जब किस्मत खराब हो : गौतम बुद्ध की कहानी

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Jab Kismat Kharab Ho : Gautam Buddha Story in Hindi

gautam buddha story
बुद्ध की कहानियां Buddha Stories जीवन से जुड़ी हुई कहानी हैं और आज भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। यही कारण है कि हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इसी मकसद से हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- जब किस्मत खराब हो! यह हम सबके जीवन से जुड़ी हुई कहानी है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये कहानी Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी। 
 
एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध के शिष्य आनंद कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक अधेड़ व्यक्ति एक चट्टान पर बैठा रो रहा है। वे उसके पास गए और बोले, 'क्या बात है वत्स, तुम कौन हो और क्यों रो रहे हो?'

आनंद की बात सुनकर उस व्यक्ति की सिसकियां थम गयीं। वह अपने आंसूं पोंछता हुआ बोला, 'मैं पास के गांव का रहने वाला एक बदनसीब व्यापारी हूं। मैं जो भी काम करता हूं, वह बिगड़ जाता है। व्यापार के चक्कर में मैंने अपनी पत्नी के गहने गंवा दिये, मैंने अपने परिवार को भी खो दिया। यहां तक कि मेरा घर भी गिरवी पड़ा है। मुझे तो लगता है कि मैं किसी काम का नहीं हूं। मेरी किस्मत ही खराब है।'

उसकी बात सुनकर आनंद बोले, 'तुमसे किसने कहा वत्स कि तुम्हारी किस्मत खराब है? जरा मैं भी तो जानूं कि तुम्हारी किस्मत में क्या खराबी है?

वह व्यक्ति बोला, 'पहले मैं खेती करता था। पर हर साल उसमें घाटा होता था। कभी सूखा पड़ जाता, तो कभी ज्यादा बारिश के कारण फसल बर्बाद हो जाती। इससे परेशान होकर मैंने व्यापार करने का निश्चय किया। मैंने पत्नी के गहने बेच कर अपना व्यापार शुरू किया। लेकिन मेरा व्यापार नहीं चला। शुरू शुरू में परिवार वालों ने मेरा साथ दिया, लेकिन जैसे जैसे मुझे नुकसान होने लगा, मेरे परिवार वाले भी मुझसे दूर हो गये। मैं यह सब उनके लिए ही कर रहा था। लेकिन अब वे लोग मुझे देख कर नजरें फेर लेते हैं और मुझे ही मेरे परिवार की दुर्दशा का जिम्मेदार ठहराते हैं।'

उस व्यक्ति ने एक लम्बी सी सांस ली और फिर बोला, 'मेरा एक मित्र है। उसने भी मेरे साथ अपना व्यापार शुरू किया था। उसका व्यापार अच्छा चल रहा है। वह जब भी मेरे घर आता है, तो अपनी सफलता की कहानियां सुनाता है। उसकी बातें सुनकर मेरे घर वाले भी कहते हैं कि उसे देख, और कुछ सीख। हमें तो लगता है कि तेरे वश का कुछ भी नहीं है।

'उन लोगों की बातें सुन-सुन कर अब तो मुझे भी लगने लगा है कि शायद मेरे वश का कुछ भी नहीं है। अब तो मुझे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगा है। मेरे मन में ख्याल आता है कि अपना जीवन समाप्त कर लूं। मैं यहां आया भी इसी इरादे से था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया। इसीलिए यहां एकांत में बैठा विलाप कर रहा था।'

आनंद बोले, 'ओह , तो ये बात है। वैसे क्या तुम इसके अलावा कुछ और भी कहना चाहते हो?

उनकी बात सुनकर वह व्यक्ति बोला, 'एक ओर मेरा हर काम खराब हो जाता है। दूसरी ओर मेरा मित्र है, जो हर समय मुझे नीचा दिखाने का प्रयत्न करता रहता है। मुझे समझ में ही नहीं आता है कि मैं क्या करूं?'

आनंद बोले, 'क्या तुम अपने मित्र की बातें सुनकर दुखी हो जाते हो?'

'हां, मैं उसकी बातें सुनकर स्वयं दुखी हो जाता हूं।' उस व्यक्ति ने जवाब दिया।

आनंद ने पूछा, 'तुम्हें किस बात का दुख होता है? अपने असफल होने का या फिर मित्र के सफल होने का?'

