..क्‍या आपकी किताब वास्‍तव में कोई पढ़ना चाहता है?

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कुछ लोगों के लिए लिखना बड़ी बात है, कुछ लोगों के लिए छपना। और कुछ लोगों के लिए यह सब देख कर आश्‍चर्यचकित रह जाना ? कुछ पाठक यह जा...

कुछ लोगों के लिए लिखना बड़ी बात है, कुछ लोगों के लिए छपना। और कुछ लोगों के लिए यह सब देख कर आश्‍चर्यचकित रह जाना? कुछ पाठक यह जानने की फिराक में रहते हैं कि लोग इतना कैसे लिखते हैं? कुछ लोग यह देखकर हतप्रभ रहते हैं कि कुछ लेखक इतनी किताबें कैसे छपवा लेते हैं? जबकि कुछ लोग अक्‍सर दबी जबान से पूछना चाहते हैं कि आप इतना क्‍यों लिखते हैं? इतनी किताबें क्‍यों छपवाते हैं? आखिर क्‍या सार्थकता है इनकी? क्‍योंकि किताबें छप तो जाती हैं, लेकिन उसके बाद कहाँ जाती हैं, यह सबको पता है। उनके नसीब में अंतत: गोदाम आते हैं या फिर सरकारी लाइब्रेरियाँ। उनकी किस्‍मत में पाठक कहाँ हैं? कितने हैं?

 

यूँ तो मेरी भी पाँच दर्जन से अधिक किताबें अब तक छप चुकी हैं, लेकिन उन किताबों के हिस्‍से में कितने पाठक आए हैं, मुझे नहीं पता। इन सभी किताबों के एवज में मुझे कितनी मुद्रा मिली है, मैं यह तो जोड़-जाड़ कर बता सकता हूँ, पर इनके हिस्‍से में कुल कितने वास्‍तविक पाठक आए हैं, यह मैं चाह कर भी नहीं बता सकता। क्‍योंकि इनमें से कुछ किताबें व्‍यक्तिगत भेंट स्‍वरूप लोगों के घरों में पहुँची होंगी, कुछ समीक्षा के नाम पर जबरदस्‍ती कहीं से कहीं होती हुई कबाड़ी की दुकान तक पहुँची होंगी, कुछ सरकारी खरीद का हिस्‍सा बन कर लाइब्रेरियों में धूल खा रही होंगी, कुछ लोगों ने अपनी पसंद से खरीदी (आश्‍चर्यचकित न हों, किताबों की मिलने वाली रॉयल्‍टी इस बात की गवाही है) होंगी और कुछ गोदामों में शायद दीमकों का पेट भर रही होंगी। हम मानें या न मानें पर स्थितियाँ यही हैं।

लेकिन नाउम्‍मीदी के घनघोर अंधेरे के बीच भी उम्‍मीद की एक किरण सदैव जगमगाती है। ऐसा ही सुखद अनुभव शनिवार 03 मार्च को भी हुआ, जब तीन पाठकों के मनीआर्डर एक साथ मिले। इन तीनों लोगों ने हिन्‍दी में पटकथा लेखन पुस्‍तक का मूल्‍य भेज कर पुस्‍तक मंगाई है। उत्‍तर प्रदेश हिन्‍दी संस्‍थान, लखनऊ से प्रकाशित यह पुस्‍तक टीवी एवं फिल्‍म की स्क्रिप्‍ट लेखन के बारे में विस्‍तार से जानकारी देने के उद्देश्‍य से एक फेलोशिप के तहत 2005 में लिखी गयी थी, जिसे वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्‍दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से संस्‍थान ने वर्ष 2009 में प्रकाशित किया है। चूँकि संस्‍थान इस किताब की रॉयल्‍टी नहीं देता है, इसलिए वहाँ से यह कितनी किताबें बिकीं, इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है, पर अपने ब्‍लॉग पर इसकी सूचना लगाने के बाद से अब तक बीसियों लोगों ने फोन करके यह किताब खरीदने में रूचि दिखाई है।

अपने इस छोटे से अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि किताबें अब भी लोग पढ़ना चाहते हैं, बशर्ते वे रूचिकर हों, उपयोगी हों, उनकी जानकारी लोगों तक पहुँचे और उनके मूल्‍य लागत के अनुरूप हों।

इसी के साथ ही साथ यह भी कह सकता हूँ कि मैंने अब तक जो कुछ भी लिखा, उसमें से कम से कम एक पुस्‍तक तो ऐसी है, जिसकी लोगों को ज़रूरत है और उसके लिए वे सहर्ष पैसे खर्च करने को भी तैयार हैं।

एक लेखक के लिए भला इससे बढ़कर खुशी क्‍या होगी?

