कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

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History of Hindi Language

हिन्दी भाषा पर फारसी और अंग्रेजी का प्रभाव 

हिन्दी भाषा की विकास यात्रा के दौरान जिन दो महत्वपूर्ण कारकों ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया, उनमें भारत में मुस्लिम शासकों का आधिपत्य और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना सबसे प्रमुख कारक हैं। दिल्ली की गद़दी पर मुस्लिम शासकों के बैठने के साथ जो सबसे बड़ा परिवर्तन आया, वह था राजकीय भाषा के रूप में फारसी की स्थापना। फारसी की इस ताजपोशी से जहाँ एक ओर सामान्य जन के बीच उसकी स्वीकार्यता बढ़ी, वहीं दूसरी ओर उसने बड़ी तेजी से हिन्दी को प्रभावित किया। 

हिन्दी भाषा पर फारसी का प्रभावः 

फारसी और हिन्दी के बीच आपसी सम्पर्क बढ़ने से हिन्दी भाषा का जबरदस्त विकास देखने को मिला। नई शब्दावली, नयी क्रियाएँ एवँ नयी पद रचना शैली हिन्दी के सम्पर्क में आई। इससे एक ओर जहाँ हिन्दी का शब्‍द भण्डार बढ़ा, वहीं फारसी-हिन्दी संयुक्त भाषा के रूप में राजघरानों में उसकी स्वीकार्यता भी बढ़ती चली गयी। फारसी भाषा के सम्पर्क में आने से हिन्दी में जो क्रमिक परिवर्तन हुए, उन्हें निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता हैः 

01 हिन्दी भाषा में फारसी की बहुत सी ऐसी शब्‍दावली देखने को मिलती है, जो अपने मूल अर्थ से कहीं ज्यादा व्यापक अर्थों में प्रयुक्त होती है। इस घटना को ‘अर्थ विस्तार’ के नाम से जाना जाता है। इस श्रेणी के हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले कुछ प्रमुख फारसी शब्‍द हैं- ख़बर, ख़ार, दरगाह और दारू। ‘ख़बर’ शब्‍द का फारसी में अर्थ होता है ‘जानकारी’, पर हिन्दी में यह ‘समाचार’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार ‘ख़ार’ शब्‍द ‘काँटा’ के स्थान पर ‘ईर्ष्‍या’ के रूप में, ‘दरगाह’ शब्‍द ‘दरवाजा’ के स्थान पर ‘समाधि स्थल’ के रूप में और ‘दारू’ शब्‍द ‘उपाय’ के स्थान पर ‘शराब’ के रूप में प्रयुक्त हो रहा है। 

02 फारसी भाषा के ऐसे अनेक शब्‍द हैं जो अपने मूल अर्थ की तुलना में हिन्दी में संकुचित अर्थ में प्रयोग में लाए जाते हैं। ऐसे शब्‍द ‘अर्थ संकोच’ की परिधि में आते हैं। इस तरह के कुछ शब्‍द हैः खानसामा, दरिया, सब्जी, सिक्का। ‘खानसामा’ फारसी में अर्थ ‘गृह प्रबंधक’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि यह हिन्दी में ‘रसोइया’ के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। इसी प्रकार ‘दरिया’ शब्‍द ‘सागर’ के स्थान पर ‘नदी’ के रूप में, ‘सब्जी’ शब्‍द ‘हरियाली’ के स्थान पर ‘हरी सब्जी’, ‘तरकारी’ के रूप में तथा ‘सिक्का’ शब्‍द ‘मुद्रा बनाने के ढ़ाँचे’ के स्थान पर ‘मुद्रा’ के रूप में प्रयुक्त होता है। 
03 फारसी भाषा के अनेक शब्‍द ऐसे हैं, जिनका मूल अर्थ कुछ और है, किन्तु वे हिन्दी में किसी और अर्थ में प्रयोग में लाए जाते हैं। ऐसे शब्‍दों को ’अर्थादेश’ की श्रेणी में रखते हैं। इस तरह के कुछ प्रमुख शब्‍द हैं- अखबार, आम, ख़ैरात एवं दफ्तर। फारसी में ‘अख़बार’ शब्‍द ‘खबर’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि हिन्दी में यह ‘समाचार पत्र’ के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसी प्रकार ‘आम’ शब्‍द ‘अच्छी तरह से ज्ञात’ के स्थान पर ‘साधारण’ अथवा ‘सामान्य’ के रूप में, ‘ख़ैरात’ शब्‍द ‘अच्छाई’ के स्थान पर ‘दान’ के रूप में तथा ‘दफ्तर’ शब्‍द ‘फाइल’ के स्थान पर ‘कार्यालय’ के रूप में प्रयुक्त होता है। 

