Gautam Buddha Story in Hindi : Jab Koi Apman Kare
बुद्ध की कहानियां Buddha Stories जीवन के मर्म को उद्घाटित करती हैं और हमें राह दिखाती हैं। यही कारण है कि हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इसी मकसद से हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- जब कोई अपमान करे! यह एक जीवन से जुड़ी हुई कहानी है इसीलिए सभी को बेहद अपील करती है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये कहानी Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी।
Gautam Buddha Story in Hindi : Jab Koi Apman Kare
एक बार बुद्ध एक गांव से गुजर रहे थे। उस गांव के लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे। उन लोगों ने बुद्ध को घेर लिया और उन्हें बुरा भला कहने लगे। गांव वालों का सरदार सबसे ज्यादा नाराज था। वह तो बुद्ध को गालियां ही देने लगा।
पर बुद्ध इस सबसे बेपरवाह मंद मंद मुस्कराते रहे।
सरदार काफी देर तक बुद्ध को गालियां देता रहा। लेकिन कुछ ही देर में उसका मुंह सूखने लगा, जिससे वह चुप हो गया। यह देखकर बुद्ध बोले, 'अगर तुम्हारी बातें समाप्त हो गयी हों, तो मैं आगे बढ़ूं। मुझे आगे वाले गांव में जाना है। वहां के लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।'
यह देख कर गांव का एक व्यक्ति बोला, 'हम लोग तुम्हारा अपमान कर रहे हैं, तुम्हें गालियां दे रहे हैं। लेकिन तुम इसका जवाब देने के बजाय मुस्करा रहे हो। तुम इसकी प्रतिक्रिया क्यों नहीं देते?'
बुद्ध बोले, 'वत्स, तुमने आने में तनिक देर कर दी। यदि तुम 10 वर्ष पहले आए होते, तो मज़ा आ जाता। क्योंकि दस वर्ष पहले मैं भी तुम्हारी तरह था। अगर उस समय तुम मुझे बुरा भला कहते, गालियां देते, तो मैं भी क्रोधित हो जाता। मैं तुम्हें इससे भी अधिक गालियां देता। हो सकता है हाथापाई पर भी उतर आता। पर अब मैं आगे बढ़ गया हूं। अपना क्रोध, घृणा सब पीछे छोड़ आया हूं। अब मैं उस जगह पर पहुंच गया हूं जहां तुम्हारी गालियां पहुंचने में अस्मर्थ हैं। …तुमने मुझे गालियां दीं, यह तुम्हारी भावना है। लेकिन तुम्हारी यह भावना मुझ तक पहुंच ही नहीं रही। मैं इससे आवेशित तभी होउंगा, जब मैं इसमें भागीदार हो जाउंगा। जब मैं इन्हें स्वीकार कर लूंगा। लेकिन मैं तो तुम्हारी इस क्रिया से निरपेक्ष हूं, इससे बहुत दूर हूं। इसलिए मैं अब भी पहले की तरह शांत हूं।'
यह सुनकर सरदार बोला, 'अरे, ऐसे कैसे। मैंने तो तुम्हें गालियां दी हैं और वो पूरे गांव वालों के सामने दी हैं। फिर उसे लेने या न लेने का क्या मतलब है?'
बुद्ध बोले, 'वत्स, कल मैं एक गांव में गया था। वहां के लोगों ने मेरा प्रवचन सुना। वे बहुत प्रसन्न हुए। गांव का मुखिया मेरे लिए मिठाई लेकर आया और उसे खाने का आग्रह करने लगा। मैंने कहा कि मेरा पेट भरा हुआ है। इसलिए मैं इसे ग्रहण नहीं कर सकता। यह सुनकर वह व्यक्ति मिठाई वापस लेकर चला गया। क्योंकि जब तक मैं कोई चीज लूंगा ही नहीं, तो कोई मुझे कैसे दे पाएगा? इसमें तो मेरी सहमति आवश्यक है न?'
'हां, ये तो है।' एक व्यक्ति ने बुद्ध का समर्थन किया।
बुद्ध ने पुन: पूछा, 'जब मैंने मिठाई लेने से मना कर दिया, तो उन लोगों ने उसका क्या किया होगा?'
