नमन तुम्हें है बारम्बार!

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लखनऊ के रचनाकार एवं कवि लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक पर केन्द्रित स्मृति ग्रंथ 'शाश्वत शब्द: समर्पित साधना' के बहाने एक चर्चा।

Lakshmi Shankar Mishra Nishank
लक्ष्‍मी शंकर मिश्र ‘निशंक’ (21.10.1918 – 30.12.2011)

साहित्य के नि:स्वार्थ साधक: लक्ष्‍मी शंकर मिश्र ‘निशंक’ 

लखनऊ का यह सौभाग्‍य है कि वह सदा से ही साहित्‍य का गढ़ रहा है। चाहे प्रगतिशील आंदोलन के प्रारम्‍भ की बात रही हो या फिर आज के समय के साहित्‍य के सर्वाधिक चर्चित आयोजन कथाक्रम की, सभी लखनऊ की माटी से जुड़े हुए हैं। इसकी माटी ने जहां एक ओर यशपाल, अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, गजेंद्र नाथ चतुर्वेदी, रमई काका जैसे ख्‍यातिनाम रत्‍न हिन्‍दी साहित्‍य को दिये हैं, वहीं ऐसे अन्‍य सैकड़ों रचनाकार भी हैं, जो तन-मन से ही नहीं धन से भी हिन्‍दी साहित्‍य की सेवा में समर्पित रहे हैं। 

ऐसे ही रचनाकारों में डॉ. लक्ष्‍मीशंकर मिश्र निशंक का नाम प्रमुख है। वे कान्‍यकुब्‍ज कालेज में अध्‍यापन से जुड़े रहे और आजीवन हिन्‍दी की सेवा में रत रहे। डॉ. निशंक मूलत: कवि थे और उन्‍होंने कवित्‍त–सवैया को युगानुरूप ढ़ाल कर उसे समकालीन समाज में लोकप्रिय बनाने का काम किया। उन्‍होंने ‘सुकवि विनोद’(1973) का प्रकाशन किया और कविता को नई धार दी। इसके साथ ही उन्‍होंने युवा रचनाकारों को प्रेरित करने और उन्‍हें प्रशिक्षित करने का भी सराहनीय कार्य किया। 

21 अक्‍टूबर, 1918 को भगवंतनगर, हरदोई, उ.प्र. में जन्‍में डॉ. निशंक खडी बोली के साथ ही अवधी और ब्रज भाषा के मर्मज्ञ रहे हैं। उन्‍होंने सुमित्रा (महाकाव्‍य), शांति-दूत, बांसुरी, शतदल, अनुपता, शंख की सांस, तूणीर, शांति दूत, साधना के स्‍वर (काव्‍य संग्रह), प्रेम-पियूष (ब्रज काव्‍य), पुरवाई, (अवधी काव्‍य), साहित्‍यकार का दायित्‍व (निबंध संग्रह), ‘संस्‍मरणों के दीप’ (संस्‍मरण) जैसी दो दर्जन पुस्‍तकें रचीं, जो चर्चित एवं पुरस्‍कृत हुईं। 

डॉ. निशंक की 95वीं जयंती के अवसर पर पिछले दिनों उनकी स्‍मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें शहर के चर्चित रचनाकारों ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर एक स्‍मृति-ग्रंथ ‘शाश्‍वत शब्‍द : समर्पित साधना’ का भी प्रकाशन किया गया। इस स्‍मृति ग्रन्‍थ से गुजरते हुए यह एहसास होता है कि उन्‍होंने किस प्रकार आजन्‍म हिन्‍दी सेवा के व्रत का पालन किया और अन्‍य हिन्‍दी प्रेमियों का उत्‍साहवर्धन/मार्गदर्शन कर उनके पथ को आलोकित किया। 

स्‍मृतिग्रंथ में जहां एक ओर जाने-माने रचनाकारों ने डॉ. निशंक से सम्‍बंधित स्‍मृतियों को उकेरा है, वहीं इसमें चर्चित रचनाकार श्रीनारायण चतुर्वेदी, रामेश्‍वर शुक्‍ल अंचल, शिवमंगल सिंह सुमन, विष्‍णुकांत शास्‍त्री जैसे रचनाकारों के पत्रों को भी संग्रहीत किया गया है, जो निशंक जी के व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व के महत्‍वपूर्ण पक्षों को सामने रखते हैं। ग्रंथ में निशंक जी की अनेक अप्रकाशित रचनाएं प्रकाशित होने से यह अंक पठनीय के साथ-साथ संग्रहणीय भी बन पड़ा है। 

इस स्‍मृति ग्रंथ से गुजरते हुए जहां एक ओर निशंक जैसे समर्पित साहित्‍य सेवी की साहित्‍य साधना के बारे में पता चलता है, वही दूसरी ओर शहर की साहित्यिक पृष्‍ठभूमि एवं समकालीन रचनाकारों के बारे में भी काफी कुछ जानने को मिलता है। इससे इस ग्रन्‍थ की गरिमा एवं सार्थकता निश्‍चय ही बढ़ जाती है।
Keywords: Lakshmi Shankar Mishra Nishank, Lucknow ke Sahityakar, Sukavi Vinod, Lucknow ke Kavi, Lucknow Poet

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. Anubhav Sharma12/10/2013 12:54 pm

    Nishank ji ko hardik naman.

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता मिश्रा12/10/2013 1:00 pm

    लखनउ के साहित्यकारों में निशंक जी वरेण्य स्थान है, उन्होंने अनगिन साहित्यकारों को कलम पकडना सिखाया। उनके बारे में कोई स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, यह जानकार प्रसन्नता हुई। कृपया बताने का कष्ट करें कि यह ग्रन्थ कहां से प्राप्त हो सकता है!
    कविता मिश्रा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Dr. Zakir Ali Rajnish12/13/2013 2:12 pm

      कविता जी, निशंक जी के सुपुत्र श्री अनिल मिश्र जी उ0प्र0 हिंदी संस्थान, लखनऊ में प्रधान संपादक के पद पर कार्यरत हैं। आपको यह पुस्तक उनसे प्राप्त हो सकती है।

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