उनका सवाल सुनकर वह व्यक्ति एक पल के लिए सोच में पड़ गया। फिर वह बोला, 'अगर सच कहूं, तो मुझे अपने असफल होने का उतना दुख नहीं होता है, जितना कि मित्र के सफल होने का होता है।'

'अर्थात यदि तुम्हारा मित्र असफल हो जाए, तो तुम्हें खुशी होगी?' आनंद ने प्रश्न किया।

वह व्यक्ति बोला, 'हां, मुझे बहुत खुशी होगी।'

'इसका मतलब है कि तुम्हारी खुशी तुम्हारे मित्र पर निर्भर है।' आनंद बोले, 'अगर वह चाहे तो तुम्हें खुश कर सकता है, और अगर वह चाहे तो तुम्हें दुखी कर सकता है। तुम स्वयं से न तो खुश हो सकते हो और न ही दुखी हो सकते हो। अर्थात तुम अपने मित्र के गुलाम हो गये हो। इसलिए तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।'

'ऐसा न कहें महत्मन,' उस व्यक्ति ने हाथ जोड़ दिये, 'आपकी बातें सुनकर मुझे कुछ आशा बंध रही है।'

आनंद बोले, 'जब हम किसी से आशा बांध लेते हैं, तो उसपर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में हमारी खुशी और दुख भी उसपर निर्भर करने लगता है। इससे बेहतर है की तुम अपने आप से आशा बांधो। जब तुम ऐसा करोगे, साथ ही पूरे जतन से काम करोगे, तो तुम्हें सफलता अवश्य प्राप्त होगी।'

कहते हुए आनंद ने एक पल के लिए उस व्यक्ति की ओर देखा फिर अपनी बात आगे बढ़ाई, 'तुम्हें लगता है कि तुम्हारा मित्र तुम्हें दुखी करने आता है। पर अगर विचार करो, तो वह बातें तो सच्ची ही कहता है। वह अपने संघर्ष और अनुभव की बातें बताता है। तुम उन बातों से बहुत कुछ सीख सकते हो। तुम्हें इसके लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए कि तुम्हें घर बैठे कुछ अनुभव मिल रहे हैं। तुम उन अनुभवों का लाभ उठाओ, नई शुरूआत करो, कर्म करते जाओ, हार मत मानो, एक दिन तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। आज तुम जिसे अपना बुरा वक्त या बुरी किस्मत कह रहे हो, एक दिन यह बदल जाएगी। इसी के साथ तुम्हारे विचार भी बदल जाएंगे। और देखना जब तुम्हारा अच्छा वक्त् शुरू होगा, तब तुम्हारा मित्र भी तुम्हें अपनी सफलताओं की कहानियां नहीं सुनाएगा, तब वह अपनी असफलताओं की बातें बताएगा, ताकि तुम उसकी बातें सुनकर भ्रमित हो जाओ, तुम्हारा आत्मविश्वास हिल जाए और तुम गलत निर्णय ले सको। लेकिन उस समय भी तुम्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करना होगा। तुम्हारा मित्र जैसे आज तुम्हें दुखी करने आता है, उसी तरह उस समय भी वह तुम्हें दुखी करने आएगा। क्योंकि जिस तरह उसे दुखी देखकर तुम्हें मजा आता है, उसी तरह उसे भी तुम्हें दुखी देखने में, उतना ही मजा आता है।'

वह व्यक्ति बोला, 'आपने सही कहा, लेकिन मेरा सबसे बड़ा दुख यह है कि मेरे परिवार के लोग भी इसमें शामिल हैं। वास्तव में मैं तो अपने परिवार के लिए अच्छा करना चाहता था। लेकिन वे लोग भी मेरी बात नहीं समझते हैं। वे भी मुझे गलत कहते हैं और अब तो वे मेरे साथ भी नहीं हैं।'

आनंद बोले, 'मैं सब समझ गया। तुम सांत्वना चाहते हो। वास्तव में इस दुनिया में सभी लोग सांत्वना ही चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हम जब भी कुछ करें, तो लोग हमारी प्रशंसा करें। लेकिन आमतौर से ऐसा नहीं होता है, इसलिए हम दुखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारे मित्र, परिवार वाले सब मतलबी हैं। लेकिन तुम अगर किसी को अपना परिवार मानते हो और उसके लिए कुछ करना भी चाहते हो, तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम दूसरों के लिए कुछ कर रहे हो। वास्तव में तुम अपनी खुशी के लिए कर रहे हो। इसलिए परिवार के लिए कुछ करना, वास्तव में अपने लिए ही करना होता है। लेकिन अगर ऐसा करते समय तुम्हें लगता है कि तुम दूसरों के लिए कर रहे हो, तो तुम दुखी रहोगे। और अगर तुम्हें लगता है कि तुम अपने लिए कर रहे हो, तो तुम खुश रहोगे। क्योंकि जब तुम अपने लिए कुछ अच्छा करते हो या करना चाहते हो, तब तुम्हें सांत्वना की ज़रूरत नहीं पड़ती है।'

