Gautam Buddha Story in Hindi: Krodh Aane Par
गौतम बुद्ध की कहानियां Buddha Stories ऐसी हैं, जो मनुष्य के मूल भावों पर केंद्रित हैं। ये आज भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। इसी वजह से हिंदी में बुद्ध की कहानियां Gautam Buddha Story in Hindi बेहद लोकप्रिय हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए आज हम आपके लिए एक बुद्ध की एक लोकप्रिय कहानी Gautam Buddha Story लेकर आए हैं, जिसका शीर्षक है- क्रोध आने पर! यह एक ऐसी कहानी है, जो हर किसी के हर किसी से जीवन से जुड़ी हुई है। हमें उम्मीद है कि गौतम बुद्ध की ये कहानी Buddha Story in Hindi आपको पसंद आएगी।
Gautam Buddha Story in Hindi : Krodh Aane Par
क्रोध हर किसी को आता है। जब भी किसी की बात बुरी लगती है, या किसी का व्यवहार पसंद नहीं आता है, तो गुस्सा आ जाता है। और एक बार जब यह आता है, तो फिर दिमाग से निकलने का नाम नहीं लेता। ऐसे में आप उस घटना को लेकर बैठ जाते हैं। उसके बारे में सोचते रहते हैं। हर समय वही बात दिमाग में घूमती रहती है। आप किसी से कोई भी बात करें, वह घटना बीच में आ जाती है। ऐसे में आप न चाहते हुए भी उस बारे में बात करने लगते हैं, उसकी शिकायत करने लगते हैं। और अगर उस समय वहां पर कोई बात करने वाला नहीं हुआ, तो आप अपने आप से ही बातें करने लगते हैं, बड़बड़ाने लगते हैं। ...इस सबसे उस व्यक्ति की सेहत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता, पर आपका नुकसान ज़रूर होता है।
लेकिन अगर आप चाहें, तो इस स्थिति से बच सकते हैं, इस नुकसान से खुद को बचा सकते हैं। कैसे, आइये जानते हैं महात्मा गौतम बुद्ध की इस कहानी के ज़रिए-
एक बार की बात है। एक गांव में गौतम बुद्ध का प्रवचन चल रहा था। वे कह रहे थे- जब हम क्रोधित होते हैं, तो दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन उस समय हम इतने आवेशित हो जाते हैं, कि हमारी सोचने समझने की ताकत समाप्त हो जाती है। इसलिए क्रोध में हम सही निर्णय नहीं ले पाते और अपना ही नुकसान कर बैठते हैं।'
बुद्ध की उस सभा में एक गुस्सैल स्वभाव का व्यक्ति भी शामिल था। उसे बात बात पर गुस्सा आ जाता था। आज भी वह अपने परिवार वालों से झगड़ कर आया था। और उस समय भी उसके दिमाग में उथल पुथल मची हुई थी। इसलिए उसे बुद्ध की बातें अच्छी नहीं लग रही थीं। उसे लग रहा था कि जैसे बुद्ध उसे डांट रहे हों। सबके सामने उसकी बेइज्जती कर रहे हों।
इससे उस व्यक्ति का क्रोध भड़क गया। वह अपनी जगह से उठा और बुद्ध के पास जा पहुंचा। इससे पहले कि कोई कुछ समझता, उसने बुद्ध के मुंह पर थूक दिया।
यह देख कर वहां मौजूद लोग भड़क उठे और उस व्यक्ति के बारे में बुरा भला कहने लगे। लेकिन बुद्ध अभी भी अपनी जगह पर शांत बैठे हुए थे। उन्होंने अपना चेहरा पोंछा और बोले, 'क्या बात है वत्स, तुम्हें कुछ कहना है?'
उस व्यक्ति ने बुद्ध की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह बिना कुछ कहे वहां से चला गया। यह देखकर एक व्यक्ति से नहीं रहा गया। उसने बुद्ध से पूछा, 'महत्मन, उस मूर्ख व्यक्ति ने आपका अपमान किया और आपने उसे कुछ नही कहा?'
