ह्यूमन ट्रांसमिशन- विज्ञान पर केंद्रित एक रोमांचक बाल उपन्यास।
एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिये हम बस, रेल या हवाई जहाज का प्रयोग करते हैं। पर इसमें बहुत सारा समय लगता है। सोचो अगर पलक झपकते ही हम एक जगह से दूसरे जगह पहुंच जायें तो? क्या कहा, कैसे? वैसे ही, जैसे किसी कागज पर लिखी जानकारी को हम फैक्स के द्वारा एक मशीन से दूसरी मशीन तक भेजते हैं। उसी तरह मनुष्य को भी ध्वनि तरंगों में बदल कर एक मशीन से दूसरी मशीन में भेजा जाए और वहां पर उसे फिर से मनुष्य में रूप में बदल दिया जाए, तो? ...कितना रोमांचक होगा न यह सफर? क्या आप इस रोमांचक सफर के यात्री बनना चाहेंगे? हां, तो फिर देर किस बात की? आइए, हम शुरू करते हैं ह्यूमन ट्रांसमिशन की यह स्वप्निल यात्रा!
बाल उपन्यास
ह्यूमन ट्रांसमिशन
-ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
पुरवा हवा का एक नटखट झोंका ऊषा की लालिमा से ठिठोली करता हुआ ‘अमन मंजिल’ के बगल से गुजर रहा था। सहसा कमरे की खिड़की से आती सतरंगी रौशनी को देखकर उसके पैर ठिठक से गये। इस धरा पर वैसी अद्भुत रौशनी उसने इससे पहले कभी नहीं देखी थी।
‘‘क्या है ये?‘‘ वह मन ही मन बुदबुदाया।
फिर जैसे उसे अपनी सखी ‘सतरंगी किरण‘ का ध्यान आया। उसने उचक कर सामने की ओर देखा। अब तक वह सामने की गगनचुंबी इमारत के उस पार जा पहुंची थी।
‘‘मैं भी किन चक्करों में पड़ गया?‘‘ पवन झकोरे ने उपेक्षा से कंधे उचकाए और सतरंगी रौशनी को छोड़ वापस अपनी सखी की ओर उड़ चला।
नटखट झकोरे की इस चपलता को बेचारी खिड़कियां समझ नहीं पाईं। उसके द्वारा छोड़े गये हवा के दाब को वे संभाल न सकीं और अंततः खिड़की के पल्ले चौखट से जा टकराए। ऐसे में कमरे की खामोशी को भंग करने का इल्जाम उनके सिर पर आना ही था।
खिड़की के सामने रखे कम्प्यूटर पर प्रोफेसर रामिश जमाल बुरी तरह से व्यस्त थे। इससे पहले कि वह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते, कम्प्यूटर से जुड़ा हुआ स्पीकर कोमल स्त्री स्वर से झनझना उठा-‘‘क्या हुआ सर? ये कैसी आवाज थी?’’
प्रोफेसर रामिश ने कोई जवाब नहीं दिया। पर माउस के ऊपर टिके उनके दाहिने हाथ की उंगली ने कुछ हरकत की और अगले ही क्षण कम्प्यूटर के मॉनीटर पर महक का चेहरा उभर आया।
उस मासूम से चेहरे पर ढ़ेर सारे प्रश्नचिन्ह तैर रहे थे। जैसे जंगल में चरती हुई हिरनी किसी आहट से चौंक कर खतरे को भांपने का प्रयास कर रही हो।
‘‘सर? आप बोल क्यों नहीं रहे सर?‘‘ महक ज्यादा देर तक सन्नाटे को बर्दाश्त नहीं कर पाई।
और न जाने क्यों महक के चहरे पर उभरे भावों को देखकर प्रोफेसर रामिश को हंसी आ गयी, ‘‘कुछ नहीं पगली, खिड़की का पल्ला टकराया है।‘‘
‘‘लेकिन सर, इस समय हवा तो चल नहीं रही...?’’
