ब्‍लॉगवाणी: डॉ. अरविंद मिश्र के ब्‍लॉगों की रोचक दुनिया!

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  (जनसंदेश टाइम्‍स, 21 दिसम्‍बर, 2011 के 'ब्‍लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित) भारत विश्‍व के उन देशों में शामिल है, जहाँ पर ...


 (जनसंदेश टाइम्‍स, 21 दिसम्‍बर, 2011 के 'ब्‍लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित)
भारत विश्‍व के उन देशों में शामिल है, जहाँ पर आदिकाल से ही ज्ञान-विज्ञान की समृद्ध परम्‍परा रही है। इस परम्‍परा के अन्‍तर्गत जहाँ एक ओर चरक और सुश्रुत ने स्‍वास्‍थ्‍य विज्ञान के नये आयाम दुनिया के सामने रख उसे चमत्‍कृत किया, वहीं आर्यभट और भास्‍कराचार्य ने गणित और खगोल विज्ञान की अनेक उल्‍झनों को पहली बार सुलझा कर सम्‍पूर्ण विश्‍व में भारतीय मेधा का डंका बजाया। किन्‍तु कालान्‍तर में हमारे समाज में कुछ ऐसे बदलाव हुए कि ज्ञान-विज्ञान की वह प्राचीन परम्‍परा विनष्‍ट हो गयी और उसके स्‍थान पर हर प्राचीन बात को सत्‍य मानने की रूढि़ प्रचलित हो चली। इसका दुष्‍परिणाम यह हुआ कि समाज में वाद-विवाद की समृद्ध परम्‍परा समाप्‍त हो गयी और जनमानस में अंधविश्‍वास घर करता गया।

लेकिन बावजूद इसके हमारे समाज में चेतना सम्‍पन्‍न मनुष्‍यों की कमी कभी नहीं रही। तार्किक सोच एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्‍पन्‍न इस विद्वत समाज ने न सिर्फ इस अतार्किक विचारधारा से लोहा लिया, वरन समाज में वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने के लिए अपना सम्‍पूर्ण जीवन न्‍यौछावर कर दिया। डॉ0 अरविंद मिश्र एक ऐसे ही व्‍यक्ति हैं, जो हिन्‍दी के प्रमुख विज्ञान संचारक के रूप में जाने जाते हैं और विज्ञान संचार की एक प्रमुख विधा विज्ञान कथा के सशक्‍त हस्‍ताक्षर के रूप में पहचाने जाते हैं। उनके इन दोनों पहलुओं पर केन्द्रित दो ब्‍लॉग हैं साइंस फिक्‍शन इन इंडिया (http://indiascifiarvind.blogspot.com) और साई ब्‍लॉग (http://indianscifiarvind.blogspot.com

वाराणसी निवासी डॉ0 मिश्र मत्‍स्‍य विभाग में सीनियर अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। वे हिन्‍दी विज्ञान कथा के एक सशक्‍त हस्‍ताक्षर हैं और एक वरिष्‍ठ विज्ञान संचारक के रूप में भी जाने जाते हैं। उनकी उससे भी बड़ी पहचान यह है कि वे एक स्‍पष्‍टवादी इंसान हैं। आज के समय में जब हर व्‍यक्ति सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है, वे हमेशा दूसरों को आगे बढ़ाते हैं और विज्ञान संचार, विज्ञान कथा तथा विज्ञान ब्‍लॉगिंग को प्रमोट करने के लिए दिन-रात रत रहते हैं। डॉ0 मिश्र एक व्‍यक्ति से ज्‍यादा विचार के रूप में प्रभावित करते हैं। उनके अंदर विज्ञान संचार के प्रति एक जुनून है। उन्‍होंने इस दिशा में अतुलनीय कार्य किया है। और उससे भी बड़ी बात यह कि उन्‍होंने विज्ञान कथा एवं विज्ञान ब्‍लॉगिंग दोनों में कार्य करने के लिए तमाम लेखकों को प्रेरित कर इसे एक आंदोलन सा रूप प्रदान किया है।

