अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी और रोचक घटना।
दिनांक 27 मार्च 2015 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, राजनीतिज्ञ और कवि अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उनके आवास पर जाकर 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। वे यह सम्मान पाने वाले छठे प्रधानमंत्री हैं। इससे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (1955), लाल बहादुर शास्त्री (मरणोपरांत, 1966), इंदिरा गांधी (1971), मोरारजी देसाई (1991), और राजीव गांधी (मरणोपरांत, 1991) को यह सम्मान प्राप्त हो चुके है।
सन 1942 मेें भारत छोडो आंदोलन से अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत करने वाले एक सहृदय इंसान, कुशल प्रशासक (अपने ही मुख्यमंत्री को राजधर्म निभाने की सीख देने वाले) और बेहतरीन कवि (कविताएं यहां पढ़ें) के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतों के कारण वे पिछले काफी समय से सक्रिय जीवन में नहीं हैं, पर उनका जीवन एक खुली किताब होने के कारण लाखों लोगों को प्रेरित करता रहा है। यहां प्रस्तुत है उनके जीवन की एक बेहद रोचक, प्रेरक और सच्ची घटना, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं:
मैं उसी गांव से हूं, जहां आपकी कार से भैंस मर गयी थी
सन 1980-81 की घटना है। वे अपने निजी सहायक शिव कुमार के साथ कार से आगरा जा रहे थे। रास्ते में फरा गांव के पास अचानक एक भैंसों का झुंड आ गया, जिससे कार की भैंसो से टक्कर हो गयी। इस टक्कर के कारण वाजपेयी जी की कार पलट गयी। हालांकि कार में सवार किसी भी व्यक्ति को चोट तो नहीं लगी, किन्तु जिस भैंस से कार की टक्कर हुई थी, वह मर गयी। यह देखकर कार को गांव वालों ने घेर लिया और शोर शराबा करने लगे।
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भीड़ किसी तरह से कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। वह बेहद आक्रामक हो उठी। मजबूरन उनके निजी सहायक शिव कुमार को अपनी रिलाल्वर निकाल कर हवाई फायर करना पड़ा। तक जाकर किसी तरह से स्थिति संभली। उसके बाद वे पास में ही स्थित सिकंदरा थाने पर पहुंचे और सारी बात बताई। साथ ही अटल जी ने भैंस के मालिक को बुलाकर उसे हर्जाना देने का भी आग्रह किया। किन्तु थानेदार ने उसे अपने स्तर से निपटा लेने की बात कहकर उन्हें जाने का आग्रह किया। पहले तो अटल जी उसकी बात से नहीं माने, पर जब थानेदार ने उन्हें बार-बार विश्वास दिलाया कि किसान को मुआवजा दिला दिया जाएगा, तो वे आश्वस्त हो गये और आगरा चले गये। उसके बाद काफी दिनों तक वह बात उन्हें सालती रही। लेकिन धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ता रहा और वह बात आई-गई हो गयी।
लगभग दो साल के बाद एक दिन अटल जी के पास एक नेत्रहीन कवि आया और उसने गणतंत्र दिवस पर लालकिले में होने वाले कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। जब उससे पूछा गया कि आप कहां से आए हो, तो वे झट से बोल उठा- मैं उसी गांव से हूं, जहां आपकी कार से भैंस मर गयी थी।
यह सुनकर अटल जी के मन में दबा पड़ा पाप-बोध जाग उठा। वे बोले- मैं एक शर्त पर तुम्हारी सिफारिश करूंगा। पहले तुम्हें उस भैंस के मालिक को मरे सामने लेकर आना होगा। उसकी भैंस के मरने का दु:ख मुझे आज तक साल रहा है। मैं उसका हर्जाना देकर अपना पाप-बोध मिटाना चाहता हूं। यह सुनकर वह कवि गदगद हो उठा। उसने भैंस के मालिक को लाकर अटल जी के सामने हाजिर कर दिया। अटल जी ने भैंस के मालिक से क्षमा मांगते हुए उसे 10 हजार रूपये हर्जाना दिए। (घटना हिंदुस्तान से साभार)
इससे पता चलता है कि वे कितने सहृदय इंसान थे, दूसरों के दु:ख, दर्द को समझते थे और स्वयं द्वारा अंजाने में भी हो जाने वाली गलतियों के लिए सच्चे मन से प्रायश्चित के लिए तत्पर रहते थे।
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आपके पास भी इस तरह की प्रेरक लघु कथाएं हो, तो आप हमें zakirlko AT
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A good memoir... Kudos to you for sharing it...
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंग .
जवाब देंहटाएंसचमुच ,अटल जी जैसे सच्चे इन्सान विरले ही होते है . रोचक कर प्रेरक कथा .
जवाब देंहटाएं२७ अगस्त २०१५ ?? शायद भूल से लिख गया है .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गिरिजा जी।
हटाएंविरले ही होते हैं ऐसे संवेदनशील इंसान ... रोचक प्रसंग ...
जवाब देंहटाएंthere are no word for our greatest p.m
जवाब देंहटाएंthere are no word for our greatest p.m
जवाब देंहटाएंmore inspiring
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंग...
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