‘‘हो सकता है, वह भी हमारा प्रयोग देखने आई हो। लेकिन जब उसने देखा हो कि यहां पर उससे भी तेज यात्रा कराने वाली मशीन मौजूद है, तो वह जल-भुन कर भाग गयी हो?‘‘ प्रोफेसर रामिश जैसे चुहलबाजी के मूड में हों।
‘‘ओह सर, मैं तो डर ही गयी थी।‘‘
‘‘ठीक है,‘‘ अगले ही क्षण प्रोफेसर रामिश का चेहरा एकदम से सख्त हो गया, ‘‘तुम अपने काम पर ध्यान दो।‘‘
‘‘जी सर।‘‘
‘‘मैं ट्रांसमिशन को परीक्षण के लिए तैयार कर रहा हूं।‘‘
‘‘पर सर, ट्रांसमिशन का दरवाजा तो खुला हुआ है।‘‘
‘‘ओह, हां। ...थैंक्यू।‘‘ कहते हुए प्रोफेसर रामिश ने हेडफोन को कानों से उतारा और कुर्सी से उठ खड़े हुए।
कम्प्यूटर के बगल में एक यांत्रिक कक्ष बना हुआ था। उसी के दरवाजे से निकलने वाली सतरंगी रौशनी कमरे को जगर-मगर कर रही थी। पता नहीं यह उस सतरंगी रौशनी का प्रभाव था या फिर उस कार्य की सफलता से उपजी गौरवानुभूति का प्रतिफल, वे मन ही मन बुदबुदा उठे- ‘ये है मेरी 15 सालों की अथक मेहनत का परिणाम, ‘ह्यूमन ट्रांसमिशन मशीन’। अब मुझे ट्रांसमिट होकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।‘
अपने गर्वीले मस्तक को थोड़ा ऊपर की ओर उठाते हुए उन्होंने छत की ओर देखा- ‘‘माँ, काश तुम आज मेरे साथ होती! तुम देख पाती कि तुम्हारा अभावों में पला लाडला इतिहास के दवाजे पर खड़ा दस्तक दे रहा है। ...मेरी यह कामयाबी तुम्हारे कदमों में समर्पित है माँ।’’
आंख के दोनों कोरों में उतर आई नमी को बाएं हाथ की उंगली के छोर से पोंछते हुए प्रोफेसर रामिश ने ‘ह्यूमन ट्रांसमिशन मशीन‘ का दरवाजा बंद कर दिया। वापस कम्प्यूटर के सामने बैठते हुए जैसे ही उन्होंने हेडफोन को कानों पर लगाया, महक की आवाज गूंज उठी- ‘‘सर, सर आप रो रहे हैं?’’
