पैसा और रिश्ता (रूला देने वाली एक सच्ची कहानी)
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पैसा और रिश्ता (रूला देने वाली एक सच्ची कहानी)

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मित्रो, आज के दौर में पैसा हमारे जीवन में इस कदर हावी हो गया है कि वह नाते-रिश्ते, प्रेम-मोहब्बत सब कुछ खा गया है। लेकिन पैसे की इस अंधी दौड़ का नतीजा क्या होता है, यह इस कहानी को पढ़ कर जाना जा सकता है। 

यह कहानी मुझ व्टासअप पर मिली है। मुझे नहीं मालूम इसे किसने लिखा है। लेकिन जिसने भी इसे लिखा है, कलम तोड़ दिया है। आप भी इसे पढ़ें, यकीन जानिए यह आपके दिल को छू जाएगी। इसे पढ़ें और अपने मित्रों के साथ शेयर करें। हो सकता है फिर कोई रिश्ता नये सिरे से जी उठे....


पैसा और रिश्ता

रविंद्र चौधरी पासपोर्ट ऑफिस में काम करता था। उसे कोई पसंद नहीं करता था। न कोई दोस्त, न सहकर्मी। यहां तक कि उसके पत्नी और बच्चे भी अलग रहते थे। फिर एक दिन एक आदमी आया। उसे अपने मित्र का पासपोर्ट बनवाना था। उस आदमी ने ऐसा कुछ किया कि रवींद्र की कायापलट ही हो गयी। उसका व्यवहार एकदम से बदल गया, दोस्त यार सब उसे पसंद करने लगे। यहां तक कि उसकी पत्नी और बच्चे भी घर लौट आए। सभी लोग ये देख कर हैरान थे। आखिर कैसे हुआ ये चमत्कार?

नमस्कार दोस्तों, बी पॉज़िटिव चैनल में आपका स्वागत है। आज हम आपके लिए एक इंट्रेस्टिंग स्टोरी लेकर आये हैं। यह कहानी आपको न सिर्फ पसंद आएगी, बल्कि आपकी ज़िंदगी भी बदल सकती है। तो आइये सुनते हैं ये मोटिवेशनल कहानी- पैसा और रिश्ता

एक बार मैं अपने एक मित्र का तत्काल कैटेगरी में पासपोर्ट बनवाने पासपोर्ट ऑफिस गया। लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का फार्म लिया। फार्म भरने के बाद हमने अपने डॉक्यूमेंट चेक कराये और फॉर्म जमा किया।  इसके बाद फीस जमा करने की बारी थी। हम लोग लाइन में लग गए। लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया, बाबू ने खिड़की बंद कर दी। पूछने पर उसने कहा कि समय समाप्त हो चुका है। अब कल आइएगा।

मैंने उससे मिन्नत करते हुए कहा ''हम लोग बहुत दूर से आये हैं। हमने आज का पूरा दिन खर्च किया है, बस अब केवल फीस जमा करनी रह गयी है, कृपया फीस ले लीजिए।''

यह सुनकर बाबू बिगड़ गया। बोला, "आपने पूरा दिन खर्च किया तो इसके लिए मैं जिम्मेदार हूँ क्या? मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं। अकेला आदमी कितना काम कर सकता है। अगर आपको दिक्कत है तो सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।''

यह सुन कर मेरा मित्र मायूस  हो गया। उसने कहा, ''चलो, अब कल आएंगे।''  

मैंने उसे रोकते हुए कहा, ''रुको, एक और कोशिश करता हूं।''

तब तक बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैं उसके पीछे हो लिया। वह एक कैंटीन में गया। उसने एक खाली सीट देख कर अपना थैला रखा। फिर उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे खाना खाने लगा।

मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने एक बार मेरी तरफ देखा, फिर अपनी नज़रें फेर लीं।  मैंने बात शुरू करने की गरज़ से कहा, ''आपके पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से लोगों से मिलते होंगे?''

उसने बेरुखी से मेरी ओर देखा और फिर बोला, ''हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं। न जाने कितने आई.ए.एस., पी.सी.एस., विधायक रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।''

''हाँ, इसमें तो कोई शक नहीं।'' मैंने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।  फिर विषय बदलते हुए पूछा, ''क्या मैं आपके खाने से एक रोटी ले सकता हूँ?''

