अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय - Ahilyabai Holkar Ki Biography in Hindi
अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय
Ahilyabai Holkar Biography in Hindi
अत्यंत धार्मिक और न्यायप्रिय महिला के रूप में प्रसिद्ध अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को अहमद नगर, महाराष्ट्र के चौड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता Ahilyabai Holkar Father मांकोजी राव शिंदे (Mankoji Shinde) गांव के पाटिल थे। उस समय लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। पर इसके बावजूद मांकोजी राव शिंदे ने अपनी पुत्री की पढ़ाई लिखाई पर पूरा ध्यान दिया, जिससे वे आगे चलकर एक योग्य महारानी के रूप में चर्चित हुईं।अहिल्याबाई के होल्कर साम्राज्य की रानी बनने के पीछे उनका भक्तिभाव ही प्रमुख कारण था। बताते हैं कि सन 1733 में मालवा के शासक मल्हार राव होल्कर, चौड़ी गांव से होकर गुजर रहे थे। गांव के बाहर शिव मंदिर देखकर उन्होंने वहां पर विश्राम करने का निश्चय किया। मल्हार राव जब दर्शनों के लिए मंदिर के अंदर गये, तो वहां पर उन्होंने 8 वर्ष की बालिका अल्यिाबाई को देखा, जो पूरी तन्मयता से पूजा कर रही थी। उसे देखकर वे अहिल्या से बेहद प्रभावित हुए और उसे अपनी बहू बनाने का निश्चय कर लिया।
होल्कर वंश की स्थापना Holkar Vansh ke Sansthapak
मल्हार राव होल्कर (Malhar Rao Holkar) कोई पारम्परिक राजा नहीं थे। वे मूलरूप से होल गांव के निवासी थे, इसलिए होल्कर कहलाते थे। उनका जन्म 16 मार्च 1693 को एक चरवाहा परिवार में हुआ था। युवा होने पर मल्हार राव पेशवा बाजीराव प्रथम (Baji Rao I) की सेना में भर्ती हो गये। धीरे धीरे उन्होंने अपनी वीरता और काबिलियत के बल पर पेशवा का दिल जीत लिया। उनकी योग्यता को देखकर पेशवा ने उन्हें मालवा का प्रशासक नियुक्त कर दिया। इस प्रकार पेशवा के संरक्षण में मालवा में होल्कर वंश की स्थापना हुई।
अहिल्याबाई होल्कर का विवाह Ahilyabai Holkar Marriage Life
सन 1733 में 8 वर्ष की आयु में अहिल्या का विवाह मल्हार राव होल्कर के पुत्र खाण्डेराव होलकर (Khanderao Holkar) से हो गया। शादी के 10 साल बाद यानि 1745 में उन्होंने मालेराव (Male Rao Holkar) के रूप में एक पुत्र को जन्म दिया। उनकी दूसरी संतान का नाम मुक्ताबाई (Muktabai Holkar) था, जिसका जन्म 1748 में हुआ था।
अहिल्याबाई को ज्यादा दिनों तक पति का साथ नहीं मिल सका। सन 1754 में उनके पति खाण्डेराव, कुम्हेर के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इससे अहिल्याबाई बेहद दु:खी हो गयीं और उन्होंने सती होने का निश्चय किया। पर उनके श्वसुर के काफी समझाने के बाद उन्होंने अपना निश्चय बदल दिया और शिव की भक्ति में लीन हो गयीं।
खाण्डेराव के निधन के 12 साल बाद 1766 में मल्हार राव होल्कर स्वर्गवास हो गया। ऐसे में अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालेराव होल्कर का मालवा की गद्दी पर बैठाया। पर 1 साल बाद ही उनके पुत्र मालेराव का भी निधन हो गया। मालेराव का निधन का कारण (Male Rao Holkar Death Reason) क्या था, इसपर कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार मालेराव के निधन की मुख्य वजह मानसिक बीमारी बताई जाती है।
अहिल्याबाई होल्कर की प्रशासन व्यवस्था Ahilyabai Holkar Administration