04 फारसी भाषा के अनेकानेक ऐसे शब्‍द हैं, जो हिन्दी के समान अर्थ वाले शब्‍दों के साथ संयुक्त रूप से मिश्र शब्‍दों के उपयोग में लाए जाते हैं। जैसे अमन-चैन, अच्छा-खासा, आब-दाना, आँधी-तूफान, किस्सा-कहानी, खाँसी-जुकाम, खून-पसीना, खेल-तमाशा, जात-बिरादर, टोला-मोहल्ला, दाना-पानी आदि। 

05 हिन्दी में प्रचलिए बहुत से सामासिक शब्‍द ऐसे हैं, जो फारसी और हिन्दी के शब्‍दों के संयोग से बने हैं। जैसे अक्लदाढ़, घूसखोर, चोर-दरवाजा, जेब-घड़ी, बाजार-भाव, मियाँ-मिट्ठू, मोमबत्ती, राजमहल आदि। इसी प्रकार बहुत से शब्‍द हैं, जो नाम के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं जैसेः खुशहालचंद, गुलाबराय, गुलजारीलाल, जवाहरलाल, दौलतराम, फतेहचंद, बहादुरलाल, रामसूरत, वजीरचंद, हजारीलाल आदि।

06 फारसी की अनेक क्रियाएँ हिन्दी में हूबहू अपना ली गयी हैं जैसेः आजमाना-परखना, खरीदना-क्रय करना, गुजरना-जाना, तराशना-मठारना, फरमाना-कहना, बख्शना-माफी देना, लरजना-काँपना आदि। 

07 हिन्दी में बहुत सी ऐसी क्रियाएँ प्रचलित हैं, जो फारसी के शब्‍दों में करना, होना, लेना, पड़ना, डालना, आना आदि शब्‍द मिलाने से बनी हैं। जैसेः अदा करना, नज़र लगाना, नज़र गड़ाना, पसंद करना, फरमाइश करना, फरमाइश सुनाना, फजीहत करना, फैसला होना आदि। 

08 अनेक फारसी शब्‍द ऐसे हैं, जो हिन्दी में विशेषण के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। जैसेः करीब, खाली, तमाम, फालतू, मामूली, हरजाई आदि। 

09 हिन्दी में बहुत से ऐसे विशेषण प्रचलित है, जो अरबी के शब्‍दों को हिन्दी की रीति से परिवर्तित करके बनाए गये हैं। जैसे कीमत से कीमती, असल से असली, गुस्सा से गुस्सैल, जिद से जिद्दी, जुल्म से जुल्मी, नकल से नकली, माल से माली, शर्म से शर्मीला और सैर से सैलानी आदि। 
10 फारसी के अनेक विशेषणों को हिन्दी में भाव वाचक संज्ञा के रूप में उपयोग में लाया जाता है। जैसेः अक्लमंद से अक्लमंदी, अमीर से अमीरी, आसान से आसानी, आजाद से आजादी, आबाद से आबादी, ईमानदार से ईमानदारी, खराब से खराबी, खुश से खुशी, गरम से गरमी, नरम से नरमी, जिंदा से जिंदगी, ताजा से ताजगी और सादा से सादगी। 
11 फारसी भाषा के बहुत से मुहावरे हिन्दी में ज्यों के त्यों अपना लिये गये हैं। जैसे दाँत खट्टे करना, दाँतों तले अँगुलियाँ दबाना, आँखों में खून उतरना, हाथ-पैर मारना, हाथ मलना, पीठ दिखाना, बगलें झाँकना, सर उठाना, बिस्मिल्लाह करना, पानी-पानी होना, सब्जबाग दिखाना, नमक हरामी करना, जमीन-आसमान एक करना, काम तमाम करना, तितर-बितर करना, हुक्का-पानी बंद करना, बालू से तेल निकालना आदि। 

12 हिन्दी में प्रचलित अनेक कहावतें ऐसी हैं, जो फारसी से ली गयी हैं। जैसेः दो शरीर एक जान, एक अनार सौ बीमार, तन्दुरूस्ती हजार नियामत, देर आयद-दुरूस्त आयद, बद अच्छा बदनाम बुरा, मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक, आसमान से गिरा खजूर में अटका, ऊँची दुकान फीका पकवान, कब्र में पाँव लटकना, घर की मुर्गी दाल बराबर, नौ नकद न तेरह उधार, गरीबी में आटा गीला होना आदि। 

उर्दू का जन्‍म: 

भारत में मुस्लिम बादशाहों के दौर में शुरू हुआ फारसी का वर्चस्व शाह आलम और क्लाइव के बीच हुयी संधि के तहत सन 1935 तक चलता रहा। इस दौरान जहाँ एक ओर दरबारीगण बादशाह के प्रति अपनी निष्‍ठा प्रदर्षित करने के लिए फारसी को बढ़ावा दे रहे थे, वहीं फारसी की दुरूहता से आक्रान्त सामान्यजन उससे लगातार एक दूरी बनाए रखने का प्रयत्न कर रहे थे। इसके अतिरिक्त एक सेवा वर्ग ऐसा भी था, जो हिन्दी शब्‍दावली के फारसीकरण पर लगातार जोर दे रहा था। इन्हीं तमाम परिस्थितियों के फलस्वरूप 1730 ई. के आसपास देश में एक नयी भाषा का जन्म हुआ, जो फारसी और हिन्दी के संयोग से बनी थी और उस नयी भाषा का नाम था उर्दू। 

