खुशियों की दुकान : एक प्रेरक कहानी | Best Motivational Story in Hindi
दोस्तों अगर खुशियां किसी दुकान में मिलतीं, तो दुनिया का कोई आदमी शायद कभी भी दु:खी नहीं होता। क्यों, मैंने सही कहा न?
दरअसल खुशी को हम इधर-उधर खोजते रहते हैं, पर असल में वह हमारे भीतर ही होती है। ...वास्तव में खुशी एक भाव है, या फिर हम इसे 'समझ' भी कह सकते हैं। और जो इंसान इसे समझ लेता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है।
अगर आप भी जीवन के इस मर्म को समझना चाहते हैं और हमेशा संतुष्ट रहना चाहते हैं, तो यह Best Motivational Story in Hindi आपके लिए ही है। और हां, अगर आपको यह Motivational Story in Hindi पसंद आए, तो इसे लाइक करना और अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर करना न भूलें।
खुशियों की दुकान : Best Motivational Story in Hindi
यह कहानी मोहन नामक युवक की है। मोहन एक सीमेंट की चादर बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था। वह फैक्ट्री के गोदाम का इंचार्ज था। गोदाम में कितनी चादरें आती हैं और कितनी चादरें सप्लाई के लिए जाती हैं, वह उनका हिसाब किताब रखता था।
मोहन चाहता तो गोदाम और सप्लाई होने वाले माल में थोड़ा सा हेरफेर करके अच्छे खासे पैसे बना सकता था। लेकिन यह उसके स्वभाव के विपरीत था। वह अपना काम बेहद ईमानदारी और लगन से करता था।
फैक्ट्री का मालिक मोहन के काम से संतुष्ट रहता था। मोहन भी फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से प्रसन्न था। क्योंकि उस पैसे से उसका गुज़ारा आराम से हो जाता था। बस ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे।
एक दिन मोहन अपने काम पर नहीं आया। उसके न जाने से फैक्ट्री के काम में रूकावट उत्पन्न हो गयी। न जाने क्यों उस दिन फैक्ट्री का मालिक मोहन के बारे में काफी देर तक सोचता रहा। उसके मन में यह विचार आया कि यह आदमी इतने दिनों से अपना काम ईमानदारी से कर रहा है। मैंने कब से इसकी तन्ख्वाह भी नहीं बढ़ाई। पता नहीं इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?
फैक्ट्री के मालिक ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत व लगन से काम करेगा।
फैक्ट्री का मालिक बेहद संवेदनशील इंसान था। उसने मोहन की तनख्वाह बढ़ा दी। संतोष को जब महीने के आखिर में बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं। उसने चुपचाप पैसे रख लिये...
इस बारे में न तो मोहन ने फैक्ट्री मालिक से कुछ कहा और न ही फैक्ट्री मालिक ने उससे इस बारे में कोई बात की। धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी।
ऐसे ही तीन महीने गुज़र गये। एक दिन मोहन फिर काम से ग़ैर हाज़िर हो गया। यह देखकर फैक्ट्री मालिक को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी। इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह आदमी सुधरेगा नहीं!
और उसी दिन फैक्ट्री मालिक ने मोहन की बढ़ी हुई तनख्वाह कम करने का फैसला कर लिया। ऐसा फैसला लेते हुए फैक्ट्री मालिक का मन भीतर से कचोट रहा था, पर मोहन के व्यवहार से वह बेहद दु:खी था। इसलिए उसने मोहन की तनख्वाह घटा कर फिर से पहले जैसी कर दी।
महीने के आखिर में संतोष को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। मोहन ने तनख्वाह के पैसे गिने और चुपचाप उन्हें जेब में रख लिये। फैक्ट्री का मालिक उस समय खजांची के पास ही बैठा था। मोहन ने उससे कोई शिकायत नहीं की। वह चुपचाप अपने घर जाने लगा।
यह देखकर फैक्ट्री मालिक हैरान रह गया। उसने मोहन को आवाज़ लगाई और उससे पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने आज से तीन महीने पहले तुम्हारे ग़ैरहाज़िर रहने के बाद तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा दी थी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और इस महीने जब मैंने तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?
मोहन फैक्ट्री मालिक के पास आया और बोला- सेठ जी, जब मैं आज से तीन महीने पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर में पुत्र का जन्म हुआ था। उस वक्त जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ी थी, तो मैंने सोचा था कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ।
...इस महीने जब मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं... ऐसे में भला मैं तनख्वाह कम होने से क्यों परेशान होता?
