(जनसंदेश टाइम्स, 14 दिसम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित) एक जमाना हुआ करता था जब शाम को खाना खाने के बाद बच...
(जनसंदेश टाइम्स, 14 दिसम्बर, 2011 के 'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित)
एक जमाना हुआ करता था जब शाम को खाना खाने के बाद बच्चे अपने दादा-दादी को घेर कर बैठ जाया करते थे और कहानियाँ सुना करते थे। राजा-रानी, परी-जादूगरों की वे कहानियाँ इतनी मजेदार हुआ करती थीं कि कब उन्हें सुनते-सुनते घंटों बीत जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था। समय बदला, लोग बदले और साथ ही बदल गया परिवार का ढ़ाँचा। अब न तो परिवार में दादा-दादी के लिए जगह बची है और न ही बचा है कहानियों के लिए स्पेस। आज के प्रतिद्वन्द्विता के युग में ढ़ली पढ़ाई में न तो बच्चों के पास कहानियों के लिए समय बचा है और न ही कहानियों के सुनाने वालों के पास अब बच्चे ही पहुँच पाते हैं।
राजा-रानी का दौर खत्म हुए एक युग बीत चुका है। यही कारण है कि घोड़े पर चढ़ कर आते हुए राजकुमार अब कहीं नहीं नजर आते। राजकुमारियों के किस्से भी अब पुराने पड़ चुके हैं। लेकिन बावजूद उसके वे कथानक, वे स्मृतियाँ अब भी लोगों के जेहन में जिन्दा हैं। यही कारण है कि माँ-बाप अपने बच्चों की तारीफ करते हुए उन्हें अक्सर ‘राजा बेटा’ और ‘नन्हीं राजकुमारी’ जैसे विशेषणों का इस्तेमाल करते पाए जाते हैं। ब्लॉगजगत में जहाँ एक ओर ऐसे तमाम नन्हें राजकुमार और राजकुमारियाँ अपनी शैतानियों के कारण चर्चा में रहते हैं, वहीं एक शख्शियत ऐसी भी है, जो यूँ तो ब्लॉग की दुनिया की चर्चित हस्ती है, लेकिन अपने को शब्दों के द्वीप की राजकुमारी के रूप में प्रस्तुत करती है। उस चर्चित ब्लॉगर का नाम है सुश्री फ़िरदौस ख़ान ।
फ़िरदौस एक युवा लेखिका हैं। वे पत्रकार के साथ-साथ शायरा और कहानीकार के रूप में भी जानी जाती हैं और उर्दू, हिन्दी तथा पंजाबी साहित्य में समान रूप से रूचि रखती हैं। अनेक दैनिक एवं साप्ताहिक समाचार पत्रों, रेडियो तथा टेलीविजन चैनलों के लिए काम कर चुकी फ़िरदौस वर्तमान में 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक का दायित्व संभाल रही हैं। वे वर्ष 2007 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और अपने ब्लॉग ‘मेरी डायरी’ (http://firdaus-firdaus.blogspot.com) के लिए जानी जाती हैं।
‘मेरी डायरी’ फ़िरदौस का एक समसामयिक ब्लॉग है, जिसमें वे बेबाक शैली में अपने विचार रखती हैं। साहित्य और विशेषकर उर्दू साहित्य से गहरा जुड़ाव होने के कारण जहाँ उनके शब्दों में उर्दू की मिठास मिलती है, वहीं पत्रकारिता के गहन अनुभव के कारण उनकी भाषा में एक तीखी धार का भी एहसास होता है। यही कारण है कि वे जब किसी ज्वलंत मुद्दे पर अपनी बात रखती हैं, तो वह काफी मारक हो जाती है। जब वे अपनी कलम की ज़द में धार्मिक रीति-रिवाजों को लेकर आती हैं, तो अक्सर विवाद की ऊँची-ऊँची लपटें उठने लगती हैं। कभी-कभी इन विषयों पर लिखते समय अपने खिलाफ उठने वाले विवाद के कारण ऐसा भी होता है कि वे शालीनता की सीमा रेखा के आसपास पहुँच जाती हैं। लेकिन न तो वे इस बात का कोई मलाल रखती हैं और न ही वे इस वजह से होने वाली तीखी आलोचनाओं के कारण अपनी सोच से पीछे हटने के लिए तैयार नजर आती हैं।
एक विचारवारन मुस्लिम महिला होने के कारण फ़िरदौस कठमुल्लावाद की सख़्त विरोधी हैं और मुस्लिम महिलाओं को आगे बढ़कर समाज की मुख्य धारा में शामिल होने की हिमायती हैं। वे गर्व के साथ अपने को भारतीय नारी कहती हैं और न सिर्फ मुस्लिम महिलाओं पर लादी गई ज्यादतियों का विरोध करती हैं, वरन बड़े फख्र से बताती हैं कि हमने अम्मी, दादी, नानी, मौसी और भाभी को बुर्क़े की क़ैद से निजात दिलाई है। वे मुस्लिम समाज में व्याप्त दकियानूसी विचारधाराओं की सख्त आलोचक हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपने ब्लॉग पर सबसे ज्यादा अगर किसी विषय पर लिखा है, तो वह इस्लाम और मुस्लिम समाज ही है।