उर्दू मूलतः तुर्की भाषा का शब्‍द है, जिसका अर्थ होता है ‘शाही शिविर’ या ’खेमा’। लेकिन भाषा के अर्थ में उर्दू शब्‍द का प्रयोग सबसे पहले कब हुआ, इस सम्बंध में विद्वान एकमत नहीं हैं। किन्तु मोटे अर्थों में 18वीं सदी के मध्य में यह शब्‍द चल पड़ा था। उस समय इसे ज्यादातर ’हिन्दी’ या ‘रेख्ता’ (मिश्रित भाषा) कहते थे, जो बाद में धीरे-धीरे उर्दू के नाम से ही जानी जाने लगी। 

यदि लिपि की भिन्नता को अलग कर दिया जाए, तो हिन्दी और उर्दू में कोई विशेष फर्क नहीं है। डॉ0 नगेन्द्र के अनुसार जब खड़ी बोली में बोलचाल के शब्‍दों (आधारभूत शब्‍दावली, बहुप्रचलित तद्भव शब्‍द, सरल बहुप्रचलित संस्कृत शब्‍द तथा सरल बहुप्रचलित अरबी-फारसी-तुर्की शब्‍द) का ही प्रयोग होता है, तो उसे बोलचाल की हिन्दी या हिन्दुस्तानी कहते हैं। उनके शब्‍दों के साथ ही जब संस्कृत के अल्प प्रचलित या कठिन तत्सम शब्‍दों का काफी प्रयोग होता है, तो उसे हिन्दी या साहित्यिक हिन्दी कहते हैं। और जब उन शब्‍दों के साथ अरबी, फारसी, तुर्की के अल्य प्रचलित कठिन शब्‍दों का बहुत प्रयोग होने लगता है, तो उसे उर्दू कहते हैं। 

इसके अलावा भी उर्दू और हिन्दी में काफी समानता है। जैसे दोनों के सर्वनाम (वह, मैं, तू, हम आदि) एक हैं। दोनों की क्रियाएँ (जाना, सोना, खाना, पीना, करना, जीना, लिखना, पढ़ना इत्यादि) लगभग एक हैं। दोनों भाषाओं के सम्बंध वाचक शब्‍द (में, पर, से का आदि) भी लगभग एक ही हैं। इसके अलावा दोनों भाषाओं के मूल शब्‍द भण्डार, कहावतें एवं लोकोक्तियाँ भी एक ही हैं।

हिन्‍दी साहित्यकारों पर फारसी का प्रभावः 

फूट डालो और राज करो की नीति के तहत अंग्रेजों ने हिन्दी और उर्दू के बीच दीवार खड़ी करने की भरसक कोशिशें की, किन्तु ब्रिटिश कूटनीति के विरूद्ध हिन्दी-उर्दू के सजग साहित्यकार इस बात का बराबर प्रयत्न करते रहे कि हिन्दी-उर्दू घुलमिल कर एक हों। ऐसे लोगों में सबसे बड़ा नाम प्रेमचंद का है। प्रेमचंद की रचनाओं में फारसी का प्रभाव स्पष्‍ट रूप से देखने को मिलता है। ‘कर्बला’ का एक उदाहरण देखें- ‘जुहाक, कसम है अल्लाह की, मैं इसको कभी क्षमा नहीं कर सकता। फौरन कासिद भेजो और वलीद को सख्त ताकीद लिखो कि वह हुसैन से मरे नाम पर बैत ले।’

उपरोक्त उद्धरण के पहले वाक्य में फारसी का प्रभाव साफ परिलक्षित हो रहा है। हिन्दी के अनुसार इसे इस प्रकार से होना चाहिए था- ‘जुहाक, अल्लाह की कसम है।’ प्रेमचंद आगे लिखते हैं- ‘आपने वालिद मरहूम की खिदमत जितनी वफादारी के साथ की, उसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ।’ इस उद्धरण में ‘वालिद मरहूम’ के स्थान पर ‘मरहूम वालिद’ होना चाहिए। इसी प्रकार ‘वलीद, हकीम मदीना को तादीक जाती है’ में ‘हाकिम मदीना’ के स्थान पर ‘मदीना के हाकिम’ होना चाहिए। 

