Gautam Buddha Inspirational Story in Hindi
एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। प्रवचन में आसपास के बहुत से लोग शामिल थे। सभी लोग ध्यान से बुद्ध को सुन रहे थे। कुछ देर में प्रवचन समाप्त हो गया। लोगों ने बुद्ध को प्रणाम किया और अपने-अपने घर को चल पड़े।
पर एक युवक वहां पर बैठा रह गया। बुद्ध की नज़र उस युवक पर पड़ी, तो वे पूछ बैठे, ''क्या बात है, वत्स? कोई जिज्ञासा है क्या?''
युवक बुद्ध के पास गया और प्रणाम करके बोला, ''प्रभु, बहुत उलझन में हूं। जितना इस बारे में सोचता हूं, उतना ही उलझ जाता हूं।''
''कैसी उलझन है वत्स?'' बुद्ध ने प्रश्न किया।
युवक हाथ जोड़ कर बोला- ''प्रभू, यह संसार कितना विशाल है। संसार में लाखों करोणों लोग निवास करते हैं। उनमें भी एक से बढकर एक विद्वान, कलाकार, योद्धा। ऐसे में उन सबके बीच मुझ जैसे सामान्य प्राणी का क्या मूल्य है?''
युवक की बात सुनकर बुद्ध मुस्करा दिये। वे बोले, ''तुम्हारी जिज्ञासा का उत्तर मिल जाएगा। पर इसमें थोड़ा सा समय लगेगा। क्या तब तक मेरा एक छोटा सा काम कर सकते हो?''
''प्रभु, ये तो मेरे लिए गर्व का विषय है कि मैं आपके काम आ सकूंं।'' युवक ने पुन: अपने हाथ जोड़ दिये, ''आप आदेश करें प्रभु।''
बुद्ध ने युवक को एक चमकीला पत्थर देते हुए कहा, ''तुम्हें इस पत्थर का मूल्य पता करना है। पर ध्यान रहे, इसे बेचना नहीं है, सिर्फ मूल्य पता करना है।''
''जैसी आज्ञा प्रभू।'' कहते हुए युवक ने बुद्ध से वह पत्थर ले लिया। उसने एक बार फिर से उन्हें प्रणाम किया और बाज़ार की ओर चल पड़ा।
बाजार वहां से ज्यादा दूर नहीं था। युवक थोड़ी देर में वहां पहुंच गया। वह सुबह का समय था, इसलिए बाजार अभी ठीक से लगा नहीं था। वहां पर इक्का—दुक्का दुकानदार ही थे। युवक ने जिज्ञासावश इधर उधर नजर दौड़ाई।
उसे एक पेड़ के नीचे एक दुकानदार नज़र आया। वह आम बेच रहा था। युवक उस दुकानदार के पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला, ''क्या आप इस पत्थर की कीमत बता सकते हैं?''
