भारत के इतिहास में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ऐसे पहले महापुरूष थे जिन्होंने समाज में समान अधिकारों की बात की। वे हमेशा ऐसी व्यवस्था के लिये संघर्ष करते रहे, जिसमें सभी लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से समान हो। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय लाभांश पर एक ऐतिहासिक, विश्लेषणात्मक और व्यापक आर्थिक अध्ययन प्रस्तुत किया। 14 अप्रैल 2017 को डॉ. अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर पढ़ें युवा लेखक मनीष श्रीवास्तव की कलम से उनके जीवन और दर्शन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।
समान अधिकारों के पुरजोर समर्थक डॉ. भीमराव अम्बेडकर
-मनीष श्रीवास्तव
भीम का परिवार मूलतः कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले के दापोली तालुक के अम्बावडे गांव का रहने वाला था। जिसकी वजह से शुरू में भीम का उपनाम अम्बेडकर पड़ा। भीमराव की मां का नाम भीमाबाई Bhimabai था। भीमराव मां-पिता की चौदहवीं संतान थे और अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे।
भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा-दीक्षा:
भीमराव में पढ़ने की ललक बचपन से ही रही। वे अस्पृश्य जाति के पहले युवक थे जिन्होंने उस समय हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। अस्पृश्य जाति के लोगों के लिये गौरव और अचरज की बात थी कि उनकी जाति में ऐसा एक बालक हुआ है जिसने यह करिश्मा कर दिखाया। किन्तु इसके बाद भी अम्बेडकर को आगे की पढ़ाई करने के लिये बेहद जद्दोजहद करनी पड़ी। जैसे-तैसे उन्होंने बीए की परीक्षा भी पास कर ली। वे अभी भी और उच्च अध्ययन करना चाहते थे। ऐसे समय में बड़ौदा महाराज द्वारा दी गई छात्रवृत्ति उनके काम आई। बीए करने के बाद में बड़ौदा महाराज द्वारा दी गई छात्रवृत्ति पर अम्बेडकर उच्च अध्ययन के लिये अमेरिका चले गये।
13 जुलाई सन् 1913 को भीमराव अमेरिका के प्रसिद्ध शहर न्यूयार्क पहुंचे जहाँ उन्होंने आगे का अध्ययन किया। बाद में डॉ. सेलिंगमेन Dr. Seligman के प्रयासों से उनकी छात्रवृत्ति एक वर्ष के लिये बढा दी गई और आगे की पढ़ाई उन्होंने लंदन में की। इस तरह अम्बेडकर का प्रारंभिक जीवन काफी संघर्ष भरा रहा। उन्हें कदम-कदम पर जाति आधारित समाज में छुआछूत के चलते कड़े इम्तिहान देने पड़े। लेकिन अपने कौशल और कुछ कर गुजरने की चाह के बल पर वे एक के बाद एक समस्त बाधाओं को पार करते हुये हमेशा आगे बढ़ते गये।
उच्च अध्ययन के बाद उन्हे आर्थिकी और सामाजिक विषयों का गहरा ज्ञान हो गया। जब वे इस ज्ञान के साथ भारत लौटे तो उन्होंने अपने संपूर्ण ज्ञान का उपयोग समाज की भलाई के लिये करना प्रारंभ कर दिया। उनका कहना था कि मेरा सामाजिक दर्शन केवल तीन शब्दों में रखा जा सकता है। वे शब्द हैं- स्वतंत्रता, समता और बन्धुभाव। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि मानवजाति को सामाजिक और आर्थिक न्याय हासिल हो।
भीमराव अम्बेडकर के विचार:
डॉ. अम्बेडकर ने प्रजातंत्र की सफलता के लिये छः शर्तें बताई -
* समाज में स्पष्ट रूप से कोई असमानता न हो।
* विपक्ष विद्यमान हो।
* विधि और प्रशासन में समानता।
* संवैधानिक नैतिकता का पालन।
* समाज में नैतिक व्यवस्था का संचालन।
* सार्वजनिक अंतर्विवेक।
इन बिंदुओं में दी गई प्रथम शर्त कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के लिये सबसे महत्वपूर्ण है। उनकी यह शर्त उस समय छुआछूत संबंधी व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुये कही गई थी, लेकिन यह शर्त इस संदर्भ में आज भी उतनी ही प्रासंगिक है कि समाज में कोई ऐसी असमानता न हो जिससे आर्थिक खाई का निर्माण हो। एक वर्ग के पास समस्त संसाधन और अधिकार हो तथा दूसरा वर्ग हर सुविधा के लिये मोहताज हो।