पुत्र की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने सन 1767 में मालवा की महारानी का पद संभाला। उन्होंने मल्हार राव के दत्तक पुत्र तुकोजी राव को मालवा का सेनापति बनाया और अपनी मृत्यु तक अर्थात 1795 तक जनता की सेवा की।
अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक थीं और अपनी बुद्धिमत्ता से कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रास्ता निकाल लेती थीं। ऐसी ही एक घटना उनके शासन संभालने के समय ही घटी। हुआ यूं कि उनके रानी बनने से अनेक राजा चिढ़ गये। उन्हीं में से एक रघोवा भी था। उसने अपनी सेना लेकर मालवा पर धावा बोल दिया। अहिल्याबाई अपने सेनापति तुकोजी राव के साथ युद्धभूमि पर जा पहुंची।
लेकिन युद्ध शुरू होने से पहले अहिल्याबाई ने एक युक्ति आजमाने की सोची। उन्होंने रघोवा को एक पत्र लिखा। जिसमें लिखा हुआ था कि अगर आपने आज का यह युद्ध जीत लिया, तो भी लोग यही कहेंगे कि आपने दु:ख में डूबी एक महिला को हराकर यह लड़ाई जीती। लेकिन अगर आज का यह युद्ध आप हार गये, तो सोचिए आपकी कितनी बेइज्जती होगी। लोग कहेंगे कि रघोवा एक महिला से भी हार गये।
अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक थीं और अपनी बुद्धिमत्ता से कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रास्ता निकाल लेती थीं। ऐसी ही एक घटना उनके शासन संभालने के समय ही घटी। हुआ यूं कि उनके रानी बनने से अनेक राजा चिढ़ गये। उन्हीं में से एक रघोवा भी था। उसने अपनी सेना लेकर मालवा पर धावा बोल दिया। अहिल्याबाई अपने सेनापति तुकोजी राव के साथ युद्धभूमि पर जा पहुंची।
लेकिन युद्ध शुरू होने से पहले अहिल्याबाई ने एक युक्ति आजमाने की सोची। उन्होंने रघोवा को एक पत्र लिखा। जिसमें लिखा हुआ था कि अगर आपने आज का यह युद्ध जीत लिया, तो भी लोग यही कहेंगे कि आपने दु:ख में डूबी एक महिला को हराकर यह लड़ाई जीती। लेकिन अगर आज का यह युद्ध आप हार गये, तो सोचिए आपकी कितनी बेइज्जती होगी। लोग कहेंगे कि रघोवा एक महिला से भी हार गये।
उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद राघोवा डर गया। उसने युद्ध का फैसला बदल दिया और पत्रवाहक से बोला, 'किसने कहा कि हम लड़ने आए हैं, हम तो उनके बेटे की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आए हैं।' और इस तरह अहिल्याबाई ने बिना लड़े हुए वह युद्ध जीत लिया।
अहिल्याबाई की समझदारी का एक और निर्णय उनकी पुत्री के विवाह से भी सम्बंधित है। हुआ यूं कि एक बार उनके राज्य में एक डकैत का आतंक काफी बढ़ गया था। उससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने यह घोषणा कर दी, कि जो कोई डकैत का खात्मा करेगा, उससे वो अपनी बेटी मुक्ताबाई का विवाह करेंगी। यह घोषणा सुनकर यशवंतराव नामक युवक ने अत्यंत साहस का परिचय दिया और उस डकैत को मार गिराया। अहिल्याबाई यशवंत राव की इस बहादुरी से बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने अपनी पुत्री मुक्ताबाई का विवाह यशवंत राव से कर दिया।
अहिल्याबाई ने अपने राज में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये, जिनमें मालवा की राजधानी को इंदौर से महेश्वर ले जाने का निर्णय प्रमुख था। उन्होंने यह निर्णय सुरक्षा की दृष्टि से लिया था। इसके अलावा उन्होंने 500 महिलाओं की सेना का भी गठन किया और उनकी मदद से चंद्रवत राजा को हराया भी।
