हज़रत अली के प्रेरक विचारों का शानदार कलेक्शन।
हज़रत अली का पूरा नाम अली इब्ने अबी तालिब है। उनका जन्म 13 रज्जब 24 हिजरी पूर्व या 17 मार्च 600 ईसवी को सउदी अरब में स्थित मक्का शहर में हुआ। उनके पिता का नाम अबु तालिब और मां का नाम फातिमा बिंत असद था। वे मक्का की पवित्र इमारत में पैदा हुए एकलौते व्यक्ति हैं।
हज़रत अली इस्लाम धर्म के संस्थापक मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद थे। वे एक वीर योद्वा थे। हजरत अली की तलवार का नाम जुल्फिकार था। कहते हैं कि उनकी तलवार से उनके दुश्मन भी खौफ़ खाते थे। उनकी ताकत का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि उन्होंने ख़ैबर की जंग में खैबर के क़िले के दरवाज़े को उखाड़ कर अपनी ढाल की तरह इस्तेमाल किया था। कहा जाता है कि उस दरवाज़े का वजन 34000 किलो ग्राम था। वे अपनी इसी जांबाज़ी के कारण 'शेर-ए-खुदा' के लक़ब से जाने जाते हैं।
हज़रत अली ने 656 से 661 तक राशिदून ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया। जबकि शिया मत के अनुयायी उन्हें पहला इमाम मानते हैं, जिन्होंने 632 से 661 तक इमामत की। वे बेहद न्यायप्रिय और विद्वान शासक माने जाते हैं। उनकी महानता के कारण उनके फॉलोवर उन्हें 'मौला अली' कह कर भी सम्बोधित करते हैं।
हज़रत अली बेहद न्यायप्रिय और विद्वान व्यक्ति थे। वे अपनी दरियादिली और प्रेरक विचारों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक भी माना जाता है, क्योंकि वह आम लोगों तक विज्ञान से जुड़ी जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से पहुंचाया करते थे। वे आवाम से कहा करते थे कि इस्लाम क़त्ल और भेदभाव करने के पक्ष में नहीं है। वे कहते थे कि अपने शत्रु से प्रेम करो इससे वो एक दिन मित्र बन जाएगा। उनका कहना है कि अत्याचार करने वाला ही नहीं उसमें सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला सभी अत्याचारी ही हैं।
हज़रत अली की नसीहतों को 'नहजुल बलाग़ा' किताब में संकलित किया गया है। इन्हें हजरत अली के कौल के नाम से भी जाना जाता है। शिया समुदाय में इस किताब को हजरत अली की हदीस का दर्जा हासिल है। तो आइए सुनते हैं हज़रत अली के वे कौल, जो आज भी हमारी ज़िन्दगी को रौशन कर रहे हैं-
हज़रत अली इस्लाम धर्म के संस्थापक मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद थे। वे एक वीर योद्वा थे। हजरत अली की तलवार का नाम जुल्फिकार था। कहते हैं कि उनकी तलवार से उनके दुश्मन भी खौफ़ खाते थे। उनकी ताकत का अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि उन्होंने ख़ैबर की जंग में खैबर के क़िले के दरवाज़े को उखाड़ कर अपनी ढाल की तरह इस्तेमाल किया था। कहा जाता है कि उस दरवाज़े का वजन 34000 किलो ग्राम था। वे अपनी इसी जांबाज़ी के कारण 'शेर-ए-खुदा' के लक़ब से जाने जाते हैं।
हज़रत अली ने 656 से 661 तक राशिदून ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया। जबकि शिया मत के अनुयायी उन्हें पहला इमाम मानते हैं, जिन्होंने 632 से 661 तक इमामत की। वे बेहद न्यायप्रिय और विद्वान शासक माने जाते हैं। उनकी महानता के कारण उनके फॉलोवर उन्हें 'मौला अली' कह कर भी सम्बोधित करते हैं।