दुकानदार एक चालाक व्यक्ति था। पत्थर की चमक देखकर वह समझ गया कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है। वह बनावटी आवाज़ में बोला, "देखने में तो कुछ खास नहीं लगता, पर मैं इसके बदले 10 आम दे सकता हूं।''
दुकानदार की बात सुनकर युवक को हल्का सा क्रोध आ गया। वह मन ही मन बुदाया, ''यह आदमी मुझे बेवकूफ समझता है। इतना सुंदर पत्थर और इसका मूल्य सिर्फ 10 आम? अवश्य ही यह झूठ बोल रहा है।''
युवक को चुप देखकर दुकानदार बोल उठा, ''क्या कहते हो, निकालूं आम?'' पर युवक ने दुकानदार को कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप आगे बढ़ गया।
सामने एक सब्जीवाला अपनी दुकान सजा रहा था। युवक उसके पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए उसका मूल्य पूछा। उस पत्थर को देख कर सब्जी वाले की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह मन ही मन सोचने लगा- ''यह पत्थर तो बहुत कीमती जान पड़ता है। अगर यह मुझे मिल जाए, तो मज़ा ही आ जाए।''
''क्या हुआ भाई, कहां खो गये?'' युवक ने दुकानदार की तन्द्रा तोड़ी। सब्जीवाला चौंकता हुआ बोला, ''कुछ नहीं, कुछ नहीं। मैं तो बस मन ही मन इसकी कीमत की गणना कर रहा था। वैसे, मैं इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूं।''
सब्जी वाले के चेहरे की कुटिलता देखकर युवक समझ गया कि यह दुकानदार भी मुझे मूर्ख बना रहा है। मुझे किसी और से इसका मूल्य पता करना चाहिए।''
यह सोचता हुआ युवक आगे बढ़ गया। सब्जी वाला दुकानदार ने युवक को पीछे से आवाज लगाई, ''क्या हुआ भाई? अगर आपको यह मूल्य कम लग रहा है, तो बताएं तो सहीं। मैं इसे बढ़ा दूंगा।''
पर युवक ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वह इधर उधर किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा, जो जानकार हो और उस पत्थर की सही मूल्य बता सके। युवक को लग रहा था कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है, शायद कोई जौहरी इसका सही मूल्य बता सके।
यह सोचता हुआ युवक एक जौहरी की दुकान पर पहुंचा। जौहरी अपनी दुकान को अभी खोल ही रहा था। उसने युवक को अपनी दुकान की ओर आते हुए दूर से देख लिया था। साथ ही उसने युवक का हुलिया देखकर यह भी भांप लिया था कि यह कोई गरीब व्यक्ति है, जो सम्भवत: कोई गहना बेचने आया होगा।
जौहरी ने हाथ जोड़कर युवक को नमस्कार किया और मुस्करा कर पूछा, ''बताएं महोदय, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?''
युवक ने बुद्ध का दिया पत्थर अपनी हथेली पर रख दिया और बोला, ''इसका मूल्य पता करना था।''
पत्थर को देखते ही जौहरी उसे पहचान गया कि यह बेशकीमती रूबी पत्थर है, जो किस्मत वाले को मिलता है। वह बोला, ''पत्थर मुझे दे दो और मुझसे 01 लाख रूपये ले लो।''
कहते हुए जौहरी ने पत्थर लेने के लिए अपना दाहिनी हाथ बढ़ाया। पर तब तक युवक ने पत्थर को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था। उसे पत्थर के मूल्य का अंदाज़ा हो गया था, इसलिए वह बुद्ध के पास जाने के लिए मुड़ गया।
जौहरी ने उसे पीछे से आवाज लगाई, ''अरे रूको तो भाई, मैं इसके 50 लाख दे सकता हूं।''
युवक को वह पत्थर बेचना तो था नहीं, इसलिए वह रूका नहीं और दुकान के बाहर आ गया। पर जौहरी भी कम चालाक नहीं था। वह उस अनमोल पत्थर को किसी भी कीमत पर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। वह दौड़ कर उसके आगे आ गया और हाथ जोड़ कर बोला, ''तुम यह पत्थर मुझे दे दो, मैं इसके बदले 01 करोड़ देने को तैयार हूं।''
युवक को जौहरी की बातों में अब कोई रूचि नहीं रह गयी थी। वह जल्द से जल्द बुद्ध के पास पहुंच जाना चाहता था। इसलिए न तो वह रूका और न ही उसने जौहरी की बात का कोई जवाब दिया। वह तेज तेज कदमों से बुद्ध के आश्रम की ओर चल पड़ा।
जौहरी ने पीछे से आवाज लगाई, ''ये अत्यंत मूल्यवान पत्थर है, अनमोल है। तुम जितने पैसे कहोगे, मैं दे दूंगा।''
यह सुनकर वह युवक परेशान हो गया। उसे लगा कि कहीं पत्थर के लालच में जौहरी उसे पकड़ कर जबरदस्ती न करने लगे। इसलिए वह तेजी से आश्रम की ओर दौड़ पड़ा।
युवक जब बुद्ध के पास पहुंचा, तो वह बुरी तरह से हांफ रहा था। उसे देखकर बुद्ध मुस्करा दिये। फिरभी उन्होंने अपने चेहरे से कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया। वे बोले, ''क्या बात है वत्स, तुम कुछ डरे हुए से लग रहे हो?''
