कैलाश सत्यार्थी को मिलने वाले विदेशी पुरस्कार और भारत में उनकी उपेक्षा।
पता नहीं ये भारतीय उपमहाद्वीप की मिट्टी का कैसा प्रभाव है कि हमने कभी किसी प्रतिभा का सम्मान करना सीखा ही नहीं। हमारे लिए हर शख्सियत 'घर की मुर्गी दाल बराबर' होती है। इतने खुदग़र्ज हो गये हैं हम कि हमसे दूसरों की तारीफ की ही नहीं जाती। और तो और हम लोगों की तब तक उपेक्षा करते हैं, जब तक वह टूट कर बिखर नहीं जाए। लेकिन कुछ शख्स जाने किस मिट्टी के बने होते हैं कि वे न तो टूटते हैं और न ही बिखरते हैं। उल्टे वे हमारी उपेक्षा को चुनौती के रूप में ग्रहण करते हैं और दिन प्रतिदिन दृढ़ से दृढतर होते चले जाते हैं।
कैलाश सत्यार्थी ऐसी ही शख्सियत का नाम है। जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई, तो भाई लोग ऐसे चौंके जैसे उनके आगे कोई बम फूट गया हो। क्योंकि उन्होंने अब से पहले इस नाम के किसी व्यक्ति का नाम सुना ही नहीं था। आम आदमी तो छोडि़ए, मीडिया के लोग भी पूछते फिर रहे थे कि ये कौन है भई? हद तो तब हो गई, जब मैंने अपने इसी ब्लॉग पर नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की प्रेरणाप्रद जीवनी पोस्ट लगाई, तो बहुत से लोगों ने मुझसे पूछना शुरू कर दिया कि इनके बारे में कुछ और बताएं।
इसके लिए किसी व्यक्ति विशेष को दोष देना ठीक नहीं। क्योंकि यह एक प्रवृत्ति है, जो हमारे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पसरी हुई है। यही कारण है कि जब तक हमारे यहां किसी व्यक्ति को विदेश से रिकग्नीशन नहीं मिल जाता, हम उसे भाव ही नहीं देते। लेकिन कैलाश सत्यार्थी के बारे में तो स्थिति इससे भी बुरी है। क्योंकि नोबेल से पहले उन्हें विदेश के एक दर्जन बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं। हैरानी होती है कि इसके बावजूद मीडिया ने कभी उन्हें नोटिस में नहीं लिया। आखिर क्यों ?
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बात यहां तक ही होती, तो भी गनीमत थी। कुछ विचारक तो ऐसे महान देशभक्त निकले कि उनके नाम की घोषणा होते ही लगे उनकी आलोचना करने। वे ये हैं, वे वो हैं, उन्होंने ये किया, वो किया....।
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बात यहां तक ही होती, तो भी गनीमत थी। कुछ विचारक तो ऐसे महान देशभक्त निकले कि उनके नाम की घोषणा होते ही लगे उनकी आलोचना करने। वे ये हैं, वे वो हैं, उन्होंने ये किया, वो किया....।
शर्म नहीं आती ऐसे लोगों को खुद पर। पता नहीं कभी आईने में अपना चेहरा भी देखते हैं या नहीं? या फिर कभी अपने गिरेबान में भी कभी झांका है अथवा नहीं? खुद भले ही कभी किसी प्यासे को पानी तक न पिलाया हो, पर दर्शन ऐसा बघारेंगे, जैसे संसार के सबसे बड़े फिलाफर यहीं हैं।
ऐसे लोगों की बातें सुनकर क्या आपको भी क्रोध आता है? कि लगाए इनके कान के नीचे एक जोरदार कंटाप....? या फिर यीशू के शब्दों में- इन्हें माफ कर दो प्रभू, क्योंकि ये खुद नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।
या फिर कुछ और आता है आपके दिमाग में? अगर समय मिले, तो जवाब जरूर दीजिएगा। मुझे आपके जवाब का इंतजार रहेगा।
आपकी जानकारी के लिए कैलाश सत्यार्थी को अब तक मिले पुरस्कारों की सूची प्रस्तुत की जा रही है। और हां, अगर उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं के बारे में भी जानना चाहते हैं, तो आप यहां पर क्लिक कर सकते हैं।
2014: Nobel Peace Prize
2009: Defenders of Democracy Award (US)
2008: Alfonso Comin International Award (Spain)
2007: Medal of the Italian Senate (2007)
2007: Recognized in the list of "Heroes Acting to End Modern Day Slavery" by the US State Department
2006: Freedom Award (US)
2002: Wallenberg Medal, awarded by the University of Michigan (US)
1999: Friedrich Ebert Stiftung Award (Germany)
1998: Golden Flag Award (Netherlands)
1995: Robert F. Kennedy Human Rights Award (US)
1995: The Trumpeter Award (US)
1994: The Aachener International Peace Award (Germany)
1993: Elected Ashoka Fellow (US)
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=p~
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा , सच में लोगो की मानसिकता
जवाब देंहटाएं"घर की मुर्गी दाल बराबर " समझने वाली हो गयी है तभी तो इंडिया वालो से जयदा सभी पुरूस्कार
विदेशो में मिले हैं जैसा आपने लिस्ट में दर्शया है !
भारत मे पुरस्कार मिलने पर ही कद्र होती है. यही कड़वा सच है .
जवाब देंहटाएंमीडिया को ही दोष क्यों जाकिर भाई । साहित्यकारों ने भी जैसा अब शोर मचाया है पहले तो नही न किया । अब तो जहाँ देखो सिर्फ कैलाश सत्यार्थी से जुड़ी खबरें , संस्मरण ही आ रहे हैं । लेकिन यह भी अच्छी बात है अच्छे कार्यों व उपलब्धियों की चर्चा तो होनी ही चाहिये । वैसे सच तो यह है कि जो काम करते हैं उन्हें नाम की परवाह कभी नही होती । नाम खुद उनके पीछे आता है ।
जवाब देंहटाएंये तो हमारे देश की सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम खूबियाँ तब तक नहीं देख पाते जब तक किसी अन्य देश के द्वारा न दिखाया जाए, दूसरों की हाँ में हाँ मिलाते हैं स्वयं खूबियों की ओर से आँखें बंद रखते हैं फिर दूसरों में खूबियाँ और अपने देशवासियों में खामियाँ ढूँढ़ते हैं
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