Motivational Story in Hindi by Zakir Ali Rajnish
(जाकिर अली रजनीश की यह एक शुरूआती बाल कहानी है, जो काफी चर्चा में रही है। इस कहानी को अल्मोडा, उत्तरांचल से प्रकाशित त्रैमासिक बाल पत्रिका "बाल प्रहरी" ने इस कहानी को 13 एवं 14 जून को भीमताल, नैनीताल, उत्तरांचल में आयोजित बाल साहित्य सम्बंधी गोष्ठी में वर्ष 2008 की सर्वश्रेष्ठ कहानी के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।)
जैसे ही सरवर के छमाही परीक्षाफल पर उसके अब्बू की नजर पड़ीं, उनका मूड खराब हो गया। सरवर दो विषयों में फेल था। वाकई यह बहुत बड़ी बात थी?और फिर ऐसे में उनका मूड भला क्यों न खराब होता? उनका मन हुआ कि वे छड़ी उठाएं और सरवर को पीटना चालू कर दें। पर खैरियत यह कि सरवर उस समय वहां पर था नहीं, नहीं तो.........
´´मुझे तो पहले से ही इस लड़के के रंग-ढंग सही नहीं दिख रहे थे।´´ उन्होंने सरवर की अम्मी को सम्बोधित कर कहना शुरू किया, ´´जब देखो, तब पेfन्टंग। पेfन्टंग के आगे पढ़ाई-लिखाई सब गोल। आने दो आज लाट साहाब को। मार-मार कर भूत न बना दिया, तो मेरा नाम भी ..............।´´
´´अरे, किसे डांट रहे हो भाई?´´ यह स्वर वर्माजी का था, जो सरवर के अध्यापक थे और उसी समय वहां आ गये थे।
´´आइए वर्माजी, ये देखिए अपने शिष्य का कारनामा।´´ उनकी तरफ परीक्षाफल बढाते हुए अब्बू बोले, ´´दो विषयों में फेल हैं लाट साहब!´´
तभी सरवर भी वहां आ गया। लेकिन उसने वहां पर रूकना उचित नहीं समझा और वर्मा सर को नमस्ते करके अंदर कमरे में चला गया।
´´हां, मुझे सब मालूम है।´´ कुर्सी पर बैठते हुए वर्मा जी बोले, ´´मैंने इसके दोस्तों से सारी बात पता की है। और अगर सही मायनों में देखा जाए, तो इसमें आपकी ही ज्यादती है।´´
´´मेरी ज्यादती?´´ सरवर के अब्बू चौंके।
´´हां, क्योंकि आपने उसकी भावनाओं का ठीक ढंग से समझा ही नहीं।´´
´´सो कैसे?´´
´´देखिए, यह तो आप जानते ही हैं कि सरवर बहुत अच्छे चित्र बनाता है। पिछले साल स्कूल की प्रतियोगिता में उसने प्रथम पुरस्कार भी जीता थ्रा।´´
´´हां, वो तो है।´´ कहते हुए उन्हें वह दिन याद आ गया। ‘शाम को आफिस से लौटने पर जब उन्हें वह समाचार मिला था, तो वे बहुत खुश हुए थे। लेकिन जब उन्हें यह मालूम चला था कि इसके लिए सरवर ने प्रैfक्टस में कितने घंटे खपाए हैं, तो वे बहुत नाराज हुए थे। इतने से इनाम के लिए इतना कीमती समय बरबाद करने से फायदा? अगर इतनी देर ठीक से पढाई की होती, तो एक पेपर तैयार हो गया होता।
सरवर के अब्बू के चेहरे को पढ़ते हुए वर्मा जी ने बात आगे बढाई, ´´पर आपने उसकी प्रशंसा में दो शब्द कहने तो दूर, उसे बुरा-भला कहा। इससे उसकी भावनाएं कुंठित हो गयीं। पहले तो वह सिर्फ खाली समय में चित्र बनाता था, लेकिन जब आपने उसके सम्मान को ठेस पहुंचाई, तो वह चोरी-छुपे
पढने के समय में भी चित्रों को बनाने लगा।´´
´´लेकिन उसको नहीं करना चाहिए था।´´
´´ऐसा आप इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि आपको बच्चों का स्वभाव नहीं मालूम। बालक का यह स्वभाव होता है कि जिस काम को करने से उसे रोका जाए, वह उसी काम को करता है। ऐसा करके वह दिखाना चाहता है कि आपकी मर्जी के सिवा भी उसका कोई व्यक्तित्व है। जैसा कि आपने स्वयं....´´
´´ओह, इसका मतलब है यदि,...?´´
´´हां, यदि आप उसे डांटने-फटकारने के बजाए उसकी सराहना करते और उसे प्यार से समझाते, तो शायद यह दिन कभी न देखना पड़ता। पहले की तरह आज भी वह दोनों क्षेत्रों में अव्वल होता।´´
´´हां, पिछले साल तो वह प्रथम आया ही था।´´ कहते हुए सरवर के अब्बू ने एक लंबी सांस ली।
तभी सरवर चाय लेकर वहां आया और चाय के कपों को मेज पर सजाने लगा। उसका हाथ थाम कर अब्बू बोले, ´´देखो बेटे, जो कुछ हुआ, उसे तुम भूल जाओ। मुझे तुम्हारे चित्र बहुत पसंद हैं। कल ही मैं तुम्हारे लिए चित्रकारी का सामान ला दूंगा। पर एक शर्त है। पहले पढ़ाई, फिर चित्रकारी।´´
´´मुझे आपकी शर्त मंजूर है।´´ कहते हुए सरवर खुशी से झूम उठा। उसके चेहरे पर खुशियों के अनेक रंग बिखर गये और वह भी एक खूबसूरत चित्र सा नजर आने लगा।
नोट: कहानी के अन्यत्र उपयोग हेतु लेखक की अनुमति आवश्यक है।
संपर्क सूत्र: zakirlko AT gmail DOT com
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बहुत सुंदर कहानी. बधाई हो.