युवक ने बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात कह सुनाई। साथ ही उसने वह पत्थर भी उन्हें वापस कर दिया।
बुद्ध बोले, ''आम वाले ने इसका मूल्य '10 आम' बताया, आलू वाले ने 'एक बोरी आलू' और जौहरी ने बताया कि यह 'अनमोल' है। इस पत्थर के गुण जिसने जितने समझे, उसने इसका मूल्य उसी हिसाब ने लगाया। ऐसे ही यह जीवन है। प्रत्येक व्यक्ति खान से निकले हुए एक हीरे के समान है, जिसे अभी तराशा नहीं गया है। जैसे जैसे समय की धार व्यक्ति को तराशती जाती है, व्यक्ति की कीमत बढती जाती है। यह दुनिया व्यक्ति को जितना पहचान पाती है, उसे उतनी ही महत्ता देती है।''
कहते हुए बुद्ध एक क्षण के लिए रूके, फिर बोले, ''...किन्तु आदमी और हीरे में अन्तर यह है हीरे को कोई दूसरा तराशता है, और व्यक्ति को अपने आपको स्वयं ही तराशना पड़ता है। और जिस दिन तुम अपने आपको तराश लोगे, तुम्हें भी तुम्हारा मूल्य बताने वाला कोई न कोई जौहरी मिल ही जाएगा।''
पर एक युवक वहां पर बैठा रह गया। बुद्ध की नज़र उस युवक पर पड़ी, तो वे पूछ बैठे, ''क्या बात है, वत्स? कोई जिज्ञासा है क्या?''
युवक बुद्ध के पास गया और प्रणाम करके बोला, ''प्रभु, बहुत उलझन में हूं। जितना इस बारे में सोचता हूं, उतना ही उलझ जाता हूं।''
''कैसी उलझन है वत्स?'' बुद्ध ने प्रश्न किया।
युवक हाथ जोड़ कर बोला- ''प्रभू, यह संसार कितना विशाल है। संसार में लाखों करोणों लोग निवास करते हैं। उनमें भी एक से बढकर एक विद्वान, कलाकार, योद्धा। ऐसे में उन सबके बीच मुझ जैसे सामान्य प्राणी का क्या मूल्य है?''
युवक की बात सुनकर बुद्ध मुस्करा दिये। वे बोले, ''तुम्हारी जिज्ञासा का उत्तर मिल जाएगा। पर इसमें थोड़ा सा समय लगेगा। क्या तब तक मेरा एक छोटा सा काम कर सकते हो?''
''प्रभु, ये तो मेरे लिए गर्व का विषय है कि मैं आपके काम आ सकूंं।'' युवक ने पुन: अपने हाथ जोड़ दिये, ''आप आदेश करें प्रभु।''
बुद्ध ने युवक को एक चमकीला पत्थर देते हुए कहा, ''तुम्हें इस पत्थर का मूल्य पता करना है। पर ध्यान रहे, इसे बेचना नहीं है, सिर्फ मूल्य पता करना है।''
''जैसी आज्ञा प्रभू।'' कहते हुए युवक ने बुद्ध से वह पत्थर ले लिया। उसने एक बार फिर से उन्हें प्रणाम किया और बाज़ार की ओर चल पड़ा।
बाजार वहां से ज्यादा दूर नहीं था। युवक थोड़ी देर में वहां पहुंच गया। वह सुबह का समय था, इसलिए बाजार अभी ठीक से लगा नहीं था। वहां पर इक्का—दुक्का दुकानदार ही थे। युवक ने जिज्ञासावश इधर उधर नजर दौड़ाई।
उसे एक पेड़ के नीचे एक दुकानदार नज़र आया। वह आम बेच रहा था। युवक उस दुकानदार के पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए बोला, ''क्या आप इस पत्थर की कीमत बता सकते हैं?''