हिन्दी गद्य के संस्थापकों में भारतेन्दु हरिश्‍चंद्र का नाम सर्वप्रमुख है। उन्होंने अपने लघु निबंध ‘दिल्ली दरबार’ में उर्दू शब्‍दों का खुल कर प्रयोग किया है। उक्त निबंध में प्रयुक्त उर्दू शब्‍दों पर एक नजर डालिएः किस्मत, तरक्की, कौम, ताकत, जोर, हिम्मत, फिजूलखर्ची, किफाइतकार, जमात, तनज्जुली, कमीनापन, नेस्तानाबूद, शक्ल, सिर्फ, जियादत, तरोतागजी, सरसब्जी, ख्याल, अगर, गलत, औवल, कानून, अदल-बदल, जोश, गरमा-गरमी, जालिम, हुकूमत, मजबूत, नेक, गुलाम, तालीम, बिलकुल, बेफाइदा, बेहतरी, नतीजा, हमदर्दी, सिरताज, पुष्त, फिरके, साबितकदम, दरजा, शरू, जिंदगी, हिस्से, गरीब, खासियत, खुशी इत्यादि। 
इनके अतिरिक्त हिन्दी के तमाम रचनाकारों की भाषा शैली पर उर्दू-फारसी का प्रभाव स्पष्‍ट रूप से देखा जा सकता है। ‘राम की शक्ति पूजा’ जैसी तत्सम प्रधान शब्‍दावली में कविता लिखने वाले रचनाकार निराला की कलम से जब ‘चतुरी चमार’ जैसी रचनाएँ निकलती हैं, तो वहाँ भी उर्दू शब्‍द आ ही जाते हैं। ‘चतुरी चमार’ के पहले दो पृष्‍ठों में उपयोग में लाए गये उर्दू शब्‍द इस प्रकार हैं- मौजा, जिला, कदीमी, बाशिन्दा, सामान, फासला, पुश्‍तैनी, रिश्‍ता, देहात, मजबूत, हफ्ता, हल्का, ज्यादा, वगैरह, नजदीक, साया, अक्ल आदि। 

न सिर्फ हिन्दी के रचनाकार बल्कि उर्दू के शायर भी जब सरल शब्‍दावली का प्रयोग करते हैं, तो यह समझना थोड़ा मुष्लि हो जाता है कि ये हिन्दीकी पंक्तियाँ हैं या उर्दू की। कुछ उदाहरण दृष्‍टव्य हैं- 

सावन के बादलों की तरह से भरे हुए, 
ये वे नयन हैं, जिनसे कि जंगल हरे हुए। -सौदा 

कहाँ तक चुप रहूँ चुपके रहे से कुछ नहीं होता, 
कहूँ तो क्या कहूँ उनसे कहे से कुछ नहीं होता। -बहादुरशाह जफर 

इश्‍क ने गालिब निकम्मा कर दिया, 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के। -मिर्जा गालिब 

हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी का प्रभावः 

सन 1800 ई0 में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद भारतीय समाज में एक बड़े परिवर्तन की शुरूआत हुई। उस परिवर्तन के परिणामस्वरूप आज हमें चारों ओर अंग्रेजी का प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। एक लम्बे कालखण्ड तक भारत में ‘अंग्रेजी राज’ बने रहने के कारण अंग्रेजी भाषा भारतीय जनमानस पर हावी रही। कुछ दबाव और कुछ लालच, दोनों ने भारतीयों को अंग्रेजी के करीब लाने के लिए विवश किया। धीरे-धीरे करके यह निकटता इतनी प्रगाढ़ हो गयी कि दोनों भाषाओं में आपस में शब्‍दों का लेन-देन होने लगा। 

हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी प्रभाव के नजरिए से देखें तो एक ओर जहाँ तमाम अंग्रेजी शब्‍दों को हिन्दी के अनुसार ढ़ाल लिया गया है (लालटेन, रपट, टेसन, सिलेट, बोतल आदि), वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी के तमाम शब्‍द (रेल, बस, बैंक, टिकट, एक्सरे, सिनेमा, कार्बन डाई ऑक्साईड, एल्युमिनियम, मेगाटन, किलोवॉट, प्रोटीन, विटामिन, कैलोरी जैसे तमाम पारिभाशिक शब्‍द) ऐसे हैं, जिनके हिन्दी समानार्थी शब्‍द नहीं मिलते, हिन्दी में जैसे के तैसे समाहित हो गये हैं। 

आम आदमी के जीवन में आज अंग्रेजी भाषा इस तरह से घुलमिल गयी है कि आम बातचीत में भी अंग्रेजी शब्‍द खुल कर प्रयुक्त होने लगे हैं। सामान्य जीवन में अंग्रेजी का प्रभाव इस तरह से समझा जा सकता है कि लगभग 800 वर्षों तक भारत में राजकीय भाषा रही फारसी के जो शब्‍द जीवन का हिस्सा बन गये थे, अंग्रेजी ने उन्हें भी उनके स्थान से विस्थापित कर दिया है। इस तरह के कुछ प्रमुख शब्‍द इस प्रकार हैं- मिनिस्टर, सेक्रेटरी, आई0जी0, डी0आई0जी0, कलक्टर, एस0एस0पी0, जज, कमिश्‍नर, पेटीशन, ऑर्डर आदि। 

