('जनसंदेश टाइम्स', 19 अक्टूबर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा) भाषा एक बहते हुए दरिया के सम...
('जनसंदेश टाइम्स', 19 अक्टूबर, 2011 के
'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)
भाषा एक बहते हुए दरिया के समान होती है, जो समय और स्थान के अनुसार अपने स्वरूप को बदलती रहती है। यही कारण है कि एक समय जहाँ देश में फारसी मिश्रित उर्दू का प्रभुत्व हुआ करता था, आज अंग्रेजी-हिन्दी मिश्रित हिंग्रेजी का चलन देखने को मिल रहा है। बदलाव की इस प्रक्रिया को लेकर समय-समय पर विरोध के स्वर भी उठते रहे हैं। पर समय न तो कभी किसी के लिए रूकता है और न ही उसे लौटकर पीछे जाना गंवारा होता है। बदलना अंतत: लोगों को ही पड़ता है।
हिन्दुस्तान की सम्पर्क भाषा हिन्दी भी इस समय बदलाव के दौर से गुजरती हुई प्रतीत होती है। यही कारण है कि एक ओर जहाँ उसमें बहुतायात में अंग्रेजी शब्द मिश्रित होते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग उसकी लिपि को ही बदलने की बात भी करने लगे हैं। भिन्न-भिन्न श्रोतों से आने वाली ये आवाजें हिन्दी की लिपि को रोमन में करने की माँग उठाती हैं, ठीक उसी तरह जैसे मल्टीनेशनल कम्पनियों के सभी विज्ञापनों में हिन्दी के वाक्य रोमन लिपि में लिखे जा रहे हैं। क्या यह सिर्फ बदलते वक्त के साथ आने वाला एक ट्रेन्ड भर है यह फिर एक साजिश, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। पर इसी बहाने एक बात निकल कर आ रही है कि हिन्दी अब बाजार की भाषा बन गयी है और उसे अपनाना मल्टीनेशनल कम्पनियों की मजबूरी भी है।
एक ओर जहाँ पिछले एक दशक में हिन्दी के खिचड़ी स्वरूप के दीवाने बढ़े हैं, वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो हिन्दी को उसके तत्सम प्रधान रूप में देखने के पक्षधर हैं। वे लोग हिन्दी के ‘शुद्ध साहित्यिक’ स्वरूप को लेखन के दौरान प्रयोग में लाते हैं, वरन अपने चिंतन, वाचन और सम्प्रेषण के लिए भी सहज रूप में इसका प्रयोग करते हैं। हिन्दी के एक ऐसे ही प्रेमी हैं चंदौली, उत्तर प्रदेश निवासी हिमांशु कुमार पाण्डेय, जो अपने ब्लॉग ‘सच्चा शरणम’ (http://ramyantar.blogspot.com) में तत्सम प्रधान शब्दावली में विमर्श करते नजर आते हैं।
दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और गम्भीर साहित्य में समान रूचि रखने वाले हिमांशु पेशे से अध्यापन का कार्य करते हैं और जगजीत सिंह की गाई गजल ‘चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफिर का नसीब, सोचते रहतें हैं किस ओर किधर के हम हैं’ के सहारे अपने जीवन के सहज दर्शन को बयाँ करते हैं। हिमांशु ने साहित्यिक दृष्टि अपने पिता से आनुवांशिक रूप में पाई है। उन्होंने बचपन से अपने घर में साहित्य का गम्भीर माहौल जिया है। यही कारण है कि युवावस्था में भी उनके भीतर वह परिपकवता आ गयी है जो आमतौर से प्रौढावस्था के लोगों में भी नजर नहीं आती।
हिमांशु एक ऐसे ब्लॉगर हैं, जिनका दिल तो साहित्य में रहता है, किन्तु मन ब्लॉग की तकनीक को पसंद करता है। यही कारण है कि वे अपने ब्लॉग में कभी ‘ब्लॉग साहित्य’ की अर्थवत्ता की पड़ताल करने निकल पड़ते हैं, तो कभी टिप्पणियों की प्रासंगिकता को परखते नजर आते हैं। गौतम बुद्ध के दर्शन से बहुत गहराई से प्रभावित हिमांशु रचना, रचना प्रक्रिया, साहित्यिक अवधारणाएँ, साहित्य की प्रासंगिता जैसे प्रश्नों से जूझने में आनंद का अनुभव करते हैं और इसी बहाने अपनी उत्कंठा को कभी वैदिक साहित्य की ओर ले जाते हैं, तो कभी संस्कृत के विपुल साहित्य भण्डार की ओर।
हिमांशु एक गहरी काव्य-चेतना सम्पन्न व्यक्ति हैं। वे अपनी कविता के माध्यम से कभी आज के समाज की रूग्ण मानसिकता की खैर खबर लेने निकल पड़ती है, तो कभी समकालीन संदर्भों में संवेदना की थाह लेते प्रतीत होते हैं। उनका मानना है कि कवि-धर्म रतजगे की तरह है। एक शाश्वत जागृति की भांति इसका परिणाम अंततः कवित्व का मूल्यवान उपहार हुआ करता है। वे कवि के इस रतजगे को पक्षी विशेषज्ञ की तरह सजग रहने की सलाह देते हैं, जिससे वह समय से आक्रांत हुए बिना, उसके प्रत्येक स्पंदन पर अपनी नजर रख सके और उसके सापेक्ष अपनी सार्थक रचना का सृजन कर सके।
यूँ तो हिमांशु की रूचियों में पर्यावरण जैसे भौतिक विषय भी शामिल है, पर वे जब पर्यावरण पर भी कलम चलाते हैं, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि यह पर्यावरण जागरूकता को लेकर लिखा गया लेख है अथवा कोई साहित्यिक निबंध। इसका कारण है कि एक ओर जहाँ उनके निबंधों में शुद्ध वैज्ञानिक जानकारियाँ होती हैं, वहीं दूसरी ओर उसमें संस्कृत साहित्य के इतने श्रंगारिक उद्धरण आ जाते हैं कि वह लेख साहित्यिक निबंध की आभा प्रदान करने लगता है। लोक संस्कृति से समृद्ध माहौल में पले-बढ़े हिमांशु उन रचनाकारों में हैं, जो किसी चिडिया की चोंच में दबे केंचुए को देखकर भी द्रवित हो जाता है। वे जितना सम्मान साहित्य के महान ग्रन्थों को देते हैं, उतना ही महत्व साहित्य के प्रख्यात हस्ताक्षरों को भी। यही कारण है कि उनका ब्लॉग हिन्दी भाषा को समृद्ध करने वाले ब्लॉगरों के रूप में जाना जाता है और अपनी भाषा तथा संस्कृति से प्रेम करने वालों को बेहद भाता है।
बेहद शानदार आलेख भाई साहब आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.आपका आभार
जवाब देंहटाएंहम भी पढ़ते हैं यह ब्लॉग..
जवाब देंहटाएंमंदिर -सी पवित्रता लिए मेरा भी पसंदीदा यह ब्लॉग श्रद्धा जगाता है !
जवाब देंहटाएंआभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर. आपके इस आलेख में भी हिमांशु के दर्शन होने लगे.
जवाब देंहटाएंbadhiya hai. lage rahiye jakir bhai
जवाब देंहटाएंbadhiya hai. lage rahiye jakir bhai
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी को बधाई शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआभार आपका
Awesome write up !!!
जवाब देंहटाएंमंगल मय हो सबको दीपों का त्यौहार ,दीपों का आकाश .आभार इस काव्यात्मक अन्वेषण के लिए . .शानदार प्रस्तुति और ब्लोगर parichya के लिए .
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