हज़रत अली बेहद न्यायप्रिय और विद्वान व्यक्ति थे। वे अपनी दरियादिली और प्रेरक विचारों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक भी माना जाता है, क्योंकि वह आम लोगों तक विज्ञान से जुड़ी जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से पहुंचाया करते थे। वे आवाम से कहा करते थे कि इस्लाम क़त्ल और भेदभाव करने के पक्ष में नहीं है। वे कहते थे कि अपने शत्रु से प्रेम करो इससे वो एक दिन मित्र बन जाएगा। उनका कहना है कि अत्याचार करने वाला ही नहीं उसमें सहायता करने वाला और अत्याचार से खुश होने वाला सभी अत्याचारी ही हैं।
हज़रत अली की नसीहतों को 'नहजुल बलाग़ा' किताब में संकलित किया गया है। इन्हें हजरत अली के कौल के नाम से भी जाना जाता है। शिया समुदाय में इस किताब को हजरत अली की हदीस का दर्जा हासिल है। तो आइए सुनते हैं हज़रत अली के वे कौल, जो आज भी हमारी ज़िन्दगी को रौशन कर रहे हैं-
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर सुलह करना सीखो, क्योंकि झुकता वही है जिसमें जान होती है और अकड़ना तो मुर्दे की पहचान होती है। (1)
अक़्लमंद अपने आप को नीचा रखकर बुलंदी हासिल करता है और नादान अपने आप को बड़ा समझकर ज़िल्लत उठाता है। (2)
अपनों को हमेशा अपना होने का एहसास दिलाते रहो, वर्ना वक़्त उन्हें आपके बग़ैर जीना सिखा देगा। (3)
चुगली करना उसका काम होता है जो अपने आप को बेहतर बनाने में असमर्थ होता है। (4)
इंसान बुरा तभी बनता है, जब वह अपने आपको दूसरों से अच्छा समझने लगता है। (5)
झूठ की सबसे बड़ी सज़ा ये है कि उसके सच का भी कोई एतबार नहीं करता। (6)
मुश्किलों की वजह से चिंता में मत डूबा करो, क्योंकि बहुत अंधियारी रातों में ही सितारे ज्यादा तेज़ चमकते हैं। (7)
अगर कोई तुमको सिर्फ अपनी ज़रूरत के वक़्त याद करता हो, तो नाराज़ मत होना। बल्कि इस बात का फ़ख्र करना कि उसको अँधेरे में रौशनी की ज़रूरत है, और वह रौशनी तुम हो। (8)
नेक लोगों की सोहबत (संगत) से हमेशा भलाई ही मिलती है, क्योंकि हवा जब फूलों से गुज़रती है तो वो भी खुश्बुदार हो जाती है। (9)
अपनी किस्मत पे वही सख्श रोता है, जो अल्लाह के सामने सज़्दों में नहीं रोता है। (10)
हमेशा उस इंसान के करीब रहो जो तुम्हें खुश रखे, लेकिन उस इंसान के और भी करीब रहो, जो तुम्हारे बगैर खुश ना रह पाए। (11)
ये दुनिया कितनी अजीब है, ईमानदार को बेवकूफ, बेईमान को अक़लमंद और बेहया को खूबसूरत कहती है। (12)
खूबसूरत इंसान से मोहब्बत नहीं होती, बल्कि जिस इंसान से मोहब्बत होती है, वो खूबसूरत लगने लगता है। (13)
दौलत मिलने पर लोग बदलते नहीं हैं, बल्कि वे बेनक़ाब हो जाते हैं। (14)
ज़िन्दगी में सिर्फ दो तरह के दिन आते हैं, एक जिसमें आप जीतते हैं, और दूसरा वो दिन जब आप नाकामयाब होते हैं। तो जब तुम्हारी जीत हो, तो घमंड मत करो और जब चीज़ें तुम्हारे खिलाफ जाएँ तो सब्र करो। दोनों ही दिन तुम्हारे लिए इम्तेहान हैं। (15)