उसकी बात सुनकर बुद्ध धीरे से मुस्कराए और फिर बोले, 'तुमने शायद उस व्यक्ति का चेहरा नहीं देखा। वह बहुत परेशान लग रहा था। मुझे लगता है कि वह किसी चिन्ता में घिरा हुआ था। इसलिए ऐसे व्यक्ति परेशान व्यक्ति को क्या दोष देना?'
बुद्ध पर थूकने वाला व्यक्ति सभा से उठने के बाद अपने घर चला गया। वह दिन भर बेचैन रहा। उसे अपनी करनी पर पछतावा होता रहा। रात में भी वह सो नहीं पाया और बेचैनी में इधर उधर करवट बदलता रहा।
अगले दिन वह फिर से बुद्ध की सभा में गया। वहां पहुंचते ही वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और रोने लगा।
यह देख कर बुद्ध ने पूछा, 'क्या हुआ वत्स, तुम क्यों रो रहे हो?'
वह बोला, 'मैं वही दुष्ट व्यक्ति हूं, जिसने कल आपका अपमान किया था। पता नहीं कल मुझ पर ऐसा कौन सा पागलपन सवार हुआ, जो मैं ऐसी घृणित हरकत कर बैठा। कृपया मुझे क्षमा कर दें।'
बुद्ध बोले, 'कल की बातें तो कल ही समाप्त हो गयीं वत्स। कल के बारे में आज क्या सोचना। अगर मैं उस घटना के बारे में सोचता रहता, क्रोध करता, तो उससे तो सिर्फ मेरा दिल दुखता। तुम्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए बुरी घटना को याद रखना कोई समझदारी की बात नहीं है। इससे हमारी परेशानियां बढ़ जाती हैं और जीवन ठहर जाता है। इसीलिए अप्रिय बातों और अप्रिय घटनाओं को भूलने में ही समझदारी है। जो व्यक्ति ऐसी घटनाओं को भूल जाता है, वही जीवन में आगे बढ़ता है, और जो उनमें उलझा रहता है, उसका जीवन चक्रव्यूह के समान हो जाता है, जिसमें से वह चाह कर भी बाहर नहीं निकल पाता है।'
दोस्तों, गुस्सा करना बिलकुल ऐसा होता है कि ज़हर तो आप पियें और कामना करें कि मर सामने वाला जाए। इसलिए जब भी कभी आपको गुस्सा आए, तो इस बात को ध्यान में रखें कि अगर आप किसी से नाराज़ होते हैं और रूठ कर चुपचाप बैठे जाते हैं, तो आप अपना ही नुकसान करते हैं। इससे आपके समय का तो नुकसान होता ही है, आपके शरीर का भी नुकसान होता है। इसलिए अप्रिय बातों और अप्रिय घटनाओं को लेकर बैठना कोई हल नहीं है। बेहतर है कि उन्हें भूलकर आगे बढ़ें। तभी आप जीवन के प्रवाह के साथ अपने आपको जोड़ पाएंगे और जीवन का आनंद ले पाएंगे।
हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हमारे दुखों का कारण कोई दूसरा व्यक्ति है। और जब हम ऐसा मानते हैं, तो हम अपने स्व नियंत्रण की कमी और अक्षमता को अनदेखा कर रहे होते हैं। वास्तव में ये हम पर निर्भर करता है कि हम दूसरों के द्वारा प्रदान की गयी नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं या नहीं। अगर हम नकारात्मकता को स्वीकार करते हैं, तो हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं। और जब हम उसे अस्वीकार कर देते हैं, तो घ्रणा, क्रोध, हिंसा हर किसी से मुक्त हो जाते हैं।
दोस्तो, हमें उम्मीद है कि आपको बुद्ध की ये कहानी Gautam Buddha Story
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