दुकानदार एक चालाक व्यक्ति था। पत्थर की चमक देखकर वह समझ गया कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है। वह बनावटी आवाज़ में बोला, "देखने में तो कुछ खास नहीं लगता, पर मैं इसके बदले 10 आम दे सकता हूं।''
दुकानदार की बात सुनकर युवक को हल्का सा क्रोध आ गया। वह मन ही मन बुदाया, ''यह आदमी मुझे बेवकूफ समझता है। इतना सुंदर पत्थर और इसका मूल्य सिर्फ 10 आम? अवश्य ही यह झूठ बोल रहा है।''
युवक को चुप देखकर दुकानदार बोल उठा, ''क्या कहते हो, निकालूं आम?'' पर युवक ने दुकानदार को कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप आगे बढ़ गया।
सामने एक सब्जीवाला अपनी दुकान सजा रहा था। युवक उसके पास पहुंचा और उसे पत्थर दिखाते हुए उसका मूल्य पूछा। उस पत्थर को देख कर सब्जी वाले की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह मन ही मन सोचने लगा- ''यह पत्थर तो बहुत कीमती जान पड़ता है। अगर यह मुझे मिल जाए, तो मज़ा ही आ जाए।''
''क्या हुआ भाई, कहां खो गये?'' युवक ने दुकानदार की तन्द्रा तोड़ी। सब्जीवाला चौंकता हुआ बोला, ''कुछ नहीं, कुछ नहीं। मैं तो बस मन ही मन इसकी कीमत की गणना कर रहा था। वैसे, मैं इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूं।''
सब्जी वाले के चेहरे की कुटिलता देखकर युवक समझ गया कि यह दुकानदार भी मुझे मूर्ख बना रहा है। मुझे किसी और से इसका मूल्य पता करना चाहिए।''
यह सोचता हुआ युवक आगे बढ़ गया। सब्जी वाला दुकानदार ने युवक को पीछे से आवाज लगाई, ''क्या हुआ भाई? अगर आपको यह मूल्य कम लग रहा है, तो बताएं तो सहीं। मैं इसे बढ़ा दूंगा।''
पर युवक ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वह इधर उधर किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा, जो जानकार हो और उस पत्थर की सही मूल्य बता सके। युवक को लग रहा था कि अवश्य ही यह कोई कीमती पत्थर है, शायद कोई जौहरी इसका सही मूल्य बता सके।
यह सोचता हुआ युवक एक जौहरी की दुकान पर पहुंचा। जौहरी अपनी दुकान को अभी खोल ही रहा था। उसने युवक को अपनी दुकान की ओर आते हुए दूर से देख लिया था। साथ ही उसने युवक का हुलिया देखकर यह भी भांप लिया था कि यह कोई गरीब व्यक्ति है, जो सम्भवत: कोई गहना बेचने आया होगा।
जौहरी ने हाथ जोड़कर युवक को नमस्कार किया और मुस्करा कर पूछा, ''बताएं महोदय, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?''