जवाब देंहटाएंरामराम.
sakaratmak soch! achchi kahani hain
जवाब देंहटाएंअच्छा अंदाज़ कहने का। एक पुरानी बात को नये परिपेक्ष्य में कहना भाया...
जवाब देंहटाएंबधाई, सर!
कहानी तो अच्छी लगी मगर इसकी प्रस्तुति, भाव और सन्देश व पात्र तक मुझे आपकी पुस्तक विज्ञान कथा की एक कहानी के समान लगी जिसके बालक रेडियो की ऐसी बैट्री बनाना चाहता था जिसे कभी चार्ज न करना पड़े ......
जवाब देंहटाएंएक ही विषय पर एक ही तरह की दो कहानी ...ऐसा क्यों भई ???
वीनस केसरी
सुन्दर तरीके से कही है आपने कहानी............सादे शब्दों में
जवाब देंहटाएंवीनस भाई, आपने सही पहचाना। वह कहानी बडों के लिए थी और यह बच्चों के लिए। इसीलिए उसी विषय को अलग अलग ढंग से लिखा गया है। हाँ, इससे इतना तो तय है कि आपने दोनों कहानियां ध्यान से पढी हैं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छी कहानी. बच्चों की भावनाओं को समझना और प्यार से रखना जरूरी है.
जवाब देंहटाएंdear zakir,
जवाब देंहटाएंthis is again a good story. zakir please provide the dates of your post also.
shamim
Good story, Very nice blog
जवाब देंहटाएंbahut badiya kahani hai kai baar kya ham aksar hi bachon par apni bat jabardasti thhopana chahte hain use samjhe bina unka iterest create kiye bina apki kahani bahut achhi hai badhai
जवाब देंहटाएंdil khush ho gaya ye kahani padh kar .....
जवाब देंहटाएंkahni se aapne jo sandesh diya hai uske liye aapko BAHUT-BAHUT BADHAI....
जवाब देंहटाएंZakir Ali"Rajnish" ji....
जवाब देंहटाएं..namaskaar..!
Shayad aapko yaad hoga... kai saal pahle hum Lucknow/Unnao mein Yuva-Bharat ke sandarbh mein mile the.... aapne apna naam bataya tha... jo ki mera hi naam hai... "Rajnish" ...
.... agar aapko kuchh yaad aaye to mujhse sampark kijiye.. raznice@gmail.com
...
...
Aur haan aap to lekhan me bahut hi maahir hai... aapko fir jaankar bahut achha laga....
... aapka bula-bichhada dost Rajnish K Sharma- lucknow
बढीया मुबारक हो-
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है
http://sim786.blogspot.com/
कृपया अपने अमुल्य सुझाव एवं टिप्पणी दे।
बालमन को समझने की जरूरत है भली प्रकार । कहानी खूबसूरत है ।
जवाब देंहटाएंBahut achchi lagi aapki kahani.Badhai.
जवाब देंहटाएंprerna dayk kahani
जवाब देंहटाएं९०% से भी ज्यादा मां-बाप अपने बच्चे को वो बनाना चाहते है जो उनकी इच्छा है. बच्चे की रूचि किस में है, इससे उनका सरोकार नहीं होता. बच्चे में यदि गायन, अभिनय, संगीत, चित्रकारी के प्राकृतिक गुण हैं तो रहें, बाप ने डॉक्टर-इंजीनियर बनने का सपना देखा है तो उसके लिए नादिरशाही फरमान जारी हो जायेगा. उनकी इस इच्छा की बलिवेदी पर यदि बच्चे का एकेडमिक कैरियर बर्बाद होता है तब भी बच्चे को ही फजीहत झेलनी होती है. आप ने जिस कथा का चयन किया है, वह शायद बहुतों की आँखें खोल दे.
जवाब देंहटाएंरोचक बाल-कथा के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut hi achi kahani hai Rajnish ji......aapka andaaz kaabiley taareef hai!!
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
जवाब देंहटाएं__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
Bahut sundar kahani.
जवाब देंहटाएंhaqiqat he/
जवाब देंहटाएंab itani lambi aour achhi kahaani par do line ki tippani me nahi de sakata/ isliye janaab, baad me kabhi aapko vistaar se likhne ki ichha he, dekhe ye ichha kab poori hoti he/
badhaai sahit
aapka
Amitabh
यूँ ही प्रगति करते रहें!
जवाब देंहटाएंनए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"
FONT लिखने के चौबीस ढंग
संपादक : "सरस पायस"
Rajanish ji
जवाब देंहटाएंaap ko pahale bhi padhti rahi hoon ,bal mano vigyan ki aachchi kahani hai .badhai.
pavitra agarwal