जब कोई भी दो अलग-अलग भाषाएँ आपस में सम्पर्क में आती हैं, तो उनके बहुत से शब्‍द एक दूसरी भाषा में अपना लिए जाते हैं। इस प्रक्रिया में कई बार ऐसा होता है कि अपनाई गयी भाषा में वे शब्‍द अपना मूल अर्थ खो देते हैं और नई भाषा में उन्हें नया अर्थ मिल जाता है। ऐसे शब्‍दों को ‘अर्थादेश’ की श्रेणी में रखा जाता है। अंग्रेजी भाषा से हिन्दी में आए कुछ इस प्रकार के शब्‍द हैं- कांग्रेस, कॉमरेड, पैसेंजर, बटरिंग, रेल आदि। ‘कांग्रेस’ शब्‍द को अंग्रेजी में ‘सभा’ अथवा ‘महासभा’ के अर्थ में प्रयोग में लाया जाता है, जबकि यह हिन्दी में एक राजनीतिक दल के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार ‘कॉमरेड’ शब्‍द ‘साथी’ अथवा ‘सहकर्मी’ के स्थान पर ‘कम्युनिस्ट कार्यकर्ता’ के रूप में, ‘पैसेंजर’ शब्‍द ‘यात्री’ के स्थान पर ‘हर स्टेशन पर रूकने वाली गाड़ी’ के अर्थ में, ‘बटरिंग’ शब्‍द ‘मक्खन निकालने’ के स्थान पर ‘चाटुकारिता’ के अर्थ में तथा ‘रेल’ शब्‍द ‘लोहे की पटरी’ के स्थान पर ‘गाड़ी’ (ट्रेन) के अर्थ में प्रयुक्त होता है। 

प्रत्येक भाषा में ऐसे शब्‍द होते हैं, जो अपनी मूल भाषा में किसी अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, किन्तु दूसरी भाषा में जाने पर वे पहले से व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होने लगते हैं। अंग्रेजी भाषा के हिन्दी में प्रचलित इस प्रकृति के कुछ प्रमुख शब्‍द इस प्रकार हैं- कलक्टर, कॉपी, टिकट, पेपर, बटन आदि। अंग्रेजी भाषा में ‘कलक्टर’ शब्‍द ‘लगान वसूलने वाले अधिकारी’ के लिए उपयोग में लाया जाता है, जबकि हिन्दी में यह ‘जिलाधीश’ के लिए प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार ‘कॉपी’ शब्‍द ‘अनुकरण’ के स्थान पर ‘पुस्तिका’ के रूप में, ‘टिकट’ शब्‍द ‘रेलवे टिकट’ के स्थान पर ‘कचहरी के टिकट’/‘डाक के टिकट’ के रूप में, ‘पेपर’ शब्‍द ‘कागज’ के स्थान पर ‘अखबार’ अथवा ‘प्रष्नपत्र’ के रूप में एवं ‘बटन’ शब्‍द ‘कपड़े में लगने वाले बटन’ के स्थान पर ‘बिजली के स्विच’ के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। 

हिन्दी भाषा में बहुत से ऐसे संयुक्त शब्‍द प्रचलित हैं, जो हिन्दी और अंग्रेजी के शब्‍दों से मिल कर बने हैं। ऐसे शब्‍दों को मिश्रित शब्‍द कहा जाता है। हिन्दी-अंग्रेजी के प्रमुख मिश्रित शब्‍द इस प्रकार हैं- कांजी-हाउस, जवाबी-कार्ड, टिकट-घर, डबल-रोटी, रेलगाड़ी, सीलबंद, पॉकेटमार, लाठी-चार्ज, कापी-किताब आदि।

अंग्रेजी भाषा की बहुत सी ऐसी संज्ञाएं हैं, जो ज्यों की त्यों हिन्दी में प्रयुक्त होती है। जैसे एनर्जी, पॉवर, लव, ब्यूटी, हेल्थ, सस्पेंस, क्लाइमेक्स, आइडिया, रेजिगनेशन, सर्विस, जूनियारिटी, सीनियारिटी, प्रॉफिट, प्रोग्रेस, कम्युनिज्म, रोमेन्टिसिज्म, स्टडी, सेक्स, ड्यूटी, प्राइज, रेवार्ड, ट्रुथ, रेस्पेक्ट, रोमांस आदि। 

