही है!जो ठीक नहीं है! और एक बात और की यदि केंद्र सरकार इतनी ही दूध की धूलि है !तो सुप्रीम कोर्ट के इतने आदेश के बाद भी उन लोगो के नाम क्यों नहीं खोले जो विदेशों में कला धन जमा किये हुए है!और यदि आप का कहना की कुछ पार्टियों की सहमति से ये हो रहा है !तो इसके लिए हम आपको बता दे की इसमें उन पार्टियों के लोगो के पैसे भी विदेशों से आने है जो आप के अनुसार उनके समर्थन में है! यदि विदेशों से काला धन वापिस आना है तो इसमें उन पार्टियों के लोगो के पैसे छुटने वाले नहीं है जो बाबा के समर्थन में है ! रही बात सत्याग्रह की बाबा ने वापिस क्यों लिया !तो यह जाने की की केंद्र सर्कार ने भी बाबा की एक कागज पर् सहमति लेना चाही की आप सत्याग्रह समाप्त कर रहे है! तो इस पर् बाबा ने स्वयम हस्ताक्षर ना करके बाल क्रिसन जी के हस्ताक्षर करवाए थे!और और जब सर्कार ने ये कहा की आपकी सआरी मागे मान ली गयी है तो !उन्होंने वह उपस्थित जनता से ये कहा था की अब हम अपना सत्याग्रह समाप्त कर सकते है क्यों की सर्कार ने हमारी मागे मान ली है !लेकिन जब बाबा ने सर्कार से यह सब लिखित रूप में माँगा तो सर्कार ने क्यों नहीं दिया !जिसके कारण सत्याग्रह जारी रखा गया! और अंत में की आप सर्कार को अच्छा कह रहे है जिनका बैकग्राउंड बहुत खराब है !और एक आदमी को बुरा कह रहे है ! जिसका बैकग्राउंड अच्छा है ! और में यही कहुगा की जनता सर्कार को हर चुनाव में देखती आ रही है !आखिर एक बार बाबा को भी देखे !
जवाब देंहटाएंसमजने वाले सायद समाज गए होगे !
परदे के पीछे रणनीति सर्कार बनाती बाबा लोग नहीं !
आप से ये उम्मीद ना थी !जाकिर जी
!मेरे ब्लॉग पर् भी आये आने के लिए यहाँ क्लिक करे -"SAMRAT BUNDELKHAND"
I agree with each of your point...
जवाब देंहटाएंtruth is in the name of fighting for corruption filthy politics is going on..
nobody is actually concerned about it in real sense.
गिरिजेश जी, वहां पर रात में जो कुछ हुआ, उसकी भर्त्सना तो मैं भी कर रहा हूं। पर मैंने यह कहा कि जो कुछ हुआ उसे बढा चढा कर पेश किया जा रहा है। बाबा जी आंदोलन कम नौटंकी ज्यादा कर रहे थे। उसके तमाम प्रमाण हैं। पहला उनको आरएसएस का पूर्ण समर्थन था, यह बात उन्होंने खुलकर क्यों नहीं बताई? (हो सकता है कि आपके लिए यह कोई मुद्दा न हो, पर देश की काफी जनता के लिए यह बहुत बडा मुद्दा है और उन सबको बाबाजी ने धोखा दिया है) जब उन्हें अनशन करना था, तो उन्होंने उसकी बाकायदा अनुमति क्यों नहीं ली? (सत्याग्रह के लिए भी असत्य का सहारा?) अगर सरकार ने उनसे डरा धमकाकर पत्र लिखवा लिया गया था, तो होटल से बाहर आते ही उन्होंने सरकार की उस हरकत को क्यों नहीं बताया? अपने समर्थकों को क्यों नहीं बताया? (क्या इसका मतलब ये नहीं कि वे पर्दे के पीछे से वास्तव में डीलिंग कर रहे थे?) और अगर माना कि जान बचाने के लिए उन्हें महिला के कपडे पहनने पडे, तो वे कपडे वे दूसरे दिन तक क्यों पहने रहे? (ताकि लोगों की भावनाओं को भडका कर उसका फायदा उठाया जा सके? माफ करना भाई, ये सत्याग्रहियों के लक्षण नहीं हैं।) जाहिर सी बात है कि इन सबके पीछे सोच बाबाजी की सोच स्वच्छ नहीं थी। काला धन एक बहुत बडा मुद्दा है, और उससे लडाई इस तरह की 'ओछी' हरकतों से नहीं लडी जा सकती।
जवाब देंहटाएंऔर सबसे बडी बात यह कि आप विदेश में जमा काला धन की तो बात कह रहे हैं, देश में जमा काला धन क्यों भूल जा रहे हैं, उसके जेनरेट होने के तरीकों को रोकने की बात क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या इसलिए कि इससे कहीं आपके कस्टमर न कम हो जाए? क्योंकि अगर ऐसा हो जाएगा, तो फिर आपके पंडालों में 5 हजार का टिकट लेकर फूं-फां कौन करेगा, आपकी विज्ञापन (पर 40 प्रतिशत का खर्च कंपनियां करती हैं) न होने के बावजूद डाबर आदि से भी मंहगी दवाइयां कौन खरीदेगा?
