दिल को छू लेने वाली एक रोचक और प्रेरक कहानी।
वाट्सअप पर एक मित्र द्वारा भेजी गयी कहानी, जो मेरे दिल को छू गयी। आप पढ़ें, यकीनन आपको भी पसंद आएगी।
यह कहानी एक कारपेंटर की है, जो अपने लकड़ी के बनाए घरों के लिए दूर-दूर तक जाना जाता था। वह कारपेंटर एक ठेकेदार की दुकान में काम करता था। उसके काम के लिए दुकानदार उसे अच्छे पैसे देता था और बदले में वह अपना काम दिल लगा कर किया करता था।
यह कहानी एक कारपेंटर की है, जो अपने लकड़ी के बनाए घरों के लिए दूर-दूर तक जाना जाता था। वह कारपेंटर एक ठेकेदार की दुकान में काम करता था। उसके काम के लिए दुकानदार उसे अच्छे पैसे देता था और बदले में वह अपना काम दिल लगा कर किया करता था।
जब कारपेंटर बूढ़ा हो गया, तो उसने सोचा- 'मैंने सारी जिंदगी मन लगा कर काम किया। अच्छे पैसे कमाए और नाम भी अच्छा खासा मिला। अब बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुजारी जाए।'
अगले दिन कारपेंटर सुबह-सुबह अपने मालिक के पास पहुंचा और बोला, ''मालिक, मैंने बरसों मेहनत की। ईश्वर की मेहरबानी और आपकी दया से मेरे पास काफी पैसा है। अब मैं बाकी का समय आराम से बिताना चाहता हूं। कृपया मुझे काम छोड़ने की अनुमति दें।''
ठेकेदार कारपेंटर की प्रतिभा का कायल था। उसे यह सुनकर थोडा दुःख हुआ कि उसका इनता अच्छा कारीगर अब काम पर नहीं आएगा। पर वह अपने दु:ख को छिपाता हुआ बोला, ''आप हमारी दुकान के सबसे योग्य कारीगर हैं, आपकी कमी कोई नहीं पूरी कर सकेगा। लेकिन मैं चाहता हूँ कि जाने से पहले आप मेरा एक आखिरी काम करते जाएं।”
“जी, बताएं।” कारपेंटर ने पूछा।
“मैं चाहता हूँ कि आप जाते-जाते हमारे लिए एक शानदार लकड़ी का घर तैयार कर दीजिये।” ठेकेदार हाथ जोड़कर धीरे से बोला।
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ठेकेदार की भलमनसहत देखकर कारपेंटर इस काम के लिए तैयार हो गया। उसने अपना काम करना शुरू कर दिया। लेकिन कारपेंटर के मन में इस बार कोई उत्साह नहीं था। वह सोच रहा था कि ये उसका आखिरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नहीं करना होगा, वो थोड़ा ढीला पड़ गया। उसके काम में वह चुस्ती नहीं रही।
खैर कुछ ही दिनों में वह घर तैयार हो गया। कारपेंटर उसे लेकर ठेकेदार के पास पहुंचा और बोला, ''ठेकेदार साहब, मैंने घर तैयार कर दिया है। अब मैं काम छोड़ कर जा सकता हूँ?”
ठेकेदार बोला, ''हाँ, आप बिलकुल जा सकते हैं। लेकिन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर में जाने की ज़रुरत नहीं है। इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपकी बरसों की मेहनत का इनाम है। जाइये अपने परिवार के साथ उसमें खुशहाली से रहिये!”
कारपेंटर यह सुनकर स्तब्ध रह गया। वह मन ही मन सोचने लगा, “कहाँ मैंने दूसरों के लिए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घटिया तरीके से बना बैठा। …क़ाश, मैंने ये घर भी बाकी घरों की तरह ही बनाया होता!”
दोस्तों, कब आपका कौन सा काम किस तरह आपको प्रभावित कर सकता है, ये बताना मुश्किल है। और ये समझने की ज़रुरत है कि हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपना हर काम अपनी पूरी काबिलियत के साथ करें, फिर चाहे वह हमारा आखिरी काम ही क्यों न हो! नहीं तो हो सकता है कि हमें भी उस बूढ़े कारपेंटर की तरह ही पछताना पड़ जाए।
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