अंग्रेजी भाषा के बहुत से विशेषण हिन्दी में आमतौर से इस्तेमाल में लाए जाते हैं। कुछ उदाहरण दृष्‍टव्य हैः ब्यूटीफुल, वंडरफुल, जूनियर, सीनियर, टेम्परेरी, परमानेन्ट, हेल्दी, नॉनसेंस, थर्ड क्लास, वेरी गुड, ऑर्डिनरी, एजुकेशनल, नेशनल, पॉलिटिकल, फाइन, फैंसी, लोकल, सोशल, स्पेशल, नियरली, डेली, मंथली आदि। 

हिन्दी और अंग्रेजी भाषा के बहुत लम्बे समय तक एक दूसरे के सम्पर्क में बने रहने के कारण न सिर्फ अंग्रेजी के मुहावरे हिन्दी में प्रचलित हुए (आउट ऑफ डेट, ईडियट दि ग्रेट, सी ऑफ, सेंट-परसेंट, हिप-हिप हुर्रे, फिफ्टी-फिफ्टी आदि), बल्कि हिन्दी अंग्रेजी के शब्‍दों को मिलाकर भी अनेक मुहावरों का निर्माण हुआ। जैसे अंडर ग्राउंड होना, एजेंट बनना, टिकट कटाना, डबल क्रास करना, बटरिंग करना, ब्लॅकमेल करना, बैरंग लौटना, मूड ऑफ होना, रसीद करना, बोतल चढ़ाना, रिंग लीडर होना, रिकार्ड तोड़ना, लाट साहब होना, लेक्चर देना, हीरो बनना, हुलिया टाइट करना आदि। 

अंग्रेजी भाषा के सम्पर्क में आने से जहाँ एक ओर हिन्दी भाषा का शब्‍द भण्डार बढ़ा, वहीं हिन्दी साहित्य में भी अनेकानेक परिवर्तन हुए। डॉ0 मोहन लाल तिवारी के शब्‍दों में- ‘हिन्दी साहित्य पर अंग्रेजी का प्रभाव फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद से षुरू होता है। तदनन्तर, देशभक्ति एवं समाजवाद की नई अभिव्यक्ति अंग्रेजी साहित्य की देन है। अंग्रेजी के एलेजी (शोकगीत), ओड (सम्बोधन गीत), लिरिक (प्रगीत) और सॉनेट (चतुर्दशपदी) को हिन्दी में बड़े उत्साह के साथ अपनाया गया। अंग्रेजी रोमांटिक काव्य परम्परा का हिन्दी छायावाद पर पूरा प्रभाव है। आधुनिक नाट्य साहित्य भी अंग्रेजी के आलोक में लिखा गया है।’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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COMMENTS

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  1. हिन्दी भाषा की विकास यात्रा के दौरान जिन दो महत्वपूर्ण कारकों ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया, उनमें भारत में मुस्लिम शासकों का "अधिपत्य" और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना सबसे प्रमुख कारक हैं।
    "आधिपत्य कर लें".
    दवा- दारु शब्द चल पड़ा है जिसका व्यापक अर्थ इलाज़ /चिकित्सा /दवाई चल पड़ा है .
    हाँ जाकिर भाई "खार कहना किसी से "मुहावरा चल पड़ा है ,बोले तो खुन्दल खाना ,ईर्ष्या डाह रखना , ‘दफ्तर’ शब्‍द ‘फाइल’ के स्थान पर ‘कार्यालय’ के रूप में प्रयुक्त होता है। बिलकुल सही खा आपने -दाखिल दफ्तर करना बोले तो फ़ाइल करना चल पड़ा है .
    अक्ल दाढ को अक्कल दाढ भी कह देते हैं बोले तो अक्ल का आना ,समझदार होना .
    दो जिस्म मगर एक जान भी प्रचलित है .
    क्योंकि यह भाषा हिंद में पैदा हुई इसीलिए हिन्दवी भी कहलाई .
    भाई जान दोनों भाषा के अप -शब्द (गालियाँ )भी एक ही हैं .
    बेशकीमती आलेख लिखा है आपने जाकिर भाई .हिंदी उर्दू सहोदरा है एक ही खाद पानी से पनपी विकसित हुईं हैं छोटा बड़ा कोई नहीं जुड़वां हैं .शुक्रिया इस आलेख के लिए आपकी ब्लोगिया दस्तक के लिए .

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    उत्तर
    1. वीरू जी, त्रुटि की ओर ध्‍यान दिलाने का शुक्रिया।

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  2. रेख्तां के तुम ही उस्ताद नहीं ग़ालिब ,सुना है इस दौर में कोई मीर भी है कोई शायर -मिर्ज़ा ग़ालिब ..

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  3. बहुत सुन्दर जानकारी भरा आलेख ....

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  4. अच्छा पठनीय और जानकारीपरक आलेख.

