समकालीन बाल विज्ञान कथाएं: हिन्दी का सबसे वृहद बाल विज्ञान कथा संग्रह
'समकालीन बाल विज्ञान कथाएं' अनुक्रम
01. सुनहरी तितली - डॉ. अरविंद मिश्र
02. एलियंस से मुठभेड़ - प्रज्ञा गौतम
03. चिन्नी चली गई - देवेंद्र मेवाड़ी
04. मुंहनोचवा - प्रो. उषा यादव
05. पेरी ज़ेड सिग्मा 090 - डॉ. जाकिर अली 'रजनीश'
06. स्थानापन्न - अखिलेश शर्मा
07. रहस्यमयी पेनड्राइव - पंकज चुतर्वेदी
08. ऑपरेशन मार्स - अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन'
09. लू लू का आविष्कार - दिविक रमेश
10. जेम्स की अंतरिक्ष यात्रा - डॉ. मोहम्मद अरशद खान
11. प्रसन्न यंत्र - अर्शिया अली
12. बैलों वाली कार - डॉ. अरविंद दुबे
13. भूतों से सामना - दिनेश प्रताप सिंह 'चित्रेश'
14. नन्हां आइंस्टाइन - राजीव सक्सेना
15. बेबी रोबो - बसंती पवार
16. करामाती पत्थर - भगवती प्रसाद द्विवेदी
17. युगान्तर - बुशरा अलवेरा
18. रोबोट की दुनिया - अलका प्रमोद
19. चारूप्रिया का चमत्कार - नीलम राकेश
20. एनिमलेरियम की सैर - आइवर यूशिएल
21. एक सुपर वैज्ञानिक - कामना सिंह
22. मास्करोबोट - मनोहर चमोली 'मनु'
23. ऑपरेशन वाइरस - कल्पना कुलश्रेष्ठ
24. रोबू मेरा दोस्त - गोविंद शर्मा
25. सूर्यलोक की सैर - कृष्ण सुकुमार
26. कालू कहां गया - कुसुम रानी नैथानी
27. सपनों वाली भोर सुहानी - लता अग्रवाल
28. आई उड़नतश्तरी - मनीष मोहन गोरे
29. होमवर्क मशीन - परमजीत कौर 'रीत'
30. चंद्रिका का चंद्रमा - नागेश सू. शेवालकर
31. अदृश्य भूत - संजीव जायसवाल 'संजय'
32. सूरज की सैर - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
33. भैरवी मंदिर - विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी
34. चमत्कारी पत्थर - विमला भण्डारी
35. रोबोट का करिश्मा - डॉ. परशुराम शुक्ल
36. अंतरिक्षयान का अपहरण - रमाशंकर
37. अतीत की आवाजें - मो0 साजिद खान
38. कांच का आदमी - समीर गांगुली
39. प्रेत बाधा - विजय चितौरी
40. डॉ. दारैन की सनक - जीशान हैदर जैदी
41. कभी तो लौटेगा मेरा दोस्त - शुकदेव प्रसाद
42. प्रयोग सफल रहा - सुमन बाजपेयी
43. शुक्र ग्रह का गांव - शिखर चंद जैन
44. टेलीपोर्ट यंत्र - हरीश गोयल
45. लौह मानव - विमला रस्तोगी
'समकालीन बाल विज्ञान कथाएं' पुस्तक में सम्पादक जाकिर अली 'रजनीश' से विस्तार से न सिर्फ विज्ञान कथाओं का परिचय दिया है, वरन इसकी विसंगतियों पर भी प्रकाश डाला है। पुस्तक में यह विवेचन 'विज्ञान कथाओं की रोमांचक दुनिया' के नाम से प्रकाशित हुआ है।
विज्ञान कथाओं की रोमांचक दुनिया ('समकालीन बाल विज्ञान कथाएं' पुस्तक की भूमिका)
बच्चों और कहानियों के बीच हमेशा से चोली दामन का साथ रहा है। वे कहानियॉ पढ़ते या सुनते ही नहीं कहानियों में जीते भी हैं। उन्हें वक्त बे वक्त तरह-तरह की कहानियॉँ बनाते हुए भी देखा जा सकता है।