'उन्होंने मिठाई अपने घर वालों में बांट दी होगी।' एक व्यक्ति ने जवाब दिया।
बुद्ध ने कहा, 'ठीक कहा तुमने। उस मिठाई की तरह ही तुम मेरे लिए गालियां लेकर आए हो और चाहते हो कि मैं इन्हें ग्रहण कर लूं। पर भाई, मैं इन्हें लेता ही नहीं। अब बताओ, तुम इनका क्या करोगे?'
उस व्यक्ति के पास इसका कोई जवाब नहीं था। बुद्ध पुन: बोले, 'मुझे तुम पर दया आती है वत्स। अरे, क्रोध तो मुझे तब आएगा, जब मैं ये गालियां ले लूंगा। और जब मैं गालियां लेता ही नहीं, तो क्रोध का तो सवाल ही नहीं उठता।'
बुद्ध की बातों पर सरदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। शायद वह कुछ सोच रहा था। बुद्ध बोले, 'मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं कि गाली एक कांटा है, जिसे देने वाला व्यक्ति और लेने वाला व्यक्ति दोनों क्रोध से पागल हो जाते हैं। तो फिर तुम ही बताओ कि मैं आंखें रहते हुए भी कैसे कांटों पर चलूं? आंखें रहते हुए मैं कैसे गालियां ले लूं। और होश में रहते हुए मैं कैसे क्रोधित हो जाउं। इसलिए मुझे क्षमा करो वत्स, मैं तुम्हारा उपहार ग्रहण करने में अस्मर्थ हूं।' कहते हुए बुद्ध ने अपने हाथ जोड़ दिये।
बुद्ध की बातें सुनकर सरदार लज्जित हो गया। उसकी आंखें छलछला आईं। उसने कुछ कहना चाहा, पर उसके होठों ने जवाब दे दिया। और जब उससे रहा नहीं गया, तो वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
दोस्तों, हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण कोई दूसरा व्यक्ति है। और जब हम ऐसा मानते हैं, तो हम अपने स्व नियंत्रण की कमी और अक्षमता को अनदेखा कर रहे होते हैं। वास्तव में ये हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गयी नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं, तो हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। और जब हम उसे अस्वीकार कर देते हैं, तो घ्रणा, क्रोध, हिंसा हर किसी से मुक्त हो जाते हैं।
पर बुद्ध इस सबसे बेपरवाह मंद मंद मुस्कराते रहे।
सरदार काफी देर तक बुद्ध को गालियां देता रहा। लेकिन कुछ ही देर में उसका मुंह सूखने लगा, जिससे वह चुप हो गया। यह देखकर बुद्ध बोले, 'अगर तुम्हारी बातें समाप्त हो गयी हों, तो मैं आगे बढ़ूं। मुझे आगे वाले गांव में जाना है। वहां के लोग मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।'
यह देख कर गांव का एक व्यक्ति बोला, 'हम लोग तुम्हारा अपमान कर रहे हैं, तुम्हें गालियां दे रहे हैं। लेकिन तुम इसका जवाब देने के बजाय मुस्करा रहे हो। तुम इसकी प्रतिक्रिया क्यों नहीं देते?'
बुद्ध बोले, 'वत्स, तुमने आने में तनिक देर कर दी। यदि तुम 10 वर्ष पहले आए होते, तो मज़ा आ जाता। क्योंकि दस वर्ष पहले मैं भी तुम्हारी तरह था। अगर उस समय तुम मुझे बुरा भला कहते, गालियां देते, तो मैं भी क्रोधित हो जाता। मैं तुम्हें इससे भी अधिक गालियां देता। हो सकता है हाथापाई पर भी उतर आता। पर अब मैं आगे बढ़ गया हूं। अपना क्रोध, घृणा सब पीछे छोड़ आया हूं। अब मैं उस जगह पर पहुंच गया हूं जहां तुम्हारी गालियां पहुंचने में अस्मर्थ हैं। …तुमने मुझे गालियां दीं, यह तुम्हारी भावना है। लेकिन तुम्हारी यह भावना मुझ तक पहुंच ही नहीं रही। मैं इससे आवेशित तभी होउंगा, जब मैं इसमें भागीदार हो जाउंगा। जब मैं इन्हें स्वीकार कर लूंगा। लेकिन मैं तो तुम्हारी इस क्रिया से निरपेक्ष हूं, इससे बहुत दूर हूं। इसलिए मैं अब भी पहले की तरह शांत हूं।'
यह सुनकर सरदार बोला, 'अरे, ऐसे कैसे। मैंने तो तुम्हें गालियां दी हैं और वो पूरे गांव वालों के सामने दी हैं। फिर उसे लेने या न लेने का क्या मतलब है?'