डॉ. अम्बेडकर की प्रथम शर्त के अनुसार कल्याणकारी समाज में स्पष्ट रूप से कोई असमानता नहीं होना चाहिये। समाज ऐसा न हो कि एक वर्ग को तो सारे विषेषाधिकार प्राप्त हो और दूसरे वर्ग को सारे दायित्व का भार वहन करना पड़े। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार- ‘असमानता से भरे समाज में रक्त-क्रांति के जीवाणु निहित होते हैं। वर्गहीन समाज को ही आर्थिक प्रजातंत्र कहा जा सकता है।’
श्री जेम्ब बर्नहम द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार- ‘आर्थिक प्रजातंत्र आर्थिक रूप से वर्गहीन समाज की स्थिति है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व राज्य में निहित होना चाहिये। परन्तु राज्य में नियंत्रण सभी में समान रूप से होना चाहिये। समाज के किसी भी वर्ग या समूह को, अन्य को नियंत्रित करने के लिये, किसी दूसरे वर्ग या समूह के विरूद्ध लाभ प्राप्त नहीं होना चाहिये।’
कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में डॉ. अम्बेडकर का मत था कि आर्थिक गतिविधियों से जुड़ी हुई सामाजिक व्यवस्था का एक प्रमुख कार्य समान व्यवस्था को बनाये रखना होता है। किन्तु जब एक वर्ग के पास संपत्ति की बहुतायत हो जाती है और एक दूसरे वर्ग को मूलभूत सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है तो एक खाई बनती है। इससे समाज दो टुकड़ों में विभक्त हो जाता है। जिससे प्रजातांत्रिक देष में कई विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती है। इसलिये जरूरी है कि आर्थिक खाई को पाटकर समानता आधारित समाज को निर्माण किया जाए।
राज्य समाजवाद बनाम संसदीय व्यवस्था:
डॉ. अम्बेडकर प्रारंभ में राज्य समाजवाद के माध्यम से आदर्श समाज की स्थापना के पक्षधर थे। स्वतंत्र भारत के संविधान में दलितों एवं अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से डॉ. अम्बेडकर ने सरकार को एक ज्ञापन दिया था, जो बाद में ‘स्टेट एण्ड माइनॉरिटीज_ States and minorities’ (1947) नाम से एक लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुआ था। इस ज्ञापन में अन्य बातों के साथ डॉ. अम्बेडकर ने संविधान में राज्य समाजवाद संबंधी निम्न मुख्य व्यवस्थाओं को सम्मिलित किये जाने का प्रस्ताव किया था, जिससे कि समाज के बहुसंख्यक कमजोर वर्ग के लोगों को आर्थिक शोषण के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान की जा सके-
1. सभी मूलभूत उद्योग या जिन्हें इस रूप में घोषित किया जा सकता है, राज्य स्वामित्व के अंतर्गत हों और उन्हें राज्य द्वारा चलाया जाये।
2. वे सभी उद्योग भी जो मूलभूत उद्योग तो नहीं है किन्तु बुनियादी उद्योग हैं, राज्य के ही अधीन हों और राज्य द्वारा संचालित किए जायें।
3. बीमा पर राज्य का अधिकार हो।
4. कृषि राज्य उद्योग हो।
डॉ. अम्बेडकर राज्य समाजवाद की योजना के अंतर्गत बेहतर उत्पादन की दृष्टि से कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों में पूंजी निवेश का दायित्व राज्य व्यवस्था पर देने के हिमायती थे। उन्होंने कृषि उद्योग को सामूहिक कृषि के रूप में संचालित करने हेतु आवश्यक संवैधानिक व्यवस्था किये जाने की सिफारिश की थी। उनका कहना था कि टेनेन्सी एक्ट कृषि में आवश्यक सुधार लाने में नाकामयाब रहे हैं। इन कानूनों से आगे भी दलितों को कोई लाभ नहीं पहुंचने वाले हैं। औद्योगिकरण के द्रुतगामी विकास की दृष्टि से राज्य समाजवाद आवश्यक है। व्यक्तिगत उद्यम से समानता आधारित समाज स्थापित नहीं हो सकता है। व्यक्तिगत उद्यम को बढ़ावा देने से यूरोप जैसे पूंजीवाद समाज की स्थापना होगी। इससे आर्थिक विषमता और बढ़ेगी।