एक जमाना था जब बच्चों के लिए सिर्फ और सिर्फ परी कथाएँ या लोक कथाएं ही लिखी जाती थीं, पर इधर के कुछेक वर्षों में बच्चों की दुनिया में विज्ञान कथाओं का तेजी से प्रवेश हुआ है और धड़ाघड़ विज्ञान कथाओं के संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। इस माहौल को बनाने में 'पराग' का बड़ा योगदान है। 'पराग' हिन्दी की वह इकलौती बाल पत्रिका है, जिसने विज्ञान कथाओं को भरपूर मात्रा में प्रोत्साहित किया। 'पराग' के अलावा 'मेला', 'सुमन सौरभ', 'बाल भारती' और 'बाल वाटिका' में भी समय-समय पर बाल विज्ञान कथाओं का प्रकाशन होता रहा है। इस क्रम में 'विज्ञान प्रगति' एवं 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' का नाम भी प्रमुखता से शामिल है, क्योंकि उसमें छपने वाली ज्यादातर कहानियां बच्चों और किशोरों के लिए लक्षित प्रतीत होती हैं।
अगर हम हिन्दी की बाल विज्ञान कथाओं का गहराई से अध्ययन करें तो कुछ प्रवृत्तियां उभर कर सामने आती हैं, जिन पर विस्तृत चर्चा किया जाना आवश्यक हो जाता है। ये प्रवृत्तियां निम्नानुसार हैंः-
स्वरूप का भ्रमः यह बहुत आश्चर्य का विषय है कि एक सदी से अधिक का सफर तय करने के बाद भी हिन्दी की बाल विज्ञान कथाएं अपने स्वरूप को स्पष्ट करने में असफल सिद्ध हुई हैं। आज भी ऐसे बहुत से रचनाकार हैं, जो विभिन्न विषयों पर बातचीत/कहानी की शैली में दी गयी वैज्ञानिक जानकारियों वाले लेख को विज्ञान कथाओं के नाम से सम्बोधित करते हैं। जबकि सच यह है कि ऐसी रचनाओं को कथात्मक शैली या संवाद शैली में लिखे गये लेख तो माना जा सकता है, विज्ञान कथा नहीं। ऐसी कहानियां विज्ञान कथा तो छोड़िए, 'कहानी' भी कहलाने की अधिकारी नहीं होतीं, क्योंकि उनमें कहानी के मूल तत्व 'कथानक का प्रारम्भ', 'कथानक का विकास' और 'कथानक का चरम' जैसे बिन्दु भी अनुपस्थित होते हैं।
इसी तरह हिन्दी में विज्ञान कथा लेखकों की एक बड़ी संख्या ऐसी है, जो विज्ञान के उपकरणों, अंतरिक्ष यानों, एलियंस या फिर रोबोट को लेकर रची गयी कहानियों को ही विज्ञान कथा समझते हैं। ऐसे लोग विज्ञान कथाओं को 'भविष्य की कहानी' कहकर भी प्रचारित करते हैं, जबकि यह पूरा सच नहीं है।
तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि विज्ञान कथा आखिर है क्या? मेरे विचार में जो कहानी वैज्ञानिक सिद्धांतों, घटनाओं, प्रक्रियाओं के फलस्वरूप उपजी हो, जिस रचना में विज्ञान संभाव्य कहानी को केंद्र में रखा गया हो अथवा जो कथा विज्ञान को केंद्र में रखकर कल्पना की बेलौस उड़ान भरती हो, वह विज्ञान कथा कहलाने की अधिकारी है। लेकिन इस उड़ान के लिए भी यह आवश्यक है कि उसमें विज्ञान के ज्ञात नियमों का ध्यान रखा जाए और यदि लेखक वर्तमान तक ज्ञात वैज्ञानिक नियमों से इतर भी कोई परिकल्पना प्रस्तुत कर रहा हो, तो उसके पास इसका पर्याप्त वैज्ञानिक आधार होना चाहिए।
पाश्चात्य साहित्य में विज्ञान कथा को लेकर दो शब्द प्रचलित हैं, 'साइंस फिक्शन' और 'साइंस फैंटेसी'। 'फिक्शन' एक लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ होता है आविष्कार करना। जबकि 'फैंटेसी' एक यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ कल्पना करने से लगाया जाता है। यही कारण है कि विज्ञान कथा के रूप में पाश्चात्य साहित्य में मुख्य रूप से दो तरह की विज्ञान कथाएं देखने को मिलती हैं। साइंस फिक्शन के अन्तर्गत वे रचनाएं आती हैं, जो विज्ञान के मान्य नियमों से बंधी होती हैं और उनके आसपास रची जाती हैं। जैसे कि 'ऐलियंस से मुठभेड़', 'पेरी ज़ेड सिग्मा 090', 'चारूप्रिया का चमत्कार', 'कालू कहां गया', 'रहस्यमयी पेनड्राइव' कहानियां। जबकि साइंस फैंटेसी में ऐसी कोई सीमा नहीं होती। उसमें रचनाकार विज्ञान के नियमों से इतर भी कल्पना की उड़ान भरते पाए जाते हैं। इनमें विज्ञान का तत्व अत्यंत सूक्ष्म होता है और कल्पना तत्व की प्रधानता पाई जाती है। उदाहरण के लिए संग्रह की कहानी 'सुनहरी तितली', 'ऑपरेशन वाइरस', 'नन्हां आइंस्टीन', 'अदृश्य भूत' और 'प्रसन्न यंत्र'।
