माह ए रमजान और लखनऊ का माहौल।
दिनांक 05 जुलाई की रात 8 बजे हिन्दुतान की पत्रकार अरशाना अरज़मत जी का फाेन आया ओर उन्होंने बताया कि वे रमज़ान और विशेष कर उससे जुड़े सामाजिक बदलावों पर बात करना चाहती हैं। हालांकि समय-समय पर अखबारों से इस तरह के फोन अट्रेंडम आते रहते हैं, लेकिन एकदम से किसी विषय पर कुछ बोलना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। फिरभी उस अवसर पर हमारी जो कुछ बात हुई, उसे हिन्दुस्तान अखबार ने दिनांक 07 जुलाई, 2015 को अपने दैनिक परिशिष्ट 'लखनऊ Live' में पेज 03 पर जगह दी है। हमारी बातचीत को अरशाना जी ने बहुत ही सलीके से और संवार कर प्रस्तुत किया है। इसके लिए मैं उनका हृदय से शुक्रिया अदा करते हुए उस बातचीत को आप लोगों के साथ साझा कर कर रहा हूं।
तकनीक ने आसान बनाई तिलावत की राह
लखनऊ का रमजान लगभग पूरी दुनिया में मशहूर है। अपने खानपान की वजह से, रवायतों की वजह से तौर तरीकों की वजह से और मिली जुली तहजीब की वजह से। लेकिन पिछले कुछेक साल में लखनऊ के रमजान ने कई बदलाव देखे हैं। कई अच्छे हैं तो कई बुरे भी हैं। मसलन अगर मैं अपने बचपन की बात करूं तो एक बड़ा सा घर हुआ करता था, दालान और आंगन होते थे, परिवार संयुक्त हुआ करते थे, चाचा-चाची, बड़े पापा और बड़ी अम्मी और उनके बच्चे सभी लोग एक साथ रहते थे। अफतारी के वक्त एक हुजूम सा इकट्ठा होता था। इतने पकवान बनते थे कि पूछिए मत। और खाने वाले उनसे भी ज्यादा रहते थे।
लेकिन आज छोटे घर हैं, बस अम्मी-अब्बू और उनके बच्चे। कुछेक चीजें अफ्तार में बनती हैं, वर्ना तो ज्यादातर चीजें रेडीमेड ही आ जाती हैं। मसरूफियत इतनी ज्यादा है कि रिश्तेदारों के साथ अफ्तार तो दूर मिलना भी नसीब होना बड़ी बात है। इस एक बदलाव के इतर कई अच्छी चीजें भी हुई हैं। जैसे तकनीक के बढ़ते दायरे ने इनसान के लिए इबादत की राह आसान कर दी है।
मैं अभी कुछ रोज पहले ही एक अस्पताल में गया था। मेरे बराबर में बैठे एक शख्स मोबाइल फोन में देखकर कुरआन की तिलावत कर रहे थे। इसी तरह से तमाम एप आ गयी हैं, जो सहरी और अफ्तार से लेकर नमाज का वक्त तक बता देती हैं। कुरआन और हदीस की छोटी-छोटी बातें, राजे के आमाल, छोटी-छोटी जानकारियां लोक वाट्सएप और फेसबुक पर शेयर कर लेते हैं, जिससे तमाम लोगों को इनके बाबत आसानी से पता चल जाता है।
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आदरणीय जाकिर जी लेख के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंरमदान और ईद मुबारक !
शुक्रिया मनोज भाई।
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