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  5. बहुत प्रभावशाली ज्ञानवर्धक लेख बहुत बातों का पता चला हार्दिक आभार

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  6. भाषाएं सदा ही एक दूसरे से प्रभावि‍त होती ही आई हैं

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  7. लचीलापन ही किसी को आगे बढने में मददगार होती है .. कामना करती हूं अपनी पहचान खोए बिना हिंदी की ऐसी ही यात्रा बनीं रहे .. बहुत जानकारी परक लेख लिखा आपने !!

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  8. बहुत उपयोगी और ज्ञानवर्धक आलेख!

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  9. अच्छी जानकारी देता लेख .... हिन्दी अपने आप में बहुत सी भाषाओं को समाविष्ट किए हुये है ...

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  10. (१)
    मेरे ख्याल से ताजपोषी की जगह पर ताजपोशी ठीक है सफेदपोश नकाबपोश की तर्ज़ पर !

    (२)
    ख़ार को खार कहूँ तो खेत के आस पास की जगह खेत खार ,
    दारु को संस्कृत में पढूं तो लकड़ी मानियेगा यहाँ हल्बी बोली में भी यही मतलब है इसका !

    (३)
    आम धरती पर साधारण के सिवा पेड़ में फलने और पकने वाला भी हुआ :)

    (४)
    आपकी पिछली सरकार में एक मंत्री थे 'बादशाह सिंह'

    मैं तो पूरा पढकर लिखने के मूड में था पर बेगम ने आवाज़ दी है और खाना भी खाना है इसलिए अभी सिर्फ इतना ही कि आपका आलेख ज़बरदस्त है !

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    उत्तर
    1. अली जी, वैसे फिर भी मेरी इच्‍छा है कि आप एक बार पूरा लेख पढ़कर एक बार फिर से टिप्‍पणी दें। :)

      हटाएं
    2. ताजपोशी सही ढ़ंग से करवाने का शुक्रिया।

      हटाएं
  11. उत्तम जानकारी देता उपयोगी लेख्य .... !!

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  12. बहुत बढ़िया...पठनीय और संग्रहणीय पोस्ट....
    आभार
    अनु

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  13. बहुत ही सुन्दर जानकारीपूर्ण प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  14. हिंदी भाषा ने अपने वृहद् शब्दकोष बोलियों और अन्य प्रदेशों /देशों के शब्दों को आत्मसात किया है .
    संग्रहणीय पोस्ट.

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  15. शब्दों की गतिविधियों का संग्रहणीय आलेख..

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  16. बहुत ही बेहतरीन जानकारी दी ज़ाकिर भाई... यूँ तो कल ही पढ़ लिया था आपका यह लेख... परन्तु मोबाइल से कमेन्ट ही नहीं कर पाया... :-(

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  17. ज़ाकिर जी , बहुत ही माहितीपूर्ण और उपयोगी लेख....बहुत बहुत शुक्रिया.

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  18. विस्तार से लिखा आलेख ...
    बहुत महत्वपूर्ण इतिहास लिखा है भाषा के विकास का ...

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  19. jesi hindustani saskriti ki phichan he ,sab dherm saman,mili juli saskriti vese hi hindi bhi sab bhashao ke sabd grahy ker samridh hi ho rhi he ,vakai kuch sabd to ase ghul mil gye ki lgta hi nhi ve english ke he ,jese blu keler,satation rail sekreteriyet vgerh,apne bhut sar gerbhit khoj puren hindi bhasha per likha sadhu vad ,by=geeta purohit

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  20. .पठनीय और संग्रहणीय पोस्ट....
    आभार

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  21. एक शोधपरक आलेख ।...आभार..

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  22. jankari se bhara hua ...systematic likha gaya aalekh...

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  23. बहुत सारगर्भित और ज्ञानप्रद आलेख...

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  24. बहुत काम की पोस्ट । किसी भी भाषा को विकसित होने के लिये दूसरी भाषाओं से परहेज रखकर नही चलता । हिंदी के विकास की गाथा, भाषा पर अरबी फारसी और अंग्रेजी का प्रभाव इसका बहुत सुंदर विश्लेषण ।

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  25. बहुत शानदार और ऐतिहासिक महत्व का लेख ...इतने अच्छे लेख के लिए बधाई

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  26. बहुत ही उत्कृष्ट एवं ज्ञानवर्धक आलेख है आपका ! किसी भी भाषा में निरंतर परिवर्तन होना तथा उसमें नए नए शब्दों का प्रवेश होना और स्वीकारा जाना भाषा के जीवित होने का प्रतीक है ! हिन्दी भाषा ने युगों से अपने जीवित होने की समय-समय पर पुष्टि की है इसीलिये उसका शब्द कोष सबसे अधिक समृद्ध है ! बढ़िया आलेख के लिये आपको बधाई एवं धन्यवाद !

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  27. theek to kaam kar raha hai embed comment system...

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  28. समग्रता लिए हुए एक संग्रहणीय आलेख. आपको बधाई भी और आभार भी.