हिन्दी में इन दोनों प्रकार की रचनाओं के लिए आमतौर से 'विज्ञान कथा' शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। यद्यपि कुछ लोग इसे 'विज्ञान गल्प', कुछ 'वैज्ञानिक कहानी' और कुछ 'विज्ञान की कहानी' भी कहते पाए जाते हैं, पर यह मुख्य रूप से यह 'विज्ञान कथा' के रूप में ही जानी जाती है।
आमतौर से हिन्दी की पहली विज्ञान कथा आश्चर्य वृत्तांत (अंबिकादत्त व्यास, 1893) को माना गया है। अर्थात 100 साल से भी अधिक का सफर तय करने के बाद भी यदि विज्ञान कथा को लेकर इस तरह का धुंधलका कायम है, तो रचनाकारों के लिए यह चिंता का विषय है। ऐसी स्थितियॉँ जहाँ एक ओर सम्बंधित रचनाकार के पठन-पाठन पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं, वहीं वह बाल साहित्य आलोचना को भी कटघरे में खड़ा करती हैं। क्योंकि विज्ञान कथाओं की समीक्षा करते वक्त यदि तटस्थता का परिचय दिया जाए और बेबाक विवेचन को बढ़ावा दिया जाए, तो कारण नहीं कि ऐसी स्थितियॉँ सामने आएँ।
तार्किकता का अभावः जिस प्रकार विज्ञान तर्कों के सहारे चलता है, उसी प्रकार विज्ञान कथा भी तर्कों के सहारे ही आगे बढ़ती है। रचनाकार जिस तथ्य/सिद्धान्त के सहारे अपनी कथावस्तु को आगे बढ़ाता है, वह तार्किकता की दृष्टि से खरी उतरनी चाहिए। विज्ञान कथाकार से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे वर्तमान तक ज्ञात/मान्य वैज्ञानिक सिद्धान्तों का सम्यक ज्ञान होगा और वह अपनी रचनाओं में उनका उल्लंघन नहीं होने देगा। यदि वह अपनी किसी रचना में ज्ञात नियम को तोड़ता भी है, तो इसके कारण और नये नियम के समर्थन में यथावश्यक दलील इसके साथ प्रस्तुत करनी चाहिए। किन्तु देखा यह गया है कि बहुधा रचनाकार विज्ञान कथा के इस सामान्य से नियम की भी अवहेलना करते पाए जाते हैं।
विषय के निवर्हन के साथ ही विज्ञान कथाओं के वातावरण चित्रण में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण की निताँत आवश्यकता होती है। किन्तु देखा यह गया है कि जो रचनाकार वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से नहीं होते हैं, उनकी रचनाओं में ऐसी त्रुटियां पाई जाती हैं। ऐसी रचनाएं भले ही कल्पना/विषय के स्तर पर कितनी ही उत्कृष्ट क्यों न हों, अंततोगत्वा आलोचना का ही विषय बनती हैं। इसलिए रचनाकारों के लिए यह आवश्यक होता है कि वे किसी भी विषय पर कलम चलाने से पहले उस विषय से सम्बंधित अध्ययन अवश्य कर लें।
विषय का दुहरावः हिन्दी की विज्ञान कथाओं को पढ़ते समय जो चीज सबसे ज्यादा खटकती है, वह है विषय की मौलिकता। ज्यादातर विज्ञान कथाएं ऐसी हैं, जो सीधे अंतरिक्ष यात्रा से जुड़ी हुई हैं। ऐसी कहानियों में किसी नये ग्रह की खोज, एलियंस से मुठभेड़ ही मुख्य विषय होता है। इस तरह की कहानियों में दो चीजें कॉमन होती हैं, या तो वे हमें सुधरने का उपदेश देकर चले जाते हैं या फिर धरती के प्राणी तकनीक में पीछे होने के बावजूद एलियंस को मात देने में कामयाब हो जाते हैं।
