आज के बच्चों की सोच और मानसिक स्तर हमसे काफी बेहतर है। अगर हम उन्हें दुनिया को देखने-परखने की आजादी दें और साथ ही साथ उन्हें ऐसा बाल सा...
आज के बच्चों की सोच और मानसिक स्तर हमसे काफी बेहतर है। अगर हम उन्हें दुनिया को देखने-परखने की आजादी दें और साथ ही साथ उन्हें ऐसा बाल साहित्य उपलब्ध कराएं, जिससे वे तार्किक और वैज्ञानिक सोच के मालिक बन सकें, तो ये न सिर्फ उनके लिए बल्कि हमारे समाज के लिए अच्छा होगा। और अगर हम बच्चों के लिए ऐसा नहीं कर सके, तो फिर वे या तो वे 'ग्रीन टेररिस्ट' बनेंगे या 'सेफरॉन टेररिस्ट'।
उक्त विचार जाने-माने काटूनिस्ट और साहित्यकार आबिद सुरती ने चतुर्थ हरिकृष्ण देवसरे पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहीं। इस अवसर पर युवा साहित्यकार डॉ. मोहम्मद अरशद खान को उनकी कृति 'ऐलियन प्लैनेट : 21 बाल कहानियां' के लिए चतुर्थ हरिकृष्ण देवसरे पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरूप उन्हे 75 हजार रूपये की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
इससे पूर्व जाने-माने तकनीकीविद एवं माइक्रोसॉफ्ट के भारतीय भाषाएं सेल के प्रभारी बालेन्दु शर्मा दाधीच ने न्यास के 'देवसरे बालसाहित्य समाचार पत्र' के प्रथम संस्करण का ऑनलाइन लोकार्पण किया। उन्होंने सिंगमण्ड फ्रायड का उदाहरण देते हुए कहा कि हम बच्चों को मिट्टी का माधौ न बनाएं, उन्हें तर्कशील बनाएं, ताकि वे जीवन की दुष्वारियों को पहचान सकें और उसके बीच से अपना रास्ता निकाल सकें।
इस अवसर पर डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश' की प्रथम हरिकृष्ण देवसरे पुरस्कार से पुरस्कृत पुस्तक (पांडुलिपि) 'गणित का जादू' का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक के बारे में बोलते हुए बाल भवन, दिल्ली की पूर्व निदेशक एवं चर्चित विज्ञान लेखिका डॉ. मधु पंत ने कहा कि 'गणित का जादू' गणित और विज्ञान पर आधारित 11 रोचक कहानियों का संग्रह है। ये विज्ञान कथाएं रोचकता और वैज्ञानिक तथ्यों का अद्भुत मिश्रण हैं तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए लिखी गयी हैं। श्री रजनीश बाल मनोविज्ञान के पारखी हैं और विज्ञान कथाओं के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं। हमें आशा है कि 'गणित का जादू' बच्चों को पसंद आएगी और बाल साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में याद की जाएगी। इस अवसर पर डॉ. पंत ने अरशद खान की पुस्तक 'ऐलियन प्लैनेट : 21 बाल कहानियां' पर देवेंद्र मेवाड़ी की लिखी समीक्षा का पाठ किया और उसे एक रोचक तथा सराहनीय बाल कहानी संग्रह बताया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने डॉ. देवसरे के जीवन से जुडे प्रसंगों को याद करते हुए कहा कि यह हमारे समाज की विडम्बना है कि हमने बच्चों को कहानी सुनाना बंद कर दिया है, हमारे पास अच्छी कहानियां भी नहीं हैं, हमने उनके साथ रहना भी बंद कर दिया है, इसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि वे समाज के कट रहे हैं और असमाजिकता की ओर बढ़ रहे हैं। ये हमारे लिए चिन्ता ही नहीं चुनौती का भी विषय है।
इस अवसर पर पद्मश्री अशोक चक्रधर ने अनेक कविताओं को उद्धृत करते हुए कहा कि बच्चों के साथ आप अपने तर्क के साथ नहीं जा सकते, क्योंकि उसके अपने तर्क होते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों का अपना मनोविज्ञान होता है, इसलिए आप उसपर अपना ज्ञान नहीं लाद सकते। और जब आप बच्चों के मनोविज्ञान के स्तर पर जाकर अपनी बात कहेंगे, तभी आप उसके मन को छू पाएंगे और तभी बच्चे आपसे जुड़ पाएंगे।
कार्यक्रम में इंडियन सेक्युलर सोसाइयटी की प्रतिनिधि एवं डॉ. सुरेन्द्र विक्रम ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन विज्ञा देवसरे ने किया और कार्यक्रम का संचालन क्षिप्रा भारती देवसरे ने किया। इस अवसर जानेमाने साहित्यकार पंकज चतुर्वेदी, डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश, बलराम अग्रवाल, रजनीकांत शुक्ल, गंगा प्रसाद विमल, बृजेंद्र त्रिपाठी, श्याम सुशील आदि उपस्थित रहे।
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