‘‘ये तो खुशी के आंसू हैं पगली।‘‘ प्रोफेसर रामिश ने उन्हें छुपाना चाहा।
‘‘सर, इन आंसुओं के पीछे कोई न कोई बात अवश्य है?‘‘ महक ने आंसुओं का सबब जानना चाहा।
‘‘तुमने सही पहचाना महक, दरअसल मुझे मेरी माँ की याद आ गयी।‘‘ प्रोफेसर रामिश भावुक हो उठे, ‘‘मुझे लगा कि अंतरिक्ष के किसी तारे पर बैठी हुई मेरी माँ मेरी ओर देख रही हैं और खुष होकर अपना आशीर्वाद बरसा रही हैं।‘‘
‘‘ओह, रियली।‘‘ महक सिर्फ इतना ही कह सकी।
इस समय महक और प्रोफेसर रामिश दोनों अलग-अलग प्रयोगशालाओं में बैठे अपने कार्य सम्पादित कर रहे थे। प्रोफेसर रामिश हसनपुर के अपने पुश्तैनी मकान ‘अमन मंजिल‘ स्थित मुख्य प्रयोगशाला में विराजमान थे। जबकि महक उनके एक्सपेरिमेंट को टेस्ट करने के लिए वहां से लगभग एक किमी0 की दूरी पर बनी दूसरी प्रयोगशाला में मौजूद थी। यह प्रयोगशाला बिल्लौचपुरा मोहल्ले के मकान नं0 213 में स्थापित की गयी थी।
प्रोफेसर रामिश के साथ काम करते हुए आज महक को लगभग डेढ़ साल बीत चुके थे। पर इन डेढ़ सालों में पहली बार उसने प्रोफेसर रामिश को इतना भावुक देखा थे। आज पहली बार उन्होंने किसी सम्बंध, किसी रिष्ते की बात की थी, वर्ना हर पल हर लम्हा सिर्फ एक ही चीज उनके दिमाग में गूंजा करती थी- ‘मिशन ह्यूमन ट्रांसमिशन’।
सोते-जगते, उठते-बैठते वे बस इसी मिशन के बारे में सोचते रहते थे। मिषन के चक्कर में उन्हें खाने-पीने का होश भी न रहता था। अक्सर ऐसा होता था कि दोपहर का खाना रात को खाया जाता और रात का खाना सुबह होने तक खराब हो जाने के कारण फेंक दिया जाता।
महक जब से प्रोफेसर रामिश के साथ जुड़ी थी, उसे खाने को लेकर रोज बहस करनी पड़ती थी। कभी-कभी तो उसे बेहद आश्चर्य भी होता कि प्रोफेसर रामिश अभी तक चल-फिर कैसे रहे हैं?
उसके इतना जिद करने पर जब वे दिन भर में दो रोटी या थोड़ा सा चावल खाते हैं, तो भला वह उसके आने से पहले क्या खाते-पीते रहे होंगे?
किन्तु अगले ही क्षण उसकी विचारधारा बदल जाती- लेकिन शायद कहीं पहुंचने और कुछ पाने के लिए ऐसे ही जुनून की आवश्यकता होती है? और फिर यह कोई छोटा-मोटा आविष्कार तो है नहीं, यह तो युग परिवर्तक आविश्कार होगा। कार, बस ट्रेन, हवाई जहाज सब बेकार हो जाएंगे इसके आगे। बस चैम्बर में बैठो, बटन दबाओ और मन चाही जगह पर स्थानान्तरित। मन की गति से सम्पन्न होने वाला, एक बेहद रोमांचक सफर!
जैसे ही कम्प्यूटर ने परीक्षण पूरा होने का संकेत दिया, प्रोफेसर रामिश एकदम छोटे से बच्चे की तरह उछल पड़े- ‘‘हम जीत गये महक, हम जीत गये।‘‘
प्रोफेसर रामिश की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। उनकी पन्द्रह सालों की मेहनत साकार हो चुकी थी। ‘ह्यूमन ट्रांसमिशन मशीन’ ने कम्प्यूटर द्वारा किये गये परीक्षण में स्वयं को सोलह आने खरा साबित किया था। कम्प्यूटर के स्क्रीन पर उभरी जानकारी बता रही थी कि यह मशीन परीक्षण के लिए पूरी तरह से तैयार है।