COMMENTS

BLOGGER: 20
  1. सबसे पहले तो किताब के लिए मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए...
    वाक़ई यह किताब बहुत उपयोगी है...ख़ासकर उनके लिए, जो इस क्षेत्र में जाना चाहते हैं...

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  2. उपयोगी पुस्तकें लोग अवश्य खरीदते हैं।

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  3. sarthak lekhan pathakon tak pahunch hi jata hai ...!!
    shubhkamnayen ...

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  4. बधाई हो, अच्छा लेखन सदा ही सराहा जाता है..

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  5. रूचि को पूरा करने वाली पुस्तक डॉ जाकिर भाई ज़रूर पढ़ी जाती है .शैली और पुस्तक की आकार का अपना महत्व होता है पुस्तक छरहरी ही भली ज्यादा चर्बी चढ़ाना ठीक नहीं .

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  6. रजनी में रजनीश की, धवल किरण इक आय ।
    कालनिषा में दी दिखा, पाठक एक उपाय ।


    पाठक एक उपाय, स्वान्त: लिखने वालों ।
    जांचो-परखो खूब, पकाओ पहले सालों ।

    हो जाये जब टेस्ट, छापिये पुस्तक अपनी ।
    तब दीमक न खाय, सुवासित होवे रजनी ।।

    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

    dineshkidillagi.blogspot.com


    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  7. अच्छी पुस्तकें पाठकों को भाती हैं ....बधाई ॥

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  8. बहुत बढ़िया ईमानदार लेख .....
    शुभकामनायें होली की ....

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  9. आपकी किताब पढ़ी जा रही है , यह तो वास्तव में ख़ुशी की बात है .
    बाकि तो आपने सही कहा --अँधा बांटे रेवड़ी वाला हिसाब है .

    वैसे दोस्तों के लिए ही सही , किताब छापने में क्या हर्ज़ है .

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  10. बधाई आपको ...अच्छा लिखा हुआ सब पढना चाहते हैं जो पढने में विशेष रूचि रखते हैं ...अच्छा लिखा है आपने

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  11. पढ़ने लायक पुस्तक अवश्य पढ़ी जाती है.

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  12. पुस्तक लिखना एक अलग बात है कोइ पढेगा या कोइ पढ़े या ना पढ़े |पुस्तक लिखी जाती है आत्म संतुष्टि के लिए बिजनेस के लिए नहीं |
    आशा

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  13. पढ़ने लायक पुस्तक अवश्य खरीदी जाती है और खरीदी गयी पुस्तक अवश्य पढी जाती है।

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  14. hamari bhi mubarakbaad.. aapki book ke liye..
    sarthak lekh.. sochna hoga:)
    holi ki shubhkamnayen...

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  15. ललितजी की बात से सहमती है...

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  16. होली पर बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  17. सही बात है.. अगर अच्छी किताब हो तो लोग पढ़ने को ज़रूर तैयार हैं..
    बस लोगों की पढ़ने में रूचि कहीं कम न होने पाए इसलिए अच्छी किताबों का निरंतर प्रकाशन होना ज़रूरी है..

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  18. मेरे हालात ऐसे नही ह की में कोई नावेल लेखन का कोर्स कर सकु कोई भारी फीस देकर लेकिन आपकी पुस्तक में भी पढना चाहता हु क्यू की में भी इसी क्षेत्र में जाना चाहता हु ।।पर क्या रुपये जमा करने के बाद किताब आएगी ।।।।
    मेरे लेखन का उदाहरण
    गुलशन में गुलाल उडाता फिर रहा
    हु में।।।इंतजार उसका आज भी कर रहा हु में।।।।क्या गलती हो गयी थी मूझसे
    खामयजा आज भी भुगत रहा हु में

    जवाब देंहटाएं
आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

नाम

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