एलियंस के नाम पर लिखी जाने वाली ज्यादातर कहानियां बिलकुल परी कथाओं की तर्ज पर लिखी जाती हैं। इनमें कल्पना तत्व इतना हावी होता है कि वैज्ञानिकता कहीं खो सी जाती है। ऐसी बहुत सी कहानियों में रचनाकार 'एलियंस' से मुठभेड़ कराने के लिए इतने उतावले रहते हैं कि वे दूसरे सौरमण्डल तक भी जाना उचित नहीं समझते, और मंगल, शुक्र व शनि जैसे ग्रहों पर ही पृथ्वी के समानान्तर सृष्टि रच डालते हैं। ऐसे रचनाकारों का वैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं, आम समझ भी सवालों के घेरे में रहती है। क्योंकि प्रथ्वेतर जीवन की खोज में अरबों डॉलर बहा देने के बावजूद अभी तक मनुष्य के हाथ धेला भी नहीं लगा है। इस सम्बंध में विज्ञान कथा लेखक शुकदेव प्रसाद का यह कथन बेहद समीचीन है-
''जीवन की खोज में आज से प्रायः तीन दशकों पूर्व निकला नासा का यान 'वायेजर-1' विगत 6 नवम्बर 2003 को अपने सौरमण्डल की परिधि से बाहर निकल गया है। ...लेकिन अपने पूरे 26 वर्षीय अभियान में सौरमण्डल के किसी कोने से भी जीवन के स्पंदनों की धड़कन उसे नहीं सुनाई पड़ी। इसी प्रकार आज से साढ़े तीन दशकों पूर्व नासा की ही ओर से प्रेषित अन्तरिक्ष यान 'पायनियर-10' सौरमण्डल से आगे निकल कर अंतरिक्ष की अतल गहराईयों में विलीन हो गया है। ...लेकिन प्रथ्वेतर जीवन संधान के क्रम में आदमी के हाथ कुछ नहीं लगा। ...ये सारे नवीनतम तथ्य इस संचार युग में किसी से छिपे नहीं रहे। अतः अब इन मृत प्रसंगों का दुहराव अतिरंजना है।'' (विज्ञान प्रगति, सितम्बर 2008, पृष्ठ-16)
उक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि पृथ्वेतर जीवन एक बासी और उबाऊ कल्पना है। ऐसी कल्पनाएं लेखक के वैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं समझ पर भी सवाल खड़े करती हैं। अतः इस प्रकार के प्रसंगों का उपयोग सोच-समझ कर ही किया जाना चाहिए।
उम्मीद की किरणः बाल विज्ञान कथाओं में ऐसा नहीं है कि सब कुछ हताश और निराश करने वाला ही है। इसमें बहुत कुछ ऐसा भी है, जो अच्छा और अनुकरणीय है। न सिर्फ समर्पित विज्ञान कथाकारों बल्कि अन्य रचनाकारों ने भी समय-समय पर कुछेक बहुत अच्छी विज्ञान कथाओं का सृजन किया है। ऐसी ही कुछ लाजवाब करने वाली कहानियाँ हैं- प्रोफेसर भोंदू (दुर्गा प्रसाद खत्री), हिमीभूत (शुकदेव प्रसाद), दूसरी दुनिया दूर है (जनमित्र), पीली धरती (साबिर हुसैन), छुटकारा (राजीव सक्सेना), मानव आकृति के साथ (आइवर यूशिएल), समय के पार (जाकिर अली 'रजनीश'), वेगा का मानव (अजीत कुमार बनर्जी), नीली पहाड़ी के पीछे (विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी), बड़बड़िया (डॉ0 अरविंद मिश्र), लाइव टेलीकास्ट (संजीव जायसवाल 'संजय'), असली खेल (जीशान हैदर जैदी), बेलगाम घोड़ा (पंकज चतुर्वेदी), युगान्तर (बुशरा अलवेरा), वह सोचने लगा (सुबोध महंती) आदि।