‘‘बधाई हो सर, आपको बहुत-बहुत बधाई।‘‘ कहते हुए महक अपने स्थान पर खड़ी हो गयी। खुशी के कारण उसका रोम-रोम खिल उठा और शरीर में हल्की-हल्की झुरझुरी सी महसूस होने लगी।
प्रोफेसर रामिश के शरीर में जैसे प्रसन्नता का ज्वालामुखी फूट पड़ा हो। भावनाओं के उबाल के कारण उनके शरीर में कंपन सा होने लगा। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, क्या नहीं। आखिर उनकी सुख-दुःख की साथी महक भी तो नहीं थी उनके पास। वर्ना शायद वे उसे गोद में उठा लेते और जोर-जोर से नाचने लगते।
महक ने भी प्रोफेसर रामिश की इस दशा को भांप लिया। वह धीरे से बोली, ‘‘आई मिस यू सर।‘‘
‘‘हां, महक।‘‘ प्रोफेसर रामिश के होंठों में धीरे से कंपन हुआ, ‘‘तुम ठीक कह रही हो। हमें यह खुशी साथ-साथ सेलेब्रेट करनी चाहिए। आखिर इस सफलता में तुम्हारा भी बराबर का योगदान है।‘‘
‘‘नो सर, मैंने तो बस....।‘‘
‘‘नहीं महक, तुम नहीं जानती कि तुमने कितना बड़ा योगदान दिया है।‘‘ प्रोफेसर रामिश के स्वर में थोड़ा सा ठहराव आ गया, ‘‘अगर तुम नहीं होती, तो शायद ये सब मुमकिन ही नहीं हो पाता। तुम्हें नहीं पता महक कि तुमने कितनी बार मुझे टूटने से बचाया है। मेरे हौसलों को संजोया है, खोते हुए विष्वास को बटोरा है। और तुमने तो उस गाढ़े समय में मेरा साथ दिया है, जब मेरे अपनों ने ही मुझे अकेला छोड़ दिया था...।‘‘
महक के कम्प्यूटर स्क्रीन पर हल्की सी झिलमिलाहट आ गयी थी। लेकिन इसके बावजूद वह प्रोफेसर रामिश की भीगी पलकों को स्पश्ट रूप से देख सकती थी। ये खुशी और दुःख के मिले-जुले आंसू थे। महक को लगा यहां पर उसका चुप रहना ही बेहतर है।
पर प्रोफेसर रामिश भी कोई मोम के पुतले न थे, जो भावनाओं के ज्वार में यूं ही बह जाते। अगले ही क्षण वे उस तूफान पर विजय पाने में सफल हो गये। जबरन ही सही वह स्वयं को संयमित करते हुए बोले, ‘‘कोई बात नहीं महक, जो होता है, भले के लिए ही होता है। पर हम इस खुशी को ऐसे नहीं जाने देंगे। हम इसे मिल कर सेलिब्रेट करेंगे।‘‘
‘‘यस सर।‘‘ महक बुलबुल की तरह चहक उठी, ‘‘मैं यहां का सिस्टम बंद करके अभी आपके पास आती हूं।‘‘
‘‘स्टूपिड,‘‘ प्रोफेसर रामिश ने उसे डांट दिया, ‘‘अरे, ट्रांसमिशन मशीन के होते हुए भी तुम यहां चल कर आओगी? मैं ट्रांसमिट होकर अभी तुम्हारे पास पहुंचता हूं,।‘‘
‘‘वॉव!‘‘ महक ने उत्साह में अपने दोनों हाथों को उठाकर जोर से झटका।
‘‘आखिर जब इतनी मेहनत से यह मशीन बन कर तैयार हुई है, तो फिर इसका आनंद भी तो उठाया जाए।‘‘ बुदबुदाते हुए प्रोफेसर रामिश की-बोर्ड पर अपनी उंगलियां चलाने लगे।
महक सातवें आसमान पर जा पहुंची। खुशी के कारण उसका रोम-रोम खिल उठा था। इतना बड़ा आविष्कार, इतनी बड़ी उपलब्धि उसके नाम के साथ जुड़ रही थी, जो सदियों के बाद किसी को नसीब होती है। फिर भला ऐसे गर्वीले क्षणों में जज्बात की उड़ान को कोई क्यों रोके?