इन्सान अपनी ज़िन्दगी में हर चीज़ के पीछे भागेगा, मगर दो चीज़ें उसके पीछे भागेंगी एक उसका रिज्क़ और दूसरी उसकी मौत। (16)
जब तुम्हरी मुख़ालफ़त हद से बढ़ने लगे, तो समझ लो कि अल्लाह तुम्हें कोई मुक़ाम देने वाला है। (17)
इल्म की वजह से दोस्तों में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) होता है, लेकिन दौलत की वजह से दुशमनों में इज़ाफ़ा होता है। (18)
तुम्हारा अच्छा वक़्त दुनिया को बताता है कि तुम कौन हो और तुम्हारा बुरा वक़्त तुम्हें बताता है कि ये दुनिया क्या है। (19)
अगर दुनिया बेहतरीन जगह होती, तो यहाँ कोई रोता हुआ पैदा न होता। (20)
किसी का ऐब (बुराई) तलाश करने वाले मिसाल उस मक्खी के जैसी है जो सारा खूबसूरत जिस्म छोड सिर्फ़ ज़ख्म पर बैठती है। (21)
कभी अपने दोस्त की सच्चाई का इम्तिहान न लो, क्या पता उस वक़्त वो मजबूर हो और तुम एक अच्छा दोस्त खो दो। (22)
कभी भी अपनी जिस्मानी ताकत और दौलत पर घमंड न करना क्यूंकि बीमारी और ग़रीबी आने में देर नही लगती। (23)
अपने हमसफ़र से अपने जैसा होने की उम्मीद मत करो, क्योंकि तुम किसी का सीधा हाथ अपने सीधे हाथ में पकड़कर उसके साथ नहीं चल सकते। (24)
कोई
गुनाह लज्जत (शौक) के लिए मत करना, क्योंकि लज्जत खत्म हो जाएगी, पर गुनाह बाकी रहेगा और कोई
नेकी तकलीफ की वजह से मत छोड़ना क्योंकि तकलीफ खत्म हो जायेगी पर नेकी बाकी
रहेगी। (25)
अगर दुनिया फ़तेह करना चाहते हो, तो अपनी आवाज़ मे नरम लहजा पैदा करो, इसका असर तलवार से ज़्यादा होता है। 26)
इन्सान का नुक़सान माल और जान के चले जान से नहीं होता है, बल्कि इंसान का सबसे बड़ा नुकसान किसी की नजर में गिर जाने से होता है। (27)
अगर दोस्त बनाना तुम्हारी कमज़ोरी है, तो तुम दुनिया के सबसे ताक़तवर इंसान हो। (28)
लोगों को उसी तरह माफ़ करो, जैसे तुम खुदा से उम्मीद रखते हो कि वह तुम्हें माफ करेगा।(29)
जिसको तुमसे सच्चा प्रेम होगा, वह तुमको व्यर्थ और नाजायज़ कामों से रोकेगा। (30)
इन्सान का अपने दुश्मन से इन्तकाम का सबसे अच्छा तरीका ये है कि वो अपनी खूबियों में इज़ाफा कर दे। (31)
कभी किसी के सामने अपनी सफाई पेश मत करो, क्योंकि जिसे तुम पर यकीन है उसे सफाई की जरुरत नहीं और जिसे तुम पर यकीन नहीं, वो किसी भी सफाई को नहीं मानेगा। (32)
प्यास नहीं होती तो पानी की कोई कीमत नहीं होती, मौत नहीं होती तो ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं होती और विश्वास ना हो तो दोस्ती की कोई कीमत नहीं होती। (33)
जब अल्लाह किसी से नाराज़ होता है तो उसे ऐसी चीज़ की तलब में लगा देता है जो उसकी किस्मत में नहीं होती। 34)
बात तमीज़ से और एतराज़ दलील (तर्क) से करो क्योंकि ज़बान तो हैवानो में भी होती है, मगर वह इल्म और सलीके से महरूम होते हैं। (35)
अगर दुनिया में सुकून होता तो अल्लाह को कौन याद करता, सुकून तो सिर्फ उन लोगों के पास है जो लोग अल्लाह की रज़ा को अपनी रज़ा समझते हैं। (36)