एक और क्रौंच वध तथा राहुल की मंगल यात्रा विज्ञान कथा संग्रहों के रचनाकार तथा विज्ञान संचार के लिए अनेकानेक पुरस्‍कारों एवं सम्‍मानों से विभूषित डॉ0 अरविंद मिश्र ने हिन्‍दी में विज्ञान कथाओं को प्रमोट करने के लिए अनेक कार्य किये हैं, जिनमें हिन्‍दी विज्ञान कथा लेखक समिति की स्‍थापना, विज्ञान कथा (त्रै0) पत्रिका की शुरूआत तथा विज्ञान कथा केन्द्रित अनेकानेक संगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं का आयोजन शामिल है। विज्ञान कथाओं के बारे में ऑनलाइन दुनिया में चेतना जगाने के लिए भी उन्‍होंने वर्ष 2007 में साइंस फिक्‍शन इन इंडिया ब्‍लॉग की शुरूआत की थी, जिसमें हिन्‍दी ही नहीं बल्कि भारतीय और वैश्विक विज्ञान कथाओं के विविध पहलुओं पर वे हिन्‍दी और अंग्रेजी में अपने विचार व्‍यक्‍त करते रहते हैं।

साई ब्‍लॉग डॉ0 मिश्र का दूसरा चर्चित ब्‍लॉग है, जो हिन्‍दी में विज्ञान संचार के प्रमुख ब्‍लॉगों में से एक है। यहाँ पर मानव व्‍यवहार, जीव जन्‍तुओं के व्‍यवहार, वैज्ञानिक घटनाओं, विज्ञान के सिद्धाँतों पर ही नहीं सौन्‍दर्य और रोमांस पर भी रोचक लेख देखने को मिलते हैं। डॉ0 मिश्र विज्ञान को छप्‍पन भोग की परात में परोसने के हिमायती हैं, ताकि आम पाठक उससे बिदके नहीं और उस तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात भी पहुँच जाए। यही कारण है कि उनके विज्ञान विषयक तमाम पोस्‍टें न सिर्फ रोचक और पाठनीय होती हैं, वरन अपनी स्‍पष्‍टवादिता के कारण वे अक्‍सर नए-नए विमर्शों को भी जन्‍म देती हैं।

डा0 मिश्र जिस बात के लिए सबसे ज्‍यादा जाने जाते हैं वह है उनका खरी-खरी कहने का स्‍वभाव। वे 'मन में राम बगल में छूरी' वाले सिद्धांत को न तो वे पसंद करते हैं और न ही ऐसे लोगों से सम्‍बंध ही रखते हैं। अपनी स्‍पष्‍टवादिता के कारण अक्‍सर वे अनचाहे विवादों में भी घिर जाते हैं, लेकिन 'सांच को आंच नहीं' की तर्ज पर वे उसकी परवाह नहीं करते और जिस तरह जंगल में शेर सीना तान कर विचरता है, उसी प्रकार वे भी ब्‍लॉग जगत में भ्रमण करते रहते हैं। उनके इस  खरे रूप का परिचय उनके व्‍यक्तिगत ब्‍लॉग क्वचिदन्यतोSपि (http://mishraarvind.blogspot.com) पर पाया जा सकता है।

उपरोक्‍त तीन ब्‍लॉगों के अतिरिक्‍त भी ऐसे बहुत से ब्‍लॉग हैं, जिन्‍हें उन्‍होंने न सिर्फ अपने ज्ञान से सजाया एवं संवारा है, वरन उनकी स्‍थापना में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे ब्‍लॉगों में तस्‍लीम, भारतीय भुजंग, साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन एवं सर्प संसार के नाम प्रमुख हैं। संक्षेप में कहा जाए तो वे विज्ञान संचार की एक ऐसी संस्‍था के समान हैं, जो सदैव अपने उद्देश्‍य के प्रति समर्पित रहती है। निश्‍चय ही ऐसे समर्पित लोगों की हमारे समाज में बहुत कमी है।
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COMMENTS

BLOGGER: 18
  1. श्री मिश्रजी की चिन्तन प्रक्रिया में डूबना अपने आप में एक अनुभव है।

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  2. हम भी लगातार लाभान्वित होते रहते हैं मिश्र जी से.