'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक किताब की लेखिका फ़िरदौस हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की भी जानकार हैं और अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुकी हैं। उनके साहित्यिक रूझान की झलक उनके ब्लॉग ‘फ़िरदौस डायरी’ (http://firdausdiary.blogspot.com) से मिलती है, जिसपर वे अपनी नज्मों के साथ-साथ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्व के विषयों पर लेखन करती पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त वे अपने उर्दू ब्लॉग ‘जहाँनहुमाँ’, पंजाबी ब्लॉग ‘हीर’ एवं अंग्रेजी ब्लॉग ‘द पैराडाइज़’ के लिए भी जानी जाती हैं, जिनके लिंक उनके हिन्दी ब्लॉग ‘मेरी डायरी’ पर देखे जा सकते हैं।
एक प्रगतिशील चिठ्ठाकारा से मिलवाने के लिए शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंफिरदौसजी का लेखन नियमित पढ़ने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंAchha laga firdaus ji se mil ke.
जवाब देंहटाएंAfroz jahan, Aagra
फ़िरदौस जी को ज्यादा तो नहीं पढ़ा है, कभिकभार ही पढ़ा है पर जितना भी पढ़ा है, प्रभावित उन्हों ने अवश्य किया है...
जवाब देंहटाएंयहाँ पढी फ़िरदौस जी की इतनी ढेर सारी खूबियों को जानता न था...
काफी मुस्तैदी से लिखी यह तहरीर फ़िरदौस जी की खूबियों को बिल्कुल ही सही-सही निखार पाई है...साथ ही डॉ.जाकिर अली 'रजनीश' जी का उनका खुद का भी परिचय करा गई है...फ़िरदौस जी का सही-सही परिचय कराती यह तहरीर वाक़ई बेहद दिलचस्प बनी है जिसे शुरु की और
पूरी पढे बिना भी न रह पाया...
वैसा ही लेखन फ़िरदौस जी का जारी रहे...आमीन.
रजनीश साहब!
जवाब देंहटाएंलफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के बारे में आपका लेख पढ़ा... इसके लिए आपका जितना आभार व्यक्त करें कम ही है........फिर भी आभार..........
लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी की तहरीरें पढ़ना हमेशा से ही अच्छा लगता है..... उनके बारे में भी पढ़कर बेहद ख़ुशी हुई....हमें इस बात पर हमेशा फ़क्र होता है कि हम उन्हें जानते हैं.....वो जितनी अच्छी लेखिका हैं, उतनी ही अच्छी इंसान भी हैं....एक ही शख्सियत में इतनी खूबियां बहुत कम ही देखने को मिलती हैं......वो कई ज़बानों की जानकार हैं......कई विधाओं में लिखने में उन्हें महारत हासिल है.....सियासत में भी उनका अच्छा दख़ल है...देश की कई शीर्ष पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं के लिए उन्होंने तक़रीरें लिखी हैं...डिफ़ेंस में भी रही हैं... सोचते हैं कि उनके बारे में लिखेंगे तो लफ़्ज़ कम पड़ जाएंगे........
रजनीश जी...
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ी...
इतना कहना चाहेंगे कि हम भी अपने बारे में लिखने बैठते तो इतना अच्छा-अच्छा नहीं लिख पाते, जितना अच्छा-अच्छा आपने लिखा है...
आपके लिखने के अंदाज़ के तो हम पहले से ही क़ायल हैं...
सच! आपने तो हमसे हमारा ही तअरुफ़ करा दिया...वो भी इतने दिलकश अंदाज़ में...क्या कहने...
तारीफ़ और शुक्रिया के लिए हमें लफ़्ज़ ही नहीं मिल पा रहे हैं...
वाक़ई... ज़र्रे को आफ़ताब बनाना तो कोई आपसे सीखे...
आभार...............................
फिरदौस जी, ये आपका बडप्पन है।
जवाब देंहटाएं