अपनी सोच को पानी के कतरों से भी ज्यादा साफ रखो क्योंकि जिस तरह कतरों से दरिया बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है। (37)
मैं खुदा से अक़्ल नहीं तक़दीर चाहता हूं, क्यूंकि मैंने बहुत से अक़्लमन्दोें को तक़दीर वालों की गुलामी करते देखा है। (38)
किसी की आंख तुम्हारी वजह से नम न हो, क्योंकि तुम्हें उसके हर आंसू का क़र्ज़ चुकाना होगा। किसी की बेबसी पे मत हंसो क्योंकि ये वक़्त तुम पर भी आ सकता है। (39)
झूठ बोलकर जीतने से बेहतर है कि सच बोलकर हार जाए। (40)
दोस्तों के ग़म में शामिल हुआ करो, लेकिन खुशियों में तब तक न जाना, जब तक वो खुद ना बुलाए। (41)
जब तुम्हारी जान पर ख़तरा हो तो सदक़ा (दान) देकर जान बचाओ, और जब तुम्हारे ईमान को ख़तरा हो तो अपनी जान देकर ईमान बचाओ। (42)
कभी तुम दूसरों के लिए दिल से दुवा मांग कर देखो, तुम्हें अपने लिए मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। (43)
अपने दुश्मन को हज़ार मौक़े दो कि वह तुम्हारा दोस्त बन जाए, लेकिन अपने दोस्त को एक भी मौक़ा मत दो कि वह तुम्हारा दुश्मन बन जाए। (44)
कम खाने में सेहत है, कम बोलने में समझदारी है और कम सोना इबादत है। (45)
किसी से मोहब्बत करने से पहले अपने दिल में कब्रस्तान बना लो, ताकि उसकी छोटी-छोटी गलतियों को दफ़न कर सको। (46)
अगर कोई शख्स अपनी भूख मिटाने के लिए रोटी चोरी करे तो चोर के हाथ काटने के बजाए बादशाह के हाथ काटे जाएं। (47)
सम्मान पूर्वक साफगोई से मना कर देना एक बड़े और झूठे वादे से बेहतर होता है। (48)
अगर तुम किसी को छोटा देख रहे हो, तो या तो तुम उसे बहुत दूर से देख रहे हो, या फिर से गुरुर से देख रहे हो। (49)
इन्सान भी कितना अजीब है कि जब वह किसी चीज़ से डरता है, तो वह उससे दूर
भागता है लेकिन अगर वह अल्लाह से डरता है, तो उसके और करीब हो जाता है। (50)
जो तुम्हारी खामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा न कर सके, उसके सामने ज़ुबान से इज़हार करना सिर्फ़ लफ्ज़ों को बरबाद करना है। (51)
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Zakir Bhai thanks
जवाब देंहटाएंNice Alfaz hain thanks
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत line
जवाब देंहटाएंMasaallah
जवाब देंहटाएंHazrat ali se accha koi philosophy nhi
जवाब देंहटाएंबेशक
हटाएंYa shere khuda
जवाब देंहटाएंYa muskil kudha
Hazrat Ali Sher-e-khuda ya Ali Mushakil kusha
हटाएंNek...raah...bataye...hai..hajrat...muhammad..
जवाब देंहटाएंNe.....lekin...ab....bhi....insaan....yah....kahega...
Unka....bataya...raah...sahi..nahi....inka...bataya...raah...sahi...hai...
Matlab....jo...ye...hajrat..ne...bataya....wo...bande...
Unki...baato...ko..aml..na..kar...dharm...ko..samjhne..
Me..lage..hai....wo...banda...hi...sahi...nahi..hai..
........sachaai......ki...raah...ka...ek...musafir....
MashaAllah Bahut se sikh mili
जवाब देंहटाएंYaa allah......
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