उसने एक पल के लिए कुछ सोचा, फिर एक सब्जी पर रोटी रख कर मेरी और बढ़ा दी। मैंने रोटी का एक निवाला तोडा और उसे सब्ज़ी के साथ अपने मुंह के हवाले कर दिया। खाना बहुत स्वादिष्ट था।  मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा, ''खाना बहुत ही स्वादिष्ट है। आप बहुत ही सौभाग्यशाली हैं जो आपको इतनी सुघड़ पत्नी मिली है।  

उसने मेरी और देखा, पर बोला कुछ नहीं। मैंने अपनी बात आगे बधाई, ''आप बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हैं। बड़े-बड़े लोग आपसे मिलने आते हैं। लेकिन अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ''

''कहें!'' उसने उपेक्षापूर्वक अनुमति प्रदान की।  

मैंने धीरे से कहा, ''आप अपने पद की इज्जत नहीं करते हैं।''

मेरी बात सुन कर वह तड़प उठा, ''ऐसा कैसे कह सकते हैं?''

मैंने उसकी बात का जवाब दिया, ''अगर आप अपने काम की इज्जत करते, तो इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते। देखिये, आपका कोई दोस्त भी नहीं है। आप खाना भी दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाते हैं। अपनी कुर्सी पर भी आप मायूस होकर बैठे रहते हैं। लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह आप उसे अटकाने की कोशिश करते हैं। और लोगों के अनुरोध करने पर कहते हैं, "सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।"

अरे भाई, ज्यादा लोगों के बहाल होने से तो आपकी अहमियत घट जाएगी? हो सकता है आपसे ये काम ही ले लिया जाए। भगवान ने आपको मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन आप इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हैं। मेरा क्या है, कल आ जाउंगा या परसों आ जाउंगा। पर आपके पास तो मौका था किसी को अपना एहसानमंद बनाने का। पर आप उससे चूक गए।

मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ''पैसे तो आप बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है। क्योंकि रिश्तों से ही घर बनता है, रिश्तों से ही परिवार बनता है। और परिवार के बिना आदमी का जीवन निराधार हो जाता है। वह जीता तो रहता है, पर उसका जीवन निस्सार हो जाता है।''

मेरी बात सुन कर वह रुंआसा हो गया। उसने कहा, ''आपने बात सही कही साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा करके मायके चली गई है। बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह रोटी बना कर दे देती है, और मैं तन्हा खाना खाता हूं। रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहीं आता कि गड़बड़ी कहां है?''

मैंने उसकी आँखों में आँखे डालते हुए कहा, ''खुद को लोगों से जोड़िए। किसी की मदद कर सकते हों तो करिये।। देखिये, मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है। मैंने दोस्त की खातिर इतनी तकलीफ सही, आपकी मिन्नतें कीं। और यह सब मैंने निस्वार्थ भाव से किया। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं.....

उसकी आँखों में हलसी सी नमी सी आ गयी।  वह उठते हुए बोला, ''आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही आपका फार्म जमा करुंगा।'' और उसने सचमुच मेरा काम कर दिया। फिर उसने मेरा फोन नंबर मांगा। मैंने उसे अपना नंबर दे दिया फिर उसे धन्यवाद कहता हुआ घर वापस आ गया।  

इस घटना को बरसों बीत गए। इस दिवाली पर एक फोन आया। अनजान नंबर था। मैंने फोन रिसीव किया। उधर से आवाज़ आई, ''मैं पासपोर्ट आफिस से रविंद्र चौधरी बोल रहा हूं। कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी। आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।''

मुझे एकदम से याद आ गया। मैंने कहा, ''हां जी चौधरी साहब, कैसे हैं?''

उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन जब चले गए, तो मैं बहुत सोचता रहा। मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता। मैं साहब अगले ही दिन अपनी ससुराल पहुँच गया। मैंने अपनी पत्नी से घर चलने को कहा। वो मान ही नहीं रही थी। वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली, और कहा कि साथ खिलाओगी?

वो हैरान थी। रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए। साहब, अब मैं पैसे नहीं कमाता, रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं। साहब, आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है। अगले महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है बिटिया को आशीर्वाद देने।

वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता इतना भारी पड़ेगा।

दोस्तों, आदमी भावनाओं से संचालित होता है, कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं। आप भी रिश्ते बना कर देखिए, आपकी ज़िंदगी भी रविंद्र चौधरी  की तरह बदल जाएगी।

 
अगर आपके पास भी इस तरह की प्रेरक लघु कथाएं हो, तो आप हमें zakirlko AT gmail.com पर भेज सकते हैं। उन्हें आपके नाम और परिचय के साथ प्रकाश‍ित करके हमें अतीव प्रसन्नता होगी।
 
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COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बहुत भावपूर्ण .....सच में रिश्ते बनाए रखना ही सुख देता है ....

    जवाब दें हटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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