अहिल्याबाई होल्कर का न्याय Ahilyabai Holkar Justice
अहिल्याबाई एक कुशल शासक के साथ बेहद न्यायप्रिय भी महिला थीं और किसी के साथ भेदभाव नहीं करती थी। इस सम्बंध में एक दंतकथा मालवा क्षेत्र में आज भी प्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार उनके पु्त्र मालोजी राव के रथ से टकराकर गाय के बछड़े की मृत्यु हो गयी। अहिल्याबाई इससे बेहद दुखी हो गयींं। उन्होंने मालोजीराव की पत्नी कृष्णाबाई होल्कर से पूछा कि अगर किसी मां के सामने उसने बच्चे को मार दिया जाए, तो मारने वाले को क्या दंड दिया जाना चाहिए। इसपर कृष्णाबाई ने तपाक से जवाब दिया कि ऐसे हत्यारे को तो प्राणदण्ड ही दिया जाना चाहिए।
यह सुनकर अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालोजी राव को उसी तरह रथ से टकरा कर मारने का आदेश दिया, जैसे उस बछड़े की मृत्यु हुई थी। पर इस निर्णय का पालन करने के लिए कोई भी रथ चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ। यह देखकर अहिल्याबाई ने स्वयं ही रथ का संचालन करने का निश्चय किया।
यह सुनकर अहिल्याबाई ने अपने पुत्र मालोजी राव को उसी तरह रथ से टकरा कर मारने का आदेश दिया, जैसे उस बछड़े की मृत्यु हुई थी। पर इस निर्णय का पालन करने के लिए कोई भी रथ चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ। यह देखकर अहिल्याबाई ने स्वयं ही रथ का संचालन करने का निश्चय किया।
जब अहिल्याबाई रथ लेकर निकलीं तो कहते हैं कि जिस गाय का बछड़ा मरा था, वह रथ के आगे आ गयी। इसपर सैनिकों ने उसे सामने से हटाया। लेकिन उसके बाद वह गाय पुन: रथ के सामने आ गयी। यह देख कर उनके महामंत्री ने कहा कि महारानी जी, यह गाय भी नहीं चाहती कि उसके बछड़े की हत्या के लिए राजकुमार को इस तरह से कुचला लाए। इसीलिए यह गाय बार—बार आपके रथ के सामने आ रही है। यह सुनकर अहिल्याबाई का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने अपने पुत्र को माफ कर दिया।
अहिल्याबाई ने न सिर्फ अपने भक्तिभाव से प्रजा के बीच लोकप्रियता हासिल की, वरन उन्होंने देश के सभी प्रमुख मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया, जिसमें काशी, गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनाथ, रामेश्वर और जगन्नाथपुरी के मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने जगह जगह पर सराय और धर्मशालाएं भी बनवाईं। उन्होंने राज्य के आय की 90 प्रतिशत राशि को इस मद में खर्च किया।
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु Ahilyabai Holkar Death Reason in Hindi
अहिल्याबाई होल्कर 70 वर्ष तक जीवित रहीं। 13 अगस्त 1795 को उनकी मृत्यु हुई। अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु का कारण था अचानक तबियत खराब होना। हालांकि राजवैद्य ने उन्हें समय से दवाएं वगैरह दीं, पर वे उन्हें बचा नहीं सके। उनके अच्छे व्यवहार और कार्यों के कारण पूरे मालवा क्षेत्र में उन्हें देवी का अवतार कहा जाता है।अहिल्याबाई की बहू कृष्णाबाई होल्कर (Krishna Bai Holkar) ने उनकी स्मृति में महेश्वर में एक किले का निर्माण कराया, जो महेश्वर के किले (Maheshwar Fort) के नाम से प्रसिद्ध है। यह किला नर्मदा नदी के तट पर स्थित है और आज भी अहिल्याबाई होल्कर की गौरवगाथा को बयान कर रहा है।
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