बुद्ध बोले, 'वत्स, कल मैं एक गांव में गया था। वहां के लोगों ने मेरा प्रवचन सुना। वे बहुत प्रसन्न हुए। गांव का मुखिया मेरे लिए मिठाई लेकर आया और उसे खाने का आग्रह करने लगा। मैंने कहा कि मेरा पेट भरा हुआ है। इसलिए मैं इसे ग्रहण नहीं कर सकता। यह सुनकर वह व्यक्ति मिठाई वापस लेकर चला गया। क्योंकि जब तक मैं कोई चीज लूंगा ही नहीं, तो कोई मुझे कैसे दे पाएगा? इसमें तो मेरी सहमति आवश्यक है न?'
'हां, ये तो है।' एक व्यक्ति ने बुद्ध का समर्थन किया।
बुद्ध ने पुन: पूछा, 'जब मैंने मिठाई लेने से मना कर दिया, तो उन लोगों ने उसका क्या किया होगा?'
'उन्होंने मिठाई अपने घर वालों में बांट दी होगी।' एक व्यक्ति ने जवाब दिया।
बुद्ध ने कहा, 'ठीक कहा तुमने। उस मिठाई की तरह ही तुम मेरे लिए गालियां लेकर आए हो और चाहते हो कि मैं इन्हें ग्रहण कर लूं। पर भाई, मैं इन्हें लेता ही नहीं। अब बताओ, तुम इनका क्या करोगे?'
उस व्यक्ति के पास इसका कोई जवाब नहीं था। बुद्ध पुन: बोले, 'मुझे तुम पर दया आती है वत्स। अरे, क्रोध तो मुझे तब आएगा, जब मैं ये गालियां ले लूंगा। और जब मैं गालियां लेता ही नहीं, तो क्रोध का तो सवाल ही नहीं उठता।'
बुद्ध की बातों पर सरदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। शायद वह कुछ सोच रहा था। बुद्ध बोले, 'मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं कि गाली एक कांटा है, जिसे देने वाला व्यक्ति और लेने वाला व्यक्ति दोनों क्रोध से पागल हो जाते हैं। तो फिर तुम ही बताओ कि मैं आंखें रहते हुए भी कैसे कांटों पर चलूं? आंखें रहते हुए मैं कैसे गालियां ले लूं। और होश में रहते हुए मैं कैसे क्रोधित हो जाउं। इसलिए मुझे क्षमा करो वत्स, मैं तुम्हारा उपहार ग्रहण करने में अस्मर्थ हूं।' कहते हुए बुद्ध ने अपने हाथ जोड़ दिये।
बुद्ध की बातें सुनकर सरदार लज्जित हो गया। उसकी आंखें छलछला आईं। उसने कुछ कहना चाहा, पर उसके होठों ने जवाब दे दिया। और जब उससे रहा नहीं गया, तो वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
दोस्तों, हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण कोई दूसरा व्यक्ति है। और जब हम ऐसा मानते हैं, तो हम अपने स्व नियंत्रण की कमी और अक्षमता को अनदेखा कर रहे होते हैं। वास्तव में ये हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गयी नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं, तो हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। और जब हम उसे अस्वीकार कर देते हैं, तो घ्रणा, क्रोध, हिंसा हर किसी से मुक्त हो जाते हैं।
दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको ये बुद्ध कहानी Gautam Buddha Story 'जब कोई अपमान करे' पसंद आई होगी। आप चाहें, तो गौतम बुद्ध की यह कहानी Gautam Buddha Story in hindi यूट्यूब पर भी सुन सकते हैं। यदि आपको बुद्ध की कहानियों Buddha Stories में रूचि है, तो आप यहां पर क्लिक करके बुद्ध की प्रेरक कहानियों Buddha Stories in Hindi का आनंद ले सकते हैं।
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