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  3. अरविन्दजी का लेखन कभी रोचक, कभी गंभीर होता है| हर बार उनकी पोस्ट्स में कुछ नया पढने जानने को मिलता है अपने विचरों को बहुत प्रभावी ढंग से साझा करते हैं| नियमित रूप से उनके ब्लॉग पर जाना होता है|उनकी स्पष्टवादिता कई बार उनके ब्लॉग पर और टिप्पणियों में देखी है.........

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  4. अरविन्द मिश्र जी के बारे में विस्तार से और जानकर अच्छा लगा ।
    व्यस्त जीवन में ब्लोगिंग के प्रति इतना समर्पित रहना वास्तव में मिश्र जी जैसा एक जुझारू आदमी ही कर सकता है । खरा होना भी सबके बस की बात नहीं ।

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  5. हमारे लिए तो पंडित जी ही हैं.. एक अनोखे व्यक्तित्व के स्वामी!!

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  6. मिश्र जी की ब्लॉगिंग प्रेरक हैं।

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  7. अरविन्द मिश्र जी के बारे में विस्तार से जानकर बहुत अच्छा लगा... आभार

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  8. ये क्या कर /लिख डाला:) अब तो आपको २६ -२७ के कार्यशाला की ओर प्रयास उन्मुख करना होगा ..उधर जमें ! आभार! इसकी जानकारी सुबह अविनाश वाचस्पति जी के चैट और अब अनवर जमाल के मेल से मिली है -उन्हें भी बजरिये आप बहुत धन्यवाद!

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  9. अरविन्द जी के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा।

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  10. वाह! एक गुण ही पर्याप्त है प्रभावित होने के लिए यहां तो कई हैं!!..बहुत अच्छी पोस्ट।

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  11. अरविंद जी के बारे में बहुत देर से लिखा गया।

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  12. अरविंद जी, कार्यशाला की तैयारियां फिट है। आप उससे निश्चिंत रहें। मुझे तो कार्यशाला के साथ कॉलम भी देखना है, इसलिए इसे तो एक सप्‍ताह पहले ही लिख लिया था।

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  13. द्विवेदी जी, मैं आपका ध्‍यान काव्‍य गोष्‍ठी के मंचों की ओर ले जाना चाहूंगा, वहां पर वरिष्‍ठ रचनाकारों को बाद में ही काव्‍य पाठ के लिए आमंत्रित किया जाता है। :)

    चूंकि ‘क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन’ कार्यशिविर पहले से लखनऊ में होना तय था, इसलिए मैंने पहले से सोच लिया था, जब वे उसमें भाग लेने के लिए लखनऊ आएंगे, तभी उनके स्‍वागत में उनकी चर्चा की जाएगी।

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  14. विज्ञान पुस्तकों का जो हिंदी अनुवाद विभिन्न अकादमियों ने प्रकाशित किया है,वह इस कारण दुर्बोध हो गया है कि विज्ञान की मूल अवधारणाएं पश्चिम की देन हैं,इसलिए,उनका हिंदी समतुल्य ढूंढना टेढ़ी खीर है। इस दिशा में गुणाकर मुले जी के काम को आगे बढ़ाने के लिए,प्रतिफल की चिंता किए बगैर,अथक प्रयास की ज़रूरत है। इस दिशा में कोई भी योगदान भावी पीढ़ी पर एक बड़ा उपकार है।

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  15. मिश्राजी के सबसे बड़े वाले फैन हम हैं :-)

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आपके अल्‍फ़ाज़ देंगे हर क़दम पर हौसला।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया! जी शुक्रिया।।

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