युवक ने बुद्ध का दिया पत्थर अपनी हथेली पर रख दिया और बोला, ''इसका मूल्य पता करना था।''
पत्थर को देखते ही जौहरी उसे पहचान गया कि यह बेशकीमती रूबी पत्थर है, जो किस्मत वाले को मिलता है। वह बोला, ''पत्थर मुझे दे दो और मुझसे 01 लाख रूपये ले लो।''
कहते हुए जौहरी ने पत्थर लेने के लिए अपना दाहिनी हाथ बढ़ाया। पर तब तक युवक ने पत्थर को अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया था। उसे पत्थर के मूल्य का अंदाज़ा हो गया था, इसलिए वह बुद्ध के पास जाने के लिए मुड़ गया।
जौहरी ने उसे पीछे से आवाज लगाई, ''अरे रूको तो भाई, मैं इसके 50 लाख दे सकता हूं।''
युवक को वह पत्थर बेचना तो था नहीं, इसलिए वह रूका नहीं और दुकान के बाहर आ गया। पर जौहरी भी कम चालाक नहीं था। वह उस अनमोल पत्थर को किसी भी कीमत पर अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। वह दौड़ कर उसके आगे आ गया और हाथ जोड़ कर बोला, ''तुम यह पत्थर मुझे दे दो, मैं इसके बदले 01 करोड़ देने को तैयार हूं।''
युवक को जौहरी की बातों में अब कोई रूचि नहीं रह गयी थी। वह जल्द से जल्द बुद्ध के पास पहुंच जाना चाहता था। इसलिए न तो वह रूका और न ही उसने जौहरी की बात का कोई जवाब दिया। वह तेज तेज कदमों से बुद्ध के आश्रम की ओर चल पड़ा।
जौहरी ने पीछे से आवाज लगाई, ''ये अत्यंत मूल्यवान पत्थर है, अनमोल है। तुम जितने पैसे कहोगे, मैं दे दूंगा।''
यह सुनकर वह युवक परेशान हो गया। उसे लगा कि कहीं पत्थर के लालच में जौहरी उसे पकड़ कर जबरदस्ती न करने लगे। इसलिए वह तेजी से आश्रम की ओर दौड़ पड़ा।
युवक जब बुद्ध के पास पहुंचा, तो वह बुरी तरह से हांफ रहा था। उसे देखकर बुद्ध मुस्करा दिये। फिरभी उन्होंने अपने चेहरे से कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया। वे बोले, ''क्या बात है वत्स, तुम कुछ डरे हुए से लग रहे हो?''
युवक ने बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात कह सुनाई। साथ ही उसने वह पत्थर भी उन्हें वापस कर दिया।
बुद्ध बोले, ''आम वाले ने इसका मूल्य '10 आम' बताया, आलू वाले ने 'एक बोरी आलू' और जौहरी ने बताया कि यह 'अनमोल' है। इस पत्थर के गुण जिसने जितने समझे, उसने इसका मूल्य उसी हिसाब ने लगाया। ऐसे ही यह जीवन है। प्रत्येक व्यक्ति खान से निकले हुए एक हीरे के समान है, जिसे अभी तराशा नहीं गया है। जैसे जैसे समय की धार व्यक्ति को तराशती जाती है, व्यक्ति की कीमत बढती जाती है। यह दुनिया व्यक्ति को जितना पहचान पाती है, उसे उतनी ही महत्ता देती है।''
कहते हुए बुद्ध एक क्षण के लिए रूके, फिर बोले, ''...किन्तु आदमी और हीरे में अन्तर यह है हीरे को कोई दूसरा तराशता है, और व्यक्ति को अपने आपको स्वयं ही तराशना पड़ता है। और जिस दिन तुम अपने आपको तराश लोगे, तुम्हें भी तुम्हारा मूल्य बताने वाला कोई न कोई जौहरी मिल ही जाएगा।''
अति उत्तम।
जवाब देंहटाएंwww.gyandarshanam.blogspot.com
बढिया कहानी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही जानकारी से भरपूर पोस्ट है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंBuddha k paas rubi aaya kaha se bhai ye bhi bta do.. Vo to sirf ek bikchu thai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा है!
जवाब देंहटाएंजी नही आपके अल्फाज से हमे भगवान बुद्ध कि महानता का थोडासा परिचय हो गया ......धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअति सुंंदर
जवाब देंहटाएंmujhe ye storie bhut acchi lagi. esi hi stories dalte rahiye.
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंKuv sundar e motivation story. Bahut acha laga
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