लेकिन अगले ही क्षण जैसे उड़ते हुए गुब्बारे से नुकीली चोंच वाला कठफोड़वा जा टकराया- ‘‘सर, लेकिन अगर मशीन में कोई गड़बड़ी...?‘‘
महक की बात सुनकर प्रोफेसर रामिश छोटे बच्चे की तरह हंस पड़े, ‘‘क्या महक, तुम भी बच्चों जैसी बातें करती हो? हमारा पूरा प्रोग्राम टेस्टेड है। और तुम्हारी याद्दाश्त के लिए बता दूं कि यह काम किसी ऐरे-गैरे कम्प्यूटर ने नहीं दुनिया के सुपर कम्प्यूटर्स में से एक ने किया है। और इसके हिसाब से मशीन, लेजर, प्रोजेक्टर, रिसीवर और हां सैटेलाइट कनेक्शन, एवरीथिंग इज़ ओके।‘‘
‘‘पर सर, पता नहीं क्यों मुझे अजीब सी बेचैनी...‘‘
प्रोफेसर रामिश ने महक की बात बीच में ही काट दी, ‘‘उसके लिए तुम जिम्मेदार नहीं हो महक, तुम्हारा अवचेतन मस्तिष्क कुसूरवार है। दरअसल उसने जिस माहौल, जिस समाज से डॉटा कलेक्ट करके अपनी मेमोरी को डेवलप किया है, वहां पर ऐसी चीजें कभी सोची भी नहीं जातीं। उसके लिए यह मशीन एक अप्रत्याशित चीज है और जाहिर सी बात है कि दिमाग को किसी अप्रत्याशित चीज को स्वीकार करने में समय तो लगेगा ही।‘‘
‘‘जी, आप सही कह रहे हैं सर।‘‘ महक ने सहमति में गर्दन हिलाई।
‘‘मैंने मशीन को प्रोग्राम कर दिया है। यह मुझे ट्रांसमिट करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।‘‘ प्रोफेसर रामिश ने किसी टीम के कोच की तरह समझाया, ‘‘बस पांच मिनट में मैं मशीन के चैम्बर में जाऊंगा और अगले पांच मिनट में तुम्हारे सामने....।‘‘
प्रोफेसर रामिश का विश्वास से दमकता चेहरा देखकर महक की सारी आशंकाएं फना हो गयीं। वह हौले से मुस्कराई, ‘‘बेस्ट ऑफ लक, सर!‘‘
प्रोफेसर रामिश ने वेब कैमरे के लेंस में आँखें गड़ाते हुए कहा, ‘‘ये हुई न साइंटिस्ट वाली बात।‘‘
उनका उत्साह देखकर महक के होठों पर मुस्कान की रेखा खिंच गयी। उसने एक क्षण के लिए आंखें बंद कीं और मन ही मन ईश्वर को याद करने लगी।
यह देखकर प्रोफेसर रामिश के हाथ जहां के तहां रुक गये। कानों पर लगे इयर फोन को उतारने का उनका इरादा कुछ पलों के लिए टल गया। जैसे ही महक ने अपनी पलकों को खोला, वे बोल ही पडे, ‘‘महक, तुम्हें ईश्वर से प्रार्थना करते देखकर मुझे, मेरी बेटी खुश्बू की याद आ गयी। मैं जब भी किसी महत्वपूर्ण काम के लिए निकलता था, तो वह इसी तरह मेरी कामयाबी के लिए दुआ करती थी।‘‘
प्रोफेसर रामिश की आँखों की कोरें कब गीली हो गयीं, उन्हें इसका पता ही नहीं चला। इससे पहले कि महक कुछ कहती, प्रोफेसर पुनः बोल पड़े, ‘‘तुम्हें नहीं मालूम महक, पर मैं आज बता देना चाहता हूं कि मैंने तुम्हें अपना असिस्टेंट क्यों बनाया। हालांकि तुम सेवक काका की पोती हो और मेरे ऊपर उनके अनगिनत एहसान हैं। पर तुम्हारे यहां होने की यह इकलौती वजह नहीं है।‘‘
‘‘क्यों सर?‘‘ महक ने चेहरे पर आश्चर्य के भाव उग आए।
‘‘वह इसलिए कि मेरी शुरू से आदत है कि मैं अपनी व्यक्तिगत बातें किसी के साथ जल्दी शेयर नहीं करता।‘‘