मोहन की बात सुनकर फैक्ट्री का मालिक गदगद हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया। उसने आगे बढ़कर मोहन को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी। इसके साथ ही उसने मोहन का प्रमोशन भी कर दिया और उसकी तनख्वाह पहले से दुगनी कर दी।
मोहन चाहता तो गोदाम और सप्लाई होने वाले माल में थोड़ा सा हेरफेर करके अच्छे खासे पैसे बना सकता था। लेकिन यह उसके स्वभाव के विपरीत था। वह अपना काम बेहद ईमानदारी और लगन से करता था।
फैक्ट्री का मालिक मोहन के काम से संतुष्ट रहता था। मोहन भी फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से प्रसन्न था। क्योंकि उस पैसे से उसका गुज़ारा आराम से हो जाता था। बस ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे।
एक दिन मोहन अपने काम पर नहीं आया। उसके न जाने से फैक्ट्री के काम में रूकावट उत्पन्न हो गयी। न जाने क्यों उस दिन फैक्ट्री का मालिक मोहन के बारे में काफी देर तक सोचता रहा। उसके मन में यह विचार आया कि यह आदमी इतने दिनों से अपना काम ईमानदारी से कर रहा है। मैंने कब से इसकी तन्ख्वाह भी नहीं बढ़ाई। पता नहीं इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?
फैक्ट्री के मालिक ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत व लगन से काम करेगा।
फैक्ट्री का मालिक बेहद संवेदनशील इंसान था। उसने मोहन की तनख्वाह बढ़ा दी। संतोष को जब महीने के आखिर में बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह बोला कुछ नहीं। उसने चुपचाप पैसे रख लिये...
इस बारे में न तो मोहन ने फैक्ट्री मालिक से कुछ कहा और न ही फैक्ट्री मालिक ने उससे इस बारे में कोई बात की। धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी।
ऐसे ही तीन महीने गुज़र गये। एक दिन मोहन फिर काम से ग़ैर हाज़िर हो गया। यह देखकर फैक्ट्री मालिक को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी। इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह आदमी सुधरेगा नहीं!
और उसी दिन फैक्ट्री मालिक ने मोहन की बढ़ी हुई तनख्वाह कम करने का फैसला कर लिया। ऐसा फैसला लेते हुए फैक्ट्री मालिक का मन भीतर से कचोट रहा था, पर मोहन के व्यवहार से वह बेहद दु:खी था। इसलिए उसने मोहन की तनख्वाह घटा कर फिर से पहले जैसी कर दी।
महीने के आखिर में संतोष को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। मोहन ने तनख्वाह के पैसे गिने और चुपचाप उन्हें जेब में रख लिये। फैक्ट्री का मालिक उस समय खजांची के पास ही बैठा था। मोहन ने उससे कोई शिकायत नहीं की। वह चुपचाप अपने घर जाने लगा।
यह देखकर फैक्ट्री मालिक हैरान रह गया। उसने मोहन को आवाज़ लगाई और उससे पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने आज से तीन महीने पहले तुम्हारे ग़ैरहाज़िर रहने के बाद तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा दी थी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और इस महीने जब मैंने तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?
मोहन फैक्ट्री मालिक के पास आया और बोला- सेठ जी, जब मैं आज से तीन महीने पहले ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर में पुत्र का जन्म हुआ था। उस वक्त जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ी थी, तो मैंने सोचा था कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ।
...इस महीने जब मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं... ऐसे में भला मैं तनख्वाह कम होने से क्यों परेशान होता?
मोहन की बात सुनकर फैक्ट्री का मालिक गदगद हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया। उसने आगे बढ़कर मोहन को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी। इसके साथ ही उसने मोहन का प्रमोशन भी कर दिया और उसकी तनख्वाह पहले से दुगनी कर दी।
दोस्तों, Best Motivational Story in Hindi का यह कथानक हमें बताता है कि ऐसा सिर्फ मोहन के साथ ही नहीं हुआ। ऐसा हम सब के साथ भी होता है। हमारे जीवन में भी अक्सर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाएं होती रहती हैं। जो आदमी एक अच्छी घटना से खुश होकर अनावश्यक रूप से उछलता नहीं है, और नकारात्मक घटनाओं पर अनावश्यक रूप से दु:ख नहीं मनाता है और हर दशा में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखते हुए लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहता है, वही आदमी जीवन में स्थाई सफलता प्राप्त करता है।
और जो व्यक्ति जीवन के इस मर्म को समझ लेता है, उसकी खुशियों की दुकान की तलाश समाप्त हो जाती है। वह व्यक्ति अपने जीवन में संतोष की तरह ही हमेशा संतुष्ट और प्रसन्न रहता है।
अगर आपके पास भी इस तरह की Best Motivational Story in Hindi हो, तो आप हमें zakirlko AT gmail.com पर भेज सकते हैं। उन्हें आपके नाम और परिचय के साथ प्रकाशित करके हमें अतीव प्रसन्नता होगी।
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अच्छी प्रेरक कहानी है ..
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंnice line
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक कथा ...
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी
जवाब देंहटाएंprerak kahani.
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