गिरिजेश भाई, सत्याग्रही बनना इतना आसान नहीं होता, उसके लिए मन-वचन-कर्म से सत्याग्रही बनना पडता है। सत्याग्रही बनने के लिए भी आपको 'परीक्षा' देनी पडती है। और बाबाजी इस परीक्षा में पूरी तरह से अनुत्तीर्ण हो गये हैं। यह हमारा भी दुर्भाग्य है और इस देश का भी।
Zakir Saab ki isi post par kuchh sawal hamne bhi uthaaye the unke facebook par... Agar bache hon to is prapanch aur Mudrarakshas ka sahityik gyan (jo pata nahi kise telephone karke statement jaari karta hai) dono ki asliyat khul jaati hai....
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार कमलेश्वर जी ने 'दैनिक हिंदुस्तान' में अपने एक कॉलम में मठाधीशों की अकूत संपत्ति का जिक्र किया था,जिसपर एक महंत ने अपने मठ की संपत्ति सरकार को सौंपने की पेशकश की थी. इसके बाद उनके विरोध और दरकिनार किये जाने पर उन्होंने उन्हें पत्र भी लिखा था. वाकई इसे भी इस आंदोलन में शामिल किया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंडीलिंग पर सरकार और बाबा दोनों ही को पारदर्शिता दिखानी चाहिए. कहीं कोई कमजोर नस न मिली होती तो सरकार ऐसा आत्मघाती कदम उठाने का खतरा मोल नहीं लेती.
rajnaitik lekh bhi likhne lage hain aap...!
जवाब देंहटाएंlage rahen...!
WAISE YE SAB SATTA PANE KA EK JUHGAAD BHAR HAI RSS AUR BJP KA !
जितना पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उससे कहीं ज्यादा पैसा हमारे देश के साधु-सन्यासियों, बाबा-औलियाओं, मन्दिर-मस्जिदो, सिद्ध स्थानों और मजारों में जमा है।...
जवाब देंहटाएंबेहतर...थोड़ा देर से पढ़ा...
----भाई मुद्राराक्षस तो कम्युनिस्ट लाबी का है ...उसकी बात सदा हिंदुओं के विरुद्ध, धर्म के विरुद्ध होती है ...अविश्वसनीय व्यक्ति है...जाने किस मूर्ख से फोन पर जानकारी की ...टीवी , अखवार सब गलत हैं क्या ...
जवाब देंहटाएं---अपने देश का काला धन तो चाहे जब निकलवाया जा सकता है...वह देश में ही है...पहले विदेश में जमा व विदेशी सरकारों, देशों, लोगों के काम आता अपना धन निकला बाना चाहिए ....मठों मंदिरों मजारों बाबाओं पर जमा धन का बहुत कुछ अंश तो देश में खर्च होता है...उन पर धन जमा होने में तो हमारी देश के लोगों की स्वयं की गलती ,अन्ध् श्रृद्धा ,व अज्ञान मूल कारण है, चढावा आदि के रूप में ...जबकि विदेशों में जमा धन चोरी का है....
---यदि बी जे पी या आरएसएस भ्रष्टाचार में बाबा या अन्ना किसी के भी साथ हैं तोअच्छी बात है .. क्यों न एसी पार्टी को देश संभालना चाहिए....क्या कांग्रेस ने ढेका लिया हुआ है....
--अरविंद जी व उपेन्द्र जी ने जो कहा सही कहा है...
---ये सारे वकील, प्रोफेस्सनाल्स, मोटी-मोटी फीस लेकर काम करते हैं क्या भ्रष्टाचार पर बात न करें ........तभी आपके सारे मंत्री फ्री की मोटी मोटी तनखा लेरहे है इसीलिये भ्रष्टाचार पर बात नहीं करते....
baba ramdevji is not wrong, he is doing for everybody, thank u.
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