आनंद की बातें सुनकर उस व्यक्ति के चेहरे के भाव बदल गये। वह बोला, 'आप सही कह रहे हैं। मैं समझ गया हूं। अब तक मेरी किस्मत खराब इसलिए थी, क्योंकि वह दूसरों के हाथ में थी। अब मैं अपनी किस्मत को अपने हाथ में रखूंगा। मैं फिर से प्रयत्न करूंगा, पूरे मन से काम करूंगा और जब तक सफलता नहीं मिल जाती, चैन से नहीं बैठूंगा।'

उस व्यक्ति की बात सुनकर आनंद मुस्कराए और उसे एक छोटी सी डिबिया देते हुए बोले, 'इस डिबिया को हमेशा अपने पास रखना। इसमें एक ऐसा राज़ है, जो तुम्हें बड़े से बड़े दु:ख से भी बाहर निकाल लेगा। लेकिन इसे तभी खोलना, जब तुम्हारे जीवन में कोई रास्ता न सुझाई दे और तुम्हें लगे कि सब व्यर्थ है। यह दुनिया व्यर्थ है और यहां रहना भी व्यर्थ है।'

उस व्यक्ति ने आनंद को धन्यवाद दिया और डिबिया को लेकर चला गया। उसने नये उत्साह के साथ फिर से अपना व्यापार आरम्भ किया। उसका व्यापार चल निकला। अपनी मेहनत और लगन के बल पर वह एक बड़ा व्यापारी बन गया। परिवार वाले भी उसके साथ आ गये और उसका जीवन हंसी खुशी बीतने लगा।

अब वह भूतकाल का रोना छोड़ चुका था। वह भविष्यकाल की भी चिंता नहीं करता था। बस अपने वर्तमान को संवारने में लगा रहता था। और जो कुछ भी वह करता था, वह अपने लिए करता था, अपनों के लिए करता था। इसलिए वह प्रसन्न था। उसके जीवन में अब कोई दुख नहीं था।

लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। वह बदलता रहता है। उसके जीवन में भी बदलाव आया। एक दिन उसके राज्य पर पड़ोसी राजा ने चढ़ाई कर दी। उसने इस राज्य पर अपना कब्जा कर लिया। उसके सैनिकों ने चारों ओर लूटमार मचा दी। उन्होंने व्यापारी का सारा धन लूट लिया। उसके घर में आग लगा दी। जान बचाने के लिए उसे अपने परिवार के साथ वहां से भागना पड़ा।

वह व्यक्ति अपने परिवार के साथ कई दिनों तक इधर उधर भटकता रहा। वह दाने दाने को मोहताज हो गया। उसका बच्चा बीमार हो गया। इलाज के अभाव में वह तड़पने लगा। यह देखकर उसका ह्रदय चीत्कार कर उठा। वह कैसे अपने बच्चे का इलाज कराए, उसके पास तो खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। ऐसे में उसे एक बार फिर निराशा ने घेर लिया। ...उसे लगने लगा कि उसका जीवन व्यर्थ है। सारी दुनिया व्यर्थ है। किसी भी बात का कोई मतलब नहीं है। भले ही आप जीवन में कितना भी कुछ कर लो, कितनी भी सफलता हासिल कर लो, पर अंतत: यह जीवन समाप्त ही होता है। तो फिर ऐसे में जीवित रहने का क्या फायदा? इससे तो अच्छा है कि वह अपना जीवन समाप्त कर ले।

लेकिन तभी उसके दिमाग में आनंद की दी हुईडीबिया कौंध उठी। उसने उत्सुकता के साथ उसे खोला। डिबिया के भीतर एक पर्ची रखी हुई थी। पर्ची पर कुछ लिखा हुआ था। उसे पढ़कर उसकी आंखों के आगे छाया निराशा का अंधेरा छंट गया और वह मुस्करा पड़ा। पर्ची पर लिखा हुआ था- यह समय भी बीत जाएगा।

उसने डिबिया को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और एक नई शुरूआत के लिए उठ खड़ा हुआ।

दोस्तों, अगर आप भी ऐसी ही परिस्थिति से गुज़र रहे हैं , तो निराश न हों। अपने अतीत पर शोक मत करें। न ही भविष्य की चिंता करें। अपने वर्तमान को जियें, और उसे बेहतर बनाने के लिए सच्चे मन से प्रयत्न करें। यकीन जानें, जल्दी ही आपकी किस्मत भी बदलने वाली है। 
 
यूट्यूब पर सुनें कहानी:


दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको ये बुद्ध कहानी Gautam Buddha Story 'जब किस्मत खराब हो' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप यहां पर क्लिक करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं।

COMMENTS

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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