बाल विज्ञान कथा के पिछले सौ सालों के इतिहास में ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्होंने उसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे रचनाकारों में हरिकृष्ण देवसरे (लावेनी, डा0 बोमा की डायरी, एक और भूत, दूसरे ग्रहों के गुप्तचर), सुशील कपूर (मंगल की सैर, शुक्र की खोज), ओम प्रकाश (चांद से आगे, सोने का गोला), कैलाश शाह (अंतरिक्ष के पार, हरे दानवों का देश), मोहन सुंदर राजन (अंतरिक्ष का वरदान, अंतरिक्ष यान के कारनामे), साबिर हुसैन (पीली धरती, नुपुर नक्षत्र), अरूण रावत सूर्यसारथी, जाकिर अली 'रजनीश' (समय के पार, गणित का जादू, ह्यूमन ट्रांसमिशन एवं अन्य विज्ञान कथाएं), राजीव सक्सेना (अंतरिक्ष के चोर, धरती के कैदी, अंतरिक्ष का संदेश), विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी (अंतरिक्ष के लुटेरे, आधुनिक विज्ञान बाल कहानियां) आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त भी ऐसे बहुत से रचनाकार हैं, जिन्होंने छिटपुट रूप में ही सही पर बाल विज्ञान कथाओं की धारा को आगे बढ़ाने में मदद की है। ऐसे रचनाकारों में विभा देवसरे (शनिलोक की यात्रा), योगेश गुप्त (रेडियो का सपना), सत्येन्द्र शरत (प्रोफेसर सारंग), कैलाश कल्पित (वैज्ञानिक गोरिल्ला), सुरजीत (अंतरिक्ष से आने वाला), चंद्र विजय चतुर्वेदी (सितारों के आगे), विनोद अग्रवाल (शुक्र ग्रह के मेहमान), सुरेश आमेटा (उड़नतश्तरी का रहस्य), विजय कुमार बिस्सा (अंतरिक्ष की सैर), डा0 अरविंद मिश्र (राहुल की मंगल यात्रा), हरीश गोयल (शुक्र ग्रह की राजकुमारी), इरा सक्सेना (कम्प्यूटर के जाल में), देवेंद्र मेवाड़ी, संजीव जायसवाल 'संजय' (मानव फैक्स मशीन), जीशान हैदर जैदी, नीलम राकेश (यह कैसा चक्कर), कल्पना कुलश्रेष्ठ, रमाशंकर (अंतरिक्ष का स्वप्निल लोक), रमेश सोमवंशी, पृथ्वीनाथ पाण्डेय (अनोखे ग्रह के विचित्र प्राणी), नाहिद फरजाना, विजय चितौरी, अमित कुमार, अरविंद दुबे, प्रज्ञा गौतम, समीर गांगुली आदि के नाम मुख्य रूप से लिये जा सकते हैं।
इसी क्रम में पं0 जवाहर लाल नेहरु द्वारा प्रकाशित यह विज्ञान कथा संग्रह एक सार्थक हस्तक्षेप की तरह सामने आ रहा है। न सिर्फ यह संग्रह हिन्दी में लिखी गयी विज्ञान कथाओं का अब तक का सबसे बड़ा संग्रह है, वरन गुणवत्ता की दृष्टि से भी एक उम्मीद जगाता है। इसके लिए निश्चय ही अकादमी बधाई की पात्र है।
मैं अकादमी को संग्रह के प्रकाशन के लिए बधाई प्रेषित करता हूं और उम्मीद करता हूं कि यह संग्रह बालसाहित्य जगत में एक सार्थक हस्तक्षेप के रूप में देखा जाएगा और बालसाहित्य में वैज्ञानिक नजरिया विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश'
सम्पादक-साइंटिफिक वर्ल्ड
'समकालीन बाल विज्ञान कथाएं' का प्रकाशन वर्ष 2023 है। यह प्रकाशक पं0 जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, जयपुर एवं ग्रंथ विकास, जयपुर का संयुक्त उद्यम है। इस पुस्तक को प्राप्त करने के लिए आप इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं: ग्रंथ विकास, सी-37, बर्फखाना, राजापार्क, जयपुर फोन- 0141-4032382, 9468943311
बच्चों के लिए लिखी गई विज्ञान कहानियों के संग्रह के लिए बहुत शुभकामनाएँ, अवश्य ही बच्चे इसे रुचि लेकर पढ़ेंगे
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