‘‘जी, यह तो मैंने भी महसूस किया है।‘‘
‘‘लेकिन जब मैंने पहली बार तुम्हें देखा था, तो मुझे मेरी बेटी खूश्बू की याद आ गयी थी। वह पांच साल की थी, जब उसकी माँ ने तलाक लेने के बाद उसे मुझसे छीन लिया था।‘‘ कहते हुए प्रोफेसर रामिश एक क्षण के लिए रुके, फिर पुनः तल्लीनतापूर्वक अपनी बातें कहने लगे, ‘‘लेकिन जब मैंने तुम्हें देखा, तो मुझे लगा जैसे मेरी खुश्बू वापस लौट आई है। इसीलिए मैंने तुम्हें अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट में अपना राजदार बनाया।‘‘
‘‘ ........ ‘‘
‘‘तुम्हें नहीं मालूम महक, पर यह मेरा बचपन का ख्वाब है। मैंने इसके लिए जिंदगी में बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी हैं। इसकी वजह से मुझे अपनी नौकरी को छोड़ना पड़ा और इसी की वजह से मेरी पत्नी तक मुझे छोड़कर चली गयी।‘‘
महक के लिए यह जानकारी बिलकुल अप्रत्याशित थी। उसका मन हुआ कि वह अपने इस सौभाग्य पर इतराए। पर प्रोफेसर रामिश की पत्नी के बारे में जानकार उसे कष्ट भी हुआ। वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘कितनी दुर्भाग्यशाली होगी वह स्त्री, जिसने इतने महान वैज्ञानिक को दुःख पहुंचाने का पाप किया?‘
इधर प्रोफेसर रामिश अपनी रौ में बहे जा रहे थे, ‘‘...लेकिन मुझे सबसे ज्यादा दुःख मेरी बेटी के जाने का हुआ। वह मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी थी। उसकी शक्ल भी तुमसे काफी हद तक मिलती जुलती थी। और संयोग भी देखो कि मेरी बेटी का नाम खुश्बू था और तुम्हारा महक, दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची।‘‘
महक के होंठ खुशी से खिलते चले गये।
‘‘इसीलिए महक,‘‘ प्रोफेसर रामिश का बोलना जारी थी, ‘‘मैं कह रहा था कि तुम्हारे आने के पहले मैं बुरी तरह से टूट चुका था। मेरा आत्मविश्वास डगमगा चुका था। पर तुम्हें देखकर मेरी सारी शक्ति जैसे फिर से जाग उठी। तुमने अपनी आमद से मेरे विश्वास को जगाया और फिर से मेरी आशाओं के चमन को महका दिया।‘‘
‘‘बस करिए सर, आप तो....‘‘ महक खुशी के कारण फूली नहीं समा रही थी।
तभी दीवार घड़ी के घण्टे ने प्रोफेसर रामिश को जज्बातों के आकाश से यथार्थ की धरती पर ला पटका। वे चौंकते हुए बोले, ‘‘ओह, दो बज गये। महक, तुम तैयार रहो, मैं आ रहा हूं। हम लोग साथ में चलकर किसी होटल में सेलिब्रेट करेंगे। उसके बाद प्रेस कान्फ्रेंस करके सबको इसकी सूचना दी जाएगी।‘‘
‘‘सर अभी दो बजे नहीं, बजने वाले हैं। क्योंकि आपकी घड़ी लगभग 10 मिनट आगे है।‘‘ महक ने कहना चाहा, पर वह सिर्फ इतना ही बोली- ‘‘जी सर।‘‘ उसके बाद वह खो सी गयी। उसकी कल्पना में टीवी कैमरों की फ्लैश लाइट और पत्रकारों के उत्सुक चेहरे तैरने लगे।
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बहुत शानदार
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