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  29. सुन्दर जानकारी भरा आलेख ...!!!!

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  30. अंग्रेजी भाषा के सम्पर्क में आने से जहाँ एक ओर हिन्दी भाषा का शब्‍द भण्डार बढ़ा, वहीं हिन्दी साहित्य में भी अनेकानेक परिवर्तन हुए। डॉ0 मोहन लाल तिवारी के शब्‍दों में- ‘हिन्दी साहित्य पर अंग्रेजी का प्रभाव फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद से षुरू होता है। तदनन्तर, देशभक्ति एवं समाजवाद की नई अभिव्यक्ति अंग्रेजी साहित्य की देन है। अंग्रेजी के एलेजी (शोकगीत), ओड (सम्बोधन गीत), लिरिक (प्रगीत) और सॉनेट (चतुर्पदी) को हिन्दी में बड़े उत्साह के साथ अपनाया गया। अंग्रेजी रोमांटिक काव्य परम्परा का हिन्दी छायावाद पर पूरा प्रभाव है। आधुनिक नाट्य साहित्य भी अंग्रेजी के आलोक में लिखा गया है।
    षुरू
    सॉनेट (चतुर्पदी) को हि...
    सानिट १४ पंक्तियों वाली कविता होती है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में प्राय :१० अक्षर होतें हैं और अन्त्यानुप्रास -प्रणाली प्रयुक्त होती है .:यूं इसे चतुर्दश -पदी कविता भी कहा जाता है (oxford ENGLISH -ENGLISH -HINDI Dictionary(0XFORD UNIVERSITY PRESS).
    Sonnet is a short poem with fourteen lines ,usually ten -syllable rhyming lines ,divided into two ,three or four sections.A POET WHO WRITES SONNET IS A SONNETEER.(ENCARTA CONCISE ENGLISH DICTIONARY).
    "शुरू " कर लें .
    बहुत बढ़िया पोस्ट रही है यह डॉ जाकिर . कुछ और शब्द चल निकले हैं "कुर्सी -माफिया ",वन -माफिया ,मोबोक्रेसी ...

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  31. बहुत बढ़िया पोस्ट रही है यह डॉ जाकिर . कुछ और शब्द चल निकले हैं "कुर्सी -माफिया ",वन -माफिया ,मोबोक्रेसी ...

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  32. सानिट १४ पंक्तियों वाली कविता होती है जिसमें प्रत्येक पंक्ति में प्राय :१० अक्षर होतें हैं और अन्त्यानुप्रास -प्रणाली प्रयुक्त होती है .:यूं इसे चतुर्दश -पदी कविता भी कहा जाता है (oxford ENGLISH -ENGLISH -HINDI Dictionary(0XFORD UNIVERSITY PRESS).
    Sonnet is a short poem with fourteen lines ,usually ten -syllable rhyming lines ,divided into two ,three or four sections.A POET WHO WRITES SONNET IS A SONNETEER.(ENCARTA CONCISE ENGLISH DICTIONARY).
    "शुरू " कर लें .
    बहुत बढ़िया पोस्ट रही है यह डॉ जाकिर . कुछ और शब्द चल निकले हैं "कुर्सी -माफिया ",वन -माफिया ,मोबोक्रेसी ...

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    1. वीरू जी, इस जानकारी को यहां पर साझा करने के लिए आभार।

      हटाएं
  33. सूचनावर्धक लेख ..जानकारी देने के लिए,आभार.

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  34. आप सबके उत्‍साहवर्द्धन के लिए हार्दिक आभार।

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  35. बहुत सुन्दर उपयोगी और ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आभार.

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  36. बहुत विस्तार से हिन्दी-उर्दू भाषा की जानकारी मिली. ज्ञानवर्धक लेख के लिए धन्यवाद.

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  37. "देशभक्ति एवं समाजवाद की नई अभिव्यक्ति अंग्रेजी साहित्य की देन है।..."
    ---इसे जाने कितने झूठ हम लोगों ने अंग्रेजियत के साये में पाल रखे हैं ....राष्ट्र व देश की प्रार्थना आदि सभी कुछ वेदिक साहित्य में मौजूद है ...

    "फारसी और हिन्दी के बीच आपसी सम्पर्क बढ़ने से हिन्दी भाषा का जबरदस्त विकास देखने को मिला।".....
    -----यूं तो सभी भाषाओं का एक दूसरे पर प्रभाव पडता है ....परन्तु इससे हिन्दी का विकास नहीं अपितु नयी भाषा..उर्दू भाषा की उत्पत्ति हुई और हिन्दी का विकास पिछड़ गया .....

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  38. बेनामी12/01/2012 10:18 pm

    Very Good article.

    Hindi still can be simplified if written in India's simplest shirorekhaa and nutkaa free Gujarati script.

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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हिंदी वर्ल्ड - Hindi World: कितनी बदल रही है हिन्‍दी !
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