अम्बेडकर का सोचना था कि राज्य समाजवाद से मालिकों व पूंजीपतियों के हाथों श्रमिकों का शोषण बंद किया जा सकता है।
किन्तु बाद में डॉ0 अम्बेडकर ने यह महसूस किया कि भारत जैसे विविध संस्कृति, जाति और वर्ग आधारित समाज में अकेले राज्य आधारित समाजवाद की अवधारणा से प्रजातंत्र का निर्माण संभव नहीं हो सकता है। इसलिये आगे चलकर उन्होंने राज्य समाजवाद पर जोर देना छोड़ दिया और समाज के आर्थिक ढांचे के स्वरूप के निर्धारण का दायित्व लोगों पर छोड़ना मुनासिब समझा। क्योंकि संविधान के माध्यम से इसके स्वरूप का यदि एक बार निर्धारण हो जाता तो समय व परिस्थिति के अनुकूल इसमें परिवर्तन ला पाना लोगों के लिए कठिन हो जाता। इसी के फलस्वरूप बाद में संसदीय प्रजातंत्र व्यवस्था का निर्माण संभव हो सका। इस तरह अम्बेडकर ने हमेशा समाज की भलाई सोची। वे स्वयं सुधार की भावना से प्रेरित होकर सामाजिक उत्थान के कार्य करते रहे।
डॉ0 अंबेडकर ने भारतीय संविधान में इस बात का विषेष रूप से उल्लेख किया गया है कि राज्य जनता के निम्न आर्थिक अधिकारों तथा समाज-सुरक्षा के सिद्धान्तों के परिपालन की पूरी-पूरी व्यवस्था करें (अनुच्छेद 36-51)-
1. जीविका के पर्याप्त साधन।
2. धन का न्यायोचित वितरण।
3. समान कार्य के लिये समान वेतन।
4. बाल श्रमिकों तथा प्रौढ़ श्रमिकों को सुरक्षा।
5. रोजगार।
6. चौदह वर्ष की आयु तक के बालक-बालिकाओं के लिये निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा।
7. बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी असमर्थता तथा अन्य प्रकार की अशक्तता की स्थिति में सरकारी सहायता।
8. निर्वाह योग्य मजदूरी।
9. काम की शर्तें जिनके अनुसार उत्तम जीवन स्तर, अवकाष का पूर्ण उपयोग और सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर प्रदान करने की व्यवस्था हो।
10. पुष्टि पोषण के स्तर में वृद्धि तथा स्वास्थ्य सुधार।
डॉ. अम्बेडकर का आर्थिक चिन्तन जीवन के यथार्थ अनुभव से प्रेरित था। वे मूलतः समाजशास्त्री थे। उनके अध्ययन, अध्यापन और लेखन की शुरूआत अर्थशास्त्र से हुई। उनका मानना था कि यदि परिस्थितियोंवश उन्हें सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्रों में कार्य करने को विवश नहीं होना पड़ता, तो वे अर्थशास्त्र का शिक्षक बने रहना पसन्द करते।
डॉ0 अम्बेडकर ने अपने संपूर्ण जीवन में सामाजिक समानता लाने की दिशा में कार्य किया। इसके लिए उन्होंने कभी कोई समझौता किये बिना महत्वपूर्ण फैसले लिए। उन्होंने घोर संघर्ष कर गहन अध्ययन किया। अपने संपूर्ण ज्ञान का उपयोग सदैव समता आधारित समाज के निर्माण में किया। आज वे युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं और उनका नाम भारतीय महापुरूषों में अग्रणी रूप से लिया जाता है।
मनीष श्रीवास्तव युवा लेखक हैं और समाज तथा विज्ञान से सम्बद्ध विषयों पर खोजपरक लेखन करने के लिए जाने जाते हैं।
वर्तमान में आप भोपाल से प्रकाशित होने वाली विज्ञान पत्रिका ‘इलेक्ट्रॉनिक आपके लिए’ में सह-संपादक के रूप में कार्यरत हैं।
आपसे निम्न ईमेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है: यूट्यूब पर देखें डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रेरक विचार:
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रेरक उद्गार पढवाने के लिए आभार।
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