Anger Management Tips in Hindi.
एक लड़का था। उम्र यही कोई 12-13 साल। उसे क्रोध बहुत आता था। बात-बात में उसे क्रोध आ जाता। और ऐसे समय में उसका खुद पर नियंत्रण नहीं रहता। कभी वह घर के सामान तोड़-फोड़ देता, कभी किसी को पीट देता और कभी इस चक्कर में बुरी तरह से पिट भी जाता।
मार खा कर जब वह अपने घर पहुंचा तो स्वयं को बड़ा अपमानित महसूस कर रहा था। यह देखकर उसके पिता बोले- 'तुम चाहो, तो अपने इस क्रोध पर नियंत्रण कर सकते हो।' लड़के ने झट से पूछा- 'कैसे?'
पिता ने उसे ढेर
सारी कीलें दीं और कहा, 'जब भी तुम्हें क्रोध आए, घर के सामने लगे पेड़ में ढ़ेर सारी कीलें ठोंक देना।'
यह सुनकर लडके ने पूछा- 'पर कीलों से क्रोध के नियंत्रण कैसे होगा?' पिता ने उसे समझाते हुए कहा- 'तुम करके तो देखो, शायद कोई फायदा हो ही जाए।' लड़के को बात समझ में आ गयी। उसने पिता की बात मान ली और कीलों को अपने पास रख लिया।
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अगले दिन सुबह-सुबह लडके की अपने छोटे भाई से झड़प हो गयी। उसे बहुत क्रोध आया। वह अपने भाई को मारने ही जा रहा था कि उसे पिता की कही बात याद आ गयी। लड़के ने कीलें उठाईं और पेड़ में ठोंकनी शुरू कर दीं। हालांकि यह काम काफी कष्टप्रद था, पर फिरभी वह तब तक कीलें ठोंकता रहा, जब तक उसका गुस्सा शांत नहीं हो गया। शांत होने के बाद उसने कीलों को गिनना शुरू किया, कुल 30 कीलें थीं।
अगले दिन लड़के को फिर गुस्सा आया। उसने उस दिन 25 कीलें ठोकीं। उसके अगले दिन उसने गुस्सा आने पर सिर्फ 15 कीलें ही ठोकीं। धीरे-धीरे दिन बीतते रहे और उसक द्वारा ठोंकी जाने वाली कीलों की संख्या कम होती गयी। और एक दिन ऐसा भी आया, जब क्रोध आने पर उसे कील ठोंकने की इच्छा न रही। क्योंकि उसे यह
समझ में आ गया था कि पेड़ में कीलें
ठोंकने के बजाय क्रोध पर नियंत्रण
करना आसान है।
यह देखकर उसके पिता मुस्कराए और उन सारी कीलों को निकालने का निर्देश दिया। यह सुनकर पहले तो लड़के को खीझ आई, लेकिन फिर उसने जैसे-तैसे उन कीलों को निकाल दिया। जब उसने अपने
पिता को काम पूरा हो जाने के बारे में
बताया तो पिता बेटे का हाथ थामकर उसे
पेड़ के पास लेकर गया।
पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा– 'बेटे, पेड़ के तने पर बने
इन सैकडों कीलों के निशानों को देखो।
इनकी वजह से पेड़ कितना बदसूरत हो गया है। इसी तरह जब भी तुम किसी पर क्रोध करते हो, तो ऐसे ही घाव के गहरे निशान सामने वाले के मन पर बन जाते हैं।'
'आप ठीक कहते हैं पिताजी, मैं इन कीलाें के घाव को महसूस कर सकता हूं।' कहते हुए लड्के ने कीलों का डिब्बा पिता को वापस कर दिया। क्योंकि अब उसे क्रोध को नियंत्रित करने के लिए कीलों को ठोंकने की जरूरत नहीं रह गयी थी। कीलों के निहितार्थ और क्रोध के दुष्परिणाम, दोनों को वह भलीभांति समझ चुका था। (वाट्सएप पर प्राप्त कहानी)
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badhiya :)
जवाब देंहटाएंNice story
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