Raksha Bandhan Special Rani Karnavati and Humayun Story in Hindi
आज हम आपके लिए रक्षा बंधन स्पेशल Raksha Bandhan Special कहानी लेकर आए हैं। ऐतिहासिक प्रसंगों के अनुसार मुगल बादशाह हुमायूं और राजपूत रानी कर्णवती की कहानी Rani Karnavati and Humayun Story भी इस पवित्र त्यौहार से जुड़ी हुई है। यह कहानी रक्षाबंधन की कहानी Raksha Bandhan Special Story के नाम से भी जानी जाती है। तो आइए पढ़ते हैं यह हुमायूं और कर्णवती Humayun and Rani Karnavati की कहानी। हालांकि ये कर्णवती की कहानी बेहद छोटी सी है, पर आप चाहें, तो इसका वीडियो भी देख सकते हैं। कहानी का वीडियो इस पोस्ट के लास्ट में लगा हुआ है।
रानी कर्णवती Rani Karnavati चित्तौड़ के राणा संग्राम सिंह की पत्नी थीं। राणा संग्राम सिंह सिसोदिया वंश के राजा थे और राणा सांगा के नाम से भी जाने जाते थे। उनके दो पुत्र थे विक्रमादित्य और उदय सिंह। आगे चलकर उदय सिंह के बड़े पुत्र प्रताप मेवाड़ के राणा बने और महाराणा प्रताप के नाम से मशहूर हुए।
राणा सांगा की जब मृत्यु हुई, तो उस समय उनके दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बहुत छोटे थे और इस लायक नहीं थे कि राजपाट संभाल सकें। फिरभी कर्णवती ने मेवाड़ के सिंहासन पर अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को बैठाया और स्वयं राजकाज संभालने में उनकी मदद करने लगीं।
रानी कर्णवती Rani Karnavati चित्तौड़ के राणा संग्राम सिंह की पत्नी थीं। राणा संग्राम सिंह सिसोदिया वंश के राजा थे और राणा सांगा के नाम से भी जाने जाते थे। उनके दो पुत्र थे विक्रमादित्य और उदय सिंह। आगे चलकर उदय सिंह के बड़े पुत्र प्रताप मेवाड़ के राणा बने और महाराणा प्रताप के नाम से मशहूर हुए।
राणा सांगा की जब मृत्यु हुई, तो उस समय उनके दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बहुत छोटे थे और इस लायक नहीं थे कि राजपाट संभाल सकें। फिरभी कर्णवती ने मेवाड़ के सिंहासन पर अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को बैठाया और स्वयं राजकाज संभालने में उनकी मदद करने लगीं।
इस बीच, गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर कब्जा करने के लिए उस ओर कूच कर दिया। रानी कर्णवती Rani Karnavati को जब यह समाचार मिला, तो वह बेहद चिंतित हो गयीं। उन्होंने मदद के लिए राजपूत राजाओं से मदद मांगी, लेकिन उन लोगों ने कई शर्तें लगा दीं। कर्णवती इससे सोच में पड़ गयीं। रानी ने काफी सोच विचार किया और फिर मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज कर उनसे मदद मांगने का निश्चय किया।
रानी कर्णवती के इस निर्णय को जब उनके दरबारियों ने सुना, तो वे हैरान रह गये। इसके दो कारण थे। पहला यह कि हुमायूं मुस्लिम था। इसलिए उन्हें संदेह था कि एक मुस्लिम के विरूद्ध हुमांयू एक हिन्दू रानी की मदद क्यों करेगा?
और दूसरा यह कि हुमायूं मुगल वंश के संस्थापक बाबर का पुत्र था और बाबर व राणा सांगा के बीच खानवा में ज़बरदस्त युद्ध हो चुका था। उस युद्ध में घायल होने की वजह से ही राणा सांगा की मृत्यु भी हुई थी। इसलिए रानी के किसी भी दरबारी को यह उम्मीद नहीं थी कि हुमायूं अपने पिता के शत्रु की पत्नी यानी रानी कर्णवती की मदद करेगा।
लेकिन रानी कर्णवती Rani Karnavati अपने निश्चय पर अडिग रहीं। वे बोलीं- हुमायूं भले ही मुस्लिम हैं, पर वे भारतवर्ष के एक बड़े सुल्तान हैं। मुझे पूरा यकीन है कि वे रिश्तों की अहमियत समझते होंगे और मेरी राखी की लाज रखेंगे।
लेकिन रानी कर्णवती Rani Karnavati अपने निश्चय पर अडिग रहीं। वे बोलीं- हुमायूं भले ही मुस्लिम हैं, पर वे भारतवर्ष के एक बड़े सुल्तान हैं। मुझे पूरा यकीन है कि वे रिश्तों की अहमियत समझते होंगे और मेरी राखी की लाज रखेंगे।
कर्णवती की राखी लेकर जब पत्रवाहक दिल्ली पहुंचा, तो उसे पता चला कि वे हुमायूं Humayun इस समय ग्वालियर में हैं। हुमायूं ने उस वक्त ग्वालियर में अपना पड़ाव डाल रखा था और वह बंगाल पर आक्रमण की तैयारी कर रहा था। पत्रवाहक ने यह जानकर अपना घोड़ा मोड़ दिया और ग्वालियर जा पहुंचा।
रानी कर्णवती की राखी और उसका पत्र देखकर हुमांयू Humayun को आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। उसने पत्रवाहक से कहा कि आप अपनी रानी साहिबा से कहिएगा कि वे अपना हौसला बनाए रखें। मैं जल्दी ही अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंच रहा हूं।
हालांकि हुमांयू Humayun तक कर्णवती का संदेश पहुंचने में काफी समय व्यतीत हो चुका था, लेकिन फिरभी हुमायूं ने अपना एक हरकारा दिल्ली की ओर दौड़ा दिया, जिससे वहां पर सेना तैयार हो सके। उसके बाद उसने दिल्ली की ओर कूच किया। दिल्ली पहुंचकर हुमांयू ने एक बड़ी सी सेना ली और फिर और चित्तौड़ की ओर चल पड़ा।
लेकिन हुमांयू के चित्तौड़ पहुंचने से पहले ही गुजरात का शासक बहादुर शाह चित्तौड़ जा पहुंचा। रानी कर्णवती ने अपनी छोटी सी सेना के साथ बहादुर शाह का सामना किया। लेकिन वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सकीं। उन्होंने अपनी हार होते देख कर 8 मार्च 1535 को अपनी राजपूत सखियों के साथ जौहर कर लिया।
कर्णवती के जौहर करते ही चित्तौड़ की सेना का रहा सहा मनोबल भी जाता रहा। इससे उसने घुटने टेक दिये और चित्तौड़ पर बहादुर शाह का कब्जा हो गया।
हुमायूं Humayun जब अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंचा, तो वहां पर बहादुर शाह का कब्जा हो चुका था। वहीं पर उसे रानी कर्णवती के जौहर की भी खबर मिली। यह सुनकर उसे बहुत दुख हुआ। लेकिन जब उसे यह खबर मिली कि कर्णवती के दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बूंदी के किले में सुरक्षित हैं, तो उसे थोड़ा सुकून मिला।
हुमांयू Humayun ने कर्णवती की राखी की लाज को रखते हुए बहादुर शाह को चित्तौड़ से मार कर भगा दिया। इसके बाद उसने बूंदी से उनके पुत्रों को बुलवाया और चित्तौड़ का सिंहासन कर्णवती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य के हवाले कर दिया।
इस ऐतिहासिक घटना को घटित हुए अब तक सैकड़ों साल गुज़र चुके हैं। आज न हुमायूं Humayun हैं और न कर्णवती Karnavati, लेकिन भाई बहन का यह अनूठा रिश्ता कहानियों और कविताओं में आज भी ज़िन्दा है।
दोस्तों, हमें उम्मीद है कि यह रक्षा बंधन स्पेशल Raksha Bandhan Special कहानी आपको पसंद आई होगी। बादशाह हुमायूं और राजपूत रानी कर्णवती की कहानी Rani Karnavati and Humayun Story को आप अपने फ्रेंड्स के साथ ज़रूर शेयर करें, जिससे हुमायूं और कर्णवती Humayun and Rani Karnavati की इस दिल छू लेने वाली कहानी Rani Karnavati Story से और लोग भी परिचित हो सकें।
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Thanks for sharing such an outstanding historical background of Rakshabandhan.
जवाब देंहटाएंHappy Rakshabandhan.